Friday, August 3, 2007

अखिल भारतीय निंदक महासभा



लोगों ने उन्हें उपनाम दे दिया था; 'निंदक'। कारण था उनका 'गुण' जिसकी वजह से वे सभी की निंदा करते हुए सुने जा सकते थे। चौरसिया की पान-दुकान पर मिल गए। हाथ में १२० जर्दा वाला मघई पत्ता पान। मुँह में रखते ही रती राम की निंदा शुरू कर दी, "आजकल पान ठीक नहीं लगाता। मेटिया देता है। किमाम पत्ता पर घिसने में का जाता है? खाली पत्ता पर गोबर जईसन रख देता है। जब एतना मेहनत करके सोपारी काटता है तो फिर किमाम घिसने में का जाता है"? रती राम के होंठों पर कुछ सुगबुगाहट सुनाई दी। शायद कह रहा था कि; "तीन महीना हो गया, पुराना हिसाब खतम करते नहीं; किमाम घिसवाने आये हैं"।

मुझे देखते ही दुआ-सलाम का बाजा बजाया। इधर-उधर की बातें हुईं। बात-बात में पता चला कि सचिन तेंदुलकर से बहुत नाराज हैं। मैंने कारण पूछा तो बोले; "पहिले मैच में देखा नहीं आपने; केतना खराब खेले ई। हम सोचे थे कि एनके टीम से हटाने का माँग कर डालेंगे। लेकिन दुसरा मैच में रन बना दिए ई। विरोध करने का मौका भी नहीं दिए"।

मैंने कहा; "लेकिन शतक तो बनाया नहीं, सचिन ने। शतक नहीं बनाने को लेकर माँग कर देते। कितने दिन हो गए, एक भी शतक नहीं लगाया"।

बोले; "विचार आया था हमरे मन में भी। लेकिन टीवी वाला बोला सब कि इनके खेलने से ही टीम का कन्डीशन मजबूत हुआ था। हम सोचे; जब एही लोग साथ नहीं देगा तो हम अकेलही का करेंगे"।

बात आगे चली तो पता चला कि प्रतिभा पाटिल से भी नाराजगी चल रही है। और कुरेदने पर बोले; "हम तो सोच लिए रहे कि इनका उम्मीदवारी को लेकर शहर में रैली निकालेंगे। एक दिन का चक्का जाम कर देंगे। बताईये अइसन लोग अगर राष्ट्रपति बन जाएगा तो देश का हाल का होगा"।

मैंने कहा; "लेकिन रैली निकाली नहीं आपने। विरोध अगर था ही तो दर्ज कराना चाहिए था"।

बोले; "विरोध दर्ज कराने का बात कर रहे हैं आप। हम तो राम बरन उकील से बात भी कर लिए रहे। पूरा प्रोग्राम बन गया था कि प्रतिभा पाटील के खिलाफ एक ठो जनहित याचिका दायर करेंगे। राम बरन भी तैयार हो गए थे। ऊ तो बाद में खर्चा को लेकर थोडा प्राब्लम खड़ा हो गया। आ नहीं तो हम छोड़ने वाले नहीं थे प्रतिभा पाटिल को"।

मैंने कहा; "चक्का जाम कर देते। एक रैली निकाल देते तो देश वालों की नज़र में एक बार आपत्ति तो दर्ज हो जाती। और भी फायदा हो सकता था। मेरा मतलब भविष्य में इलेक्सन वगैरह लड़ते तो एक तरह से पहचान से मदद ही मिलती"।

बोले; "सोचे तो हम भी थे। लेकिन राज का बात कहें तो बाद में हम इरादा बदल दिए। सोचे कि ई राष्ट्रपति बनेंगी जरूर ही। कोई रोक तो सकेगा नहीं"। आगे बोले; "अब तो सोच रहे हैं कि अब्दुल कलाम का विरोध करते तो अच्छा होता। उनका विरोध करने से एक ठो अलग ही पहचान बनता"।

मैं सोच ही रहा था कि ये ऐसा क्यों बोल रहे हैं। तभी उन्होने अपनी सोच का खुलासा किया। बोले; "अब देखिए। प्रतिभा पाटिल का विरोध तो सभी कर रहे थे। त अईसे में सभी का आवाज सुनाई नहीं देता। लेकिन अब्दुल कलाम का विरोध एक दो लोग करते हैं। आ अईसे में सभी का आवाज सुनाई देता है। अईसा लोग एक दो दिन में ही फेमस हो जाता है। आप देखे नहीं। ऊ पत्रकार। का नाम है उनका। अरे वही स्मिता गुप्ता। कैसे दो दिन में ही फेमस हो गई"।

