महामहिम राष्ट्रपति जी को लैम्पून करने का प्रयास किया जा रहा है हिन्दी ब्लॉगरी में. कहा जा रहा है कि उनके प्रति श्रद्धा नहीं है. श्रद्धा तो गली के दादा और माफिया डॉन के प्रति भी नहीं होती. उन्हे लैम्पून करने का प्रयास करें - वह भी ब्लॉगरी में नहीं, उपयुक्त फॉरम में - गली के नुक्कड़ पर या टाउन हॉल के सामने सभा कर. वहां श्रद्धा का भाव पता चलते देर नहीं लगेगी. ब्लॉगिंग के रूप में तो पिपिहरी मिल गयी है - लोग, जैसे मन आये बजा रहे है!
मैं जरा बाबा तुलसीदास को उद्धृत कर दूं, लैम्पूनिंग (निन्दा) के विषय में:
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा l पर निन्दा सम अघ न गरीसा ll
सब कै निन्दा जे जड़ करहीं l ते चमगादुर होई अवतरहीं ll 1
सब कै निन्दा जे जड़ करहीं l ते चमगादुर होई अवतरहीं ll 1
जरूरी है कि लैम्पूनिग न टांगी जाये अश्रद्धा पर. अगर श्रद्धा नहीं है तो उससे उस व्यक्ति का कुछ बनता बिगड़ता नहीं जिसके प्रति श्रद्धा नहीं है. वरन वह उस व्यक्ति के स्तर को दर्शाती है जिसे श्रद्धा नहीं है. "यो यत श्रद्ध: स एव स:"2 - जिसकी जैसी श्रद्धा (फेथ) होती है, वह वैसा ही होता है.
प्रश्न श्रद्धा का है भी नहीं. प्रश्न राष्ट्रपति पद की गरिमा और सम्मान का है. मात्र आलोचना और स्वस्थ आलोचना को असम्मान नहीं माना जाता. आलोचना तो कलाम जी की भी हुई थी, जब उन्होने बिहार में राष्ट्रपति शासन को आधी रात को मंजूरी दे दी थी. पर उससे कलाम जी का बतौर राष्ट्रपति सम्मान लैम्पूनिंग का पात्र नहीं बना था.
और भविष्य या भूत काल को क्या रेघना? शेषन महोदय काबीना सचिव बने - पूरे दन्द-फन्द के साथ. पर जब मुख्य चुनाव आयुक्त बन गये तो उस पद को जो गरिमा प्रदान की वह बेमिसाल है. उन्होने चुनाव आयोग को एक नया दैदीप्यमान आयाम प्रदान किया. उसी प्रकार महामहिम प्रतिभा ताई पाटीळ भविष्य में क्या करेंगी - कौन जाने?
और अगर लैम्पूनिग का शौक है भी तो "ग्रेत लीदर" की करें. ग्रेत लीदर की रोमनागरी हिन्दी की अच्छी लैम्पूनिग हो सकती है. यह तो आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी अभिजात्य संस्कृतनिष्ठ देवनागरी हिन्दी को लैम्पूनिंग के लिये उपयुक्त मानते हैं या स्तरीय ब्लॉग/साहित्य निर्माण योग्य.
ग्रेत लीदर की लैम्पूनिग इस बात के लिये भी हो सकती है कि उन्हे पूरी योग्यता होने के बावजूद कलाम जी पोलिटिकली करेक़्ट च्वाइस नहीं लगे. अन्यथा लैम्पूनिंग साम्यवादियों की हो सकती है कि उन्हे प्रथम - द्वितीय - तृतीय - चतुर्थ (?) विकल्प पसन्द नहीं आये. या फिर लैम्पूनिंग भाजपा और मीडिया की हो सकती है कि उन्होने राष्ट्रपति के चुनाव को मुंसीपाल्टी के इलेक्शन के स्तर पर उतार दिया. लैम्पूनिग तथाकथित तीसरे मोर्चे की भी हो सकती है जो एक कदम आगे दो कदम पीछे चलता रहा. लैम्पूनिग समग्र राजनीति की हो सकती है जिसमें 2009 को ध्यान में रख कर खेल खेला जा रहा है. जब लैम्पूनिंग के लिये इतने लोग या मुद्दे हैं तो राष्ट्रपति पद को छोड़ा नहीं जा सकता?
