Thursday, June 26, 2008

बुश बाबू के आडिटर......

अमेरिका वाले आश्चर्यचकित हैं. वैसे तो पिछले कई सालों से जैसे ये लोग चकित होने की ड्यूटी पर हैं लेकिन इस बार ये आश्चर्य उपजा है आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए पाकिस्तान को दिए गए धन से.

धन से बहुत कुछ उपजता है. भ्रष्टाचार से लेकर आश्चर्य तक. और धन अगर सहायता राशि के रूप में मिले तो फिर कहना ही क्या.

आज अखबार में एक रिपोर्ट पढ़ रहा था. पता चला कि अमेरिका ने अपने आडिटर भेजे थे. पाकिस्तान जाकर पता लगाने के लिए कि साल २००१ से आतंकवाद का नाश करने के लिए उसने पाकिस्तान को जितना धन दिया, वो ठीक से खर्चा हुआ या नहीं.

सालों बाद जागे. हो सकता है, ख़ुद जागे हों. हो सकता है, वहां की किसी कमिटी ने जगाया होगा. या फिर ये भी हो सकता है कि एक दिन मिसेज बुश ने रसोई में चाय बनाते हुए आवाज लगाई होगी; "अजी सुनते हो, सात साल हो गए. देवर जी को पैसे दिए ही जा रहे हो. कभी उनसे हिसाब भी माँगा? एक बार देखो तो सही कि इन पैसों का क्या कर रहे हैं? आतंकवाद से लड़ रहे हैं या फिर अपने रिटायरमेंट का बंदोबस्त कर रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इन्ही पैसों से अपना पेंशन प्रीमियम भर रहे हैं."

हो सकता है बुश बाबू तुंरत मान गए होंगे. ये भी हो सकता है कि कुछ तू-तडाक भी हुई होगी.

अगर यही धन भारत ने दिया होता और बुश बाबू भारत के नेता होते तो ये भी कह सकते थे; "अरी भागवान चुप कर. जब किसी चीज के बारे में नहीं मालूम है तो मत बोलाकर. तुझे क्या लगता है, ये जो बेटी की शादी में इतना खर्च हुआ है, वो कहाँ से आया है. ये सब उसी दान में निकाला गया परसेंटेज है."

लेकिन बुश बाबू ठहरे अमेरिका के नेता. सुनते हैं, बड़े पाक-साफ़ टाइप होते हैं ये अमेरिका वाले. सो उन्होंने आडिटर भेज दिए.

आडिटर पकिस्तान तक आकर वापस गए तो बुश बाबू को हिसाब-किताब का व्यौरा थमा दिया. बोले; "सर जी, आपके छोटे भाई तो बड़ा घपला किए बैठे हैं. पाँच बिलियन डॉलर में से दो बिलियन डॉलर के खर्चे का कोई हिसाब नहीं है. एक्कौ बिल नहीं है. वाऊचर के साथ सपोर्टिंग नदारद है. कहीं-कहीं टैंक का बिल भी सादे कागज़ पर उर्दू में लिखकर लगा दिया है. एक उर्दू पढ़ने वाले को साथ लेकर गए थे. एक बिल देखकर बोला कि ये बिल कराची के चोर बाज़ार के एक दुकान का है. रसीद तो एक भी वाऊचर के साथ नहीं है."

बुश बाबू ने कहा होगा; "अच्छा, जरा डिटेल में बताओ तो क्या-क्या हुआ है."

"अरे होना क्या है. अनाप-सनाप खर्चा दिखाया है आपके छोटे भाई ने. पन्द्रह मिलियन डॉलर तो एक रोड बनाने में लगा दिया. हमने कहा रोड दिखाओ तो पता चला कि ऐसी कोई रोड ही नहीं बनी. और तो और एक गाड़ी की मरम्मत पर एक साल में दो लाख बीस हज़ार डॉलर खर्चा हुआ है"; आडिटर ने बताया.

"अरे बाप रे. ऐसा कर दिया है उसने. बेवकूफ है. अरे चोरी करो लेकिन कम से कम गणित के हिसाब से करो"; बुश बाबू ने कहा.

उनकी बात सुनकर आडिटर बोले; "अभी क्या सुने. पहले पूरी बात सुनिए. एयर डिफेन्स रडार सिस्टम पर दो सौ मिलियन डॉलर खर्च दिए. हमने पूछा, ये किसलिए. अल कायदा के पास तो एयरक्राफ्ट है नहीं. तो बोले कि हम जो कुछ करते हैं भविष्य को देखते हुए करते हैं. क्या पता कल को अल कायदा वाले एयरक्राफ्ट खरीद लें."

मिसेज बुश ये सब सुन रही होंगी तो बोलेंगी; "देखा, मैं कहती थी न. मेरी बात तो कभी मानते नहीं हो. दिए जा रहे हो पैसे. लो भोगो अब. और ये जो फ्यूचर में एयरक्राफ्ट की बात कर रहा है वो इसलिए कि कोई प्लान बनाया होगा आईएसआई ने अलकायदा वालों को एयरक्राफ्ट बेचने का."

बुश बाबू की समझ में नहीं आया होगा कि क्या कहें. सर झुकाए सोच रहे होंगे; 'फालतू में आडिटर भेजे. जब एक बार पैसा दे दिया था तो क्या जरूरत थी ये पता लगाने की, कि पैसा कैसे खर्च हो रहा है. इससे अच्छा तो भारत वाले हैं जो इस मुहावरे को दोहराते जीते हैं कि 'नेकी कर दरिया में डाल'.

17 comments:

  1. लगता है अभिषेक भाई की क्लास में भेजना पड़ेगा इन्हे. गणित सीखने के लिए..
    छोटे भाई हिसाब में ज़रा कच्चे है.. लेकिन हा ज़मीन नापना अच्छे से जानते है..

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  2. शिव जी, लाते दूर की कौड़ी हो भैया।

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  3. बड़े जबर आडीटर थे! खिलाये-पिलाये में नहीं आये!!
    अब खैर फिर पाकिस्तान जाने की जहमत न करें - अबकी ये-कायदा/वो-कायदा/अल-कायदा वाले ले जायेंगे उन्हे सड़क नपवाने!!!

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  4. अजी ऑडिटर को ही कुछ खिला-पिला देते.. सच्ची मुश जी को पैसा खाना भी नहीं आया है अभी तक.. कुछ तो भारत से सीख लेते..

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  5. "अरे चोरी करो लेकिन कम से कम गणित के हिसाब से करो"
    बंधू आप ये ऐसा वाक्य लिख गए हैं जो हर हिन्दुस्तानी को हमेशा याद रखना चाहिए...ये एक शाश्वत वाक्य है...ये एक मंत्र है जिसके जाप से बड़े बड़े पाप धुल जायेंगे, काश ये मंत्र तेलगी के पास होता तो आज वो जेल की चक्की ना पीस रहा होता....बहुत ही बढ़िया लिखे हैं आप. ऐसा बढ़िया जिसे केवल और केवल आप ही लिख सकते हैं.
    नीरज

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  6. बढ़िया लिखा है, सदा की तरह!
    घुघूती बासूती

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  7. मस्त सलाह दी...नेकी कर दरिया में डाल.


    जब पैसा दे ही दिया है तो हिसाब माँग काहे अगले को शर्मिंदा करना. हो सकता है अगली बार अगला इसी शर्त पर दान ले की इसका हिसाब नहीं माँगा जायेगा.

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  8. सई है जी॰
    कौनो है का जो अईसन नेकी हमरे साथ भी करके दरिया मे डाल सके ;)

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  9. कंमेंट गया तेल लेने..
    अमाँ पंडित, पहले यह बताओ कि आइडिया कहाँ से लाये ?

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  10. अरे भइया ये क्या कम है कि आडीटर लोग आडिट किए.घपला पकड़े और उसके बाद भी अमेरिका वापस चले गए.मुशर्रफ़ जी को भी तो कुछ चाहिए. उन्होंने ले लिया.

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  11. अरे ये भी कमाल हैं ... यहाँ तो ५ प्रतिशत कमीशन पर हर तरह का बिल/वाउचर बनता है... किसी को भेज के बनवा लेते :-) लेकिन अब ५% भी बचाने के चक्कर में रहेंगे तो का होगा.

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  12. हमारे यहाँ तो तीन ऑडिटर इस बार उदास बैठे है की कही ढंग का ऑडिट नही मिला...कहे तो भिजवा दे.....

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  13. सुनते हैं, बड़े पाक-साफ़ टाइप होते हैं ये अमेरिका वाले.-

    यह तो पूर्णत: भ्रमित करने वाला तथ्य है.किसने सुनाया..?? कहीं ऐसा बोलने के लिए बुश बाबू एकाध बंडल के साथ आपसे मिलने तो नहीं आये थे ऑन द वे टू पाकिस्तान!!
    बाकी तो सही कह रहे हैं कुछ सीखें वो भी कि नेकी कर दरिया में डाल.

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  14. समीर भाई, किसी ने नहीं सुनाया. ये तो दिखाई देता है. अमेरिका वाले पाक के मामले में सबकुछ साफ़-साफ़ करते दीखते हैं.

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  15. नेकी करके कौन सी दरिया में डाला जाये। अब सूखती जा रही हैं। अच्छा लिखे हैं।

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  16. हम से बडे तो घपलेबाज आप है जी, बुश से फ़ीस के अलावा कमीशन मारा ,जब हमने आपके स्विस एकाऊंट मे पैसा ट्रान्सफ़र कराया था तो तय हुआ था कि छोटे मोटे घपले दिखाओगे लेकिन वहा भी हमारे साथ चींटिंग की गई चलो मान लिया आप ओडिट रिपोर्ट मे ८०% घपले छुपा गये लेकिन ये ब्लोग पर काहे बात उठाई , सच मे हिंदुस्तानियो का भरोसा नही करना चाहिये खाकर भी इमानदारी नही दिखाते अब आपकी ओडिट रिपोर्ट अलकायदा ही बनायेगा
    खुदा हाफ़िज
    तुम्हारा खैरख्वाह
    मुशरर्फ़

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  17. ये ऑडिटरों को खिलाना-पिलाना सीखा नहीं पाक वालों ने अब तक क्या?

    हमें सरकारी सेवा में आकर दिव्य ज्ञान हुआ कि सरकार के कामों के लिये भी ऑडिटरों को खिलाना-पिलाना होता है, चाहे हिसाब-किताब सब ठीक हो तो भी बिना खातिरदारी के परेशान करते हैं।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय