किसी भी काल में देशवासियों के शब्दकोष में जुड़ने वाले शब्द कुछ हद तक उस रास्ते का सूचक होते हैं जिसपर देश चल रहा है. पिछले आठ-दस महीने को ही ले लीजिये, टू-ज़ी, स्कैम, सी बी आई, जे पी सी, टैपिंग, रिस्पोंसिबिलिटी, सुप्रीमकोर्ट, एरर ऑफ जजमेंट, सी वी सी, सी डब्ल्यू ज़ी, बेल अप्लिकेशन, फिक्शर्स, मॉरिशस, मनी-ट्रेल और ऐसे ही न जाने कितने शब्द हैं जो देशवासियों के न सिर्फ शब्दकोष में जगह पाकर इतरा रहे हैं बल्कि उनके जेहन में रच-बस गए हैं. जो अभी तक रचे-बसे नहीं हैं वे अपना नंबर आने का इंतजार करते हुए हमारे कर्णधारों से पूछ रहे हैं; "मेरा नंबर कब आएगा?"
ये शब्द कुछ हद तक उस रास्ते के बारे में बता भी रहे हैं जिसपर देश चल रहा है.
वैसे ये शब्द लोगों के जेहन में केवल धंसे नहीं हैं, अब तो धीरे-धीरे इन्हें बोल-चाल में इस्तेमाल भी किया जाने लगा है. हाल यह है कि अगर घर का खाना बनाने वाला महराज सब्जी के पैसों में से अपने लिए बीड़ी का बण्डल खरीद लेता है तो घर का राजा बेटा चिंटू अपने पापा से कहता है; "पापा, मुझे तो लगता है कि रामू महराज ने सब्जी के पैसे में कोई स्कैम ज़रूर किया है. आप सुप्रीमकोर्ट (यानि चिंटू ज़ी की मम्मी) से कहिये न कि वे इस मामले में इंटरफीयर करें नहीं तो रामू महराज कल को और बड़ा स्कैम करेगा."
चुन्नू गली में क्रिकेट खेलते-खेलते अगर फ्रोन्ट-फुट की बजाय बैकफुट पर शॉट खेलकर एल बी डब्ल्यू आउट हो रहा है तो पैवेलियन में वापस आकर कह रहा है; "एरर ऑफ जजमेंट हो गया. मुझे बैकफुट पर नहीं खेलना चाहिए था."
उसी मैच में अगर टीम हार जा रही है तो टीम का कैप्टेन पूरी गली के सामने इस हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए तपाक से यह कहकर अपना पल्ला झाड़ ले रहा है कि; "आई टेक फुल रिस्पोंसिबिलिटी फॉर दिस लॉस."
इतना कह देने भर से लोग़ उसकी वाह-वाही कर डाल रहे हैं और उसे कैपटेंसी से रिजाइन करने की जरूरत ही नहीं पड़ रही है. उसका वाइस कैप्टेन जिसने अभी तक कैप्टेन बनने के सपने संजो रखे थे, उसे समझ में नहीं आ रहा कि अब वह क्या करे? वाइस कैप्टेन यह सोचते हुए मुँह लटका ले रहा है कि; "इसने तो जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, अब तो इसके रेजिग्नेशन की डिमांड टीम करेगी ही नहीं. अब तो इस हार की जांच के लिए जे पी सी की डिमांड भी नहीं की जा सकती."
अचानक घपलों में इस्तेमाल होनेवाले शब्द इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि समझ नहीं आता कि यही शब्द इतने दिन तक कहाँ थे? अभी कल की बात है. मैं अपनी पार्ट टाइम ड्यूटी पर था यानि अपने एक मित्र के कोलैबोरेशन में देश के हालात पर चिंता व्यक्त कर रहा था. चिंता व्यक्त करते हुए मैंने उनसे कहा; "एक बात समझ में नहीं आती कि इन शब्दों ने इतने दिन तक हमारे जीवन में प्रवेश क्यों नहीं किया? क्या हम इतने गए गुजरे थे कि ये शब्द हमें इस लायक नहीं समझते थे? क्या दोष था हमारा? मैं पूछता हूँ क्या स्कैम पहले नहीं हुए थे? हमारे पास बोफोर्स था. हमारे पास सुखराम थे. हमारे पास हर्षद मेहता, केतन पारेख और ओत्तोवियो क्वात्रोकी थे. हमारे पास यू टी आई था. हमारे पास यूरिया, नरसिम्हा राव, सिबू सोरेन, साइमन मरांडी और लखूभाई पाठक थे. और तो और हमारे पास जैन ज़ी की डायरी थी. ऐसे में इस सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्यों नहीं किया कुछ? इन शब्दों ने देशवासियों को पहले परेशान क्यों नहीं किया? क्यों नहीं ये शब्द तभी जेहन में घर बना सके?"
मित्र शायद एक साथ इतने सवालों के लिए तैयार नहीं थे. अचानक सवालों की झड़ी लगी तो सकपका गए. स्थिर हुए तो चेहरे पर दार्शनिक भाव लाते हुए बोले; "हर चीज का अपना समय होता है. जो-जो जब-जब होना है सो-सो तब-तब होता है."
उनकी बात सुनकर मुझे यह मानने में जरा भी संकोच नहीं हुआ कि विदुर या चाणक्य की नीति में यह लिखा हो या नहीं लेकिन यह हमारी संस्कृति और इतिहास में पक्के तौर पर दिखाई देता है कि जब कोई जवाब न सूझे तो आदमी को फट से दार्शनिकता नामक तिनके को थाम लेना चाहिए. तिनका डूबा देगा इस बात की चिंता बिलकुल नहीं करनी चाहिए.