मैंने कहा "आप जैसे लोग ही समाज में जागरूकता ला सकते हैं। नेताओं की करतूत जनता के सामने ला सकते हैं"।

बोले; "ज़रूरी है। जागरूकता पैदा करना ही है। आ नहीं तो ई नेता सब देश बेंच कर खा जाएगा। जागरूकता नहीं आने से कोई बदलाव का आशा नहीं कर सकते। आपको मालूम है कि नहीं? हमरे दादाजी भी ऐसे ही थे। पूरा शहर में नेहरू का विरोध ओही किये थे। एक बार नेहरू का विरोध में शहर में रैली निकाले थे। बाबूजी बताते हैं ऊ जमाने में दादाजी का वक्तव्य पेपर में छपता था, 'नगर की हलचल' कालम में"।

"अच्छा, मुझे मालूम नहीं था। आपके दादाजी भी समाजसेवा में थे"? मैंने उनसे पूछा।

बोले; "दादाजी ही क्यों। हमरे बाबूजी भी कभी नेता लोगन का बात बर्दास्त नहीं किये। सन् सतहत्तर में खुद वो इन्द्रा गांधी का विरोध किये थे। ईमर्जेंसी में धारा १४४ तोड़े थे। गिरफ्तार हो गए थे। दैनिक 'तूफान' में फोटो छपा था उनका। तीन महीना जेल में थे। त ई मत सोचिये कि आज का बात है। घर में देश के लिए कुछ करने का बात पहिले से ही है"। आगे बोले; "लेकिन हम सोच रहे हैं कि अकेले का आवाज़ सुनाई कम देता है अब। एही वास्ते हम सोच रहे हैं कि अब संस्था बना कर विरोध का स्वर ऊंचा करना पड़ेगा"।

मैं उनसे बात करके घर आ गया। दो दिन बाद बाजार से गुजरते हुये देखा कि बहुत सारे लोग रामलीला मैदान की तरफ जा रहे थे। मैंने पूछ-ताछ किया। पता चला 'निंदक' जी कोई सभा करने वाले हैं। और जानकारी लेने पर लोगों ने बताया कि आज रामलीला मैदान में 'अखिल भारतीय निंदक महासभा' के स्थापना का एलान होने वाला है।

6 comments:

  1. ये महासभा की सदस्यता हेतु, आवेदन पत्र कहाँ से मिलेगा. सोच रहे हैं कि एक बार सदस्य बन जायें तो आपके चिट्ठे का विरोध और निंदा जम कर करेंगे.

    जब तक ये काम नहीं होता है, तब तक यही कहेंगे कि बहुत बढ़िया!!

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  2. उम्म, हमारे माननीय निंदक जी के बारे मे ऐसा प्रचार!!
    ये ठीक बात नही, हम सोच रहे हैं कि एक ठो धरना आपके चिट्ठे के खिलाफ़ आयोजित कर ही दें, बस ये थोड़ा पैसन का जुगाड़ नही हो रहा है!!

    भैय्या अनुराग श्रीवास्तव जी, हर भारतीय इस अखिल भारतीय निंदक महासभा का पैदाईशी मेंबर होता ही है !!

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  3. हमें भी इस महासभा की सदस्यता दिला दिजिये. आपकी तो पहचान के हैं, कोई पद मिल सकता है क्या?

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  4. मिसिरजी, हम आपका विरोध करने ही वाले थे कि आप लिखते-उखते नहीं हैं खाली लिखने का पिलान बनाते हैं लेकिन आपने ई लिख के हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया। लेकिन अच्छा लिख गये।

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  5. मिसिरजी, हम आपका विरोध करने ही वाले थे कि आप लिखते-उखते नहीं हैं खाली लिखने का पिलान बनाते हैं लेकिन आपने ई लिख के हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया। लेकिन अच्छा लिख गये।

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  6. एक शिकायत है. इतना अच्छा और इतना भरपूर कैसे लिख रहे है आप लोग. हाये. कही निन्दा तो नही हो गई न?

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय