Tuesday, May 27, 2008

कर्नाटक में हार के 'कांग्रेसी' कारण

कर्नाटक में चुनाव हो लिए. जनता ने वोट दिया. नेता ने वोट लिया. जैसा कि अलोक पुराणिक जी के एक भूतपूर्व छात्र ने भारतीय चुनाव पर अपने निबंध में लिखा था; "वोट लेने और देने की इसी प्रक्रिया को चुनाव कहते हैं. ये प्रक्रिया लोकतंत्र के स्टेटस को मेंटेन करने के काम आती है," स्टेटस मेंटेन करने में लगे लोग खुश हैं. नेता लोग चुन लिए गए. कुछ नेता तो चून लिए गए हैं. क्या कहा आपने? कहाँ? अरे, और कहाँ जायेंगे, वही गए हैं. असेम्बली में. जितना चून लेकर गए हैं, वो पाँच साल तक लगाने के लिए काफ़ी है. देखिये 'मात्रा' की वजह से क्या-क्या होने का खतरा बना रहता है. चुन में अगर मात्रा बड़ी लग जाए तो वही चून बन जाता है. अब चून की मात्रा पर क्या बहस करना, सारे नेता अपनी-अपनी औकात के हिसाब से ले गए होंगे.

बीजेपी जीत गई है. वैसे कुछ लोग कह रहे हैं कि बीजेपी जीती नहीं बल्कि कांग्रेस हार गई है. ऐसे लोगों को चुनावी विशेषज्ञ कहा जाता है. चुनाव के रिजल्ट आने के बाद ये लोग एक दिन के लिए अपनी सुविधानुसार कोई भी रूप धारण कर सकते हैं. कवि बन सकते हैं, दर्शनशास्त्री बन सकते हैं. और न जाने क्या-क्या. वैसे चुनाव का रिजल्ट ऐसी जालिम चीज है कि ये चिरकुट नेताओं को भी न जाने क्या-क्या बना सकता है. नेता समाजशास्त्री बन सकता है. अर्थशास्त्री बन सकता है. तर्कशास्त्री बन सकता है. विमर्शशास्त्री बन सकता है. रिजल्ट बासी होने पर ये सारे शास्त्र पढ़ पढाकर वापस नेता बन जाता है. तब जाकर कहना शुरू करता है कि; "हम चुनाव में अपनी हार की समग्र विवेचना करेंगे." हालांकि ये बात कहकर पार्टी और नेता भूल जाते हैं लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी ने सचमुच कर्नाटक में मिली हार पर समग्र चिंतन किया.

चिंतन बैठक में क्या हुआ, किसी को पता नहीं चला. लेकिन आज देश तरक्की कर चुका है. तरक्की कितनी हुई है इस बात का अंदाजा हमारे देश में खोजी पत्रकारों की संख्या से लगाया जा सकता है. बस इसी असामान्य तरीके से बढ़ती संख्या में से किसी खोजी पत्रकार ने पूरी बैठक का विवरण लीक करवा लिया. उस विवरण में से कुछ भाग आप भी पढिये;

कर्नाटक चुनावों से जुड़े सारे नेता मैडम का इंतजार कर रहे हैं. सात-आठ नेता एक जगह बैठे कुछ पढ़ रहे हैं. सबके हाथ में एक जैसी किताब है. नजदीक जाकर देखा तो पता चला बीजेपी का चुनावी घोषणापत्र था. समझ में नहीं आया कि चुनाव होकर रिजल्ट निकलने के बाद भी नेता घोषणापत्र क्यों पढ़ रहे थे. वो भी विपक्षी पार्टी का. बीजेपी के नेता पढ़ते तो एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये लोग इसलिए पढ़ रहे हैं जिससे इन्हें याद रहे कि घोषणापत्र में लिखे गए वादे कभी पूरे नहीं करने हैं. हाल में एक दूसरे कोने में दस-बारह नेता कर्नाटक का नक्शा लिए उसमें कुछ ढूढने की कोशिश कर रहे थे. पता नहीं क्या खो गया था जो इतनी मेहनत से ढूढ़ रहे थे.

तीन घंटे तक नेताओं ने अध्ययन जारी रखा. बड़ी तन्मयता के साथ अध्ययनरत थे. करीब चार घंटे बाद मैडम आईं. आते ही सबसे पहले उन्होंने बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र पढ़ने वालों को बुलाया. कुल पाँच नेताओं का प्रतिनिधिमंडल मैडम के पास जाकर सिर झुका खड़ा हो गया. उन्हें सामने पाकर मैडम ने सवाल दागा; "आपने पूरी तरह से पढ़ लिया."

सारे नेता पूरे सिंक्रोंनाईज्ड वे में बोल पड़े; "जी हाँ, मैडम."

"कुछ मिला?"; मैडम ने अगला सवाल किया.

"कुछ नहीं मिला मैडम. विपक्षी पार्टी के घोषणापत्र में ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है जो हमसे ज्यादा हो. आप देखिये मैडम, मैं आपको बताता हूँ. हमने भी चावल दो रुपया किलो देने का वादा किया और उन्होंने भी चावल उसी रेट में देने का वादा किया. हमने भी कलर टीवी देने का वादा किया, उन्होंने भी कलर टीवी देने का वादा किया था. कुछ भी अलग नहीं है मैडम"; प्रतिनिधिमंडल का अगुआ बोला.

मैडम ने उस अगुआ की बात सुनी. कुछ सोचते हुए बोलीं; "लेकिन रेट एक ही था तो वे जीत कैसे गए? हम हार कैसे गए? देखिये, कुछ तो होगा जो हमारे वादों से अलग होगा."

"कुछ नहीं है मैडम जो हमारे वादों से अलग है. पता नहीं फिर भी जनता ने उन्हें कैसे जिता दिया?"; अगुआ ने बताया.

मैडम उसकी बात से संतुष्ट तो नज़र आ रही थीं लेकिन कुछ कन्फ्यूज्ड सी दिखीं. कुछ देर सोचकर उन्होंने पूछा; "अच्छा कहीं ऐसा तो नहीं कि विपक्षी पार्टी ने कहा हो कि दस किलो से ज्यादा चावल खरीदने पर रेट पौने दो रुपया लगायेंगे? या फिर घोषणापत्र में ये तो नहीं लिख दिया कि पचास किलो तक या उससे ज्यादा खरीदने से होम डेलिवरी फ्री में कर देंगे?"

"नहीं मैडम, ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है. हमें भी शक था कि ये डिसकाऊंट और होम डिलिवरी वाला क्लॉज़ हो सकता है. लेकिन पढ़ने के बाद पता चला कि ऐसा कुछ भी नहीं था"; प्रतिनिधिमंडल के अगुआ ने जानकारी देते हुए बताया.

उसकी बात सुनकर मैडम परेशान सी दिखीं. पता नहीं क्या कहा. लगा जैसे कह रही हों; "पता नहीं कैसे हो गया. जनता को दो रुपया किलो चावल दे रहे हैं, और पता नहीं क्या चाहिए इसको". उसके बाद उन्होंने उन नेताओं को बुला लिया जो कर्नाटक नक्शे में कुछ खोज रहे थे. नेताओं के आते ही उन्होंने पूछा; "कुछ मिला?"

"हाँ मैडम. हमें समझ में आ गया है. देखिये ऐसा है मैडम कि लिंगायत के वोट हमें मिले नहीं मैडम. और वोक्कालिगा ने हमें वोट दिया नहीं मैडम. लिंगायत लोगों ने बीजेपी को वोट दिया और वोक्कालिगा ने जेडीएस को. ऐसे में हमारे लिए कुछ बचा ही नहीं मैडम. ऊपर से आपने एस एम कृष्णा को बुलाया तो दलित हमसे नाराज हो लिए. हाँ, अगर उत्तरी कर्नाटक में हमें वोक्कालिगा के वोट मिल जाते मैडम तो दक्षिणी कर्नाटक में लिंगायत के वोट न मिलने का उतना नुकशान नहीं होता. आईये हम आपको नक्शा दिखाकर समझाते हैं मैडम........"

"बस-बस. बस कीजिये, मुझे पता चल गया. नक्शे देखकर मैं क्या करूंगी? मुझे सबकुछ समझ में आ गया. आपलोग जा सकते हैं"; मैडम ने नाराज होते हुए कहा.

उनकी बात सुनकर एक सीनियर नेता बोला; "मैडम कृष्णा जी का क्या करें? सुनने में आया है कि नाराज टाइप हैं. कह रहे थे कि गवर्नर का पद भी गया और इलेक्शन भी हार गए."

