कल होली है. होनी भी चाहिए. इसी महीने में तो होती है. सावन में नागपंचमी होती है और उसके बाद छट. आगे बढें तो दुर्गापूजा और दिवाली. ऐसे में होली इसी महीने में आकर झमेला ख़त्म करे, यही सबके लिए अच्छा है. लेकिन जब भी होली आती है तो मुझे खुद के अभागे होने का ख्याल मन में आता है. ऐसा न कहूँ तो और क्या कहूँ? सबसे बड़ा भाई होने का सबसे बड़ा डिसएडवान्टेज ये है कि भौजाई की कमी खलती है. और ऐसी-वैसी नहीं, बहुत खलती है. बड़ा भाई होने का मतलब यह नहीं कि आदमी केवल बड़ा भाई होकर रहता है. बड़े भाई होने का मतलब यह भी होता है कि आदमी जन्मजात जेठ होकर रह जाता है. जेठ होना होली के मौके पर बहुत दुःख देता है.
एक तो जनम से जेठ थे ही ऊपर पांडवों को वनवास-ए-बामुसक्कत की सजा दे डाली. मामला वैसे ही निकला जैसे कोढ़ में खाज. ऐसा नहीं हुआ होता तो होली के मौके पर देवर बनने का एक चांस तो रहता. जैसा कि एक महान गीतकार ने लिखा है; 'गिले शिकवे भूल कर दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं...' तो एक दिन दुश्मनी भूलकर द्रौपदी भाभी के साथ होली खेल आता. लेकिन इनलोगों को सजा देकर सब गुड गोबर कर डाला.
वैसे फिर मन में बात आती है कि दुविधा तो वहाँ भी रहती. हो सकता है वहाँ भी होली नहीं खेल पाता क्योंकि भाभी को कन्फ्यूजन रहता कि मुझे देवर समझे या जेठ. आख़िर वे केवल युधिष्ठिर भइया की पत्नी नहीं हैं, नकुल और सहदेव की पत्नी भी वही हैं.
खुद से यही बात करके मन पर सतोष का छींटा मार लेता हूँ. संतोष के छीटों के साथ ऐसे समय में मदिरा भी थोड़ा हेल्प कर देती है.
वैसे एक बात से इन्कार नहीं कर सकता कि जबसे इनलोगों को वनवास का टिकट थमाया है, ये होली के मौके पर जरूर याद आ जाते हैं. लेकिन याद आने पर भी क्या किया जा सकता है? इसलिए होली खेलता भी हूँ तो कर्ण के साथ. उसके साथ होली खेलने में क्या मज़ा? बहुत बोरिंग होती है इस कर्ण की होली. चुटकी भर गुलाल भी गाल पर लगाते समय इतनी एहतियात बरतता है मानो किसी दुधमुंहे बच्चे को लगा रहा हो. न तो फाग सुनता है और न ही कवि सम्मलेन में कवियों की तथाकथित कवितायें. कविताओं पर कान न देने की बात तो समझ में आती है लेकिन फाग? फिर सोचता हूँ तो मुझे लगता है जैसे फाग भी उसे युद्धगीत जैसा लगता होगा. मदिरा की तो बात दूर ठंडाई में भंग तक मिलाने नहीं देता.
ऐसे मौकों पर उसके साथ रहकर तो यही लगता है कि हमारे करम फूट गए.
बोर आदमी है. बोर क्या महाबोर है. आता है और गुलाल लगाते हुए गले मिलकर चला जाता है. रुकने के लिए कहता हूँ तो एक ही बहाना बनाकर निकल लेता है - धनुष बाण साफ करना है और बाण चलाने की प्रैक्टिस करनी है. पता नहीं कब युद्ध शुरू हो जाए.
आकर चला जाता है तो मेरी होली दुशासन और जयद्रथ के साथ सिमट कर रह जाती है. राजमहल से बाहर निकल कर लोगों को होली खेलते हुए देखने की बड़ी इच्छा होती है लेकिन राजपुत्र होने का भी अपना डिसएडवांटेज है. लोगों के बीच में जाकर होली भी नहीं खेल सकता. न जाने कितने सालों से जितनी गिनी-चुनी बदमाशियां कर सकता हूँ, सब राजमहल में ही करनी पड़ती हैं. अब तो ये पुरानी बदमाशिया भी बोर करने लगी हैं. हाल यह हो चला है कि होली के अवसर पर खुद को बदमाश मानने में भी शर्म आने लगी है.
वही ठंडाई, वही नर्तकियां, वही ठंडाई का गिलास और वही दरबारी. कई बार संजय को फुसला कर इस बात पर राजी करने की कोशिश की कि वह हस्तिनापुर में खेली जानेवाली होली का लाईव टेलीकास्ट ही दिखा दे लेकिन वह तो पिताश्री को छोड़कर किसी की बात ही नहीं मानता. कहता है उसके चैनल पर होनेवाले हर टेलीकास्ट का एक्सक्लूसिव राईट्स पिताश्री के पास है. पिताश्री ने थोड़ी इज्ज़त क्या दी, सिर पर चढ़कर बैठ गया. मैं पूछता हूँ राजकुमारों की हसरतों और फरमाइशों का ख्याल दरबारी और सारथी नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? कई बार मन में आया कि इसके ऊपर यह आरोप लगा कर इसे डिशमिश करवा दूँ कि यह घोड़ों के लिए खरीदे जाने वाले भोजन की कालाबाजारी करता है लेकिन कर्ण द्वारा मना करने पर मन मारकर बैठ जाना पड़ा.
जल्द ही इसका कुछ करना पड़ेगा.
पिछले बरस दु:शासन भेष बदलकर लोगों की भीड़ में घुस गया था और अपने सेलफ़ोन के कैमरे से फोटो खींच लाया था. वही दो-चार फोटो देखने को मिली थी. इस साल तो यह भी होने से रहा. दुशासन बाहर जाने से भी डर रहा है. आज़ाद हिंद ढाबे पर इसने बीयरपान करके नशे में किसी लड़की को छेड़ा था और उसके आशिक ने इसकी धुलाई क्या की, अब वह अकेले तो क्या चार सिपाहियों के साथ भी बाहर निकलने से डरता है.
सुबह से ही बीयरपान में मस्त है. कहता है दो दिन बीयर पीकर गुज़ार देगा. अपने चमचों को भेजकर बालाजी वाइन शॉप से जबरदस्ती चार क्रेट बीयर उठावा लाया है. उधर जयद्रथ मोहिनी-अट्टम देखने में बिजी है. सुना है दो दिन तक इस बात पर अड़ा रहा कि उज्बेकिस्तान से आई नर्तकी को भारत-नाट्यम परफार्म करना ही पड़ेगा. काफी झमेले और बहस के बाद वह नर्तकी मोहिनी अट्टम करने पर राजी हुई.
ये ऐसे बिजी हैं तो मुझे अपना होली प्रोग्राम खुद ही बनना पड़ेगा. क्या किया जा सकता है? ऐसे ही दरबार में रहना पड़ेगा और हास्य कवि सम्मेलन में 'कवियों' के चुटकुले सुनकर होली मनानी पड़ेगी. ये लोग़ पिछले दस सालों से उन्ही बासी चुटकुलों की कविता बनाकर ठेलते रहे हैं. ऊपर से कहते हैं कि कविता सुना रहे हैं.
इतनी-इतनी मुद्रा देकर इन कवियों को बुलाया जाता है लेकिन इन्हें जरा भी शर्म नहीं. आने-जाने का किराया अलग. ऊपर से कहते हैं कि फर्स्ट क्लास का टिकट न देकर इन्हें डायरेक्ट मुद्रा ही दे दी जाय. दुशासन का एक गुप्तचर बता रहा था कि दो-तिहाई कवि फर्स्ट क्लास के टिकट का पैसा लेकर सेकंड क्लास से आते-जाते हैं. ऊपर से एक कवि तो इस बात पर अड़ गया कि उसके स्वागत के लिए उसे गेंदा के फूलों की माला न पहनाई जाय. वह चाहता है कि उसे केवल गुलाब के फूलों की माला पहनाई जाय. बेवकूफ को यह नहीं पता कि गुलाब के फूलों की माला बनाने में माली को कितनी तकलीफ होती है? कवियों को लाने के लिए दो घोड़ों के रथ भेजे गए थे. एक कवि अड़ गया. बोला जब तक उसके लिए चार घोड़ों का रथ नहीं जाएगा तबतक वह राजमहल में कविता सुनाने आएगा ही नहीं.
मुझे इस कवि के बारे में पता है. विद्यार्थियों के बीच चुटकुले सुनाकर इसने अपना बाज़ार गरम किया है.
वैसे कोई-कोई कवि गलती से एकाध बार कविता भी सुना बैठता है. परसों के कवि सम्मेलन में किसी कवि ने ये कविता सुनाई थी. मुझे अच्छी लगी. लिख देता हूँ. कवि का नाम तो याद नहीं क्योंकि मैं भंग के नशे में था लेकिन कविता यूं थी...
क्या फागुन की ऋतु आई है
डाली-डाली बौराई है
हर और सृष्टि मादकता की
कर रही फ्री में सप्लाई है
धरती पर नूतन वर्दी है
खामोश हो गई सर्दी है
कर दिया समर्पण भौरों ने
कलियों में गुंडागर्दी है
मनहूसी मटियामेट लगे
खच्चर भी अप टू डेट लगे
फागुन में काला कौवा भी
सीनियर एडवोकेट लगे
फागुन पर सब जग टिका लगे
सेविका परम प्रेमिका लगे
बागों में सजी-धजी कोयल
टीवी की उदघोषिका लगे
जय हो कविता कालिंदी की
जय रंग-बिरंगी बिंदी की
मेकप में वाह तितलियाँ भी
लगती कवियित्री हिन्दी की
पहने साड़ी वाह हरी-हरी
रस भरी रसों से भरी-भरी
नैनों से डाका डाल गई
बंदूक दाग गई धरी-धरी
हर और मची हा-हा, हू-हू
रंगों का भीषण मैच शुरू
साली की बालिंग पर देखो
जीजा जी हैं एल बी डब्ल्यू
भाभी के रन पक्के पक्के
हर ओवर में छ छ छक्के
कोई भी बाल न कैच हुआ
सब देवर जी हक्के-बक्के
गर्दिश में वही बेचारे हैं
बेशक जो बिना सहारे हैं
मुंह उनका ऐसा धुआं-धुआं
ज्यों अभी इलेक्शन हारे हैं
क्या फागुन की ऋतु आई है
मक्खी भी बटरफिलाई है
कह रहे गधे भी सुनो-सुनो
इंसान हमारा भाई है
नोट: युवराज तो भंग के नशे में थे इसलिए उन्हें कवि का नाम याद नहीं लेकिन आपको बता दूँ कि यह कविता प्रसिद्द कवि श्री डंडा लखनवी की है.
vah vaah kya masti chaddh aayi hai...
ReplyDeleteAwesome. :P
ReplyDeleteउफ्. हँस हँस कर पेट में बल पड गए. ईश्वर आपको लंबी आयु दे. :)
ReplyDeleteवाह,बहुत बढ़िया.दुर्योधन का दुःख समझ सकती हूँ.यही दुःख सबसे छोटे भाई की पत्नी का भी होता है.
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएँ.
घुघूती बासूती
कविता बड़ी मारक है एकदम होली के माहौल में ढली हुई. मजा आ गया.
ReplyDeleteकवियों को लपेटा तो लगा हमारा बैर दूर्योधन ने ही सही, किसी ने तो उतारा....
बड़ा कनफ्यूज़न है, जेठ हैं कि देवर।
ReplyDeleteदुर्योधन जी अच्छा write कर लेते हैं, और काफी मजाकिया भी हैं :-)
ReplyDeleteभर फागुन बुढवा देवर लागे।
ReplyDeleteहैप्पी होली!
मुंह उनका ऐसा धुआं-धुआं
ReplyDeleteज्यों अभी इलेक्शन हारे हैं
` सबसे बड़ा भाई ...'
ReplyDeleteअरे... तो यह डायरी आपकी है!!!!!!:)))
सुंदर कविता के लिए बधाई॥
by god 'bechara duryodhan'.....jeth..
ReplyDeleteaur devar ke bich 'confuse' ho riya
hai......uski bebasi par hum hans rahe hain...........
holinam.
मनहूसी मटियामेट लगे
ReplyDeleteखच्चर भी अप टू डेट लगे
फागुन में काला कौवा भी
सीनियर एडवोकेट लगे
जय हो दुरुयोधन महाराज..."जेठ" शब्द धारी मानवों का दुःख पहली बार आपने अपनी डायरी में व्यक्त किया है...ये एक ऐसा अनछुआ पहलू है जिस पर अभी कोई कुछ लिखने का साहस नहीं कर पाया था...हे बाहुबली ये काम आपके आलावा और कौन कर सकता था...आपने हम जैसे करोड़ों जेठ नुमा प्राणियों की आवाज जन जन तक पहुंचाई है...आप गेंदा फूल हैं महाराज...
नीरज
लाजवाब....जबरदस्त....
ReplyDeleteदुर्योधन जी की डायरी और डंडा जी की कविता...ठीक ऐसा ही कम्बीनेशन है जैसे दूध और भांग ....
शानदार प्राणी है दुर्योधन भी। भांग के नशे में एक फुट की कविता याद रख लेता है, दो अक्षर का कवि का नाम नहीं! :)
ReplyDeleteहर और मची हा-हा, हू-हू
ReplyDeleteरंगों का भीषण मैच शुरू
साली की बालिंग पर देखो
जीजा जी हैं एल बी डब्ल्यू !!
दुर्योधन की कोई साली भी नहीं है ??