......मॉरिशस के बारे में बात हो रही थी.
तो मैं कह रहा था कि मुंबई में बैठा उद्योगपति अगर यूपी स्थित अपनी कंपनी में पैसा लगाना चाहता है तो उसका पैसा मॉरिशस के रास्ते चलकर ही यूपी पहुँचता है. उद्योगपति यह नहीं चाहता कि मुंबई मेल वाया इलाहबाद पकड़े और पैसा दूसरे ही दिन यूपी में. ना, वह यह अफोर्ड नहीं कर सकता क्योंकि उसके सलाहकार ने उसे बता रखा है कि अपना ही रुपया अपनी कंपनी में लगाना भी चाहो तो सीधे-सीधे न लगाओ. पहले उसे मॉरिशस भेजो और वहाँ से उसकी एंट्री भारत में करवाओ. यह वैसी ही बात है जैसे कहीं-कहीं गावों में विवाह के बाद नई-नवेली दुल्हन को ससुराल वाले घर में कदम रखने से पहले किसी देवी के मंदिर या किसी पीपल के पेड़ की पूजा करवाने ले जाते हैं.
शायद भारत का ही पैसा भारत में ही प्रवेश करने से पहले मॉरिशस की तीर्थयात्रा कर आता है तो तन और मन से पवित्र हो जाता है.
गज़ब देश है यह मॉरिशस भी. मॉरिशस से मेरी और तमाम भारतीयों की पहली जान-पहचान वहाँ के भूतपूर्व प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने करवाई. मुझे याद है सत्तर के दशक के अंत में रेडियो पर अशोक बाजपेयी समाचार पढ़ते हुए हमें बताते थे कि; "आज दिल्ली में मॉरिशस के प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम से प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच समबन्धों को प्रगाढ़ किये जाने पर बल दिया."
रामगुलाम ज़ी की खासियत थी कि वे भारत के साथ सम्बन्ध मज़बूत करने के लिए जब-तब हमारी प्रधामंत्री से मुलाकात कर लेते थे. वे संबंधों के प्रगाढ़ किये जाने पर खूब बल देते थे. शायद उनके तब बल दिए जाने का ही असर है जो आज भारत और मॉरिशस के बीच संबंधों में दिखाई दे रहा है. रेडियो पर उनकी मुलाक़ात के बारे में सुनकर लगता था कि इस प्रधानमन्त्री के जीवन का उद्देश्य ही था कि वह यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ सबसे मुलाकात करता फिरे. वैसे बचपन के उनदिनों में रेडियो पर ऐसे समाचार सुनकर हमें गर्व की अनुभूति भी होती थी कि एक भारतीय विदेश में बसे एक देश का प्रधानमंत्री है. अस्सी के दशक में जब रामगुलाम ज़ी नहीं रहे तब अनिरुद्ध जगन्नाथ ज़ी ने हमारे और मॉरिशस के बीच के सम्बन्ध को और प्रगाढ़ कर डाला. यह वह समय था जब उनकी भारत यात्रा के बारे में हमें यज्ञदेव शर्मा और पंचदेव पाण्डेय से वाया आकाशवाणी सूचना मिलती थी.
सम्बन्ध आगे बढ़े तो १९८९ में मेरे और मॉरिशस के बीच दूरी तब और कम हो गई जब मैंने श्री अमिताभ बच्चन की 'फिलिम' अग्निपथ देखी. बड़ी धाँसू एंट्री मारी थी बच्चन ज़ी ने डैनी बाबू के अड्डे पर. जिसने भी अग्निपथ देखी होगी उन्हें याद होगा कि बच्चन ज़ी कैसे समुन्दर के अन्दर से बच्चन इस्टाइल में अपना सिर हिलाते हुए निकले थे और उन्हें देखकर डैनी ज़ी ने अपनी ओवरएक्टिंग का एक और नमूना फट से पेश कर दिया था. अपने छिछले समुन्दर और नारियल के पेड़ों के कारण मॉरिशस बड़ा सुन्दर और सुशील दिखाई दिया था. बच्चन ज़ी की फिल्म 'अग्निपथ' मॉरिशस के साथ हमारे फ़िल्मी सम्बन्ध की शुरुआत भर थी. आगे चलकर उन्ही की एक और फिल्म 'हम' ने इन संबंधों को और प्रगाढ़ कर डाला. क्या कहा? याद नहीं है? अरे जरा सा दिमाग पर जोर डालेंगे तो याद आ जाएगा कि कैसे गोविंदा और शिल्पा शिरोडकर अपने घर से बाइक पर निकलते हैं और सीधा मॉरिशस पहुंचकर वहाँ एयरपोर्ट पर खड़े एयर मॉरिशस के एक जहाज के पंखें पर नाचते हुए एक दूसरे को बताते हैं कि; "सनम मेरे सनम, कसम तेरी कसम, मुझे आजकल नींद आती है कम...."
पूरे ढाई किलो शुद्ध तुकबंदी वाला गाना.
अभी दो-ढाई साल पहले मैं एक भोजपुरी फिल्म देख रहा था....
क्षमा कीजिये मैं विषय से भटक गया. एक ब्लॉगर की यही समस्या है. उसे टोकने वाला कोई नहीं रहता है लिहाजा वह भटक कर किसी भी राह पर चला जाता है. और जब उसे होश आता है तो पता चलता है कि आधी पोस्ट में वह निरर्थक बातें लीप चुका है. ऊपर से इतनी निरर्थक बातें लिखने बाद उसके मन में लालच भी आ जाता है कि अब इसे मिटायेंगे तो पोस्ट को हरी-भरी करने के लिए फिर से कुछ और निरर्थक लिखना पड़ेगा. ऐसे में जाने दो जो लिखा गया वो लिखा गया. इसे मिटाने की ज़रुरत नहीं. जो कुछ भी है पड़ा रहेगा एक कोने में. क्या लेगा हमारा?
तो मैं भारत में लाये जाने वाले कैपिटल की बात कर रहा है. बड़ी विकट अफरा-तफरी है इन पैसों की वजह से. ऐसी लोक-कथा है कि किसी पूर्व वित्तमंत्री ने अपनी बहू के सुझाव पर (भारतीय राजनीति और उसकी नीति निर्धारण में बहुओं का बोलबाला पहले से रहा है) भारत और मॉरिशस के बीच कुछ ऐसे कागजी सम्बन्ध स्थापित किये कि पूछिए ही मत. उस कागजी समबन्ध के बाद भारत में मॉरिशस के रास्ते पैसा ही पैसा. हर क्षेत्र में पैसा. हर जगह पैसा. हर उद्योग में पैसा. हर राज्य में पैसा. और हर पैसे के केंद्र में मॉरिशस. एफ डी आई का पैसा मॉरिशस के रास्ते आ रहा है तो एफ आई आई का पैसा भी उसी रास्ते से आ रहा है. हाल यह है कि पिछले कई वर्षों में मॉरिशस से चले पैसे की लहरें भारतीय शेयर बाज़ारों के तटों से आकर ऐसे टकरा रही हैं कि कभी-कभी सुनामी आने का खतरा हो जाता है.
जिस तरह के खुलासे हो रहे हैं और जिस तरह से कुछ बातें सामने आ रही है उन्हें देखकर कभी-कभी लगता है कि हमारे उद्योगपतियों के फैसले न केवल उनके अर्थ सलाहकारों के सुझावों पर निर्भर करते हैं बल्कि उनके पंडितों और गुरुओं पर भी निर्भर करते हैं. पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि हर उद्योगपति का पंडित या गुरु उसे उपदेश देते हुए कहता होगा कि; "हे जजमान, भगवदगीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हे पार्थ कलियुग में भारतवर्ष में पैसा अगर मॉरिशस के रास्ते आएगा तो वह पवित्र पैसा होगा. जिस तरह से तीर्थराज प्रयाग में स्थित संगम में स्नान करने के बाद मनुष्य पवित्र हो जाता है वैसे ही मॉरिशस में स्थित गंगा तलाव की महिमा यह होगी कि वह मॉरिशस में आये हर पैसे को शुद्ध और पवित्र कर देगा....."
अब मॉरिशस की गिनती विश्व के अन्यतम टैक्स-हेवेन में होने लगी है और उसे यह दर्जा दिलवाने का काम इतना महत्वपूर्ण है कि आनेवाले समय में भारत को अपनी इस उपलब्धि को आगे रखकर सयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में परमानेंट सीट की दावेदारी प्रस्तुत करनी चाहिए. मामूली उपलब्धि नहीं है यह. मैं तो कहता हूँ कि इसके बल पर तो भारत खुद को पूरे विश्व के मुखिया के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकता है. नौ प्रतिशत विकास दर (दर लिखने गए तो जो शब्द पहले आया वह 'डर' था) एक एडिशनल क्वालिफिकेशन के तौर पर अपने साथ तो है ही.
इस उपलब्धि की वजह से परिवर्तन दिखाई भी दे रहा है. मैं तो स्कूलों के मास्टर ज़ी लोगों से अनुरोध करूँगा कि अब छात्रों को निबंध के लिए जो नए विषय दिए जायें उनमे भारतीय अर्थव्यवस्था में मॉरिशस का महत्व नामक विषय अवश्य दिया जाय. ऐसा करने से छात्र आधे तैयार होकर निकल सकेंगे. मॉरिशस सरकार को यह प्रयास करने चाहिए कि जिस तरह भारतवर्ष में मॉरिशस से आनेवाले पैसों के बारे में कोई पूछताछ नहीं होती उसी तरह से मॉरिशस से आनेवाले नागरिकों के बारे में कोई पूछताछ न की जाय. इससे दोनों देशों के बीच समबन्ध प्रगाढ़ तो होंगे ही, एक नई वैश्विक व्यवस्था पनप सकेगी. कितने दिनों तक शोध करने वाले हमारे छात्र अर्थशास्त्र के पुराने सिद्धांतों पर पी एचडी लेते रहेंगे? नए विषय के तौर पर इन छात्रों को "इमपौर्टेंस ऑफ मॉरिशस इन इंडियन इकॉनोमी" नामक विषय पर शोधपत्र लिखकर पी एचडी की डिग्री लेनी चाहिए. देसी विश्वविद्यालयों को चाहिए कि अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए इस विषय को आवश्यक कर दें. इससे देश की विकास दर के करीब दो प्रतिशत और बढ़ जाने की सम्भावना प्रबल हो जायेगी. हमारे जो नेता इस विषय पर पहले ही शोध ग्रंथ लिख चुके हैं उन्हें चाहिए कि वे नए आनेवाले नेताओं को अपने शोध ग्रंथ की न सिर्फ प्रतियाँ बातें बल्कि उन्हें अपनी तरफ से भी कुछ जोड़ देने के लिए प्रेरित करें. हमारी जांच एजेंसियों को चाहिए कि वे अपने अफसरों को मॉरिशस के बारे में अलग से ट्रेनिंग दें ताकि आनेवाले समय में उन्हें आर्थिक घपलों की जांच में कोई दिक्कत नहीं हो. हमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे................
तो मैं कह रहा था कि मुंबई में बैठा उद्योगपति अगर यूपी स्थित अपनी कंपनी में पैसा लगाना चाहता है तो उसका पैसा मॉरिशस के रास्ते चलकर ही यूपी पहुँचता है. उद्योगपति यह नहीं चाहता कि मुंबई मेल वाया इलाहबाद पकड़े और पैसा दूसरे ही दिन यूपी में. ना, वह यह अफोर्ड नहीं कर सकता क्योंकि उसके सलाहकार ने उसे बता रखा है कि अपना ही रुपया अपनी कंपनी में लगाना भी चाहो तो सीधे-सीधे न लगाओ. पहले उसे मॉरिशस भेजो और वहाँ से उसकी एंट्री भारत में करवाओ. यह वैसी ही बात है जैसे कहीं-कहीं गावों में विवाह के बाद नई-नवेली दुल्हन को ससुराल वाले घर में कदम रखने से पहले किसी देवी के मंदिर या किसी पीपल के पेड़ की पूजा करवाने ले जाते हैं.
