अप्रैल २००८ में अपने हलकान भाई, यानि ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' ने अपनी ब्लॉग-वसीयत लिखी थी. मैंने उसे अपने ब्लॉग पर पब्लिश भी किया था. चूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी हिंदी ब्लॉगर ने अपनी ब्लॉग-वसीयत लिखवाई थी, इसलिए उस वसीयत में केवल ग्यारह प्वाइंट थे. हलकान भाई ने वसीयत के बारे में लिखा था;
मैंने अभी तक ग्यारह बातें ही लिखी हैं. इसका कारण यह है कि ग्यारह की संख्या शुभ मानी जाती है. मैं अपनी इस वसीयत में आगे और भी 'कामना' जोड़ सकता हूँ. मैंने फैसला किया है कि इस काम के लिए मैं किसी ब्लॉगर-वकील से बात करूंगा.
पिछले हफ्ते हलकान भाई ने अपनी ब्लॉग वसीयत में बदलाव किया. उन्होंने मुझे नई वसीयत दिखाते हुए कहा; "ले जाओ, अपने ब्लॉग पर छाप देना. तुम्हें अपना लिखा हुआ कुछ छापने की आदत तो है नहीं. कभी डायरी, कभी चिट्ठी छापते रहते हो. ले जाओ एक बार फिर से मेरी वसीयत छाप दो."
मैंने कहा; "जाने दीजिये हलकान भाई. आप इसे पाने ब्लॉग पर ही छाप दीजियेगा."
वे बोले; "नए ट्रेंड के अनुसार एक ही पोस्ट जितने ज्यादा ब्लॉग पर छपे उतना ज्यादा नाम होता है. इसलिए ले जाओ और इसे अपने ब्लॉग पर छाप दो. मैं भी बाद में अपने ब्लॉग पर छाप दूंगा. वसीयत तो मेरी ही है. और ब्लॉग भी मेरा है."
तो मैं हलकान भाई की नई वसीयत छाप रहा हूँ. आप बांचिये.
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मैं ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' , ब्रह्माण्ड का सबसे धाँसू हिन्दी ब्लॉगर, अपने पूरे होश-ओ-हवाश में ये ब्लॉग-वसीयत लिख रहा हूँ. कल तक मैं समझता था कि वसीयत केवल घर-बार, जमीन-जायदाद, बैंक लॉकर, सोना-चाँदी वगैरह के भविष्य में होने वाले बँटवारे के लिए लिखी जाती है. लेकिन जब से एक साईट ने मेरे ब्लॉग की कीमत दस लाख डॉलर से ज्यादा आंकी है, तबसे ये ब्लॉग ही मेरी सबसे अमूल्य निधि बन बैठा है. रूपये-पैसे, सोना-चाँदी वगैरह की कीमत मेरे लिए दो कौड़ी की भी नहीं रही. इसलिए ये ब्लॉग-वसीयत लिखना मेरे लिए मजबूरी हो चुकी है.
मेरी वसीयत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं.
०१. जिस दिन मेरा आखिरी क्षण आये और डॉक्टर मुझे मृत घोषित कर दें तो भी डॉक्टरों की बात पर विश्वास न किया जाय. मैं सचमुच मरा हूँ कि नहीं ये जानने के लिए मेरे कान में कहा जाय; "हलकान उठो, तुम्हारी पोस्ट पर नया कमेंट आया है." ये सुनने के बाद भी अगर मैं उठकर न बैठूं तो मुझे मृत मान लिया जाय.
०२. मेरे चले जाने के बाद मेरे ब्लॉग के संचालन का काम मेरे तीनों पुत्रों के हाथों में दे दिया जाय. मेरे ब्लॉग का नाम भी बारूद से बदलकर 'बारूद का ढेर' कर दिया जाय. जब मैं अकेले लिखता था तबतक तो बारूद नाम समझ में आता है लेकिन जब वही ब्लॉग मेरी जगह मेरे तीन पुत्र संचालित करेंगे तो 'बारूद का ढेर' नाम खूब
फबेगा.
०३. मेरे मरने के बाद मेरे ब्लॉग को सामूहिक ब्लॉग में कन्वर्ट कर दिया जाय. जब तक मैं लिखूंगा तब तक सप्ताह में तीन से ज्यादा पोस्ट नहीं लिख पाऊंगा. इस बात की वजह से मुझे उन ब्लागरों से हमेशा ईर्ष्या होती रही है जो दिन में पाँच-पाँच पोस्ट ठेलते रहते हैं. मेरी दिली तमन्ना है कि मेरे पुत्र एक दिन में कम से कम बीस पोस्ट ठेलें ताकि हर फीड एग्रीगेटर के पेज पर मेरा ब्लॉग ही छाया रहे. मेरी आत्मा को शान्ति देने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं हो सकता.
०४. मेरी मृत्यु के बाद मेरे पुत्र सिर्फ़ उन्ही ब्लॉग पर कमेंट करें जिनके ब्लॉग पर मैं कमेंट करता रहा हूँ. मुझे श्रद्धांजलि देते हुए हुए जितनी भी पोस्ट लिखी जाय, उनपर बहुत सारी फर्जी आईडी बनाकर ढेर सारा कमेंट अवश्य करें. मेरा मंझला पुत्र, जो मुहल्ले के तमाम घरों की दीवारों पर चोरी-छिपे गालियाँ लिखता है, उसे मैं बेनामी कमेंट करने और बाकी के ब्लागरों के लिए गालियाँ लिखने का महत्वपूर्ण काम सौंपता हूँ.
०५. इतने दिनों तक ब्लॉग लिखने के बावजूद मैं आजतक बिना छंद और तुकबंदी की एक भी कविता नहीं लिख सका. ये बात मेरे मन में हीन भावना पैदा करती रही है. मेरा छोटा पुत्र जो रह-रहकर आसमान की तरफ़ देखने लगता है और जिसके अन्दर बुद्धिजीवी बनने के सभी लक्षण मौजूद हैं, मैं उसे बिना छंदों और बिना तुकबंदी वाली कविता लिखने का काम सौंपता हूँ. अगर मेरा छोटा पुत्र इस काम को न कर सके तो उसे चिंता करने की जरूरत नहीं. वह जयशंकर प्रसाद, राम दरश मिश्र और पाब्लो नेरुदा की कविताओं को अपनी कविता बताकर तब तक छापता रहे जब तक पकड़ा न जाए.
०६. मैंने ब्लॉग लिखकर समाजवाद लाने की एक कवायद शुरू की थी. इतने दिनों के बाद मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि समाजवाद के आने का चांस बहुत कम है. लेकिन चूंकि मैं इस दर्शन में विश्वास रखता हूँ कि इंसान को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरी इस अधूरी कोशिश को मेरे तीनों पुत्र आगे बढायें. हिम्मत न हारना ही असली समाजवादी की निशानी है.
०७. मैंने अपनी 'बकलमख़ुद' लिखकर तैयार कर ली है. हालांकि अजित वडनेरकर जी ने मुझे लिखने के लिए कभी नहीं कहा लेकिन मैंने इस आशा से लिख लिया था कि वे एक न एक दिन जरूर कहेंगे. अगर मेरे जीते जी वे नहीं कहते हैं तो फिर मेरे पुत्रों को मैं जिम्मेदारी सौंपता हूँ कि वे मेरे बकलमख़ुद को मेरे ही ब्लॉग पर छाप लें.
०८. मैंने अभी तक के अपने ब्लागिंग कैरियर में बाकी के ब्लागरों के लेखन को कूड़ा बताया है. मैं चाहता हूँ कि मेरे जाने के बाद मेरे पुत्र मेरे इस काम को आगे बढायें और वे हर दूसरे दिन किसी न किसी ब्लॉगर के लेखन को कूड़ा बताएं. मैं यह भी चाहता हूँ कि मेरे तीनों पुत्र महीने में कम से कम एक बार हिन्दी ब्लागिंग में विद्यमान अपरिपक्वता के बारे में लिखकर बहस जरूर करवाएं. ऐसी पोस्ट पर टिप्पणियों की संख्या में कमीं नहीं आती.
०९. मैंने कई बार ऐसी पोस्ट लिखी जिसमें तमाम महान लोगों को दो कौड़ी का बताया. कई बार तो मैं गाँधी जी को भी बेकार घोषित कर चुका हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे पुत्र मेरे इस काम को भी आगे बढायें. महीने में कम से कम एक पोस्ट ऐसी लिखें जिसमें किसी महापुरुष को बेकार बतायें. ऐसी पोस्ट लिखने से खूब नाम होता है.
१०. मेरे ब्लॉग पर लगाए गए विज्ञापन की कमाई को मेरे पुत्र आपस में बाँट लें. मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि इस मामले में कोई झगडा नहीं होगा क्योंकि कमाई की रकम १०० डॉलर पार नहीं कर सकेगी.
११. बहुत कोशिश करने के बाद भी मैं अपने ब्लॉग पर आजतक एक भी विमर्श नहीं चला सका. विश्व साहित्य हो या जाति की समस्या, नारी मुक्ति आन्दोलन हो या फिर विश्व अर्थव्यवस्था, साम्यवाद हो या फिर साम्राज्यवाद, ऐसे किसी भी विषय मैं एक भी बहस आयोजित न कर पाने की अक्षमता मुझे बहुत खलती है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र मेरे इस ब्लॉग पर महीने में कम से कम एक बहस जरूर आयोजित करें. ऐसी बहस चलाने से मेरी इस हीन भावना से मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी.
१२. जब तक मैं ब्लॉग लिख रहा हूँ मैंने अपनी तमाम पोस्ट में मेरे अन्दर की कन्फ्यूजियाहट ही दर्शाई है. तीन साल तक ब्लागिंग करने के बावजूद मैं खुद कभी इस कन्फ्यूजन से निकल नहीं पाया कि ब्लागिंग मेरे लिए उपयोगी है या नहीं? मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे तीनों पुत्र भी इसी कन्फ्यूजन का शिकार रहें. ऐसा करने से दूसरों के मन में उनकी छवि एक आत्मनिरीक्षण करने वाले ब्लॉगर की बनी रहेगी.
१३. पिछले तीन महीने से मैं ब्लागिंग पर एक शोध कर रहा हूँ. इस शोध से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि ब्लॉग एग्रीगेटर सिवाय फर्जीवाड़ा के और कुछ नहीं. मैंने अपनी खोज से यह सिद्ध कर दिया है कि पुराने हिंदी ब्लॉगर असल में ब्लॉगर नहीं बल्कि मठाधीश हैं और एग्रीगेटर के फर्जीवाड़े की वजह से उन्हें ब्लॉगर माना जाता है. मैं जब तक जिंदा हूँ, इस मुद्दे पर मैं रोज पोस्ट ठेलता रहूँगा. मेरे मरने के बाद मेरे तीनों पुत्र मेरे शोध को न सिर्फ आगे बढ़ाएं बल्कि हर दृष्टिकोण से पैदा होनेवाले फर्जीवाड़े पर लिखें.
१४. मेरे ब्लॉग बारूद के अलवा मेरे नौ और ब्लॉग हैं जिन्हें मैं फर्जी आई डी से चलाता हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे मरने के बाद मेरे बाकी के ब्लॉग भी मेरे पुत्र चलायें. मेरे बाकी के ब्लॉग हैं;
मैं चन्दन तुम पानी
देख फकीरा रोया
डाकिया डाक लाया
क्रांति संभव है
ब्लॉग-आत्मा
यहाँ से भारत को देखो
बादल पर लिख दिया तेरा नाम
जिगर मा बड़ी आग है
जिंदगानी फिर कहाँ
१५. मैं जब से ब्लॉग लिख रहा हूँ तब से ही मैंने अपने ब्लॉग को हर एग्रीगेटर से जोड़ रखा है. हर एग्रीगेटर से जुड़े रहने के बावजूद मैं उन्हें गाली ही देता आया हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र अपने ब्लॉग को नए-पुराने और भविष्य में आनेवाले अग्रीगेटर से जोडें और मेरी परंपरा को निभाते हुए उन्हें गाली देते रहें.
१६. तमाम ब्लागरों को कमेन्ट करके गाली देने की मेरी क्षमता की वजह से मुझे आजतक एक निहायत ही ईमानदार और खरी-खरी कहने वाला ब्लॉगर माना जाता रहा है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र मेरे इस काम को आगे बढायें जिससे लोग उन्हें भी ईमानदार मानें.
१७. तमाम कोशिश करने के बाद भी मैं एक भी अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर मिलन अटेंड नहीं कर पाया. मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं एक बार अमेरिका में ब्लॉगर मिलन का आयोजन करूं. अगर मेरे जीते जी मैं यह कार्य न कर सकूं तो मेरे पुत्र यह कार्य अवश्य करें और एक ब्लॉगर मिलन वाशिंगटन में आयोजित करें. ऐसा करने से मेरी आत्मा को शांति मिलेगी.
१८. अपने तीन साल के ब्लागिंग जीवन में अब तक मैं अट्टारह बार ब्लागिंग छोड़ने की धमकी दे चुका हूँ और चार बार ब्लॉग बंद कर चुका हूँ. इसका फायदा यह होता है कि टिप्पणियां खूब मिलती हैं और लोगों की टिप्पणी से साबित होता है कि मैं महत्वपूर्ण ब्लॉगर हूँ. मेरे बाद मेरे पुत्र महीने में कम से कम एक बार ब्लागिंग छोड़ने की बात को लेकर पोस्ट अवश्य लिखें. इससे धमकी की प्रैक्टिस होती रहती है.
१९. अपने तीन साल के ब्लागिंग जीवन में करीब हर चौथे दिन मैंने ब्लॉग जगत के तथाकथित खराब माहौल के बारे में पोस्ट लिख कर माहौल खराब करने की कोशिश की. यह बहुत दुर्लभ और महान कला है जिसपर प्रैक्टिस की सहायता से ही मास्टरी की जा सकती है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र माहौल खराब करने की प्रैक्टिस करते रहे. इससे बहुत नाम होता है.
२०. मेरी सबसे बड़ी ब्लॉग-तमन्ना यह है कि एक दिन मेरे ब्लॉग की चर्चा टाइम मैगेजीन में हो. अगर मेरे जीते जी यह संभव नहीं होता तो मैं चाहूँगा कि मेरे पुत्र मेरे बाद भी कोशिश करें जिससे मेरे ब्लॉग के बारे में कभी न कभी टाइम मैगेजीन में अवश्य छपे.
२१. ब्लॉग लेखन के दौरान मैंने हमेशा ही महिलाओं के उठने-बैठने से लेकर उनके खान-पान और पोशाक के बारे में बहुत ज्ञान दिया है. उन्हें हमेशा रास्ता दिखाया है कि उन्हें समाज में कैसे रहना है और कैसे चलना है. मेरे बाद मेरे पुत्र भी यह काम करते रहें. ऐसा करने से उनकी गिनती भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े रक्षकों में होगी जो ईमेज-स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है.
साल २०१० में बनने वाली वसीयत में बस इतना ही. अगर भविष्य में मैंने अपनी वसीयत में कोई बदलाव किया तो सार्वजनिक तौर पर उसकी सूचना अपने साथी ब्लागरों को अवश्य दूंगा.
ब्लाग वसीयत लिखी हलकान 'विद्रोही' दिनांक २४-०६-२०१०,
Woh
ReplyDeletewasihat to sandar hai.
MERA HISSA KAHA HAI.
मिश्राजी, आपने अपनी इस पोस्ट पर मेरा फोटो नही लगाया, ये तो बहुत गलत बात हो गई...
ReplyDeleteखैर, आप मेरी वसीयत को और भी दस बारह ब्लाग पर छपाने का इन्तजाम कीजिये ना भाई...
हलकान विद्रोही कभी मरेंगे भी या नहीं?
ReplyDeleteकि ऐसे ही ढेरों वसीयत इधर-उधर छापते फ़िरते हैं? :) :)
@ हलकान भाई,
ReplyDeleteदेखा न हलकान भाई. आपने कहा था आज शाम तक पब्लिश हो जाना चाहिए. मैंने पब्लिश कर दिया. आज मुझे बड़ी ख़ुशी हुई हलकान भाई जो आपने आज पहली बार मेरी पोस्ट पर कमेन्ट किया. १२-१३ ब्लॉग पर आपकी वसीयत पब्लिश कैसे करें? मेरा तो एक ही ब्लॉग है. आप एक काम कीजिये. आप अपने उन ब्लॉग पर भी पब्लिश कीजिये जिन्हें आप फर्जी आई दी से चलाते हैं....:-)
हलकान जी की फोटो लगा दी गई है। उनको कमेण्ट में अपनी फोटो उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद! अपने बेटों से भी कहें कि वे भी कमेण्ट कर इस ब्लॉग लेखक का हौसला बढ़ायें!
ReplyDeleteक्या शिव जी, ग्यारह पाईंट कहकर अठारह ठेल दिये हलकान जी ने. अब समझा ब्लागिंग किसे कहते हैं... :)
ReplyDeleteये हलकान भाई तो आज तक से भी तेज निकले.....जुलाई शुरू हुए अभी दो दिन भी नहीं बीते और महाशय का प्रोफाइल 200 पार कर गया.....क्या बात है.....।
ReplyDeleteहलकान जी की वसीयत में एक नया पैराग्राफ जोड़ा जाय.....
हलकान के मरने के बाद हो सके तो सरकार एक वर्चुअल जिला बनाए और उस जिले का नाम हलकानगंज रखे।
एक सड़क मेरे घर के सामने से निकले जिसका नामकरण करने के लिए ब्लॉगरों से एक पोस्ट लिख कर राय ली जाय कि- एक सड़क का नाम रखना चाहता हूँ...कौन सा रखूँ।
इससे फायदा यह होगा कि कमेण्ट तो मिलेंगे ही साथ ही साथ नामकरण को लेकर खूब बमचक मचेगी....और ले देकर आम सहमति से ब्लॉगर जन मेरे नाम पर सड़क का नाम 'हलकान मार्ग' रखेंगे :)
मस्त.. टिपिकल ब्लोगर है... पर बेचारे बेटे..
ReplyDeleteहलकान भाई तो बहुत विकट टाईप के ब्न्दे हैं जी। भारत सरकार को इनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल करते हुये इन्हें पाकिस्तान को सौंपे जाने वाले कलर्ड डोज़ियर्स का डायलाग राईटर नियुक्त करने की हम मांग करते हैं।
ReplyDeleteप्वायंट संख्या १, ७ व १८ विशेषरूप से बहुत उपयोगी लगे।
ब्लागर हलकान विद्रोही की वसीयत बांचकर मन करता है कि वे खूब दिन जियें और हर महीने अपनी वसीयत जारी करते रहें।
ReplyDeleteमन यह भी करता है ब्लॉगर हलकान विद्रोही को अब दो भागों में बंट जाना चाहिये (अम्बानी भाइयों की तर्ज पर) एक ब्लॉगर हलकान और दूसरा ब्लॉगर विद्रोही। ब्लॉगर हलकान जी हलकान टाइप वसीयतें लिखें(दुखी,निराश,लुटी-पिटी,दुनिया नर्क है, भाईचारा खल्लास हो गया टाइप) और ब्लॉगर विद्रोही विद्रोही पोस्टें( माड्ड्लूंगा, काट्ट्डालूंगा, सावधान, खबरदार टाइप)। इससे कोई विषय न होने पर हलकान जी और विद्रोही जी आपस में एक-दूसरे के बारे में भी लिखते रह सकते हैं।
हलकान विद्रोही जी नमस्ते
ReplyDeleteवसीयत मे आपने अपने बेटो को तक़रीबन हर बात कि हिदायत डी हैं पर एक बात रहगयी हैं । सो इस वसीयत मे उस को बढ़ा कर वसीयत पुनेह शिव बाबु से पब्लिश करवाए ।
आप आपने बेटो को बताये की जितने ब्लॉग डोमेन नेम आप से रजिस्टर कराने से रह गए हैं आप के बेटे उनको रजिस्टर करा ले । ब्लॉग से कमाई हो ना हो इस से जो कमाई आप कर रहे हैं अभी वो आप के बेटे भी कर सके
वसीयत विस्तार पर इंतज़ार के साथ और आप कि लम्बी उम्र कि दुआ के लिये
अपने तीन साल के ब्लागिंग जीवन में करीब हर चौथे दिन मैंने ब्लॉग जगत के तथाकथित खराब माहौल के बारे में पोस्ट लिख कर माहौल खराब करने की कोशिश की
ReplyDeleteइस लाईन को मैं अपनी औकात से बाहर जाकर दो हज़ार नंबर दे रहा हूँ.. कृपया हलकान भाई इसे ग्रहण करके मुझे हल्का करे..
हलकान भाई की स्पष्टवादिता देखकर मस्तक झुक गया ।
ReplyDeleteसर्वाधिक स्पष्टवादी ब्लॉगर ।
हलकान भाई उठो, तुम्हारी पोस्ट पर नया कमेंट आया है :)
ReplyDeleteउठ गए क्या ???
ReplyDeleteलो एक कमेन्ट और आ गया :)
कट पेस्ट ज्यादा सरल रास्ता है, अतः पूरी वसीयत उड़ा रहा हूँ, अपनी वसीयत मुफ्त में बन गई. थेंक्यु हलकान भाई.
ReplyDeleteएक पोइंट शायद छूट गया. हर दुसरे दिन समीरलालजी या ब्लॉगवाणी के नाम वाले शीर्षक से पोस्ट करने की बात छूट गई.
बाकी तो पान का स्वाद है और आपकी पोस्ट है. मूँह में रखते ही......वाह वाह
हलकान विद्रोही की वसीयत से लोग इतने प्रभावित हुए हैं की मुझ जैसे कई टपकने के कगार पर खड़े ब्लोगर ( वैसे टपकने का कोई समय नहीं होता कोई कभी भी टपक सकता है, इस मायने में इंसान आम के समकक्ष है) इसकी फोटो कापी करके अपने नाम से अपने बेटों में बाँट रहे हैं...मैंने जैसे ही इसकी एक प्रति अपने नाम से अपने बेटों को भेजी तो उन्होंने पढ़ कर तुरंत हमारे फैमेली डाक्टर से परामर्श कर मेरे दीर्घ जीवन के लिए आवश्यक औषधियों और जांच का प्रबंध कर दिया...कारण... उनका मानना है के बेकार ब्लोगिंग के लफड़े में पड़ने से तो बुढाऊ का जीवित रहना ही हितकारी है.
ReplyDeleteनीरज
विद्रोही जी की वसीहत पढकर ही याद आया कि हमारे ब्लाग की कीमत भी लाखों में है...कुल 3 लाख डालर. यानि कि भारतीय मुद्रा में सवा करोड रूपए से अधिक. वोह्! ये तो कमाल हो गया, हम तो बैठे ठाले करोडपति हो लिए. डर लग रहा है कि कहीं खुशी के मारे हार्ट अटैक न हो जाए..इसलिए चलते हैं, पहले जल्दी से जाकर अपनी वसीहत लिख डालें. वर्ना कल को कहीं कोई दावेदार न उठ खडा हो :)
ReplyDeleteHa! Ha! Ha!
ReplyDeletePehle Blogger dal ab Vasiyat!!
Now it has to rain.Halkan Bhai has forced even Shiv to add a picture in a post!!
HALKAN BHAI ZINDABAD!
बढ़िया है.. अपने बच्चों के चरित्र को अच्छे से पहचान कर उनका उचित इस्तेमाल किया है हलकान जी ने..
ReplyDeleteहलाकान विद्रोही जुगजुग जीए , वसीयत धरी की धरी रह जाए....
ReplyDeleteअद्भुत!
ReplyDeleteबहुत शब्दों से क्या प्रयोजन,
बहुत मज़ा आया।
हलकान "विद्रोही" जी विद्रोह दूसरों के प्रति करते होंगे, ऐसा बोधगम्य है, मगर हलकान हैं या करते हैं?
आप ज़ाती तज्रुबात को आम करें तो खुलासा हो…
आज तो आपका अलग ही मूड नज़र आया है पंडित जी !
ReplyDeleteआनंद आ गया आपकी पोस्ट पढ़ कर , कई जगह तो लगा कि मैं भी हलकान हूँ हा..हा..हा...हा...
सब की आत्मकथा लिख डाली है , क्या क्या पैतरें नहीं चले जाते यहाँ ...समझ में नहीं अत कि कापी किसकी करें ...?? सब एक से एक बढ़कर ...
जिसे गुरु बनाते हैं वही कुछ दिनों में हलकान नज़र आने लगता है ! और भी रोशनी डालते रहिएगा !
शुभकामनायें !
हलकान बाबू बडे दूर के ब्लोगर है... उन्होने अपने लडको के भविष्य के बारे मे जो सोचा है वही उन्हे एक बेहतर ब्लोगर बनायेगा...
ReplyDeleteवसीयत के सारे प्वाईन्ट्स नोट करने वाले है.. लेकिन मेरी जान ले गयी उनकी मोडेस्टी.. आय हाय क्या प्यार से लिखा है उन्होने
"मैं ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' , ब्रह्माण्ड का सबसे धाँसू हिन्दी ब्लॉगर"
रात के बारह बजे मैं हंस रहा हूँ अकेले... यहाँ से भगा दिया जाऊँगा :)
ReplyDeleteवैसे मैं देख रहा हूँ इधर उधर गालियाँ लिखने वाले बेटे का अब तक कमेन्ट नहीं आया !
हलाकन विद्रोही जी अब आप अपनी वसीयत लिख ही चुके हैं अब नियम के अनुसार मर जाईये । हिन्दी ब्लागिंग पर बड़ी कृपा होगी । आपके तीनों पुत्रों के लिये मेरी यही दिली तमन्ना है कि वे सभी गीला बारूद ही साबित हों । तेरही की पूड़ी की आस में ।
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