उसकी बात सुनकर मैडम ने कुछ सोचा. फिर कमरे की सीलिंग को निहारा. उसके बाद बोलीं; "ठीक है, उनसे कहिये, मैं कुछ करती हूँ. लेकिन क्या करूंगी, किसी राज्य में गवर्नर का पद खाली करना बड़ा मुश्किल है. कोई छोड़ना नहीं चाहेगा. क्या करें...क्या करें..अच्छा ठीक है, उनसे कहियेगा कि चिंता न करें. हम ट्राई करेंगे कि उन्हें गवर्नर बनाने के लिए हम एक राज्य बनवा दें."

14 comments:

  1. ये काग्रेस को थोडा बहुत ग्रेस देकर पास कराने का कोई जुगाड नही है क्या ? भाइ हम चावल के लिये बोरी लेकर निकल चुके है , टी वी भी मिलने वाला था, सारा सत्या नाश करा दिया जी :)

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  2. इस मुद्दे पर हम तो अपनी टिपण्णी आज के कार्टून में कर चुके ...... :)

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  3. कम से कम जो आपको हमने पहले निबंध लिख कर दिया था उसका पेमेंट तो भिजवा दीजीये जी, कुछ तो हाथ लगे, हम तो लगता है आपके बहकावे मे आकर फ़स गये जी. लेकिन कर्नाटक वाले काग्रेस से बच गये :)

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  4. काग्रेसियों की पुरानी आदत है, जो लोक सभा चुनाव तक तो दिखेगी ही।

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  5. जब तक कुछ फाइनल न हो जे कृष्णा जी को ब्लॉग बनवा कर ब्लोगियर बना दिया जाय.
    कैसा रहेगा. कुछ तो भडास निकाल सकेंगे.
    और शायद राजनीती के नए दाँव पेंच भी सिख जाय.
    क्यों?

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  6. जब कांग्रेस जीते तो सारा credit मैडम को और जब कांग्रेस हारे तो मैडम सीन से ही गायब हो जाती है। आज पता चला कि वो कहाँ गायब होती है। :)

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  7. जमाये रहियेजी।
    हमरा निबंध लिखने वाला छात्र तो आपने तोड़ लिया है, और इस तोड़ फोड़ पर एंटी डिफेक्शन ला भी लागू नहीं ना होता।

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  8. बहुत बहुत धन्यबाद ! आखिर अपने हमरी सुन ली ! उम्मीद से बहुत ही बेहतर लिखा !...... अगर इश पोस्ट को शेखर सुमन जी पड़ ले तो नेताओ की पोल खोलने मे उनको भी काफी मज़ा आयेगा....अरे हाँ ....दुर्योधन किस तरह की मीटिंग करता होगा चुनाव समिछा के लिए... जरुर एक पोस्ट लिखियेगा ....अपेछा में हूँ.....

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  9. chaliye aap apne purane form me vaapas to aaye..
    achchha laga.. :)

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  10. कमल भी ज्यादा इतराने में न रहे। येदियुरप्पा जी नरेन्द्र मोदी की तरह बाज नहीं हैं। उनके पास आसान बहुमत भी नहीं है। लोक सभा के चुनाव तक हनीमून चलाना कठिन काम होगा।
    पर हां, अभी तो कॉग्रेस के लिये बुरी खबर है ही। और उनके रणनीतिकारों का विवरण तो आपने दे ही दिया है!

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  11. हमारे देश में कोई पार्टी जीतती कहाँ है... जनता जिससे त्रस्त हो जाती है उसको हरा देती है. इस प्रकार कांग्रेस हारी है: बीजेपी जीती नहीं. :-)

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  12. बंधू
    अब आ ही गए हैं तो टिपियाते चल रहे हैं वैसे हमें कमल,हाथ और हाथी में कोई दिलचस्पी नहीं है...शायद ये हमारा राजनीति के प्रति नकारात्मक रवईया ही है जो देश को गर्त में ले जा रहा है...शोध का विषय है ये भी...
    .कोई काम न हो तो किसी खोजी पत्रकार को लगा दीजिये हमारे पीछे.
    नीरज

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  13. मैडम को चिन्तित देखकर चिन्ता में हूँ. सोचता हूँ कुछ कृष्णा जी के लिए.
    आपके पास भी निबंधी बालकों की जमात इक्कट्ठी हो रही है, यह शुभ संकेत है. :)

    बेहतरीन.

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  14. अहा.....कोई भी जीते अपुन को क्या ?आप वापस आ गए यही बहुत है......

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय