अरनब की बात सुनकर पवार बोले; "यू सी मिस्टर गोस्वामी, आई एम आन्स्वरेबल नॉट ओनली टू सुप्रीम कोर्ट बट आल्सो टू द इंटर्नेशनल कम्यूनिटी. आई एम आल्सो प्रेसिडेंट ऑफ आई सी सी. इफ आई स्पेंड आल माई टाइम एक्ज्क्यूटिंग सुप्रीमकोर्ट ऑर्डर, ह्वेन विल आई वर्क फॉर आई सी सी? आल्सो, प्लीज नोट दैट जस्ट ऐज इट इज नॉट ईजी टू पनिश क्रिकेटर्स इन फिक्सिंग स्कैंडल्स, इट्स आल्सो नॉट ईजी टू डिस्ट्रीब्यूट वन ट्वेंटी टू मिलियन बुबुज़ेला थ्रो पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम".
इतना कहकर शरद पवार चुप हो गए.
बात यह थी कि टाइम्स नाऊ के प्राईम टाइम पर रोज की तरह पैनल डिस्कशन चल रहा था.
फ़ुटबाल वर्ल्डकप में वुवुज़ेला की अपार सफलता को देखते हुए और देशवासियों में खेल की भावना जागृत करने के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स की आर्गेनाइजिंग कमिटी ने किसी विदेशी कंपनी से एक करोड़ बाईस लाख बुबुज़ेला इम्पोर्ट कर लिया था. स्टेडियम वगैरह के समय पर तैयार नहीं होने की वजह से और इन गेम्स में भ्रष्टाचार की बातों की वजह से आर्गेनाइजिंग कमिटी यह भूल गई कि उसे इम्पोर्ट किये गए बुबुज़ेला को बाज़ारों में किसी रिटेल चेन के थ्रू बेंचना भी था. एक रेलवे यार्ड में खुले में रखे गए ये बुबुज़ेला बरसात की वजह से वैसे ही सड़ रहे थे जैसे सरकार द्वारा खरीदा गया गेंहू. ऊपर से खुले में रखे जाने की वजह से कोई भी यार्ड से वुवुज़ेला की चोरी कर ले रहा था.
एक दिन पी आई एल के धंधे में माहिर किसी महापुरुष को याद आया कि सरकार को घेरने का यह सही समय था. सरकार की फजीहत तो होगी ही, फ्री में प्रचार भी मिलेगा. उसने न केवल इस बात पर शोर मचाया कि रेलवे यार्ड में इतनी बड़ी मात्रा में वुवुज़ेला सड़ रहे थे बल्कि उसने कुछ जासूसी की अपनी काबिलियत और कुछ आर टी आई के सहारे यह पता भी लगाया कि जहाँ एक बुबुज़ेला बाज़ार में चार रूपये में बिकता है वहीँ कॉमनवेल्थ गेम्स आर्गेनाइजिंग कमिटी ने विदेशी कंपनी को एक बुबुज़ेला के लिए तीन सौ नब्बे रूपये चालीस पैसे पेमेंट किये थे. ऊपर से इतना पैसा खर्च करने के बाद इम्पोर्ट किया गया पूरा कन्साइन्मेन्ट रेलवे यार्ड में सड़ रहा था.
उसने इन्ही बातों के ऊपर सुप्रीमकोर्ट में एक पी आई एल फ़ाइल कर दिया था.
पी आई एल की बात सुनकर टीवी न्यूज चैनल वालों की तो जैसे चांदी हो गई थी. पंद्रह दिन बीत गए थे और कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार का एक भी नया मुद्दा नहीं आया था. इन गेम्स के लिए खरीदे गए चार हज़ार रूपये प्रति रोल के टायलेट पेपर की बात अब तक पुरानी हो गई थी. बस फिर क्या था, सारे चैनल वाले एक बार फिर से कलमाडी और सरकार के पीछे पड़ गए थे.
पी आई एल की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब माँगा कि क्यों नहीं खरीदे गए वुवुज़ेला देशवासियों को सार्वजानिक वितरण प्रणाली यानि पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के थ्रू बेंच दिए जाएँ? ऐसा करने से नुक्सान की भरपाई हो सकेगी. सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था.
सरकार ने एक ग्रूप ऑफ मिनिस्टर्स बना दिया जो मीटिंग वगैरह करके बताएगा कि वुवुज़ेला के मामले में सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए. ग्रूप ऑफ मिनिस्टर्स की मीटिंग हुई. जी ओ एम के हेड ने मीटिंग शुरू करते हुए कहा; "ऐज उइ नो, सुप्रीमकोर्ट हैज आस्क्ड दा गभारमेंट टू फाईल आ रिप्लाई ईन दी मैटार ऑफ दीस वुवुज़ेला इम्पोर्ट केस."
जी ओ एम के एम मेंबर ने कहा; "माननीय सुप्रीमकोर्ट तो आजकल हर बात में सरकार को निर्देश दे रहे हैं. लगता है जैसे विधायिका की कोई इज्ज़त ही नहीं है. अभी हाल ही में ऑर्डर दिया कि सड़ता हुआ गेंहू गरीबों में बाँट देना चाहिए. अरे ऐसे कैसे बाँट दिया जाय?"
एक और मेंबर ने कहा; "बिलकुल. अरे सरकार का काम करने का अपना तरीका है कि नहीं? जब इच्छा हुई तब गेंहू गरीबों में बाँट दो. ऐसे सरकार चलती है क्या?"
हेड बोले; "बाट, उइ हैब टू टेक ए स्टांड. उइ उविल हैब टू रिप्लाई टू दा सुप्रीमकोर्ट. इट्स मैटार ऑफ ग्रेट इम्पार्टेंस."
एक मेंबर बोले; "वो तो है. वैसे भी सुप्रीमकोर्ट इस बात पर नाराज़ है कि कृषिमंत्री ने सड़ते हुए अनाज को गरीबों में बाँट देने की बात पर दो टूक जवाब दे दिया कि वे ऐसा नहीं कर सकते. अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट और नाराज हो गए तो सरकार की बड़ी बेइज्जती होगी."
सभी मेम्बर्स सोच रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट को कैसे शांत किया जाय? क्या जवाब दिया जाय? सरकार की नाक कैसे बचाई जाय?
तभी धीर-गंभीर श्वेत वस्त्र पहने चश्मा लगाये एक मेम्बर जो अपने ब्रेनवेव के लिए मशहूर हैं, ने कहा; "सी, ह्वाट वी कैन डू इज वी कैन रिप्लाई टू द आनरेबल सुप्रीम कोर्ट दैट वी आर रेडी टू सेल वुवुज़ेला थ्रू पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम. बाई डूइंग दिस, वी विल बी एबिल टू नॉट ओनली सेव द गोवंमेंट्स फेस बट आल्सो न्यूट्रेलाइज द इफेक्ट्स ऑफ आवर इन-एबिलिटी टू डिस्ट्रीब्यूट राटिंग ग्रेन्स टू पूअर्स."
जी ओ एम के हेड ने पूछा; "बाट इयु बिलीभ, दीस वूड बी ए नाईस आईडिया टू डू दीस?"
उस मेंबर ने कहा; "प्लीज डोंट डाऊट माई आइडीयाज. हैड आई बीन फिनांस मिनिस्टर इन योर प्लेस, आई वूड हैव इंट्रोड्यूसड नक्सल काम्बैटिंग सेस बाई नाऊ एंड गाव्मेंट वूड हैव हैड ए न्यू अवेन्यू ऑफ इनकम."
उनकी बात का समर्थन करते हुए एक और मेंबर ने कहा; "आप सही कह रहे हैं. अरे जनता को अनाज नहीं देंगे तो कुछ तो देंगे जिससे उसका मन लगा रहे. और इसके लिए वुवुज़ेला से बढ़िया और क्या होगा? जनता कॉमनवेल्थ गेम्स में मैराथन देखेगी और वुवुज़ेला बजाएगी. उसका मन भी लगा रहेगा और सरकार को भी विरोध वगैरह से राहत मिलेगी."
दो दिन बाद सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को जो रिप्लाई दिया उसमें लिखा था;
माननीय सुप्रीमकोर्ट को यह बताते हुए सरकार को प्रसन्नता हो रही हैं कि वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सहायता से कॉमनवेल्थ गेम्स आर्गेनाइजिंग कमिटी द्वारा आयात किये गए वुवुज़ेला को आम जनता को सस्ते दरों पर बेंचने के लिए लिए तैयार है. सरकार ने यह फैसला भी किया है कि चूंकि आर्गेनाइजिंग कमिटी ने केवल एक करोड़ बाईस लाख वुवुज़ेला का आयात किया है और हमारे देश की आबादी देखते हुए यह संख्या बहुत कम है इसलिए सरकार करीब तीस करोड़ वुवुज़ेला और आयात करने का प्रस्ताव रखती है. इसके लिए जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टेंडर फ्लोट किये जायेंगे जिससे देश की जनता को पर्याप्त मात्रा में वुवुज़ेला उपलब्ध कराया जा सके. सरकार देश की जनता को सस्ते दरों पर वुवुज़ेला उपलब्ध कराने के लिए कटिबद्ध है.देश की जनता वुवुज़ेला का इंतज़ार कर रही है. कहते हैं लगातार झुनझुना बजाते हुए लोग बोर भी हो जाते हैं.
अब वुवुज़ेला बजाकर न स्वयं बोर होंगे न किसी को होने देंगे।
ReplyDeleteइतिहास में लिखने के लिए कोई मुद्दा तो चाहिए की नहीं? कैसा लगेगा जब 500 साल बाद बच्चे पढ़ेंगें, जब देश जल रहा था, देशवासी वुवुजेला बजा रहे थे.
ReplyDeleteयथार्थ लेखन।
ReplyDeleteगांभीर्य का परिचय।
फ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!
बहुत शानदार पोस्ट।
ReplyDeleteबंगला-हिंदी वाली बोलचाल पर आपकी अच्छी पकड़ है।
एकदम मस्त पोस्ट।
प्रिय मिसिर जी,
ReplyDeleteपिपिहरी बजा बजा कर बाजों की प्राइमरी में घिसे जा रहे हैं। पवार और पीडीएस की किरपा भई तो वुवुज़ेला में इस्नातकी कर लेंगे हम। इस जिनगानी से और क्या चाहिये।
बहुत बहुत धनबाद!
--- थेथर दास।
इस्नाकोत्तर का फ़ार्म कहा मिलेगा थेथर जी..?
ReplyDeleteअंग्रेजी के डाय्लोग्स में हिंदी के सब टाईटल भी होते तो बढ़िया रहता.. हम जैसो को भी समझ आ जाता कि नेता लोग हमरे भले के लिए का मगजमारी कर रहे है..
फ़ुरसत में .. कुश की कोफ़ी, “कुश” पर, ... आमंत्रित हैं!
@कुश - थेथर दास पिपिहरी रियाज़ कर रहे हैं, सनेस दिहे हैं कि आप फार्म बदे जुलू अनवरसिटी, पावर नगर, फीफा - १२३४२० से सम्पर्क करें।
ReplyDelete--- ओनकर भाइ।
अरे इ तो बढ़िया हो जायेगा, फिर पता भी नहीं चलेगा कि मच्छर भिभिना रहे हैं कि वुवुजेला !
ReplyDeleteबेचने का परमीशन तो है मगर बजाने का ?
ReplyDeleteआई एम प्लानिंग फ़ोर वुवुजेला क्लासेस... प्लीज कोन्टेक्ट फ़ोर एडमिशन..
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteक्या आप ब्लॉग संकलक हमारीवाणी.कॉम के सदस्य हैं?
@हमारीवाणी
ReplyDeleteनहीं जी, अभी तक तो सदस्य नहीं हैं. कहीं यह कानूनी अपराध तो नहीं है?...:-)
ekdam dhaansu hi nahi balki ekdam maarak.... majaa aa gaya bhai sahab....
ReplyDeleteकितनी रद्दी पोस्ट लिख डाली गुरु ! बदबू आ रही है ।
ReplyDeleteरद्दी= अच्छी
ReplyDeleteबदबू=खुश्बू
कहने को कुछ नहीं...अब तो इन्तजार है कि बुबुजुएला आ जाए तो हर बात पर बजायेंगे...
ReplyDeleteसार्थक व्यंग्य !!! शाबाश !!!
यू इंग्लिश प्रेमी मैन फर्सट आफ आल उ शुड टेल अस भाट इज वुवुजेला ???? बी हेब हर्ड अबाउट वेनिज़ुवेला बट नोट वुवुजेला...योअर इंग्लिश इज बेरी बीक...बी हेब नाट हर्ड, ईवन आवर फादर हेज नाट हर्ड लीव फादर,ईवन आवर फॉर फादर्स हेब नाट हेर्ड अबौट इट...बेन आवर फॉर फादर हेज नाट हेर्ड हाउ केंन बी हियर????? फर्सट यू शो अस दी पिक्चर आफ वुवुजुला देंन बी विल थिंक टू कमेन्ट ओंन योअर पोस्ट ...ऊके? नाव डोंट लुक एट माई फेस...ब्रिंग फोटो एंड रीराईट दी पोस्ट...गो..यू पूअर इंग्लिश फेलो....
ReplyDeleteनीरज
बढ़िया लिखा है!
ReplyDeleteक्या आपने 'बामुलाहिजा' विजिट किया ?
नहीं किया ???... ये तो कानूनी अपराध है !!
सुप्रीम कोर्ट को बोल देंगे तो अन्दर बैठके वुवुज़ेला बजाते बैठिएगा !!
फर्सट आफ आल उ शुड टेल अस भाट इज वुवुजेला ???? मुझे पूछना तो .ही सवाल था पर नीरज जी की भासा ज्यादा पसंद आ गई ।
ReplyDeleteजबरदस्त ।