इन शब्दों पर आगे बात चली तो मनी-ट्रेल नामक शब्द पर आकर रुकी. इन घपलों में जांच के दौरान मनी-ट्रेल के बारे में खूब चर्चा हो रही है. मनी-ट्रेल से मतलब रुपया जिस रास्ते गया या जिस रास्ते से आया. वैसे मैं आपको यह बताता चलूं कि मनी-ट्रेल सुनने से पता नहीं क्यों मुझे वे हवाई जहाज याद आ जाते हैं जो अपने पीछे धुआं छोड़ते जाते हैं. जब मैं छोटा था और गाँव में रहता था तो गाँव के आसमान में गुजरते हुए ऐसे हवाई जहाज को देखकर हम दोस्त कहते; "अरे देखो रॉकेट छूटा है."
आज जब भी मनी-ट्रेल नामक शब्द सुनता हूँ तो गाँव, बचपन और अपनी बेवकूफियां तो याद आती ही हैं वे हवाई जहाज भी खूब याद आ रहे हैं.
मनी-ट्रेल की कहानी भी बड़ी धाँसू निकलती है. एक दिन अखबारों से पता चला (यह उनलोगों को इम्प्रेश करने के लिए लिखा गया है जिन्हें यह शक है कि मैं अखबार नहीं पढ़ता) कि जिन कंपनियों को टू ज़ी स्पेक्ट्रम अलॉट हुआ उनमें से कुछ कंपनियों में मॉरिशस के रास्ते पैसा आया था. दूसरे दिन पता चला कि राजा बाबू को जो घूस मिला वह घूस उन्होंने मॉरिशस के रास्ते बाहर के देशों जैसे मलेशिया और मैडगासकर में इन्वेस्ट किया. पढ़कर लगा कि ऐसा भी क्या है कि देश में पैसा आये तो मॉरिशस के रास्ते और देश से पैसा जाए वो भी मॉरिशस के रास्ते?
मुझे तो यह लगता है कि जिन्हें अपने भूगोल के ज्ञान पर नाज़ है वे अगर यह पढ़ लें तो अपने ज्ञान पर शंकित होते हुए सिर खुजलाने लगेंगे. यह सोचते हुए कि अब भारतवर्ष तक आने-जाने वाला हर रास्ता क्या केवल और केवल मॉरिशस से होकर गुजरता है? और कोई रूट नहीं जिसे फॉलो करके भारत पहुँचा जा सके?
अचानक भारत की अर्थव्यवस्था में मॉरिशस का महत्व इस तरह से बढ़ गया है जितना अमेरिका और चीन का भी नहीं है. हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि मुंबई में बैठे उद्योगपति को अगर उत्तर प्रदेश में अपनी कंपनी में पैसा डालना है तो वह बन्दा भी मॉरिशस के रास्ते ही पैसे को यूपी तक पहुंचाता है. वह यह करने के लिए राजी नहीं है कि मुंबई से मुंबई मेल वाया इलाहाबाद पकड़ी और दूसरे ही दिन पैसा यूपी में. ना? वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि........
(जारी रहेगा)
"यह सोचते हुए कि अब भारतवर्ष तक आने-जाने वाला हर रास्ता क्या केवल और केवल मॉरिशस से होकर गुजरता है? और कोई रूट नहीं जिसे फॉलो करके भारत पहुँचा जा सके?" ..हमारे भारतवर्ष में इसके लिए भी जुगाड़ जल्दी ही आयेंगे ..तब 'रूट स्कैम' शुरू होगा ;)
ReplyDeleteवो इसलिए क्यूंकि 'यूनिटी इन डाइवर्स करप्शन' हमारे देश का ध्येय रहा है |
ReplyDeleteसही है गुरुदेव... जारी रहे...
ReplyDeleteशब्द-ज्ञान का ग्रोथ रेट तेजी से बढ़ रहा है...
उपन्यासकार समीर लाल 'समीर' को पढ़ने के बाद
मेरा देश महान...
ReplyDeleteभारत की वोकेब्युलरी बढ रही है, यह जान कर प्रसन्नता हुई और क्यों न हो, जब देश में महंगाई बढ रही है, सेंसेक्स बढ रहा है, बलात्कारी सेक्स और चोर उच्चकों का सक्सेस बढ रहा है तो बेचारी वोकेब्युलरी ने क्या गुनाह किया !!!!!!
ReplyDeleteयह उनलोगों को इम्प्रेश करने के लिए लिखा गया है जिन्हें यह शक है कि मैं अखबार नहीं पढ़ता
ReplyDeleteहमें शक कत्तई नहीं था लेकिन हम इम्प्रेश्ड हो लिये। आगे की कहानी का इंतजार है। :)
बढ़िया चिंतन बढ़िया सुझाव ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteमनी-ट्रेल से मतलब रुपया जिस रास्ते गया या जिस रास्ते से आया. वैसे मैं आपको यह बताता चलूं कि मनी-ट्रेल सुनने से पता नहीं क्यों मुझे वे हवाई जहाज याद आ जाते हैं जो अपने पीछे धुआं छोड़ते जाते हैं.
ReplyDeleteachha kiye bata diye ..... ab dekhte
hain kaise money trail karne se koi
rokta hai......
pranam.
सही है...हमारा शब्दकोष दिन दूनी रत चौगुनी समृद्धि पा रहा है...
ReplyDeleteजारी रहें,हम इन्तजार में हैं...
ये शब्द तो पूरे शब्दकोष से भारी हो गये हैं।
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