मैं सरकार से नाराज हूँ. आप कह सकते हैं इसमें नया क्या है? मेरा काम ही है सरकार से नाराज होना. मैं सरकार से नाराज हूँ, यह भी कोई न्यूज है? न्यूज तो तब बनेगी जब मैं कहूँ कि ; "मैं सरकार से खुश हूँ." वैसे आपको बता दूँ कि मैं सरकार से कभी-कभी खुश भी हो लेता हूँ. यह अलग बात है कि नाराज होने का काम सार्वजनिक तौर पर यानि ब्लॉग पर करता हूँ और खुश होने का निहायत ही व्यक्तिगत तौर पर. एक दम प्राईवेटली. ऐसा करने से इमेज बनी रहती है. ओह! लगता है विषयांतर हो गया.
हाँ, तो मैं बता रहा था कि मैं सरकार से नाराज हूँ. वह इसलिए कि कल हमारे प्रिय रबिन्द्रनाथ टैगोर की कलाकृतियाँ नीलाम हो गईं और सरकार ने कुछ नहीं किया. सरकार मंहगाई नहीं रोक पाए, नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा नहीं रोक पाए, सुरक्षा वगैरह की बात पर टें बोल जाए, यह बात तो समझ में आती है लेकिन अपने देश के महान कवि और पेंटर की कलाकृतियों की नीलामी भी न रोक पाए, यह बात समझ में नहीं आती.
इस बात पर तो यही कहा जा सकता है कि; "लानत है."
मुझे याद है जब महात्मा का चश्मा, चप्पल और चिट्ठी-पत्री नीलाम हो रहे थे तो शराब बनानेवाले महान उद्योगपति श्री विजय माल्या साहब ने वह सब खरीद लिया था. बाद में सरकार ने बताया कि माल्या साहब ने उसके उकसाने पर महात्मा जी की चीजें खरीद ली थीं. लेकिन इस बार सरकार ने उन्हें क्यों नहीं उकसाया? चलिए उनसे संपर्क नहीं भी हो पाया तो क्या हुआ? सरकार कम से कम एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स ही बना देती. वह ग्रुप कविगुरु की पेंटिंग्स खरीदने का कोई न कोई उपाय निकाल ही लेता.
सरकार को तो है ही मुझे भी पिछले कई महीनों में सबसे ज्यादा भरोसा ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स पर ही हुआ है. जब भी किसी समस्या के समाधान के लिए ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बन जाता है तो मैं निश्चिन्त हो जाता हूँ. यह सोचते हुए खुश हो लेता हूँ कि सरकार समस्या के समाधान के लिए सीरियस है. अगर ऐसा नहीं होता तो वह ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स नहीं बनाती. तेल का दाम घटाना हो तो ग्रुप बना दिया. बढ़ाना हो तो ग्रुप बना दिया. गैस का दाम तय करना हो तो ग्रुप बन गया. मंहगाई रोकने के लिए ग्रुप है ही. यहाँ तक कि अम्बानी बन्धुवों की रार मिटाने के लिए भी ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बना दिया गया. पिछले एक साल में देश की शायद ही कोई समस्या है जिसके लिए ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स काम नहीं कर रहे. अब तो भोपाल गैस काण्ड के समाधान के लिए भी ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बन चुका है. उड़ती खबर तो यह भी है कि सरकार ने एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बनाया है जो साल २०२२ के फीफा वर्ल्ड कप को जीतने के लिए भारत की मदद करेगा.
मैं तो कहता हूँ कि भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को सरकार से चिरौरी करके एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बनवा लेना चाहिए जो अगले साल होने वाले क्रिकेट विश्व कप में भारत की जीत तय करने के लिए आज से ही काम शुरू कर दे.
अगर आप भारत में आविष्कारों का इतिहास ध्यान से देखें तो इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि दशमलव और शून्य के बाद अपने देश में जिस सबसे महान चीज का आविष्कार हुआ है वह है ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स का सिद्धांत. भारत के सबसे बड़े देशभक्त श्री मनोज कुमार अगर आज भी फिल्म बना रहे होते तो वे अपनी किसी न किसी फिल्म के किसी न किसी गाने में दशमलव न देता भारत तो फिर चाँद पर जाना मुश्किल था की तर्ज पर यह लाइन ज़रूर डालते कि जीओएम न देता भारत तो प्राब्लम्स सुलझाना मुश्किल था.
मुझे तो आशा ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास है कि सरकार के इस ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स के सिद्धांत को देश भर के बिजनेस स्कूल्स और कॉलेज अगले सेमेस्टर से कोर्स में लगाकर धन्य हो लेंगे. हम देखेंगे कि हमारे प्रधानमंत्री अगले छ महीने तक कॉलेज-कॉलेज घूमकर वहाँ ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स के सिद्धांत कोर्स में शामिल करने का उद्घाटन करते फिरेंगे. अगर उनके पास समय कम होगा तो शायद वे समय की कमी की समस्या से निबटने के लिए एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स अप्वाइंट कर दें. दो-चार मीटिंग्स के बाद ग्रुप समाधान खोजकर प्रधानमंत्री को बता सकता है कि कॉलेज-कॉलेज घूमकर उद्घाटन करने से अच्छा है कि आप एक ही दिन यह ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स वाला सिद्धांत पूरे देश को समर्पित कर दें. हम दूरदर्शन पर समाचार में न्यूज एंकर से सुनेंगे कि; "आज दिल्ली में हुए एक रंगारंग कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री ने ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स का सिद्धांत देश को समर्पित किया. राष्ट्रपति ने इस सिद्धांत को देश को समर्पित किये जाने पर पूरे देश को बधाई दी."
एक बार ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स का सिद्धांत देश को समर्पित कर दिया गया उसके बाद सुधार ही सुधार. देश की दशा और दिशा, दोनों चेंज हो जायेगी. कहीं की सड़क ठीक नहीं है ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बना दो. फट से प्रॉब्लम साल्व हो जायेगी. कहीं पानी जमा हो रहा है एक ग्रुप उसके लिए बना दिया. बेरोजगारी बढ़ रही है और देखा कि अकेला मंत्री बेचारा बढ़ती बेरोजगारी को नहीं रोक पा रहा है एक ग्रुप फिट कर दिया. सारे मंत्री एक साथ बेरोजगारी रोकेंगे तो कैसे बढ़ेगी? एक मंत्री की ताकत और पाँच-सात मंत्रियों की ताकत में कितना बड़ा फरक होता है. ग्लोबल वार्मिंग से लेकर पानी की कमी की समस्या और शिक्षा से लेकर भिक्षा तक, कोई समस्या नहीं बचेगी.
दूरदर्शन पर न्यूज एंकर न्यूज पढ़ते हुए कहेगा; "आज लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि इस वर्ष देश में ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स का रिकार्ड उत्पादन हुआ. पिछले वर्ष की तुलना में ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स के अप्वाइंटमेंट में करीब बहत्तर प्रतिशत की वृद्धि हुई. ज्ञात हो कि पिछले वर्ष कुल दो हज़ार आठ सौ सत्ताईस जीओएम बने थे जिसकी संख्या इस वर्ष बढ़कर कुल चार हज़ार आठ सौ बावन तक पहुँच गई. प्रधानमंत्री ने देश को विश्वास दिलाया है कि जीओएम के उत्पादन में बढ़ोतरी अगले वर्ष भी बनी रहेगी."
ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स के महान सिद्धांत को पढ़कर जब बिजनेस स्कूलों और कॉलेज से छात्र निकलेंगे तो वे अपने-अपने कार्यक्षेत्र में इस सिद्धांत को लागू करेंगे. सोचिये कि अगर ये छात्र देश से बाहर काम करने चले गए तो वहाँ के लोग इस सिद्धांत से कितने प्रभावित होंगे? कोई छात्र अगर यूनाइटेड नेशंस में काम करेगा और वहाँ इस सिद्धांत की चर्चा कर डालेगा तो क्या होगा?
यूनाईटेड नेशंस वाले इतने प्रभावित हो जायेंगे कि भारत से आग्रह करते फिरेंगे. जैसे ईराक की समस्या सुलझानी है. आप अपना यह सिद्धांत अगर हमें यूज करने की अनुमति दे दें तो बड़ी कृपा होगी. या फिर अमेरिका और ईरान, या अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच जो टेंशन है उसको सुलझाने के लिए आप अगर एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स अप्वाइंट कर देते तो बड़ी कृपा होती. इसके एवज में आपको जो चाहिए वह मिल जाएगा. आप चाहें तो हम आपको सिक्यूरिटी काउंसिल में परमानेंट सीट देने के लिए तैयार हैं. बस एक बार आप हमारा यह काम कर दीजिये.
सोचिये कि देश के लिए कितना गर्व का क्षण होगा? अगर सारी समस्या को सुलझाने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री के पास समय न रहे तो वे जीओएम के इस सिद्धांत को विश्व को समर्पित कर देंगे. उसके बाद दुनियाँ भर के सारे देश अपने-अपने ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स बनाकर अपनी समस्याएं सुलझाते रहेंगे. देखेंगे कि पूरी दुनियाँ में रोज हजारों जीओएम बन रहे हैं और समस्याएं सुलझाती जा रही हैं. पूरी दुनियाँ रोज भारत के प्रति करीब हज़ार-बारह सौ तो धन्यवाद प्रस्ताव पारित कर दे रही है.
इस सिद्धांत का असर घर में देखने को मिलेगा. आज के हमारे प्रधानमंत्री तो उम्रदराज हैं और उनके बेटे-बेटियां तो बड़े हो गए हैं. लेकिन जरा सोचिये कि अगर 'पिलान' के मुताबिक़ सबकुछ हुआ यानि अगर श्री राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बन गए तो क्या होगा?
राहुल जी एक नौजवान हैं. कल को उनकी शादी होगी. जब वे प्रधानमन्त्री बनेंगे तो उनके बेटे-बेटियां तो छोटे-छोटे होंगे. बेटे-बेटी सुबह पापा से प्रोमिस ले लेंगे कि आज उनके पापा कम से कम चार जीओएम अप्वाइंट करेंगे. ऐसे में अगर एक कम अप्वाईट हुआ तो क्या होगा? देखेंगे कि राहुल जी घर पहुंचे और पत्नी ने कहना शुरू कर दिया; "आपका लाडला नाराज है. कहता है खाना नहीं खायेगा."
"क्यों?"; राहुल जी पूछेंगे.
"आपने उसे प्रोमिस किया था कि आज आप चार जीओएम अप्वाइंट करेंगे और आपने केवल तीन ही किये. इसीलिए नाराज़ है;" पत्नी बोलेंगी.
वे बेटे को पुचकारते हुए कहेंगे; "बेटा आज खाना खा लो. कल सुबह जाते ही दो और अप्वाइंट कर दूंगा."
बेटा स्कूल से आते समय अगर देखेगा कि सड़क पर जाम हो रहा है तो सीधा वहीँ से फ़ोन करके कह देगा; "पापा इधर सड़क पर रोज जाम लगा रहता है. आप अगले एक घंटे में एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स अप्वाइंट कीजिये."
देखेंगे सड़क पर जाम रोकने के लिए एक घंटे के अन्दर एक ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स अप्वाइंट हो गया. घर में खेलते-खेलते अगर बेटा बोर हो जाएगा और पापा को फ़ोन कर देगा तो उधर से आवाज़ आएगी; "बेटा अभी डिस्टर्ब मत करो. अभी मैं जी ओ एम अप्वाइंट कर रहा हूँ. एक घंटे बाद फोरेन डेलिगेशन के साथ मीटिंग है उसके पहले मुझे तीन जीओएम अप्वाइंट करना है."
सोचिये जरा क्या-क्या सीन होगा. देखेंगे कि ...जाने दीजिये. हटाइये.
धन्य हो प्रभु,
ReplyDelete’जी ओ एम’ सिद्धांत के प्रतिपादन के लिये आपको सरकार की तरफ़ से सम्मानित किया जायेगा। तिथि और स्थान तय करने के लिये ’जी ओ एम’........।
मजा आ गया शिव भैया।
अब तो सरकार गयी समझो -शिव बाबा नाराज हुए तो !
ReplyDeleteवैसे आइडिया अच्छा है न... एक मुद्दे पर अगर सारे मंत्रिमंडल की राय अगल हो तो अच्छा है एक जी ओ एम् बना दे... ताकि कम से कम मंत्रिमंडल की बैठक में वो तो आपस में न लड़े...
ReplyDeleteमुझे तो खबर मिली है की आपके ब्लॉग को पढ़ने के लिए भी सरकार ने एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर बनाया है...
जो काम सरकार नहीं करती उसे ब्लोगर करता है.. ब्लोगरो ने आपका आईडिया पढ़ लिया है.. एक्शन लिए जा रहे है
ReplyDeleteआपको तो सब पता ही है..
GOM से भरी इतनी खतरनाक पोस्ट पर कमेण्ट देने लायक विद्वान तो हूं नहीं…
ReplyDeleteइसलिये सिर्फ़ :) :) :) (ये टोकन था…)
अब इसमें 4448 :) :) स्माइली और जोड़िये फ़िर कुल कितनी स्माइली हुईं, इसे जानने के लिये एक GOM बना डालिये…
बिना पैसे लिए आईडिया देते है मिश्रा जी.....
ReplyDelete"आज लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि इस वर्ष देश में ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स का रिकार्ड उत्पादन हुआ. पिछले वर्ष की तुलना में ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स के अप्वाइंटमेंट में करीब बहत्तर प्रतिशत की वृद्धि हुई. ज्ञात हो कि पिछले वर्ष कुल दो हज़ार आठ सौ सत्ताईस जीओएम बने थे जिसकी संख्या इस वर्ष बढ़कर कुल चार हज़ार आठ सौ बावन तक पहुँच गई. प्रधानमंत्री ने देश को विश्वास दिलाया है कि जीओएम के उत्पादन में बढ़ोतरी अगले वर्ष भी बनी रहेगी."
ReplyDeleteजब वास्तव में यह स्थिति आ जाएगी, तब हम लोग एक ग्रुप ऑफ़ सटायरिस्ट्स बना लेंगे. इसका काम हर फटे में टांग अड़ाना होगा. वैसे तो अपने देश में ऐसहीं हर कहीं फटा हुआ है, पर अगर ग़लती से कहीं फटा न मिला तो यह पहले ख़ुद फाड़ेगा और फिर वहां टांग अड़ाएगा.
...जाने दीजिये. हटाइये
ReplyDeleteअरे काहे हटाएं भाई? हटाना है तो मंत्रियों का समूह सलाह देगा तब हटाएंगे.
और यह समूह का बिचार कोई युनिक बात नहीं है. आपके पास डायरी है देख लो...जब लाक्षागार में आग लगी थी तब युवराज पर आरोप लगे थे. महाराज ने मंत्रियों का समूह बना कर जनता को शांत किया था और मामला रफादफा हुआ.
हमारे यहाँ तो जी.औ.एम् का सिधांत ना जाने कब से चल रहा है...आपने इसे अब प्रसारित किया है...यहाँ तो हालत ये है के समस्याओं से अधिक जी.औ.एम् हैं बल्कि ये कहूँ के इतने अधिक जी.औ.एम्.हैं के उनके लिए समस्याएं ढूंढनी पड़ रही हैं...हमारे यहाँ के वर्कर भी जी.औ.एम् में शामिल हो गए हैं...कल सुना है दरबान भी तीन चार क्षेत्र के जी.औ.एम् घोषित हो गए हैं...ये स्तिथि आ गयी है के अब तो आपातकाल घोषित कर सारे जी.औ.एम् को जेल में डालना पड़ेगा या अंडर ग्राउंड करना पड़ेगा...तभी कारखाना चलने लगेगा क्यूँ के जी.औ.एम् काम थोड़े ही करते हैं...
ReplyDeleteनीरज
फिर कर दी न बात....
ReplyDeleteअरे समझते नहीं...सरकार इसी बहाने सब में भाईचारा बढ़ाना चाहती है...इसी तरह ग्रुप बनते रहे,बैठकें होती रहीं तभी तो आपसी मतभेद दूर हुआ करेंगे...यूँ भी सरकार का विश्वास इस सिद्धांत पर है कि अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता..हाथ और हाथ की मुट्ठी एक उंगली से अधिक सशक्त होगी कि नहीं बताओ...
वैसे एक बात बताना...जैसे रिटायर्ड जजों को ( बैंच पर बैठने पर) धनलाभ होता है, वैसे ही जी ओ एम् के मेम्बर्स को भी अलग से भत्ते मिलते हैं क्या अतिरिक्त काम करने के नाम पर ?
लाजवाब लिखे हो भाई...आनंद आ गया...
शिव जी। आप भी न ... मिस्टर शर्मा इलाहाबाद वालों की तरह सोचते हैं।
ReplyDeleteअरे भाई! यह सरकारी काम है,ग्रूप में होता है। टीम वर्क। कोई प्राइवेट सेक्टर थोड़े है कि कर लिए अकेले-अकेले! जैसे आप खुश हो लेने वाला काम करते हैं अकेले-अकेले। ज़रा टीम बना कर कीजिए वह काम ग्रूप में, फिर देखिए ख़ुशी दुगुनी हो जाएगी।
दशमलव के बाद विश्व को महानतम भेंट - जी ओ एम ।
ReplyDeleteयह तरीका होता है किसी को भी जिम्मेदार न बनने देने का.. परचेज कमेटी इसीलिये बनाई जाती है कि सब मिल बांट कर खायें, फंसे तो सब फंसे. और सब फंसने से रहे. जिम्मेदारी पूरी कमेटी की इसलिये किसी की भी नहीं...
ReplyDelete"ग्रुप ऑफ़ सिनिस्टर्स" कहिये.
ReplyDeleteमहान उद्योगपति विजय माल्या जी ’टप्पू शैतान’ की तलवार भी नीलामी से बचा कर ले आए थे, केवल बाद में मुनाफ़ा कमा कर बेचने के लिये.
आप तो ब्लागिंग की समस्या सुलझाने के लिए भी सरकार से कहकर एक जी ओ एम बनवा दो। बढिया रहेगा जी। बढिया व्यंग्य, बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब. आपके इस लेख को पढ़ कर सरकार आपको पुरुस्कृत करने के लिए कही ब्लॉग पर्यवेक्षक GOM नहीं बना डाले.
ReplyDeleteGOM का पेटेन्ट करा ही लेना चाहिये अब .
ReplyDeleteGOM का पेटेन्ट करा ही लेना चाहिये अब .
ReplyDeleteभारत का प्रधानमन्त्री कौन?
ReplyDeleteई.जी.ओ.एम.
इस सिद्धांत का जवाब नहीं ! इससे इनोवेटिव सिस्शंत तो आज तक नहीं मिला देखने को. सब समस्याओं का रामबाण हल.
ReplyDeleteसारी बीमारियों की एक दवा जी ओ एम। जबरदस्त ।
ReplyDeleteG O M बोले तो "गप ऑफ मिनिस्टर्स " जिसका वजूद ही गपबाजी में है।
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