पूरा देश साँसे थाम कर बैठा था. भारत और पकिस्तान के विदेश सचिव वार्ता कर रहे थे. पिछला रिकॉर्ड बताता है कि जब भी पाकिस्तान के साथ अपने देश की वार्ता होती, देश के लोगों की सांसें थम जाती थीं. उसी परंपरा और संस्कृति का निर्वाह आज भी हो रहा था. लोग गुटों में बैठे थे और गुटों में ही खड़े थे. गुटों की ये सक्रियता आभास दिला रही थी कि गुटबाजी ही भारत को एक एक्टिव देश का दर्जा दिलवाती है. टीवी चैनल के संवाददाता वार्ता स्थल के बाहर अपनी हार्ट-बीट थामने की एक्टिंग करते हुए क्यूट जैसे कुछ लग रहे थे. कैमरे क्लिक होने के लिए बेताब थे. टीवी न्यूज चैनल के स्टूडियो में बैठे पैनेलिस्ट कयास लगा रहे थे.
नुक्कड़ों पर गुट चर्चारत थे. कुछ गुटों को देखकर डर लग रहा था कि कहीं ये लोग उसी जगह खड़े-खड़े अपनी पॉलिटिकल पार्टी न लॉन्च कर डालें. चाय की बिक्री बढ़ गई थी. बाज़ारों में पान की कमी हो गई थी. लोगों को खाने-पीने की सुध नहीं थी. टेंशनग्रस्त देश यही सोच रहा था कि क्या होगा आज? वार्ता ख़त्म होने के बाद सुनने को क्या मिलेगा? कुछ लोगों को वार्ता करने वालों पर पता नहीं किन कारणों से विश्वास तो नहीं लेकिन विश्वास जैसा कुछ था. ये लोग यह सोचते हुए डर रहे थे; "ऐसा तो नहीं कि पकिस्तान के साथ हमारी समस्याएं आज ही सॉल्व हो जायेंगी?" फिर उन्ही मन में सांत्वना के स्वर उभरते; "नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता."
सांत्वना के ये स्वर सही थे. जिन दिलों से ये स्वर निकल रहे थे उनके मालिकों को अपने देश के नेताओं पर पूरा भरोसा था. उन्हें पता था कि जवाहरलाल से लेकर देवीलाल तक, सभी ने जबानी जमाखर्च तो बहुत किया था लेकिन किसी ने आजतक पकिस्तान के साथ एक भी समस्या नहीं सुलझाया था. ऐसे में समस्या न सुलझा पाने की हमारी संस्कृति की रक्षा करने का काम वर्तमान पीढ़ी के जिम्मे है और हमारे नेता देशवासियों के इस विश्वास की रक्षा कर के छोड़ेंगे.
इन स्वरों को थोड़ा-बहुत बल इस सिद्धांत से भी मिल रहा था कि हर देश का अपने पड़ोसी देश के साथ कुछ न कुछ लफड़ा रहना ही चाहिए. लफड़ा नहीं रहे तो लगता ही नहीं कि देश जिन्दा है. लफड़े ही देश के जिंदा रहने का सुबूत होते हैं.
इन्ही सोच-विचार की लहरों में दिन डूबा जा रहा था. अचानक शाम को कॉन्फरेंस रूम का दरवाजा खुला. दरवाज़ा खुलने के बाद जो हरकतें हुई उन्हें देखकर लगा कि कुछ दरवाजे कितने महत्वपूर्ण होते हैं. खैर, दरवाजा खुला और अन्दर से दोनों देशों के विदेश सचिव निकले. भारतीय विदेश सचिव मुस्कुराते हुए आगे बढीं. संवाददाताओं ने उन्हें घेर लिया. इन संवाददाताओं को देख कर लगा जैसे उन्हें पूरा विश्वास था कि आज विदेश सचिव कुछ ऐसा कहने वाली थीं जो भारत और पकिस्तान के पंगात्मक इतिहास में किसी प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री या विदेश सचिव ने नहीं कहा था.
विदेश सचिव ने संवाददाताओं के इस विश्वास को थाम लिया और कहा; "विद टूडेज मीटिंग, वी हैव अराइव्ड ऐट द कान्क्लूजन दैट डायलाग इज द ओनली वे फॉरवर्ड."
उनकी बात सुनकर वहाँ उपस्थिति लोगों की बांछें खिल गईं. सब हतप्रभ होकर एक-दूसरे को देखने लगे. लोगों को देखकर लग रहा था जैसे उन्हें विश्वास हो चला था कि विदेश सचिव द्वारा कही गई डायलाग वाली बात बहुत गहरी थी और अब भारत और पकिस्तान के बीच समस्याओं का सुलझना निश्चित है. कुछ लोगों ने इस विदेश सचिव की सराहना करते हुए पुराने विदेश सचिवों की आलोचना कर डाली. यह कहते हुए कि; "इतनी-इतनी सैलेरी लेते थे वे लोग, कहने को बढ़िया दिमाग रखते थे लेकिन उनके दिमाग में कभी यह बात नहीं आई कि; "डायलाग इज द ओनली वे फॉरवर्ड."
लानत है.
विदेश सचिव द्वारा बोले गए 'बयानीय सेंटेंस'को सुनकर मन में भाव आ रहे थे जैसे देश के एक सौ बीस करोड़ लोग डायलाग बोलते हुए पाकिस्तान की तरफ बढ़ते जा रहे थे और उनके रास्ते की तमाम मुश्किलें अपने आप हटती जा रही थीं.
बधाइयाँ दी जा रही थीं. बधाइयाँ ली जा रही थीं. विदेशी टीवी चैनलों के रिपोर्टर्स भी खुश थे, खासकर अमेरिकी रिपोर्टर्स, जिन्हें यह लगता है कि भारत और पकिस्तान के बीच अगर मारपीट न हो सके तो कम से कम बातचीत या वैसा ही कुछ होते रहना चाहिए. वे अपने-अपने चैनलों के लिए अपनी रिपोर्ट रिकॉर्ड करवा रहे थे. चारों दिशायें मुस्कुराहटों से भरी हुई थीं. भारतीय दल खुश था तो पाकिस्तानी दल महाखुश.
शाम को सरकार ने इस डायलाग वाली बात के बारे में बताया कि यह इक्कीसवीं सदी का सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन है और इस रहस्य के साथ ही पाकिस्तानी पंगों का अंत तय है. प्रधानमन्त्री खुश थे. विदेश मंत्री तो बहुत खुश थे. कूटनीति की सफलता ने सबके चेहरे चमका दिए थे. रूलिंग पार्टी के प्रवक्ता से लेकर उठभैये और छुटभैये नेता तक माइक्रोफोन के सामने बाईट देने में बिजी थे. प्रस्ताव पारित करके लड्डू वितरण समारोह का आयोजन किया गया. तमाम पत्रकार इस बात से चकित थे कि एक रहस्योद्घाटन कितना महत्वपूर्ण हो सकता है.
विदेश सचिव की डायलाग वाली बात पर पूरा देश ही कयास लगा रहा था. सब अपने-अपने अंदाज़ में बातें कर रहे थे. सरकार किसे चुनेगी डायलाग लिखने के लिए? क्या किसी पुरानी फिल्म के डायलाग राइटर को लाया जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि पकिस्तान के साथ समस्याएं सुलझाने के लिए सलीम-जावेद एक बार फिर से जोड़ी बना लेंगे? कोई कह रहा था कि कादर खान जी से लिखवाना चाहिए. कोई बोला कि अब के ज़माने में कादर खान जी के डायलाग नहीं चलेंगे. अब जमाना बदल गया है. अब किसी नए राइटर को ट्राई किया जाएगा. किसी ने सुझाव दिया कि पाकिस्तान की बात है लिहाज़ा डायलाग उस राइटर से लिखवाना चाहिए जिसने सनी देओल की फिल्म में एक डायलाग लिखा था कि "दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे." किसी ने कहा धत्त, उससे लिखवाओ जिसने ग़दर एक प्रेम कथा का डायलाग लिखा था. कोई बोला हो सकता है सरकार किसी पत्रकार को हायर कर ले.
टीवी चैनलों ने सात-आठ नामों को दिखाकर एस एम एस वोटिंग करवाना शुरू कर दिया था.
उधर लड्डू बँटे. मीटिंग्स हुईं. लोग जमा हुए. कहीं-कहीं लोग जमे भी. देश-विदेश के टीवी चैनलों ने भारतीय सरकार की सराहना की. अमेरिकी राष्ट्रपति ने राहत की सांस लेने की एक्टिंग की. उन्होंने हमारे प्रधानमंत्री को बधाई दी. हमारे प्रधानमन्त्री ने फट से बधाई लेकर उसे अपनी उस एक्सक्लूसिव आलमारी के हवाले किया जिसमें वे अमेरिकी राष्ट्रपति की बधाइयाँ और सन्देश बड़े करीने से सजाते थे.
जब अमेरिकी राष्ट्रपति के सन्देश आलमारी के हवाले हो गए और इनिशियल सेलिब्रेशन की धूल-धक्कड़ सेटल हुई तो विदेश सचिव ने एक राज खोला. डिप्लोमेसी की यही विशेषता है कि सबकुछ एक बार में सामने नहीं आता. वैसे भी बातें रह-रह कर सामने आयें तो डिप्लोमेसी में दिलचस्पी बनी रहती है. इसी दिलचस्पी को बरकरार रखते हुए विदेश सचिव ने बताया कि यह डायलाग वाली बात पर पाकिस्तान की तरफ से एक रायडर लगा दिया गया है.
जब विदेश सचिव से इस रायडर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा; "पाकिस्तान चाहता है कि भारत पहले डायलाग के कम से कम दस डोस्सियर बनाकर पकिस्तान को दे जिससे उसके डोस्सियर एक्सपर्ट उसे जांच सकें. वे जब डायलाग को जांचकर उसे अप्रूव कर देंगे तब अगला स्टेप लिया जाएगा."
विदेश सचिव की बात सुनकर प्रधानमन्त्री मुस्कुरा दिए. पीए ने धीरे से पूछा; "सर आपकी मुस्कराहट देखकर लगता है जैसे आपको कुछ याद आ गया."
अपने पीए की बात सुनकर प्रधानमंत्री बोले; "हाँ. दरअसल मुझे अचानक एक लाइन याद आ गई कि; म्यूचुअल-फंड इन्वेस्टमेंट्स आर सब्जेक्ट टू मार्केट रिस्क. प्लीज रीड द ऑफर डाक्यूमेंट केयरफुली बिफोर इन्वेस्टिंग."
उसके बाद दोनों ने एक दूसरे को देखा और दोनों मुस्कुरा दिए.
खैर, उसके बाद प्रधानमंत्री विदेश सचिव से मुखातिब होते हुए बोले; "तो इसमें कौन सी बड़ी बात है? डायलाग का डोस्सियर ही तो बनवाना है. पहले की बात होती तो कोई चिंता भी थी लेकिन अब बिलकुल चिंता नहीं है. अब तो हमारे पास ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स का फंडा भी है. एक काम करता हूँ. मैं एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बना देता हूँ जो मीटिंग्स करके बताएगा कि किस राइटर से डायलाग लिखवाना है? अपने यहाँ डायलाग लिखने वालों की कमी थोड़ी है. देश के ट्वेंटी परसेंट लोग कई सालों से डायलाग बोल रहे हैं और बाकी सुन रहे हैं. कहिये तो पूरा देश ही डायलाग से ही चल रहा है. आप बिलकुल निश्चिन्त रहें. हम डायलाग के ऐसे-ऐसे डोस्सियर देंगे कि वहाँ के डोस्सियर एक्सपर्ट उसे रिजेक्ट नहीं कर पायेंगे. मुझे अपने ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स पर पूरा भरोसा है."
दूसरे दिन लोकसभा में प्रधानमंत्री ने सदन को जानकारी देते हुए कहा; "हमें यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि पाकिस्तान के साथ हमारी समस्याएं अब ख़त्म हो जायेंगी. हमें पता चल गया है कि डायलाग का सहारा लेकर सबकुछ ठीक किया जा सकता है. मैंने आज आफिस पहुँचते ही एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बना दिया है जो उन राइटर्स का सेलेक्शन करेगा जो डायलाग लिखेंगे और साथ ही उन एक्टरों का भी सेलेक्शन करेगा जो लिखे गए डायलाग की डेलिवरी करेंगे."
प्रधानमंत्री की बात सुनकर विपक्ष और साथी दल वाले भड़क गए. शोर जब थमा तो पता चला कि बाकी के दल चाहते हैं कि चूंकि यह विदेश नीति का मामला है इसलिए बाकी दलों को विश्वास में लेना ज़रूरी है. वैसे भी कई महीने हो गए थे सरकार ने सभी दलों को विश्वास में नहीं लिया था. पिछली बार सरकार ने सांसदों की सैलेरी बढ़ाने के मामले में सभी दलों को विश्वास में लिया था. लेकिन उस बात को करीब सात महीने बीत गए थे. ऐसे में बाकी दलों की यह बात जायज भी लगी.
कभी विपक्ष में और कभी पक्ष में रहने वाले एक नेता जी बोले; "भाट इज दिस? ऐसा नै चलेगा. हम नाराज हूँ. सरकार का ड्यूटी है कि ऊ जेतना सेकुलर दल है ऊ सबको विशबास में ले.... आल दी सेकुलर पार्टी...का समझा? आ हम क्लीयर कर दें कि ई मुद्दा पर पर हम आ नेताजी साथ-साथ हैं. टूगेदर...कह सकता है सब कि ई मुद्दा पर हम विपक्ष में हैं...एतना इम्पार्टेंट फैसला बिना सब सेकुलर पार्टी से बात किये लिया कैसे सरकार ने? हमर डिमांड है कि इसके लिए 'सर्भदलीय' बैठक बुलाई जाय...आल पार्टी मीटिंग..तब जाके फैसला फाइनल होगा."
शोर मच गया. हंगामा हो गया. वाक आउट हो गया. अध्यक्ष ने लोकसभा की कार्यवाई स्थगित कर दी. विपक्ष ने जहाँ इसे लोकतंत्र की हत्या बताया वहीँ सरकार ने इसे लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने वाला कदम बताया. एक ही मुद्दे पर लोकतंत्र के ट्रीटमेंट को लेकर सरकार और विपक्ष एक्सट्रीम पर थे. यह देखकर एक बार फिर से लगा कि देश में केवल और केवल लोकतंत्र है, लोकतंत्र के अलावा कुछ नहीं है.
मीडिया में भी लोकतंत्र छाया रहा. जहाँ इस मुद्दे पर मीडिया का एक ग्रुप सरकार के पक्ष में था वहीँ दूसरा ग्रुप विपक्ष के पक्ष में था. दूसरा ग्रुप चाहता तो सरकार के विपक्ष में भी हो सकता था लेकिन पता नहीं क्यों उसे इस मुद्दे पर विपक्ष के पक्ष में होना ज्यादा उचित लगा. खैर, दोनों तरफ के लोग अपने-अपने स्टैंड पर डटे रहे.
नेता जी से पत्रकार ने सवाल किया कि; "कट-मोशन में तो आप सरकार के साथ थे. आज उसके विरुद्ध क्यों हैं?"
उन्होंने जवाब दिया; "ढेर दिन हो गया था जे हम सरकार का विरोध नहीं किये थे. पब्लिक सब सोच रहा था कि कहीं हम सरकार के साथ त नहीं हो गए? दू महीना हो गया था आ हमलोग को विरोध करने का कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था एही बास्ते हम विदेश नीति का बात पर सरकार के विरोध में चले गए."
...जारी...
यह देश जितना अलग दिखने की कोशिश करता है, उतना वही रहता है, जो पिछले साठ साल से है! :-)
ReplyDeleteएक यथास्थितिवादी देश पर जबरदस्त लेखन।
लिखने में और उसमें आदर्शवाद उडेलने में हिन्दी ब्लॉगरों का कोई सानी नहीं, अतः इस ओर भी ध्यान दिया जाय. सलीम-जावेद वगेरे पूराने फण्डे है. ब्लॉगर रोज पाकिस्तान को निपटाते है.
ReplyDeleteपरम्पराओं का इस महान देश में रक्षण होता आया है और होता रहेगा.
परिवर्तन संसार का स्थायी नियम है..
ReplyDeleteधुलायमान पोस्ट । आपने जिस करीने से धोया है वह सदियों तक भुला नहीं पायेंगे हिन्दुस्तान, पाकिस्तान । ठोस काम न करने की समस्या पर भी डायलॉग की आवश्यकता है । पर किससे ?
ReplyDeleteग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स और डायलोग. नोट कर रहा हूँ सारी समस्याओं के हल एक-एक करके. बाकी कुछ नहीं भी हुआ तो हम ९ प्रतिशत से ग्रो तो करेंगे ही :)
ReplyDeleteशिव भैया,
ReplyDeleteबारह साल तक भी अगर कुत्ते की पूंछ नली में पड़ी रहे, सीधी नहीं हो सकती। और ये कहावत दो कुत्तों के साथ भी उतनी ही सच रहेगी।
वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकते, हम अपनी खसलतों से बाज नहीं आयेंगे।
वो हर थोड़े दिन के बाद कुछ कर जाते हैं, हम पहले वही दुहराते हैं कि बख्सा नहीं जायेगा, सख्ती से निपटा जायेगा वगैरह वगैरह। थोड़े दिन के बाद फ़िर वही बातचीत, श्वेत-पीत-रक्त वर्णी डोज़ियर्स।
अभी कल ही चिदम्बरम साहब का स्टेटमेंट सुना कि पाकिस्तान का रुख काफ़ी सकारात्मक है।
चश्मे-बद्दूर..! निहाल हो गये जी हम तो ऐसा पड़ौसी और ऐसे घर के धनी पाकर।
हमारा मोटो ही है - "दाग़ अच्छे हैं"
ReplyDeleteमगर भइया आप बड़े फ़ॉर्म में हैं आज, क्या बात है?
इस फडफड़ाती पोस्ट को तो सुबह ही पढ़ लिया था, कमेंट अब जाकर कर पा रहा हूँ।
ReplyDeleteमेरे विचार से दोनों ओर के वार्ताकारों को चखना और बोतल के साथ एक कमरे में बंद कर देना चाहिए और शर्त रखनी चाहिए कि जब तक आम सहमति नहीं बन जाती तुम लोगों को बाहर आने की इजाजत नहीं है....पहले वार्ता सफल और नतीजे वाली लेकर बताओ....तब ही बाहर आ पाओगे।
मेरा विश्वास है कि दोनों ओर के वार्ताकार या तो सकारात्मक रिजल्ट लाएंगे या फिर भीतर से दरवाजा खटखटा कर और बोतल मांगेंगे..... :)
दोनों ही स्थितियों में बाहर बैठी आम जनता को राहत मिलेगी :)
aajkal to aap dhone me ekdam xpert ho gaye ho boss, bhigo bhigo ke dho rahe hain aap, no doubt...
ReplyDeletechaliye agli kisht ki pratikshha karte hain ji..
डायलाग लेखन के लिये शिवकुमार मिश्र बुरे नहीं हैं लेकिन उनके पास समय कम है इसलिये शायद मना कर दें वैसे शाहजहांपुर वाले लल्लन बाबू कैसे रहेंगे जो कहते हैं:
ReplyDeleteफ़ूंक देंगे पाकिस्तान लल्लन
दो सौ ग्राम पीकर देखो।
पठनीय एवं मननीय पोस्ट ।
ReplyDeleteटीवी चैनल के संवाददाता वार्ता स्थल के बाहर अपनी हार्ट-बीट थामने की एक्टिंग करते हुए क्यूट जैसे कुछ लग रहे थे. कैमरे क्लिक होने के लिए बेताब थे. टीवी न्यूज चैनल के स्टूडियो में बैठे पैनेलिस्ट कयास लगा रहे थे.
"पाकिस्तान चाहता है कि भारत पहले डायलाग के कम से कम दस डोस्सियर बनाकर पकिस्तान को दे जिससे उसके डोस्सियर एक्सपर्ट उसे जांच सकें. वे जब डायलाग को जांचकर उसे अप्रूव कर देंगे तब अगला स्टेप लिया जाएगा."
"ढेर दिन हो गया था जे हम सरकार का विरोध नहीं किये थे. पब्लिक सब सोच रहा था कि कहीं हम सरकार के साथ त नहीं हो गए? दू महीना हो गया था आ हमलोग को विरोध करने का कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था एही बास्ते हम विदेश नीति का बात पर सरकार के विरोध में चले गए."
वाकई, ये डायलॉग तो आपही को न लिखना चाहिये ।
ग्रेट....सिम्पली ग्रेट !!!!
ReplyDeleteतारीफ़ को एक शब्द नहीं सूझ रहा...
लाजवाब लिखा है...लाजवाब !!!
जियो भाई..... जियो...