कल हलकान भाई से मिलने उनके घर गया था. अरे वही हलकान भाई जिनकी ब्लॉग वसीयत मैंने छाप दी थी. जिस दिन वसीयत छापी उस दिन बहुत नाराज हुए. बोले; "मुझसे बिना पूछे छाप कर अच्छा नहीं किया तुमने." मैंने माफ़ी मांग ली. लेकिन दूसरे दिन शाम को फ़ोन किया. बोले; "यार तुमने वसीयत छाप कर मेरे लिए जो किया है, उसके लिए मैं तुम्हारा आभारी रहूँगा."
मैंने पूछा; "हलकान भाई ऐसा क्यों कह रहे हैं? आप तो बहुत नाराज थे मुझसे."
बोले; "यार वसीयत छपने की वजह से मुझे दो दिन के अन्दर मेरे ब्लॉग पर बहुत हिट्स मिलीं." मुझे समझ में आ गया कि आभार प्रकट करने के पीछे कारण क्या था. खैर, मैं कल शाम हलकान भाई के घर गया था. मामला इतना सा था कि मुझे एक डॉक्टर का अप्वाईंटमेंट चाहिए था. उनसे बात हो रही थी. अचानक बोले; "अरे वे डॉक्टर तो मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं."
मैंने पूछा; "आप जानते हैं उन्हें? कब से जानते हैं?"
बोले; " असल में हुआ क्या कि मैंने एक पोस्ट लिखी थी; "क्या डॉक्टर को भगवान माना जाना चाहिए?" मेरी पोस्ट पर उन्होंने कमेंट किया. मैंने उनके कमेंट से उनका ईमेल आईडी लिया और उन्हें मेल भेजा. हम दोनों में 'मेल-मिलाप' शुरू हुआ और अब हमारे सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं. अब तो मैं इंजिनियर, टीचर, नेता और जनता के ऊपर भी पोस्ट लिख दूँ तो उनका कमेंट जरूर मिलेगा."
मैंने कहा; "हलकान भाई, मुझे उनका अप्वाईंटमेंट दिला देते तो अच्छा था." हलकान भाई ने कहा कि मैं उनके घर जाऊं तो वे जरूर दिला देंगे. यही बात थी कि मैं कल उनके घर गया. उन्होंने मुझे शाम को सात बजे बुला तो लिया लेकिन ख़ुद घर नहीं पहुंचे. मैंने फ़ोन किया तो बोले; "यार आधा घंटा बैठो, मैं आ रहा हूँ. असल में आज आफिस में दिन भर ब्लॉग पर कमेंट करने का समय नहीं मिला, इसलिए थोडी देर पहले ही ब्लॉगवाणी खोला है. बस तुम बैठो, मैं आ रहा हूँ."
क्या करता. बैठे-बैठे इंतजार कर रहा था. इधर-उधर देखते हुए किताबें उलटने लगा. टेबल पर पड़ी कुछ किताबों के पास ही हलकान भाई की दो डायरी रखी थी. मजे की बात ये कि एक डायरी पर लिखा हुआ 'ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की डायरी' और दूसरी पर लिखा हुआ था, 'हलकान 'विद्रोही' की डायरी. मैं बड़ा उत्सुक हो गया. समझ में नहीं आ रहा था कि ब्लॉगर हलकान की डायरी दूसरी डायरी से अलग क्यों है. उलट-पुलट कर देखा तो बात समझ में आई. इस डायरी में हलकान भाई ने ब्लागिंग से संबंधित सारी बातें लिखी थीं. आप पढ़ना चाहेंगे कि क्या-क्या लिखा था? आप में से कुछ मुझे गली देते हुए कह सकते हैं कि किसी की डायरी नहीं छापनी चाहिए. लेकिन क्या करूं? दुर्योधन की डायरी छाप-छाप कर आदत पड़ गई है. वैसे भी ब्लागिंग में कम्पीटीशन इतना है कि लोग दूसरे ब्लॉगर के साथ हुई चैट तक छाप देते हैं. ठीक है आप डायरी के अंश पढिये. गाली भी देंगे तो समस्या नहीं है....
२० मई, २००८ की सुबह
आज एक साहित्यकार-ब्लॉगर ने एक पोस्ट छापी है. उसमें उन्होंने उन साहित्यकारों से आत्मसाक्षात्कार करने जैसी कुछ बातें लिखी हैं. उनका कहना है कि साहित्यकार के ब्लॉग कम पढे जाते हैं. वे जब-तब जो इच्छा हुई, छाप देते हैं. मुझे लगता है कि उनकी इस पोस्ट पर टिप्पणियां जिस गति से आ रही हैं, कुछ न कुछ विवाद जरूर खड़ा होगा. पिछली बार जब जनवरी महीने में ब्लॉग जगत में विवाद हुआ था तो मैं पीछे रह गया था. केवल बारह अनामी टिपण्णी कर पाया था. बहुत पछतावा हुआ था. इस बार मौका हाथ से नहीं जाने दूँगा. इस बार ढेर सारी टिप्पणियां देनी हैं. खूब मजा आएगा.
२० मई, २००८ की शाम
आज मैंने कुल आठ फर्जी आई डी बनाई. बड़ा झमेला है फर्जी आई डी बनाने में. कुछ भी नाम डालो, तो पता चलता है कि आई डी पहले से किसी के पास है. ये गूगल वालों को कोई तरीका निकलना चाहिए. आज मैंने जो आई डी बनाई है, इस प्रकार हैं. बर्बरीक, अश्वत्थामा, कालिदास, इन्द्रेश्वर, सीधी बात, तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं, रंगबाज साहित्यकार और चालबाज ब्लॉगर. मैंने आज दो अनामी कमेंट किए जिसमें ब्लॉगर को दो कौड़ी का बताया. दो कमेंट फर्जी आई डी से किए जिसमें साहित्यकार को दो कौड़ी का बताया. एक कमेंट मैंने अपने निजी आई डी से किया जिसमें झगड़े को तुरंत सुलझाने की सलाह दी.
२१ मई, २००८ की सुबह
आज सुबह-सुबह पत्नी से झगड़ा हो गया. कहती है मैं रात को नींद में बड़बडाता हूँ, 'बस एक कमेंट और.' मुझे मालूम है ये मुझसे जलती है. ब्लॉग जगत में लगातार बढ़ती मेरी ख्याति इससे देखी नहीं जाती. इसिलए मेरे लिए ये सब कहती है. आज मैंने एक साहित्यकार द्वारा लिखी गई पोस्ट पर चार कमेंट किया. दो में उनका समर्थन किया और दो में विरोध. सारे कमेंट अलग-अलग फर्जी आई डी से किया. जब से झमेला शुरू हुआ है, बहुत मजा आ रहा है.
२३ मई, २००८ की शाम
आज कल भाषा पर विमर्श छिड़ा हुआ है. कुछ लोगों का कहना हैं कि उर्दू ख़त्म हो जायेगी. और ये भी कि उर्दू के ख़िलाफ़ बड़ी साजिश हुई है. साथ में पंजाबी और हिन्दी के साथ भी बहुत बड़ी राजनीति हुई है. इस भाषा विमर्श के चलते खूब जूतमपैजार मचने की उत्तम संभावना है. मैंने तो तीन टिपण्णी लेख के समर्थन में की है और दो टिपण्णी लेखक को बुरा-भला कहते हुए की है.
भाषा पर छिड़ा विमर्श देखकर मैंने भी अपने ब्लॉग 'बारूद' पर एक विमर्श छेड़ने की मंशा बना ली है. मैंने आठ विषयों को चुनकर एक कागज़ पर लिखा और अपने बेटे को अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो कहते हुए आँख बंदकर किसी एक विषय पर उंगली रखने को कहा. बेटे ने जिस विषय पर उंगली रखी वो था; 'तिब्बत की स्वतन्त्रता भारत की जिम्मेदारी नहीं.' कल ही इस विषय पर एक विमर्श शुरू करता हूँ.
२४ मई, २००८ की शाम
आज ख़बर आई कि एक विश्व प्रसिद्ध हिन्दी ब्लॉग के महान माडरेटर को रेप केस में अरेस्ट कर लिया गया. मजे की बात ये कि इस बात को एकदम नए ब्लॉगर ने जग-जाहिर किया. अब तो मुझे लगता है कि मेरे फर्जी आई डी सचमुच काम में आ जायेंगे. मैंने इतनी सारी फर्जी आई डी बनाकर अच्छा ही किया. मुझे अपनी दूरदर्शिता पर बहुत गर्व हो रहा है.
कल एक ब्लॉगर ने साहित्यकार और ब्लॉगर के बीच झगडे को शांत करने के लिए एक पोस्ट लिखा. मुझे समझ में नहीं आता कि ये झगडा शांत कराने वाले लोग क्यों होते हैं. मुझे तो ऐसे लोग फूटी आँख नहीं सोहाते. मैं पूछता हूँ क्या जरूरत है झगड़ा शांत कराने की. ऐसे लोगों को हमारी खुशी का जरा भी ख़याल नहीं है.
२७ मई की सुबह
बहुत मजा आ रहा है. ये रेप केस में गजब-गजब बातें पढने को मिल रही हैं. दस-दस साल पुराने किस्से खुल रहे हैं. कौन कहाँ क्या-क्या किया है, सब सामने आ रहा है. बड़ा मजा आ रहा है. हमको नहीं मालूम था कि ब्लागिंग में किसी दिन ये मजा आएगा. हम तो कहेंगे कि....
अभी पढ़ रहा था कि हलकान भाई आ गए. आते ही मेरे हाथ में डायरी देखकर बिल्कुल नहीं चौंके. बोले; "पढ़ लो, पढ़ लो. तुमसे कुछ छुपा हुआ है क्या? सब तो जानते हो." मुझे लगा छुपना चाहेगा तो भी छुप नहीं सकेगा. ब्लॉग है तो ब्लॉगर हैं. और ब्लॉगर हैं तो ब्लागिंग में अराजकता की सहज संभावनायें हैं
भाई साब कंही गलती से हलकान के बदले ख़ुद ही की डायरी तो नही छाप रहे हो.
ReplyDeleteवैसे ये बात तो मजाक मे कह रहा हूँ.
आपने कईयों की पोल खोल दी हैं.
जारी रहे.
एक-आध डायरी हमे भी दी जाय.
:)
ReplyDeleteहम तो हलकान जी को दिवन्गत मान रहे थे। वे जिन्दा है और ब्लॉगजगत को चौपटियाने मे मन्थरा-नारद ज्वॉइण्ट वेन्चर अनलिमिटेड चला रहे है - यह देख कर बहुत प्रसन्नता हुई।
ReplyDeleteआज हलकान जी हमारे द्वार भी आये थे - घटोत्कचावतार मे!
हम सोच रहे थे किसी दिन आपको घर बुलायेंगे..लेकिन आपकी डायरी चुराने की आदत देखकर डर लग रहा है... :-)
ReplyDeleteजमाये रहियेजी।
ReplyDeleteबाद मे टिपियाऊंगा, पहले जरा अपनी डायरिया जला दू और लैपटाप को फ़ारमेट मार दू.कही सुबह सुबह दिल्ली आ ही गये तो ?
ReplyDeleteहा जी अब आप जब चाहे दिल्ली आ सकते है डायरी भी देख सकते है. हमने ठेके पर लिखवाने कॊ दे दी है , चाहे तो सारी छाप सकते है :)
ReplyDeleteहा हा!
ReplyDeleteबात क्या है साहेब, आपकी नज़र आजकल दूसरों की डायरी पर ही ज्यादा पड़ रही है कभी दुर्योधन की डायरी तो कभी इनकी डायरी , सही है जी
पता नहीं कब से दबाये बैठे थे, आपका दिल हल्का हो गया होगा :)
ReplyDeleteमेरी डायरी कई दिनो से गायब है, अगर मिले तो छापना मत जी... :) मांडवली कर लेते है.
तो आप diary भी चुराते है......
ReplyDeleteकिस किस डायरियां धरे हैं महाराज. :)
ReplyDeleteबहुत मजेदार. हलकान साहब की डायरी तो दुर्योधन की डायरी से जरा भी उन्नीस नहीं है. इसका भी नियमितीकरण कीजिये. और किस-किस की डायरियाँ हाथ लगी हैं?
ReplyDeleteभाई एक तो भूमिका लम्बी पर रोचक फिर डायरी चार दिनों की एक साथ पढ़वा दी। एक दिन मे अधिक से अधिक दो दिन की चल सकती है।
ReplyDeleteहाँ आप कि कल्पना शक्ति बहुत अच्छी है, पर जरा यह तो बता दो कि प्रेरणा कहाँ से प्राप्त करते हैं। वैसे डायरी स्पेशलिस्ट हो गए हैं. कभी मुझे जरुरत पड़ी तो आप से ही लिखवाउंगा, पर कॉपीराइट मेरा ही रहेगा।
बढिया !:)
ReplyDeleteआखिर "ब्लोग " भी
खुली डायरी ही तो है !
- लावण्या
बढिया है
ReplyDeletebadhiyan hai shiv ji
ReplyDeletelage rahen
बंधू
ReplyDeleteहमें हलकान भाई बहुत पसंद आए कारण ये की उनमें देश का नेता बनने की असीम संभावनाएं है...याने जो वो हैं नहीं वो सबको दिखाते हैं और जो हैं वो किसी को मालूम नहीं पड़ता ...वाह....दूसरी बात ये की लोगों को लड़ाने की कला में भी वो माहिर हैं...उसका भरपूर मजा भी लेते हैं. लोकसभा चुनाव पास ही हैं कहें तो खोपोली से खड़ा करवा दें उनको...निर्दलिये उमीदवार की हैसियत से...निर्दलिये याने जो जीतने पर दल निर्धारित करता है.
आप का ये वाक्य ध्रुव सत्य हो सकता है यदि .."ब्लॉग है तो ब्लॉगर हैं. और ब्लॉगर हैं तो ब्लागिंग में अराजकता की सहज संभावनायें हैं" में ब्लॉग की जगह दुनिया और ब्लोगेर की जगह इंसान लिख दें तो. याने "दुनिया है तो इंसान है और इंसान है तो दुनिया में अराजकता की सहज संभावनाएं हैं" इसे कहते हैं छायावादी लेखन...जिसके सहारे बहुत से लोगों को जो छाया में मजे कर रहे हैं, धूप में लाया जाता है... वाह.
नीरज
शिवकुमार मिश्र जी आपके व्यंग्य बहुत अच्छे है और आज से मैं आपके ब्लोग को अपने ब्लोग पर लिंक देना शुरू कर रहा हूँ . आज एक व्यंग्य में आपका नाम भी लिखा है. अगर बिजली की कृपा रही तो आज प्रकाशित हो जायेगा.
ReplyDeleteदीपक भारतदीप