बन्धुओं, गलती लैम्पूनर्स की नहीं है. ब्लॉगरी में ताजा ताजा मिली अभिव्यक्ति की स्वच्छन्दता ने वातावरण लैम्पूनात्मक कर दिया है. अभी सिर स्वच्छन्द हो बैलून की तरह फूल रहा है - हवा से हल्की और विरल सोच के कारण. जब यह गैस लीक हो कर समाप्त हो जायेगी तभी हम सामान्य हो पायेंगे.
(मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि महामहिम राष्ट्रपति के पद की गरिमा और सम्मान बनाये रखें. टिप्पणियों मे असम्मान न झलके और रबड़ का प्रयोग न करना पड़े.)
@ lampoon n आक्षेप, निन्दा; vt : आक्षेप करना, निन्दा करना. Source : shabdkosh.com
1. रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, 120-121
2. भग्वद्गीता, श्लोक 3, अध्याय 17.
दादा अब शायद यही हो सकता था जो आपने किया है.लोग शायद ज्ञानी जी को भूल गये है,कभी उन्होने इंदिरा जी के कहने पर झाडू लगाने को स्वीकारा था पर वही वक्त आने पर राष्ट्रपती पद की गरिमा मे वापस आ गये..
ReplyDeleteलोग स्वतंत्रता की अभिव्यक्ती की सीमा और उसके दोहन मे फर्क नही समझते ..शायद इस लेख से समझने की कोशिश करे..
पांडेयजी, जिसका ओढ्ना-बिछौना ही यही है लेम्पूनिंग आप उसके लिये क्या कहेंगे? क्या वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करना बन्द कर दे। :)
ReplyDeleteAb Gandhi ji hain to 'Grate Leedar'...(Mahatma ki baat nahin kar raha)...Mahatma ki baat karne ka samay aa raha hai...7-8 din aur rukiye, TV waale Mahatma ki baat shuru karenge..15 August aa raha hai...
ReplyDelete'Grate Leedar' ne Bharat ki 'grating' to chaloo kar hi rakhi hai ..Aage bhi karti rahengi..Jahan tak 'Roman Hindi' ki baat hai to kareeb das saalon se hindi ke liye 'Roman' ke yogdaan ka mahatva to hai....
Teen-Chaar saal aur...Roman Hindi ya phir 'Roman' ki hindi par chhatra shodh shuru karne hi waale hain...5-6 saalon ke baad bahut saare 'Roman Hindi ke doctor' paida honge..Waise Devendra Prasad Dvivedi to hain hi...Unase ye Aasha hai ki we aage bhi bahut saare 'Roman' ko hindi padhaayenge..
Haan Rashtrapati ke pad ki garima ke baare mein ab tippani na ki jaaye, wahi achchha hai...Pata nahin aage chalkar kisko-kisko Rashtrapati banate huye dekhenge...Ye ant nahin hai...Shuruaat bhi nahin..
(Roamn hindi mein likhi gai tippani hai...)
आपके अनुरोध से सहमत हूं भले ही व्यक्ति पसंद न हो पर हमें उस पद की गरिमा का तो ध्यान रखना ही होगा!
ReplyDeleteवो तो बस अश्रृद्धा के माध्यम से अपनी असहमती दर्ज कर रहे हैं लोग. अब राष्ट्रपति पर हो गई, तो वो क्या करें. :) कोई सोच के थोड़ी न किया था, जो अपराध बोध हो आपको पढ़कर.
ReplyDeleteआज तो आप रबर चलाते चलाते थक गये होगे? थोड़ा आराम कर लिजिये फिर बाकी पर रबर चलाईयेगा. :)
शुभकामनायें और शिक्षाप्रद बेहतरीन मुद्दा लाने के लिये बधाई. आपसे इसी तरह मार्गदर्शन की उम्मीदें हैं. जारी रहें.
समीर उवाच> आज तो आप रबर चलाते चलाते थक गये होगे? थोड़ा आराम कर लिजिये फिर बाकी पर रबर चलाईयेगा. :)
ReplyDeleteकहां समीरजी, लैम्पूनर्स अगर भय खाते हैं तो रबड़ चलाने से! देखते नहीं, कुल जमा 5 टिप्पणियां हैं - आपकी मेण्डेटरी टिप्पणी जोड़ कर. लेम्पूनर्स तो वैसे ही सटक लिये :)