आजकल विदेशी बैंकों में अपने देश के वीरों द्बारा रखा गया कालाधन बहुत चर्चा में है. और हो भी क्या सकता है? विदेशी बैंक डूब गए. ऐसे में विदेशी बैंकों में रखे काले धन की ही चर्चा कर डालो. हम चर्चाकार लोग हैं. हमें तो कोई कुछ पकड़ा दे, हम चर्चा कर डालते हैं. 'करके डाल देते हैं.'
अनुमान पर अनुमान लग रहे हैं. कोई कहता पचहत्तर लाख करोड़ रुपया जमा है. कोई कहता है," केवल पचहत्तर लाख करोड़? पता है कि नहीं? पिछले पॉँच साल में ही सात लाख करोड़ जमा हुए हैं. नया-पुराना हिसाब लगाने से कम से कम एक सौ दस लाख करोड़ रुपया होगा."
कितने तो बोलते-बोलते कन्फ्यूजिया जा रहे हैं. पचहत्तर लाख करोड़....कुछ ज्यादा नहीं हो गया? शायद पचहत्तर हज़ार करोड़ होगा....नहीं-नहीं रुकिए बताता हूँ. ऊँगली पर फिर से गणना शुरू हो गई....इकाई.. दहाई... सैकडा..हज़ार.. दस हज़ार..लाख...नहीं नहीं ठीक है. पचहत्तर लाख करोड़ ही है.
लिखते समय लग रहा है कि कुछ गड़बड़-सड़बड़ तो नहीं लिखा जा रहा है?
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ तो इस बात पर मशगूल हैं कि कितना पैसा आएगा. कहाँ-कहाँ जायेगा. लेकिन कुछ लोग हैं जो इस बात का अनुमान लगा रहे हैं कि इतना पैसा है किसका? नेताओं का? उद्योगपतियों का? अफसरों का?
हम भी यही अनुमान लगा रहे हैं.
कल एक टीवी कार्यक्रम पर एक नेता जी को बोलते देखा. वे बता रहे थे; "देखिये हम सभी राजनीतिक दल के लोग इस बात पर तो राजी ही हैं कि यह कालाधन देश में वापस आ जाए."
उनकी बात सुनकर आश्वस्त हो लिया कि भाई जिनके ऊपर शक किया जा रहा है कि पैसा उनका है, उनमें से एक वर्ग तो चाहता ही है कि पैसा देश में आ जाये. मतलब इस वर्ग का पैसा तो नहिये होगा. अब उद्योगपति और अफसर बचे. उन्हें भी मौका मिले तो वे भी यह बोलकर फारिग हो लें कि वे भी चाहते हैं कि यह कालाधन देश में वापस आ जाए. मतलब यह धन उनका भी नहीं है.
फिर किसका है? शायद देश की आम जनता का हो.
कोई कह रहा है कि शासन में आते ही वे सौ दिन के भित्तर पूरा कालाधन अपने देश में ला पटकेंगे. ठीक वैसे ही जैसे गाँव-देश में लोग गर्मी के दिनों में खांची या बोरे में भूसा ढोते हैं. खलिहान में भरा और दुआरे लाकर पटक दिया. भूसे का अम्बार लग जाता है.
ठीक वैसे ही देश में भूसा सॉरी कला धन का पहाड़ खड़ा हो जायेगा.
अब इतनी बड़ी मात्रा में कालाधन लाने की बात होगी तो तमाम विशेषज्ञ और आर्थिक मामलों के जानकार, एनालिस्ट वगैरह पेन और कल्कुलेटर लेकर बैठेंगे ही. बस, भाई लोग बैठ गए हैं. कोई कह रहा है कि पूरा काला धन आ जायेगा तो भारत की गरीबी दूर हो जायेगी. देश में कोई गरीब रहेगा ही नहीं.
बहुत डराते हैं ये एनालिस्ट लोग. भाई, डरने की तो बात ही है. अब ऐसी बातों से न जाने कितने साहित्यकार, लेखक, ब्लॉगर वगैरह परेशान हैं. ये लोग इसलिए परेशान हैं कि कहीं ऐसा हो गया तो वे निबंध, किस्से, कहानी, पोस्ट वगैरह किसके ऊपर लिखेंगे? जब कोई गरीब ही नहीं रहेगा तो लेखक बेचारा तो मारा गया न. अमीर भी कोई लिखने की चीज है? वो तो अमीर है. उसके पास पैसा है. वो तो खुद ही लेखक बन सकता है.
पैसेवाला भगवान बन सकता है, लेखक तो कुछ भी नहीं.
राजनीतिज्ञ भी परेशान हैं. सोचकर हलकान हुए जा रहे हैं कि जब कोई गरीब रहेगा ही नहीं तो वे लडेंगे किसके लिए? किसके लिए आरक्षण वगैरह को लेकर मारामारी करेंगे? सामाजिक न्याय तो नैनो की बैकसीट पर चला जायेगा. संसद में काम होने लगेगा. संसद रोकने का एक उपाय तो निकल जायेगा हाथ से.
इन राजनीतिज्ञों का यह जनम तो व्यर्थ चला जायेगा. पुराने नेता टाइप लोग इसलिए भी परेशान हैं कि उनके बेटा-बेटी अब क्या करेंगे? इन नेताओं ने अपने बेटे-बेटियों को राजनीति का पाठ पढ़ाकर तैयार किया कि वे लोग गरीबों की लड़ाई लडेंगे. और समय की मार देखिये (या फिर काले धन की मार?) कि देश से गरीब ही गायब हो जायेगा.
मंदी के इस दौर में ऐसे लोग तो बेरोजगार हो जायेंगे. मतलब बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच जायेगी. नेता बेरोजगार हो जाए तो समाज में अपराध बढ़ने का चांस और बढ़ जायेगा.
एक स्टॉक ब्रोकर से बात चली. वे बोले; "मज़ा आ जायेगा. सोचिये कि मार्केट में कितना पैसा आ जायेगा. अंधाधुंध खरीदारी होगी. सेंसेक्स पचास हज़ार पहुँच जायेगा."
एक बार के लिए लगा कि ये इतने उत्तेजित हो गए हैं. कहीं यह न कह दें कि सेंसेक्स पचास हज़ार करोड़ पहुँच जायेगा.
सब अपने-अपने स्तर पर खुश नज़र आ रहे हैं. मैं भी अपने स्तर पर खुश हूँ.
मेरे एक मित्र से बात हो रही थी. वे बोले; "जानते हो, अगर पूरा कालाधन आ गया तो हर परिवार को तीन-तीन लाख बांटने पर भी धन ख़त्म नहीं होगा."
उनकी बात सुनकर मैंने तो कह दिया कि; "भैया, मैं तो अपने तीन लाख में से एक लाख का फिक्स्ड डिपॉजिट करूंगा और बाकी जो बचेगा उससे घर के लिए सोफा और एक नैनो गाड़ी खरीदूंगा."
मेरी बात सुनकर हंसने लगे. बोले; "जब देश में इतना पैसा आ ही जायेगा तो तुम्हें फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज कौन देगा? एक्कौ परसेंट ब्याज नहीं मिलेगा."
लीजिये, प्लान फेल. पैसा भी क्या-क्या करवाता है. न रहे मुसीबत. ज्यादा रहे तो और मुसीबत. मैंने मन मारकर कहा; "ठीक है. तब खर्चा कर डालेंगे."
वे बोले; "खर्चा कर डालोगे तो फिर पैसा वहीँ चला जायेगा जहाँ से आया था."
लीजिये. मुसीबत ही मुसीबत. हमें क्या मालूम था कि हमारे खर्चने की वजह से ही इतना कालाधन तैयार हो रहा है. मतलब आम आदमी खर्चा करने गया नहीं कि कालाधन बनना शुरू हो जायेगा.
अब तो शायद ऐसा भी दिन देखने को मिले जब नीति-निर्धारण करने वाले काले धन की उत्पत्ति के लिए आम आदमी को दोषी ठहरा सकते हैं. आम आदमी तो पापी साबित हो जायेगा.
ha ha ha ....ultimate post
ReplyDeletebahut hi rochak viyang hai ane se pehle hi nazar na lagayen ane to den fir dekhte hain kese banderbant hoti hai ham jese aslee gunahgaron ko bhi kuchh na kuchh to mil hi jayega na?
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने. बेचारा आम आदमी ही तो हर बात के लिये जिम्मेदार है. बहुत लाजवाब व्यंग लिखा . शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आयेगा और चला भी जायेगा-हम आप ब्लॉगिंग करते रहेंगे..हमारी नजर इस ५० लाख करोड़ पर नहीं है..हम तो शास्त्री जी वाले २०१० के ५०००० चिट्ठाकारों के आंकड़े को तके हैं..वो बस आ जायें. :)
ReplyDeleteलाजबाब पोस्ट!!
मजा आ गया। भाई वाह।
ReplyDeleteधन काला होता नहीं काले होत विचार।
कोई छूयेगा नहीं हो जिसकी सरकार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
क्या कला और क्या गोरा पैसा
ReplyDeleteयहाँ तो सब श्याम के दीवाने हैं
मेरा गोरा अंग लेलो मोहे श्याम रंग दे दो
आने दो काला धन का भूसा ये सभी राजनितिक सांड भूसा आते ही चरना शुरू कर देंगे
अपने स्वदेसी बैंक्स में पवित्र शेयर मार्केट में बाबा जी के पास समाज सेवा के एन जी ओ आदि में कितनी तुच्छ धनराशि पड़ी हैं इन वीतरागी नेताओ ने आकलन नहीं किया
देखिये अभी से कलियर कर देते है, काला धन हमारा नहीं है, अतः उसे वापस देश लाया जा सकता है. हमें कोई आपत्ति नहीं.