शायद भारत का ही पैसा भारत में ही प्रवेश करने से पहले मॉरिशस की तीर्थयात्रा कर आता है तो तन और मन से पवित्र हो जाता है.
गज़ब देश है यह मॉरिशस भी. मॉरिशस से मेरी और तमाम भारतीयों की पहली जान-पहचान वहाँ के भूतपूर्व प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने करवाई. मुझे याद है सत्तर के दशक के अंत में रेडियो पर अशोक बाजपेयी समाचार पढ़ते हुए हमें बताते थे कि; "आज दिल्ली में मॉरिशस के प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम से प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच समबन्धों को प्रगाढ़ किये जाने पर बल दिया."
पैसा यहां से घूम कर आता है! |
सम्बन्ध आगे बढ़े तो १९८९ में मेरे और मॉरिशस के बीच दूरी तब और कम हो गई जब मैंने श्री अमिताभ बच्चन की 'फिलिम' अग्निपथ देखी. बड़ी धाँसू एंट्री मारी थी बच्चन ज़ी ने डैनी बाबू के अड्डे पर. जिसने भी अग्निपथ देखी होगी उन्हें याद होगा कि बच्चन ज़ी कैसे समुन्दर के अन्दर से बच्चन इस्टाइल में अपना सिर हिलाते हुए निकले थे और उन्हें देखकर डैनी ज़ी ने अपनी ओवरएक्टिंग का एक और नमूना फट से पेश कर दिया था. अपने छिछले समुन्दर और नारियल के पेड़ों के कारण मॉरिशस बड़ा सुन्दर और सुशील दिखाई दिया था. बच्चन ज़ी की फिल्म 'अग्निपथ' मॉरिशस के साथ हमारे फ़िल्मी सम्बन्ध की शुरुआत भर थी. आगे चलकर उन्ही की एक और फिल्म 'हम' ने इन संबंधों को और प्रगाढ़ कर डाला. क्या कहा? याद नहीं है? अरे जरा सा दिमाग पर जोर डालेंगे तो याद आ जाएगा कि कैसे गोविंदा और शिल्पा शिरोडकर अपने घर से बाइक पर निकलते हैं और सीधा मॉरिशस पहुंचकर वहाँ एयरपोर्ट पर खड़े एयर मॉरिशस के एक जहाज के पंखें पर नाचते हुए एक दूसरे को बताते हैं कि; "सनम मेरे सनम, कसम तेरी कसम, मुझे आजकल नींद आती है कम...."
पूरे ढाई किलो शुद्ध तुकबंदी वाला गाना.
अभी दो-ढाई साल पहले मैं एक भोजपुरी फिल्म देख रहा था....
क्षमा कीजिये मैं विषय से भटक गया. एक ब्लॉगर की यही समस्या है. उसे टोकने वाला कोई नहीं रहता है लिहाजा वह भटक कर किसी भी राह पर चला जाता है. और जब उसे होश आता है तो पता चलता है कि आधी पोस्ट में वह निरर्थक बातें लीप चुका है. ऊपर से इतनी निरर्थक बातें लिखने बाद उसके मन में लालच भी आ जाता है कि अब इसे मिटायेंगे तो पोस्ट को हरी-भरी करने के लिए फिर से कुछ और निरर्थक लिखना पड़ेगा. ऐसे में जाने दो जो लिखा गया वो लिखा गया. इसे मिटाने की ज़रुरत नहीं. जो कुछ भी है पड़ा रहेगा एक कोने में. क्या लेगा हमारा?
तो मैं भारत में लाये जाने वाले कैपिटल की बात कर रहा है. बड़ी विकट अफरा-तफरी है इन पैसों की वजह से. ऐसी लोक-कथा है कि किसी पूर्व वित्तमंत्री ने अपनी बहू के सुझाव पर (भारतीय राजनीति और उसकी नीति निर्धारण में बहुओं का बोलबाला पहले से रहा है) भारत और मॉरिशस के बीच कुछ ऐसे कागजी सम्बन्ध स्थापित किये कि पूछिए ही मत. उस कागजी समबन्ध के बाद भारत में मॉरिशस के रास्ते पैसा ही पैसा. हर क्षेत्र में पैसा. हर जगह पैसा. हर उद्योग में पैसा. हर राज्य में पैसा. और हर पैसे के केंद्र में मॉरिशस. एफ डी आई का पैसा मॉरिशस के रास्ते आ रहा है तो एफ आई आई का पैसा भी उसी रास्ते से आ रहा है. हाल यह है कि पिछले कई वर्षों में मॉरिशस से चले पैसे की लहरें भारतीय शेयर बाज़ारों के तटों से आकर ऐसे टकरा रही हैं कि कभी-कभी सुनामी आने का खतरा हो जाता है.
जिस तरह के खुलासे हो रहे हैं और जिस तरह से कुछ बातें सामने आ रही है उन्हें देखकर कभी-कभी लगता है कि हमारे उद्योगपतियों के फैसले न केवल उनके अर्थ सलाहकारों के सुझावों पर निर्भर करते हैं बल्कि उनके पंडितों और गुरुओं पर भी निर्भर करते हैं. पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि हर उद्योगपति का पंडित या गुरु उसे उपदेश देते हुए कहता होगा कि; "हे जजमान, भगवदगीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हे पार्थ कलियुग में भारतवर्ष में पैसा अगर मॉरिशस के रास्ते आएगा तो वह पवित्र पैसा होगा. जिस तरह से तीर्थराज प्रयाग में स्थित संगम में स्नान करने के बाद मनुष्य पवित्र हो जाता है वैसे ही मॉरिशस में स्थित गंगा तलाव की महिमा यह होगी कि वह मॉरिशस में आये हर पैसे को शुद्ध और पवित्र कर देगा....."
अब मॉरिशस की गिनती विश्व के अन्यतम टैक्स-हेवेन में होने लगी है और उसे यह दर्जा दिलवाने का काम इतना महत्वपूर्ण है कि आनेवाले समय में भारत को अपनी इस उपलब्धि को आगे रखकर सयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में परमानेंट सीट की दावेदारी प्रस्तुत करनी चाहिए. मामूली उपलब्धि नहीं है यह. मैं तो कहता हूँ कि इसके बल पर तो भारत खुद को पूरे विश्व के मुखिया के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकता है. नौ प्रतिशत विकास दर (दर लिखने गए तो जो शब्द पहले आया वह 'डर' था) एक एडिशनल क्वालिफिकेशन के तौर पर अपने साथ तो है ही.
इस उपलब्धि की वजह से परिवर्तन दिखाई भी दे रहा है. मैं तो स्कूलों के मास्टर ज़ी लोगों से अनुरोध करूँगा कि अब छात्रों को निबंध के लिए जो नए विषय दिए जायें उनमे भारतीय अर्थव्यवस्था में मॉरिशस का महत्व नामक विषय अवश्य दिया जाय. ऐसा करने से छात्र आधे तैयार होकर निकल सकेंगे. मॉरिशस सरकार को यह प्रयास करने चाहिए कि जिस तरह भारतवर्ष में मॉरिशस से आनेवाले पैसों के बारे में कोई पूछताछ नहीं होती उसी तरह से मॉरिशस से आनेवाले नागरिकों के बारे में कोई पूछताछ न की जाय. इससे दोनों देशों के बीच समबन्ध प्रगाढ़ तो होंगे ही, एक नई वैश्विक व्यवस्था पनप सकेगी. कितने दिनों तक शोध करने वाले हमारे छात्र अर्थशास्त्र के पुराने सिद्धांतों पर पी एचडी लेते रहेंगे? नए विषय के तौर पर इन छात्रों को "इमपौर्टेंस ऑफ मॉरिशस इन इंडियन इकॉनोमी" नामक विषय पर शोधपत्र लिखकर पी एचडी की डिग्री लेनी चाहिए. देसी विश्वविद्यालयों को चाहिए कि अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए इस विषय को आवश्यक कर दें. इससे देश की विकास दर के करीब दो प्रतिशत और बढ़ जाने की सम्भावना प्रबल हो जायेगी. हमारे जो नेता इस विषय पर पहले ही शोध ग्रंथ लिख चुके हैं उन्हें चाहिए कि वे नए आनेवाले नेताओं को अपने शोध ग्रंथ की न सिर्फ प्रतियाँ बातें बल्कि उन्हें अपनी तरफ से भी कुछ जोड़ देने के लिए प्रेरित करें. हमारी जांच एजेंसियों को चाहिए कि वे अपने अफसरों को मॉरिशस के बारे में अलग से ट्रेनिंग दें ताकि आनेवाले समय में उन्हें आर्थिक घपलों की जांच में कोई दिक्कत नहीं हो. हमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे................
अब और क्या कहूँ "वाह...वाह...वाह" के सिवा....
ReplyDeletek r a m a s h a h ...................
ReplyDeletematbal 'kuch aur raj phas' hona bacha
hai........
pranam.
मॉरीशस से पैसे की यात्रा का नक्शा नहीं मिला। लिहाजा मैने वहां के समुद्र तट का चित्र चेप दिया है पोस्ट में - सहूलियतार्थ।
ReplyDeleteहमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे................CHANDU CHOURASIYA KO
ReplyDeleteGHAPLON KE KRISHNA VIVAR KA NAKSHA KA BLUE PRINT.........HASIL KARENE KO ADHIKRIT KARE..............
PRANAM.
आपकी पोस्ट धाँसू है. हो भी क्यों न.. देश की विकास दर 9 प्रतिशत है...
ReplyDelete(ज्ञात रहे वर्तमान काल में यह जूमला कहीं भी फिट किया जा सकता है)
मॉरिशस में तन और मन से पवित्र हो जाता है... तन की छोड़ो धन पवित्र हो जाता है वह भी काला वाला. बिना फैयर एंड लवली के गोरा चिट्टा हो जाता है...
मैं तो कहती हूँ कि पैसा विदेश भेजने के स्थान पर बाबा राम देव की तरह विदेशों मे टापू खरीदते रहते जिस पर गर्व करके गरीबों का पेट तो भर जाता। बाबा की दवाओं की तरह चीज़ें तो मंहगी कर दी मगर बाकी सीख नही ली। बाबा को भी 11 लाख दे कर मुँह बन्द नही कर सकते थे क्या? मगर मनमोहन सोनिया को समझाये कौन? अच्छा व्यंग।
ReplyDeleteमॉरिशस की अर्थ व्यवस्था ऐसी ही दुरुस्त रहेगी।
ReplyDeleteअपने नेताओं अफसरों और उधोगपतियों की दुरुस्त रहे... बाकी की अपने आप हो जायेगी.. विनाश सारी विकास दर नौ प्रतिशत है न..
ReplyDeleteहमने अपना पैसा कोलकाता को वाया टिम्बकटू भेजा था,,, मिला क्या ???????? :)
ReplyDeleteधन्य हैं प्रभु! आपने बिलकुल ठीक फरमाया. सिर्फ़ पैसा ही नहीं, कई कंपनियां तो अपने उत्पाद भी वाया मॉरीशस भेजती हैं. मॉरीशस में उत्पादन के नाम पर उन्होंने किया सिर्फ़ इतना है कि वहां एक कोठरी लेकर एक तथाकथित दफ्तर खोल लिया है. मेरा सुझाव है कि मॉरीशस और मामा मारीच के बीच भाषा वैज्ञानिक संबंधों का अध्ययन कराया जाए और इसके लिए भाई वडनेर्कर जी को फेलोशिप दी जाए.
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