आधा किलो की यह तुकबंदी मार्च २००९ में लिखी गई थी. कई राज्यों में लोकतंत्र का इम्तिहान यानि चुनाव एक बार फिर से होने को हैं. ऐसे में मुझे लगा कि री-ठेल कर देना बुरा नहीं होगा:-)
वोट निंद्य है शर्मराज, पर,
कहो नीति अब क्या हो
कैसे वोटर लुभे आज फिर
पाँव तले तकिया हो
कैसे मिले हमें शासन का
पेडा, लड्डू, बरफी
किस रस्ते पर चलकर लूटें
चाँदी और अशर्फी
क्या-क्या रच डालें कि;
जनता खुश हो जाए हमसे
दे दे वोट हमें ही ज्यादा
हम फिर नाचें जम के
अगर कहो तो सेकुलर बन, हम
फिर महान हो जाएँ
नहीं अगर जंचता ये रस्ता
राम नाम हम गायें
अगर कहो तो गाँधीगीरी कर
त्यागी कहलायें
शासन के बाहर ही बैठे
जमकर हलवा खाएं
तुम कह दो तो गठबंधन कर
दें जनता को धोखा
तरह तरह के स्वांग रचें हम
मारें पेटी खोखा
कल तक जो थे साथ, कहो तो
साथ छोड़ दें उनका
नहीं समर्थन मिले हमें तो
हाथ तोड़ दें उनका
तुम कह दो तो एक कमीशन
बैठाकर फंसवा दें
अगर कहो तो खड़े-खड़े ही
पुलिस भेज कसवा दें
नीति-वीति की बात करे जो
उसका मुंह कर काला
भरी सड़क पर उसे बजा दें
हो जाए घोटाला
बाहुबली की कमी नहीं
गर बोलो तो ले आयें
उन्हें टिकट दे खड़ा करें, और
नीतिवचन दोहरायें
दलितों की बातें करनी हो
गला फाड़ कर लेंगे
बात करेंगे चावल की, पर
उन्हें माड़ हम देंगे
तुम कह दो तो कर्ज माफ़ कर
हितचिन्तक बन जाएँ
मिले वोट तो भूलें उनको
उनपे ही तन जाएँ
गठबंधन का धर्म निभाकर
पॉँच साल टिक जाएँ
आज जिन्हें लें साथ, उन्ही को
ठेंगा कल दिखलायें
किसे बनाएं मुद्दा हम, बस
एक बार बतला दो
जो बोलोगे वही करेंगे
तुम तो बस जतला दो
अगर कहो तो बिजली को ही
फिर मुद्दा बनवा दें
अगर नहीं तो सड़कों पर ही
पानी हम फिरवा दें
शर्मराज जो भी बोलोगे
हम तो वही करेंगे
शासन में रह मजे करेंगे
अपना घर भर लेंगे
.......................................................
शर्मराज ने आँखें खोली, और
शांत-मुख लेकर
बोले; "सुन लो भ्रात आज तुम
चित्त, कान सब देकर"
जिस रस्ते पर चलकर चाहो
सत्ता सुख को पाना
उसे चुनो और बुन डालो तुम
पक्का ताना-बाना
सच तो यह है आज राजसुख
उतना इजी नहीं है
इसे प्राप्त करने के हेतु ही
हर दल आज बिजी है
विकट सत्य को समझो कि यह
गठबंधन का युग है
विचलित न हो लोग कहें गर
'शठ-बंधन' का युग है
शर्म छोड़ कर शठ बन जाओ
खोजो और शठों को
अगर ज़रुरत हो तो चुन लो
कुछ धार्मिक मठों को
राजनीति हो अलग धर्म से
गीत सदा यह गाकर
प्राप्त करो सत्ता सुख को
'शठ-बंधन' धर्म निभाकर
शर्म से होती है सत्ता-नीति को हानि
....................शर्महीनता ही सत्ता-नीति का आधार है
एक बार शर्म छोड़ बेशर्म बन जाओ
................... और फिर देखो कैसे बढ़ता बाज़ार है
ले लो ज्ञान मुझसे और कूद पडो दंगल में
....................सत्ता पाने के लिए जुगत हज़ार है
बात सुनो भ्रात मेरी ध्यान-कान देकर तुम
....................तुम्हें ज्ञान देने को शर्मराज तैयार है
सबसे पहले बाँट डालो देशवासियों को तुम
....................इसके पश्चात अपने वोटर को चुन लो
कर समापन यह चुनाव पानी में उतारो नाव
...................वोटर को लुभाने के तरीके भी सुन लो
कर डालो वादे और खा डालो कस्में तुम
...................इन सारे तरीकों को शांत-चित्त गुन लो
इसके साथ पैसे और शराब का कम्बीनेशन हो
...................इसपे भी वोटर न रीझे, गुंडे भेज धुन दो
मुद्दा हो निकास का या आर्थिक विकास का हो
..................उसके बारे में भूल से भी मत बोलना
दलों का जो दलदल है उसको पहले निहारो
..................कितना कीचड़ है उसमें इसको तुम तोलना
अपने दल के कीचड़ को बाकी से तुलना कर
..................कसकर कमर को अपनी सीटों को मोलना
बारगेनिंग का कर हिसाब अगले की पढ़ किताब
..................उतरकर दलदल में तुम धीरे-धीरे डोलना
चुनाव के मंचों पर तो साथ में दिखना, परन्तु
..................विपक्षी के साथ भी तुम रखना रिलेशन
जाने कौन काम आये चुनाव परिणाम बाद
..................असली सत्ता सुख का ये पहला कंडीशन
इसके साथ-साथ याद रखना पहले पाठ को तुम
..................जिससे मिले एंट्री का क्वालिफिकेशन
नारों और गानों की लिस्ट तैयार कर
..................सुबह-शाम करते रहना उनका रेंन्डीशन
धर्मनिरपेक्षता पर खतरे की बातें करो
..................जो भी तुम चाहोगे वही हो जायेगा
देश को बचाने का रच डालो स्वांग गर
..................राजधर्म कोसों दूर पीछे रह जायेगा
सत्ता में आने के बाद भत्ता हड़प डालो
..................जनता हलकान हो पर प्लान फल जायेगा
धरते पकड़ते रहो दल और नेताओं को बस
..................राज करो पांच साल, देश चल जायेगा
साथी दल को संग लेकर लड़ लो चुनाव किन्तु
..................कहीं-कहीं उन्ही संग 'फ्रेंडली' कंटेस्ट हो
ट्राई कर लंगी मार उनको गिरा डालो
..................अगर उस सीट पर भी उनका इंटेरेस्ट हो
इससे भी न काम बने दो-चार कैंडीडेट खोज
..................उनको खड़ा करने का इंतजाम परफेक्ट हो
भ्रात सारे घात सीख उतरो मैदान में तुम
..................मेरी तरफ से तुमको आल द बेस्ट हो
शर्मराज की बात सुनी और लेकर उनका ज्ञान
बेशर्मी पर उतर गए और शुरू हुआ अभियान
कमाल है पिछले दो सालों में इस कविता की एक एक पंक्ति आज भी उतनी ही सत्य है जितनी उस वक्त थी...इसे कहते हैं शाश्वत लेखन...धन्य हैं आप.
ReplyDeleteनीरज
लोकतंत्र तो गया भाड़ में, अब मिश्र, लिबिया, ट्यूनिसिया जैसी बगावत पर बात करो कविराजा :)
ReplyDeleteई कविता तो अभी लंबी चलेगी गुरुदेव...
ReplyDeleteकौनो आसार नहीं है इसके आउट-डेटेड होने का
आज भी उतना ही सामयिक है यह शाश्वत सत्य।
ReplyDeleteये तो बढिया चुनावी तुकबन्दी है भाई. कुछ चीज़ें कभी असामयिक नहीं होईं, क्योंकि जिनके मद्देनज़र उन्हें लिखा जाता है वे ही नहीं बदलतीं :):) सो एवर ग्रीन रचना.
ReplyDelete:):):)
ReplyDeletepranam.
बस निःशब्द कर दिया...
ReplyDeleteजियो जियो जियो....