ReplyDeleteदेसी भाषा में कहें तो 750 खरब रूपया बताते है जिसे 100 दिन में लाना है! मजाक है क्या?
सुन्दर पोस्ट !!
ReplyDeleteमुझे तो ये सारा पैसा ताऊ का लगता है..
ReplyDeleteसोच रहा हूँ पैसा आ जाये तो किसी विदेशी बैंक में जमा करा दू..
मैं तो उस जगह का पता लगा रहा हूँ जहाँ भूसा सॉरी काला धन का पहाड़ खड़ा होगा. बोरा अडवांस में ख़रीदा जाय क्या? सुना है... अब गरीबो को कम्बल की जगह बोरा बांटा जायेगा.
ReplyDeletekya vaastav me aayega?????
ReplyDeletedivaswapn achchhe nahi hote.
और इसके लिए आम आदमी को कडी से कडी सजा दी जासकती है।
ReplyDelete-----------
TSALIIM
SBAI
मिश्रा जी, मै तो अभी बेखबर बैठा हूँ. जब काला धन आ जाये तो मेरे हिस्से के तीन लाख मुझे दे देना.
ReplyDeleteआम आदमी तो हमेशा से ही पापी साबित होता आया है...इसमें नयी क्या बात है...आप तो पैसा आने दीजिये फिर देखिये क्या धमाल होता है...
ReplyDeleteनीरज
बहुत डराते हैं ये एनालिस्ट लोग. भाई, डरने की तो बात ही है. अब ऐसी बातों से न जाने कितने साहित्यकार, लेखक, ब्लॉगर वगैरह परेशान हैं. ये लोग इसलिए परेशान हैं कि कहीं ऐसा हो गया तो वे निबंध, किस्से, कहानी, पोस्ट वगैरह किसके ऊपर लिखेंगे? जब कोई गरीब ही नहीं रहेगा तो लेखक बेचारा तो मारा गया न. अमीर भी कोई लिखने की चीज है?
ReplyDeleteभै महराज! अरे जब अमीरै हो जावैंगे तब लिखने की जरूरत किसको रह जाएगी. तब ई सब लेखकई-ब्लगरई हम लोग छोड़ दिया जएगा. तब चलेंगे पब और नाइटलाइफ का मज़ा उठावैंगे.
और भाई, अर्थशास्त्र भी इतने दिलचस्प अन्दाज में पढ़ाया जा सकता है, पहली बार लगा. गजब लिखते हैं आप!
"ठीक वैसे ही देश में भूसा सॉरी काला धन का पहाड़ खड़ा हो जायेगा." यह सही है कि काला पहाड लग जाएगा पर उसमें से धन गायब हो जाएगा... वो कहते हैं ना..हाथी के खाने के दांत अलग और दिखाने के अलग:)
ReplyDeleteकाले धन पर एक उज्जवल चिंतन !
ReplyDeleteसवाल ये है कि इतना पैसा जो आयेगा, तो इसे संभालने वाले कौन होंगे....
ReplyDeleteआपने डराया भी और कुछ स्वप्न भी दिखाये...ये ठीक बात नहीं
एक बार आने तो दे.....आते ही सफ़ेद हो जायेगा......
ReplyDeletesabse acchi baat..ekko paisa nahi milega fixed deposit par! maja aa gaya padh k...atti uttam!
ReplyDeleteगुरुदेव, आज तो लिखने के लिए बिलकुल तैयार बैठे थे की आपकी पोस्ट दिख गयी. सोचा पढ़ के आशीर्वाद ले लें.
ReplyDeleteपरन्तु ये पढ़ के तो ऐसे-ऐसे खयाली पुलाव मन में आ गए, की सारा रोष जाता रहा.
जब इस काले धन के आने पर सब अच्छा हो ही जायेगा, तो लिखने वाला क्या लिखेगा!
हमारा लेखिकी का सपना तो शुरू होने पहले ही टूट गया.
पर बात पते की है, ज्यादा धन आने पर उसका मोल नहीं रह जायेगा और जनता बेकार. सरकार दूरदर्शी है. हमारी अच्छा बुरा समझती है. हम ही मुर्ख हैं.
और मुर्ख बने रहना ही अच्छा भी है शायद.
मैं भी इन्तजार का रहा हू, अपने हिस्से के तीन लाख का
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