Wednesday, June 30, 2010

डायलाग इज द ओनली वे फॉरवर्ड - पार्ट २

अगर यह पार्ट -२ है तो जाहिर सी बात है कि पार्ट -१ भी होगा ही. तो पार्ट -१ को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये.


अब आगे का हाल....


एक नेता जी से पत्रकार ने सवाल किया कि; "कट-मोशन में तो आप सरकार के साथ थे. आज उसके विरुद्ध क्यों हैं?"

उन्होंने जवाब दिया; "ढेर दिन हो गया था जे हम सरकार का विरोध नहीं किये थे. पब्लिक सब सोच रहा था कि कहीं हम सरकार के साथ त नहीं हो गए? दू महीना हो गया था आ हमलोग को विरोध करने का कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था एही बास्ते हम विदेश नीति का बात पर सरकार के विरोध में चले गए."

उसके बाद पत्रकारों का सवाल और नेता जी का जवाब. पत्रकारों के हर सवाल का नेता जी ने जवाब दे डाला. विद्यार्थी जीवन में कॉपी में जवाब लिखते तो कम से कम ग्रैजुएट तो होकर निकलते लेकिन कोई बात नहीं. जब जवाब दो तभी सबेरा. पूरी प्रेस कॉन्फरेंस ख़त्म होने के बाद तीन-चार मोटी बातें निकल कर आयीं. जैसे नेताजी बहुत इम्पार्टेंट हैं. उनके पास तीन सांसद हैं तो क्या हुआ, सरकार चलाने के लिए उनका समर्थन चाहिए ही चाहिए. सरकार को आगे 'वूमेन रिजरभेशन' बिल, न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल वगैरह-वगैरह लाना है. और लास्ट बट नॉट द लिस्ट जो बात थी वह ये थी नेता जी को सरकार हल्के में नहीं ले सकती.

ये तो रही अशुद्ध विपक्ष के नेता की बात.

उधर विशुद्ध विपक्ष के नेता लोग भी सरकार के खिलाफ बोल रहे थे. दबाव वगैरह बनाने में जब सफल नहीं हो सके तो बोले कि; "हम इस मुद्दे को जनता के बीच ले जायेंगे."

बताइए, जनता के बीच क्या मुद्दों की कमी है? ये नेता लोग बोलते समय कुछ सोचते नहीं. यहाँ तक कह देते हैं कि; "मंहगाई के मुद्दे को हम जनता के बीच ले जायेंगे." अब इन्हें कौन समझाये कि; "हे चिरकुट, तुम मंहगाई के मुद्दे को जनता के बीच क्या ले जाओगे? वह मुद्दा वहीँ से तो निकला है."

लेकिन वही बात है न. राजू श्रीवास्तव के शब्दों में; "मुँह खोला और भक्क से बोला."

विषयांतर हो गया. ब्लॉग पर रिपोर्टिंग में यही सुविधा है कि जब चाहे रिपोर्टिंग को छोड़कर अपना ज्ञान और दर्शन ठेल दो. अब बताइए अगर मैं अखबार का संवाददाता होता तो ऐसा कर पाता? नहीं न.

खैर, आगे बढ़ते हैं. हाँ तो जब विशुद्ध विपक्ष ने भी मामले को गरमा दिया तो अपनी ईमेज बनाने के लिए सरकार इस बात पर राजी हो गई कि वह एक सर्वदलीय बैठक बुला देगी. उसमें सभी दलों को विश्वास में लेने की कोशिश के जायेगी. अगर ठीक उस दिन विश्वास की शार्ट सप्लाई नहीं हुई तो शायद इन दलों को सरकार सिश्वास में ले ले.

मीटिंग के दिन एक जगह सभी दलों के प्रतिनिधि इकठ्ठा हुए. मेज थी. मिनरल वाटर की बोतलें थीं. कुर्सी के आगे नेमप्लेट थीं. सब अपनी-अपनी नेम प्लेट के पीछे बैठ गए. कुछ लोगों ने दबे स्वर में प्रोटेस्ट भी किया कि नेमप्लेट अंग्रेजी में क्यों लिखी गईं हैं? प्रोटेस्ट वगैरह करके जब सब शांत हुए तो सरकार की तरफ से डिप्यूट किये गए मंत्री ने इन प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए शुरू किया; "ऐज उई आल आर अभेयार, गभार्मेंट हैज रिसेंटोली डिस्कोभार्ड द फैक्ट दैट उइथ द हेल्प आफ डायोलाग..."

अभी वे इतना ही बोल पाए थे कि मीटिंग हाल में बत्ती गुल हो गई. अँधेरा हो गया. एक आवाज़ आई, " मानीय मंत्री महोय अंगेजी में मीटिंग शुरू करेंगे तो ऐसा ही होगा. अंगेजी निशानी है अँधेरे की."

उस आवाज़ को समर्थन देते हुए पास से ही एक और आवाज़ आई; "आप ठीक कहे हैं. ओही खातिर गई है बत्ती. दादा सरकार की बत्ती शुरुवे में गुल हो गया?"

ये आवाज़ सुनकर सब हँस पड़े. मंत्री महोदय को भी हँसना पड़ा.

अभी सब हँस ही रहे थे कि एक गंभीर आवाज़ आई; "पॉवर जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन में रेफोर्म्स के लिए ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर बनाया होता तो कम से कम बिजली तो नहीं जाती."

"अरे त आप जब बोले थे कि कायद-ए-आजम सेकुलर हैं तब त बिजली नहीं गया था. तब त बिजली था औ तब भी त नहीं लौका आपको? दस महीना बाहर रहकर पाटी में आये हैं त बड़ा-बड़ा बात?"; फिर से आवाज़ आई.

इन आवाजों के बीच मंत्री महोदय ने सोचा कि मौज-मस्ती में विषयांतर न हो जाए. यही सोचते हुए वे बोले; "में आई हैव इयोर अटेंशोन...."

फिर से एक आवाज़ आई; "फेर ओही अंग्रेजी? पहला बार बोले तो बत्ती गुल हो गया. फेर ओही भाषा में शुरू करेंगे त अबकी बार हाल में आगे न लग जाए.."

"आच्छा ठीक है. हाम हिंदी में बोलता है. रेस्पेक्टेड डेलिगेट्स जैसा कि जानता है कि सोरकार ने पकिस्तान के साथ सोभी सोमस्सा को डायलाग..."

अभी उन्होंने अपनी हिंदी में संबोधन शुरू ही किया था कि एक तरफ से आवाज़ आई;"वाट यिज दिस सार? यानरेबल
मिनिस्टार यिज यिस्पिकिंग इन यिंदी? वी वांट टाल रेट यिट. आवर रिस्पेक्टेड डाक्टर कलैन्य्गार सार विल नाट याल्लो यिट. प्लीज यिस्पीक यिन यिन्ग्लिश."

फिर से झमेला. अंग्रेजी और हिंदी की लड़ाई में आखिर में अंग्रेजी जीत गई. मंत्री महोदय ने फिर से शुरू किया; "ऐज उई आर अभेयार, उई आर हीयार टू मेक सोम काइंड ऑफ़ कोंसेंसोस ऑन द डायोलाग डोस्सियोर हूविच उई उविल साब्मिट टू द पाकिस्तान फार देयार अप्रूभाल..."

अभी तक बिजली नहीं आई थी लेकिन देश के बड़े दिमागों का एक मिनट भी व्यर्थ न हो, इसलिए मीटिंग जारी थी.

अँधेरे में एक आवाज़ उठी; "हाँ त सरकार सही सोचा है. बढ़िया डायलाग लिखने वाला सब को बुलाया जाय और उससे डायलाग लिखवाया जाय. हम अनुमोदन करते हैं ऊ आदमी का नाम जो फिलिम मुग़ल-ए-आजम का डायलाग लिखे रहे. का नाम था उनका...एक मिनट हम लिख के लाये हैं..नेता जी तनी अपना मोबाइलवा जलाइए..हाँ..अमानुल्ला खान..उनसे लिखवायें. ऊ बढ़िया लिखेंगे और पाकिस्तान का मामला है त उर्दू में डायलाग रहने से ही ठीक रहेगा ."

"आई नोट डाउन इयोर रेकोमेंडेशोन बाट आई थिंक ही में नॉट बी अलाइभ नाऊ. बाट आई अस्योर इयु दैट उई उविल चेक ह्वेदार...."; मंत्री जी ने नेता जी को आश्वासन दिया.

मंत्री जी का आश्वासन पूरा हुआ ही था कि एक आवाज़ आई; "वी हैव आब्जेक्शान सार. वी तिंक यिट विल बे बेटर यिफ डायलाग्स यार रीटेन यिन तमिल. आवर रिस्पेक्टेड डाकटार कलैन्यगार सार येज रीसेंटली डिमांडेड दैट तमिल बी मेड या नेशनल लैंग्वेज. ही विल बी वेरी हैपी यिफ डास्सियर टू बी सबमिटेड टू पाकिस्तान विल बी रिटेन यिन क्लासिकल तमिल..आवर रिस्पेक्टेड डाकटार कलैन्यगार सार आर्गेनाइज्ड यिन्टरनेशनल क्लासिकल तमिल कांफेरेंस टू टेल टू दा वाल्ड..."

एक आवाज़ और आई; "बस करो. बस करो. खुदे बोलते रहोगे कि औउर भी कोई बोलेगा? अरे डायलाग लिखायेगा त हिंदी में या उर्दू में. तमिल कौन समझेगा वहाँ?"

ये बात सुनकर पहले वाली आवाज़ फिर आई; "बट यिफ यू रिमेम्बर सार, वन ऑफ़ द डास्सियर सबमिटेड टू पकिस्तान यिन दा ट्वेंटी-सिक्स एलेवेन केस येज समथिंग रिटेन यिन मराठी..."

"अरे ऊ छोड़ो..ऊ त गलती था. एक ही गलती केतना बार करेगा सरकार?"; फिर से वही विरोध जताने वाली आवाज़ आई.

"दीस इज नाट दा स्टेज टू फाईट ईच-ओदर"; मंत्री जी ने सलाह दी.

अँधेरे में एक धीर-गंभीर आवाज़ उभरी; "हमारी पार्टी का ऐसा मानना है कि हमारे पार्टी माऊथपीस के जो सम्पादक हैं उनसे लिखवाया जाय..बढ़िया लिखते हैं. वे बढ़िया डायलाग लिखेंगे."

"अरे त आप भी त किताब लिखे हैं. किसको-किसको सेकुलर बताते फिरते हैं. आप किताब लिख सकते हैं त डायलाग भी लिख दीजिये. दस महीना बाद पार्टी में लौटे हैं और पार्टी भेज भी दिया मीटिंग में"; पूरी मीटिंग में डोमिनेंट आवाज़ फिर से उभरी.

अब बारी थी एक नई आवाज़ के उभरने की. उसने कहा; "अभी प्रकाश झा की फिल्म राजनीति हिट हुई है. हमारा कहना है कि उन्हें डायलाग लेखन की समझ है. उनसे डायलाग लिखवाया जाना चाहिए. हमारे नेता और मुख्यमंत्री भी इस पक्ष में हैं."

एक बार फिर से डोमिनेंट आवाज़ उभरी; "का कहे? प्रकाश झा? अरे नाम लेना था त किसी सेकुलर डायलाग राइटर का नाम नहीं मिला? ओइसे भी मिलेगा कैसे? आपके मुख्यमंत्री का फोटो किसके साथ अखबार में प्रकाशित हुआ ऊ त सब देखा ही है."

"हमारी पार्टी बिहार के किसी राइटर को डायलाग नहीं लिखने देगी. वईसे भी पकिस्तान की बात पर किसी भी बात का विरोध पहिले महाराष्ट्र से ही होगा"; एक नई आवाज उभरी.

"नै..नै..ई नहीं चलेगा. बिहार के लोगों का बिरोध बम्बई में त करता ही था तुम लोग, अब पाकिस्तान में भी करने लगा? आ सुनिए दादा, हम एक और नाम देते हैं. जाभेद अख्तर. सबसे बड़ा बात है कि आदमी सेकुलर है. उर्दू भी जानते ही होंगे. औउर ऊ अब त पार्लियामेंट में भी है"; डोमिनेंट आवाज़ ने फैसला जैसा कुछ सुनाते हुए कहा.

"बाट सार, वी रेकमेंड नेम ऑफ़ बासंती, दा प्येमस तमिल राइटर फॉर दिस काज"; पहले वाली आवाज़ ने एक बार फिर से ट्राई मारा.

"प्रकाश झा"

"जाभेद अख्तर"

"बासंती"

"सुनील गंगोपाध्याय"

सब अपना-अपना रेकमेंडेशन अँधेरे में ही दोहराते जा रहे थे.

मंत्री महोदय को लगा कि अँधेरे में पता भी नहीं चल रहा है कि केवल गले काम कर रहे हैं या फिर और भी अंग? कहीं ऐसा तो नहीं कि हाथ-पैर भी काम करने पर उतर आयें. उन्हें लगा कि मीटिंग अगर ख़त्म न की गई तो कोई अनहोनी हो सकती है. यही सोचते हुए वे बोले; "ओके..ओके..भाट आई हैभ कोंक्लूडेड ईज, दैट उई हैभ नाट एराइव्ड ऐट एनी कोंसेंसोस.... आई उविल आस्क आनरेबल प्राइम मिनिस्टर टू फार्म आ ग्रूप आ मिनिस्टोर हुविच उविल कोऑर्डिनेट बिटभीन गभार्मेंट ऐंड दा अपोजीशोन"

मीटिंग ख़त्म हुई. अब सरकार को-ओर्डिनेशन बनाने के लिए डायलाग राइटर ढूढ़ रही है.

15 comments:

  1. हर समस्या का हल मंत्रीयों का समूह है. अगर मंत्रियों के समूह में हाथ-पैर चलने की नौबत आ जाए तो उसके समाधान के लिए एक और समूह बनाया जा सकता है.
    मैं तो कहता हूँ डायलोग लिखने का मामला भी जनता के बीच ले जाया जा सकता है. घरेलू मामले यूएन में लेजाने की परम्परा रही है तो यह मामला भी ले जाया जा सकता है.
    बाय दी वे एक यूनिक आइडिया भी दिमाग में आया है, गायक बांग्लादेशी हो सकते है तो राइटर क्यों नहीं?
    हम परम सेक्युलर, पाक-प्रेमी महेश लट्ठ सॉरी भट्ट का नाम आगे करते है. वे पाकिस्तान को और पाकिस्तान उनको अच्छी तरह से समझते है. फिलिम बनाने वाला डायलोग भी लिख लेगा.
    ***

    आनन्द आया. अशुद्ध-विशुद्ध शब्द प्रयोग गुदगुदा गए.

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  2. डायलॉग इस द ओनली वे, अतः इस श्रंखला का डायलॉग चलते रहने दिया जाये । स्थिति स्पष्ट करने से झगड़ा प्रारम्भ हो जायेगा ।

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  3. डॉयलॉगबाजी पर बहुत मस्त फ्लो चल रहा है....शानदार पोस्ट।

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  4. बाप रे बाप...ऐसा सटीक नक़ल.......उफ़ !!!! कमाल कमाल कमाल.....

    एकदम धमाल पोस्ट !!! पूरा सीन नयनाभिराम हो गया....ओनरेभल मिनिस्टर सब को चीन्हने में एको मिनट नहीं लगा...

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  5. क्या लिखते हो भाई....ओह ...गजब गजब.... एकदम गजब...

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  6. पूरी तरह सेकुलर तो हमारी गली का कुकुर है, जो सभी धर्मों के धर्म-स्थलों के खम्भों को सम भाव से ट्रीट करता है। उसका कोई उपयोग हो तो बताइयेगा!

    बकिया, वह शायद डायलॉग न लिख पाये।

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  7. मान हानि का मुकदमा ठोक देंगे मंत्री जी.....ऐसी मीटिंगे लीक करने में जरूर किसी अन्दर वाले का साथ मिला लगता है आपको......कलकत्ता में रहते है न आप...हम्म्म

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  8. आलेख का उद्देश्य बहुत समर्थ भाषा में संप्रेषित हुआ है।

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  9. आपका ये पोस्ट पढ़ के डा.मनमोहन सिंह नाराज़ हैं आपने तमिल मराठी बंगाली भोजपुरी आदि भाषा में खूब संवाद बुलवाए हैं मंत्रियों और संतरियों से लेकिन पंजाबी का कोई संवाद नहीं है जबकि कोलकत्ता में कितने ही पंजाबी सरदार रहते हैं और तमिलनाडू में भी पंजाबियों की कमी नहीं है...पाकिस्तान में पंजाबी ही सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और आपने उसका ही अपमान किया है...डोसियर अगर गया तो पंजाबी में ही जायेगा...बल्ले बल्ले...मैं कोई झूट बोलिया...कोई ना...मैं कोई कुफर तोलिया...कोई ना...मैं कोई ज़हर घोलिया...कोई ना भाई कोई ना भाई कोई ना...आहूँ आहूँ के भाई आहूँ आहूँ

    नीरज

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  10. अब अँधेरे में कुच्छो लउकबे नहीं करेगा तो इहे होगा. उ त बढ़िया हुआ कि सही समय प ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर फॉर्म हो गया.

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  11. kya baat hai bhai sahab, dusri kisht to pahli se bhi dhansu nikli. aapne jo scene khincha hai, ultimate wid dialogs boss, no doubt... majaa aa gaya...

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  12. ’डायलाग इज़ द ओनली वे’ बिकाज़ आभर लीडर्स आर भैस्ट इन दिस फ़ील्ड। अब जब ग्रुप ऒफ़ मिनिस्टर्स को जिम्मेदारी मिल ही गई है डायलाग राईटर फ़ाईनल करने की, हमें आशा करनी चाहिये कि सब ठीक हो जायेगा। पाकिस्तान का हृदय परिवर्तन हो जायेगा। प्रेम की नदियां बहने लगेंगी दोनों देशों के बीच।इतना तो कर दिया सरकार ने, अब और क्या जान लेनी है बच्चे की?
    अभी कल ही एक और स्टेटमेंट आया है पी सी का, एक बहुत बड़ा रहस्योद्घघाटन - राज्य(जे एंड के) में हिंसा में लश्कर का हाथ। और हम जैसे नादान लोग अभी तक सोच रहे थे कि हिंसा सेना कर रही है। अहसानमंद होना चाहिये हमें सरकार का, सरकार के रियैक्ट करने के तरीके का।

    आपको पढ़ते हैं तो होंठों पर हंसी आ जाती है, दिल स्साले का क्या है ये तो कलपने का बहाना ढूंढ ही लेता है, कभी भी और कहीं भी।

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  13. एक जीओएम बना दिया होता तो बेहतर होता...

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  14. "मुँह खोला और भक्क से बोला."

    यही सच है। शाश्वत सच!

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  15. You are sooo good!!!!!!.When reading actually feel that Lalu,PranabM,Dmk fellow is saying the dialogues..This sick class is so predictable.What you wrote so long back still holds good today.Hope Namo comes and ushers in a change in gloomy atmosphere that our nation is in

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय