Tuesday, July 27, 2010

टेकिंग अ फ्लावर-पाट शाट

मेरे एक ब्लॉगर मित्र हैं. अंग्रेजी के मशहूर ब्लॉगर हैं. एक दिन बातचीत के दौरान हिंदी में लिखने की बात पर उन्होंने कहा; "मेरी हिंदी राइटिंग बढ़िया नहीं है. मुझे पहले उसे सुधारना पड़ेगा." मैंने सोचा कि अगर वे हिंदी में कोई पोस्ट लिखते तो कैसे लिखते?

शायद ऐसे;


गमले के साथ अपना करतब दिखाती ज्योति जी

बिहार की ज्योति कुमारी द्वारा गमलों के साथ दिखाए गए उनके करतब की वजह से देश में चारों तरफ बदलाव दिखाई दे रहा है. सबसे पहले तो उनका नाम ही चेंज हो गया. अब उन्हें लोग गमला आंटी कहने लगे हैं. विरोध के उनके इस तरीके पर वे प्रधानमन्त्री का थम्ब्स-अप डिजर्व करती थी इसलिए प्रधानमंत्री ने उन्हें थम्ब्स-अप दिया.


ज्योति कुमारी जी को थम्ब्स अप देते प्रधानमंत्री

लालू प्रसाद जी ने विरोध के इस तरीके पर ज्योति जी को बधाई देते हुए कहा; "लोकतंत्र में विरोध का ई नया तरीका ठीके है. विरोध से लोकतंत्र जो है, ऊ मज़बूत होता है.जेतना ज्यादा बिरोध, ओतना मज़बूत लोकतंत्र. हमको पूरा बिश्बास है कि आनेवाला दिन में एक तरफ तो बिरोध का ई तरीका पापुलर और होगा और दूसरा तरफ भारत का लोकतंत्र. लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए हमारी पार्टी भी ई तरीका अपनाएगी. एही तरीका का सहायता से हम नीतीश कुमार को बिहार से उखाड़ देंगे."
विरोध के नए तरीके के बारे में बात करते लालू प्रसाद जी


लालू जी की बात से प्रभावित होकर कांग्रेस ने फटाफट सी डब्ल्यू सी की एक महत्वपूर्ण मीटिंग बुलाई. उस मीटिंग में दो रिजोल्यूशन पास हुए. पहला यह कि; "पार्टी को जल्द से जल्द विरोध के इस तरीके का का पेटेंट अपने नाम में करवा लेना चाहिए. पहचान के लिए इस तरीके को 'टेकिंग द फ्लावर पाट शाट' का नाम दिया जाय". दूसरा रिजोल्यूशन यह था कि; "ज्योति कुमारी का नाम साल २०१० के पद्म पुरस्कारों के लिए सरकार को भेजा जाय."
कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी को पेटेंट के बारे में सलाह देते वित्तमंत्री

बाद में कांग्रेस के प्रवक्ता और कानूनी सलाहकार मनीष तिवारी ने मीडिया को एड्रेस करते हुए बताया कि; "एक बार विरोध के इस नए तरीके का पेटेंट पार्टी के नाम हो जाएगा तो उसके बाद दूसरी पार्टियों के नेता विरोध के इस तरीके का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. अगर कोई पार्टी इस्तेमाल करना ही चाहती है तो उसे कांग्रेस पार्टी को फीस देनी पड़ेगी."

उधर कामनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाडी ने गमला तोड़ने को कामनवेल्थ गेम्स में एक नए कम्पीटीशन के रूप में शामिल करने के लिए हामी भर दी. सुरेश कलमाडी ने इसके बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि; "अक्टूबर में होनेवाले कामनवेल्थ गेम्स में विधानसभा और लोकसभा के मॉडल बनाये जायेंगे और उसके सामने यह गमला तोड़ खेल का आयोजन होगा. इसमें भाग लेने के लिए सत्रह देशों के विपक्षी नेताओं ने हामी भर दी है."

सुरेश कलमाडी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस के बाद देश के शहरों में अखिल भारतीय गमला बचाओ समिति के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया. समिति के अध्यक्ष नरोत्तम कालसखा ने कहा; "इस तरह के बर्ताव से देश के सभी गमलों के लिए खतरा पैदा हो गया है. अगर इसी तरह से गमले तोड़े जाते रहे तो एक दिन भारत बिना गमलों का देश होकर रह जाएगा. हम सरकार के ऊपर दबाव डालेंगे कि वह गमलों की सुरक्षा के लिए एक नए अर्धसैनिक बल का गठन करे."

अपनी मांग रखने के बाद कालसखा जी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया. करीब तीन दिनों के उनके आमरण अनशन के बाद सरकार ने अखिल भारतीय गमला बचाओ समिति की मांगे मान ली हैं. आज रक्षामंत्री श्री ए के एंटोनी ने घोषणा में बताया कि; "सरकार 'फ्लावर पाट रायफल्स-सिक्सटींथ बटालियन ' का गठन करेगी जिसके ऊपर देश के गमलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी रहेगी."
नए अर्धसैनिक बल के गठन की जानकारी देते रक्षामंत्री ए के एंटोनी


वैसे नरोत्तम कालसखा के इस शक को तब और बल मिला जब इंडिया टीवी के ज्योतिषाचार्य श्री इंदु प्रकाश जी ने बताया कि; "उत्तर प्रदेश में अगले सात महीने तक १०:२६ से ११:५३ तक राजधानी लखनऊ में राहुकाल रहेगा. इसका सबसे बड़ा असर विधानसभा के सामने रखे गमलों पर पड़ेगा. प्रदेश की कुंडली देखकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आनेवाला वर्ष प्रदेश के गमलों के लिए अशुभ है."
गमलों का भविष्य और राहुकाल की जानकारी देते ज्योतिषाचार्य श्री इंदु प्रकाश जी महाराज

गमलों की रक्षा के बारे में सुझाव देते हुए उन्होंने बताया कि;"अगर सभी गमलों का मुँह पूरब दिशा की ओर रखा जाय और एक गमले से दूसरे गमले के बीच की दूरी इक्कीस इंच दो सेन्टीमीटर रखी जाय तो गमलों की रक्षा हो सकेगी."

जब उनसे यह पूछा गया कि; "गमलों का मुँह किसे कहते हैं?" तो उन्होंने सवाल के जवाब में कहा कि इसके लिए उन्हें गमलों की कुंडली देखनी पड़ेगी. पूरा देश उनके द्वारा गमलों की कुंडली देखने इंतज़ार कर रहा है.


ज्योतिषाचार्य इंदु प्रकाश की बात को सपोर्ट करते हुए कृषिमंत्री शरद पवार ने कहा; "मैं कोई ज्योतिषी तो नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि अगले महीने ही देश में गमलों की कमी हो जायेगी और उसकी वजह से गमलों की कीमत करीब चालीस परसेंट बढ़ जायेगी."

शरद पवार की इस बात से प्रभावित होकर देश के सबसे बड़े बिजनेस ग्रुप रिलायंस ने कंपनी के बिजनेस डाईवर्सीफिकेशन को आगे बढ़ाते हुए गमला मैन्यूफैक्चरिंग में कदम रखने का फैसला किया है. रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अम्बानी ने बताया कि कंपनी पहले चरण में देश में आठ जगह गमला बनाने का कारखाना खोलेगी. उन्होंने यह भी बताया कि; " दूसरे चरण में इस बिजनेस के फारवर्ड इंटीग्रेशन के रूप में कंपनी फूलों की खेती भी करेगी."



अपने मित्र बिल गेट्स को भारतीय गमला सेक्टर में अपने इन्वेस्टमेंट का प्लान समझाते वारेन बफेट

रिलायंस द्वारा गमला मैन्यूफैक्चरिंग में कदम रखने के बाद अमेरिकी राकेश झुनझुनवाला के नाम से मशहूर विख्यात निवेशक वारेन बफेट ने भी भारतीय गमला सेक्टर में निवेश करने का फैसला किया है. वारेन बफेट इस बात से उत्साहित हैं कि सरकार ने गमला सेक्टर में फारेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की सीमा बढ़ाकर ४९% कर दी है. पहले चरण में वारेन बफेट भारत के गमला सेक्टर में करीब पाँच करोड़ डालर का इन्वेस्टमेंट करेंगे.


नेट प्रैक्टिस के दौरान ही गमला सेक्टर में डिस्ट्रीब्यूशन का प्लान बनाते जडेजा और युवराज

एक अनुमान के अनुसार भारत में गमलों का बाज़ार अगले दो साल में बढ़कर कुल पाँच हज़ार करोड़ का हो जाएगा जिसमें रिलायंस के पास कुल बाज़ार का पैंतालीस प्रतिशत हिस्सा रहने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्शन की वजह से अन्य क्षेत्रों के लोग भी किसी न किसी तरह से गमलों के व्यवसाय से जुडना चाहते हैं.

कल एक प्रेस कांफेरेंस में क्रिकेटर रविद्र जडेजा ने बताया कि वे युवराज सिंह के साथ मिलकर गमला डिस्ट्रीब्यूशन के क्षेत्र में कदम रखेंगे. ज्ञात हो कि जडेजा और युवराज सिंह पिछले कई मैचों से ख़राब फॉर्म से जूझ रहे हैं और उन्हें चिंता है कि कभी भी उनको टीम से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.


कल मुंबई में हुए एक समारोह में प्रसिद्द कमोडिटी ट्रेडर जिम रोजर्स ने इस बात पर बल दिया कि आनेवाले समय में भारतीय कमोडिटी मार्केट में गमलों की फ्यूचर ट्रेडिंग पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि; "इट्स वेरी इम्पार्टेंट फॉर इंडियन कमोडिटीज मार्केट दैट फ्लार पोट्स आर ट्रेडेड ऐट कमोडिटी एक्सचेंजेज..आई वुड अपील टू फारवर्ड मार्केट कमीशन टू इनक्लूड इट ऐज अ कमोडिटी फॉर ट्रेडिंग ऐट कमोडिटी मार्केट्स. इफ डन, इंडियन कमोडिटीज मार्केट्स वुड बीकम एम्पली डाइवर्सीफाइड.."


अब तो मुझे भी यही लगता है कि आनेवाले दिनों में भारत गमलों का देश होकर रहेगा और न केवल भारतीय लोकतंत्र में बल्कि व्यापार में,. राजनीति में, खेलों में, और समाज में गमलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती जायेगी. लेकिन मुझे इससे क्या? मैं तो आज भी भारतीय शेयर बाज़ार का बादशाह हूँ और कल भी रहूँगा.

Thursday, July 22, 2010

एक मुलाकात कृषि मंत्री के साथ

परसों मेरा ब्लॉग पत्रकार शरद पवार जी का इंटरव्यू लेने पहुंचा तो उन्होंने मना कर दिया. बोले कि नहीं देंगे. मैंने सोचा था कि प्रधानमंत्री जी उनका भार कम करते उससे पहली ही उनका एक ताज़ा इंटरव्यू छाप देता लेकिन अब उन्होंने नहीं दिया तो क्या कर सकते हैं? उनकी इस बात के विरोध में उनका पुराना इंटरव्यू छाप रहा हूँ. आप बांचिये.

वैसे उन्होंने वचन दिया है कि वे अगले हफ्ते इंटरव्यू देंगे.

...............................................................


इस वर्ष मानसून की कमी हो गई है. अपना देश ही ऐसा है. यहाँ भ्रष्टाचार को छोड़कर आये दिन किसी न किसी चीज की कमी होती रहती है. इस कमी वाली वर्तमान संस्कृति में शायद कमी के लिए और कुछ नहीं बचा था इसीलिए इस बार मानसून की कमी हो गई. दाल की कमी, चीनी की कमी, प्याज-आलू की कमी को देश कितने दिन झेलेगा? कुछ नया भी तो कम होना चाहिए.

विद्वान बता रहे हैं कि बादलों की कमी नहीं है लेकिन बादलों में पानी की कमी ज़रूर है. आश्चर्य इस बात का है कि अभी तक सरकार ने यह नहीं कहा कि मानसून की कमी के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है. शायद सरकार अभी तक इतनी काबिल नहीं हुई कि मानसून की कमी के लिए विदेशी ताकतों को जिम्मेदार बता दे.

लेकिन यह सब मैं क्यों लिख रहा हूँ? इसी को कहते हैं घटिया ब्लॉग-लेखन.

अब देखिये न, मुझे प्रस्तुत करना है हमारे कृषि मंत्री का साक्षात्कार और मैं प्रस्तावना में न जाने क्या-क्या ठेले जा रहा हूँ. इसलिए प्रस्तावना को यहीं खत्म करता हूँ और हमारे कृषि मंत्री का साक्षात्कार प्रस्तुत करता हूँ.

आप यह मत पूछियेगा कि इस साक्षात्कार के ट्रांसक्रिप्ट मुझे कहाँ मिले? मैं नहीं बताऊँगा. मैंने (ब्लॉगर) पद और गोपनीयता की कसम खाई है.आप साक्षात्कार पढिये.

.......................................................

पत्रकार: नमस्कार मंत्री जी.

मंत्री जी: नमस्कार. बाहर आसमान साफ़ है. मौसम अच्छा है....अब यहाँ कोई अंपायर तो है नहीं कि वो हाथ नीचे करके इंटरव्यू शुरू करने का इशारा करेगा. जब मैं खुद ही जसवंत सिंह बन गया हूँ तो अंपायर का रोल भी खुद ही निभा देता हूँ.....वैसे भी क्रिकेट चलाने के लिए मैं ही अध्यक्ष बना रहता हूँ. मैं ही सेलेक्टर भी बन जाता हूँ. मैं ही...इसलिए यहाँ भी मैं ही अंपायर भी बन जाता हूँ... ये लीजिये. मैंने हाथ नीचे किये. अब आप पहला सवाल फेंक सकते हैं.

पत्रकार: जसवंत सिंह? ये वही जिन्हें पार्टी से...

मंत्री जी: सॉरी सॉरी. जसदेव सिंह की जगह मेरे मुंह से जसवंत सिंह निकल गया. कोई बात नहीं. आप सवाल फेंकिये.

पत्रकार: सबसे पहले मेरा सवाल यह है कि आप कृषि मंत्री भी हैं और इस देश की क्रिकेट भी चलाते हैं. क्या आप दोनों काम एक साथ कर पाते हैं?

मंत्री जी: जी हाँ. बिलकुल कर पाता हूँ.... वैसे भी क्रिकेट में पॉलिटिक्स है और पॉलिटिक्स में क्रिकेट..कृषि मंत्रालय में भी पॉलिटिक्स है...जब सब जगह पॉलिटिक्स ही है तो फिर और क्या चाहिए? डबल रोल करने से समय का बेहतर तरीके से मैनेजमेंट होता है...

पत्रकार: वह कैसे? अपनी बात पर प्रकाश डालेंगे?

मंत्री जी: अब देखिये. अगर मैं क्रिकेट देखने दक्षिण अफ्रीका जाऊंगा तो साथ-साथ वहां की कृषि के बारे में भी जानकारी हो जायेगी...... मान लीजिये मैं श्रीलंका में कोई टूर्नामेंट देखने गया. अब हो सकता है वहां यह देखने को मिले कि श्रीलंका वालों ने समुद्र के पानी से खेती करने के लिए कोई नया कैनाल प्रोजेक्ट कर लिया हो. ऐसे में श्रीलंका जाना तो हमारे मंत्रालय के लिए लाभकारी तो साबित होगा ही न?

पत्रकार: जी हाँ. आपकी बात से सहमत हुआ जा सकता है.

मंत्री जी: सहमत हुआ जा सकता है से क्या मतलब है आपका? आपको कहना चाहिए कि आप मेरी बात से सहमत हैं.

पत्रकार: ठीक है. वही समझ लीजिये.

मंत्री जी: हाँ, ये ठीक है. अब आगे का सवाल पूछिए.

पत्रकार: मेरा सवाल यह है कि आप कृषि और क्रिकेट, दोनों को चला सकते हैं इसके बारे में आपने प्रधानमंत्री को कैसे कन्विंस किया?

मंत्री जी: फोटो खिंचवा कर.... आप मेरा यह वाला फोटो देखिये. देख लिया? अब आप बताइए, पगड़ी पहनकर मैं मिट्टी से जुडा हुआ किसान लग रहा हूँ कि नहीं? ये वाला फोटो देख लिया?... अब आप मेरा ये वाला फोटो देखिये. इस फोटो को देखने से क्या आपको नहीं लगता कि मैं आई सी सी का भावी अध्यक्ष लग रहा हूँ?

पत्रकार: जी हाँ. मैं आप की बात से सहमत हूँ. बल्कि इस फोटो में आप आईसीसी के भावी नहीं बल्कि प्रभावी अध्यक्ष लग रहे हैं.

मंत्री जी: है न. कन्विंस करना कितना इजी है, आपको समझ में आ ही गया होगा.

पत्रकार: जी हाँ, समझ में आ गया.... अब मेरा सवाल यह है कि इस वर्ष पहले चरण में मानसून पूरे बासठ प्रतिशत कम रहा. मानसून की इस कमी से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निबटने के लिए आपके मंत्रालय ने क्या किया है?

मंत्री जी: देखिये, अभी तक तो कुछ नहीं किया. और कुछ नहीं करने के पीछे एक कारण है. हम कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करते. आपको ज्ञात हो कि जब से मैंने देश की क्रिकेट को चलाना शुरू किया है तब से अगर कोई बैट्समैन अपने पहले टेस्ट में असफल रहे तो हम उसे और मौका देते हैं. हम उसे तुंरत टीम से नहीं निकालते. इसी तरह से हम मानसून को और मौका दे रहे हैं.... अब हम दूसरे चरण के मानसून का परफॉर्मेंस देखेंगे. अगर वह दूसरे चरण में भी कम रहा फिर हम स्थिति से निबटने पर सोचेंगे. क्रिकेट चलाने की वजह से हमने बहुत कुछ नया सीखा है जिसे हम मंत्रालय में भी लागू कर रहे हैं.

पत्रकार: हाँ, वह तो दिखाई दे रहा है. अच्छा यह बताइए कि इतने वर्षों से आपकी पार्टी देश पर शासन कर रही है लेकिन किसानों के लिए आधारभूत योजनायें क्यों नहीं लागू की जा सकी?

मंत्री जी: देखिये, जहाँ तक मेरी पार्टी द्बारा देश पर शासन करने की बात है तो आपको मालूम होना चाहिए कि मेरी पार्टी तो एक रीजनल पार्टी है. मेरी पार्टी ने देश पर शासन नहीं किया है. आपको इतनी छोटी सी बात का पता नहीं है? किसने आपको पत्रकार बना दिया?

पत्रकार: नहीं...., वो तो मैं डिग्री लेकर पत्रकार बना हूँ. लेकिन एक बात तो सच है न कि आप पहले कांग्रेस पार्टी में थे तो यह कहा ही जा सकता है कि आपकी पार्टी ने वर्षों से देश पर शासन किया है.

मंत्री जी: अच्छा अच्छा. आप उस रस्ते से आ रहे हैं. तब ठीक है. आगे का सवाल पूछिए.

पत्रकार: सवाल तो मैंने पूछ ही लिया है. आधारभूत योजनायें...

मंत्री जी: यह कहना गलत है. वैसे भी जब लोन-माफी से काम चल जाए तो फिर आधारभूत योजनाओं की क्या ज़रुरत है? ....अभी हाल में ही हमारी सरकार ने किसानों द्बारा लिया गया सत्तर हज़ार करोड़ रूपये का क़र्ज़ माफ़ किया है....आपको पता है कि कर्ज माफी का यह आईडिया भी मुझे एक क्रिकेट मैच के दौरान मिला?

पत्रकार: कैसा आईडिया? आप प्रकाश डालेंगे?

मंत्री जी: वो हुआ ऐसा कि मैं नागपुर में एक क्रिकेट मैच देख रहा था. क्रिकेट मैच देखने के लिए स्टेडियम में पहुँचने से पहले मैंने विदर्भ के किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात की थी. मैच देखते हुए मैंने देखा कि बैट्समैन ने शाट मारा और उसे कवर का फील्डर नहीं रोक सका. संयोग देखिये कि सजी हुई फील्ड में एक्स्ट्रा-कवर था ही नहीं. नतीजा यह हुआ कि बाल बाउंड्री लाइन से बाहर चली गई. चौका हो गया....यह देखते हुए मुझे लगा कि अगर किसानों को एक एक्स्ट्रा-कवर दिया जाय...मेरा मतलब अगर लोन-माफी का एक्स्ट्रा-कवर उन्हें मिल जाए तो फिर...

पत्रकार: समझ गया-समझ गया. सचमुच आप क्रिकेट की वजह से बहुत कुछ सीख गए हैं...लेकिन कुछ आधारभूत योजनायें नहीं बनीं. डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन का कहना है कि...

मंत्री जी: मैं भी समझ गया कि आप क्या कहना चाहते हैं. आप डॉक्टर स्वामीनाथन के हवाले से यही कहना चाहते हैं न कि उनके सुझाव पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया?

पत्रकार: हाँ. मेरा मतलब यही है.

मंत्री जी: देखिये डॉक्टर स्वामीनाथन हरित क्रान्ति ले आये वह एक अलग बात है. लेकिन उनके सुझाव बहुत लॉन्ग टर्म प्लानिंग की बात लिए हुए हैं और यहाँ हमें चाहिए तुंरत समाधान वाले सुझाव. ऐसे में कर्ज-माफी से बेहतर और क्या हो सकता है? डॉक्टर स्वामीनाथन को यह समझने की ज़रुरत है कि अब ज़माना ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट का है. टेस्ट मैच देखकर पब्लिक बोर हो जाती है. हमें तुंरत रिजल्ट चाहिए.

पत्रकार: लेकिन डॉक्टर स्वामीनाथन की बात में प्वाइंट तो है ही.

मंत्री जी: कोई प्वाइंट नहीं है. आप जिसे प्वाइंट कह रहे हैं, वे सारे सिली प्वाइंट हैं.

पत्रकार: आपके कहने का मतलब लॉन्ग टर्म योजनायें नहीं लागू की जा सकती? यहाँ भी वही क्रिकेट?

मंत्री जी: जी बिल्कुल. अब बिना क्रिकेट के इस देश में कुछ चलता है क्या? वैसे भी डॉक्टर स्वामीनाथन की उम्र हो गई है अब....आप खुद ही सोचिये न. सचिन तेंदुलकर इतने बड़े खिलाड़ी हैं लेकिन क्या वे पचपन साल की उम्र में भी क्रिकेट खेल सकते हैं?...मानते हैं न कि नहीं खेल सकते...बस वैसा ही कुछ डॉक्टर स्वामीनाथन के साथ भी है...अब कृषि-विज्ञान के क्षेत्र में हम यंग टैलेंट लाना चाहते हैं...आप जानते हैं कि यंग टैलेंट लाने का आईडिया मुझे ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट की वजह से मिला?...मैं आपको बताता हूँ कि क्रिकेट की वजह से हमारे मंत्रालय में बहुत कुछ बदल दिया है मैंने.

वैसे, ये आप बार-बार लॉन्ग टर्म, लॉन्ग टर्म की रट क्यों लगा रहे हैं? लॉन्ग टर्म सुनने से मुझे लॉन्ग लेग, लॉन्ग ऑन, लॉन्ग ऑफ वगैरह की याद आती है.

पत्रकार: हाँ, वह तो है. वैसे एक सवाल का जवाब दीजिये. अगर मानसून दूसरे चरण में भी ढीला रहा तो आपका प्लान क्या रहेगा?

मंत्री जी: उसके लिए मैंने सेलेक्टर नियुक्त कर दिए हैं.

पत्रकार: सेलेक्टर नियुक्त कर दिया है आपने? क्या मतलब?

मंत्री जी: माफ़ कीजिये, आप पत्रकार तो हैं लेकिन आपका दिमाग नहीं चलता. केवल कलम चलाने से कोई पत्रकार नहीं हो जाता....सेलेक्टर नियुक्त करने से मेरा मतलब यह है कि मैंने अपने मंत्रालय के अफसरों को सेलेक्टर बना दिया है. वे देश के जिलों का सेलेक्शन करके एक लिस्ट देंगे. फिर मैं एक प्रेस कांफ्रेंस में उन जिलों को सूखा-ग्रस्त घोषित कर दूंगा...आपने बीसीसीआई के सचिव द्बारा टीम सेलेक्शन की सूचना वाला प्रेस कांफ्रेंस अटेंड किया है कभी?

पत्रकार: नहीं. मैं तो कृषि मामलों का पत्रकार हूँ. मैं केवल कृषि मामलों पर रिपोर्टिंग करता हूँ.

मंत्री जी: इसीलिए तो आपके अखबार का सर्कुलेशन ख़तम है...अपने एडिटर से कहें कि वे आपको क्रिकेट मामलों को कवर करने का भी मौका दें....आप देखेंगे कि आपकी एफिसिएंसी बढ़ जायेगी...जैसे मेरी बढ़ गई है...अखबार का सर्कुलेशन भी बढ़ जाएगा. क्रिकेट की वजह से एफिसिएंसी बढ़ जाती है.

पत्रकार: जी. मैं सम्पादक महोदय से आपके सुझाव के बारे में बात करूंगा. वैसे एक प्रश्न मेरा यह है कि अगर कम मानसून की वजह से देश में अनाज की कमी हुई तो क्या आप इसबार भी आस्ट्रेलिया से गेंहू का आयात करेंगे?

मंत्री जी: गेंहूँ का आयात करने के लिए देश में अनाज की कमी का होना ज़रूरी नहीं है.गेंहूँ का आयात तो हमने तब भी किया था जब अनाज की कमी नहीं थी...हाँ इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि इस बार भी आस्ट्रेलिया से ही गेंहूँ का आयात करूंगा.

पत्रकार: ऐसा क्यों? मेरा मतलब क्या ऐसा आप इसलिए करेंगे क्योंकि पिछली बार आस्ट्रलिया वालों ने सडा गेंहूँ भेज दिया था?

मंत्री जी: नहीं वो बात नहीं है....मैं ऐसा इसलिए करूंगा कि एक बार फोटो खिचाने के चक्कर में आस्ट्रलियाई खिलाड़ियों ने मुझे मंच पर धक्का दे दिया था...इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे बीसीसीआई के पदाधिकारियों ने मुझे सजेस्ट किया कि आस्ट्रलिया से बदला लेने का यही तरीका है कि आप कृषि मंत्री के रोल में उनसे गेंहूँ मत मंगवाईये.

पत्रकार: वैसे आपको नहीं लगता कि गेंहू का आयात करके तबतक कोई फायदा नहीं होगा जब तक आप सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मेरा मतलब पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम को ठीक नहीं करेंगे. वैसे क्या कारण है कि पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा?

मंत्री जी: असल में पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम थर्ड मैन के होने की वजह से काम नहीं कर रहा.

पत्रकार: लेकिन अगर सिस्टम में थर्ड मैन हैं तो उन्हें हटाने की जिम्मेदारी भी तो आपकी ही है.

मंत्री जी: अब देखा जाय तो थर्ड मैन भी तो ज़रूरी होते हैं. पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन से थर्ड मैन हटाने के बारे में मैंने बैठक की थी लेकिन सलाहकारों का विचार था कि थर्ड मैन का रहना दोनों के लिए ज़रूरी है. क्रिकेट में भी और पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम में भी. हमने सुझाव मानते हुए थर्ड मैन नहीं हटाये...देखा आपने? डबल रोल कितने काम की चीज है?

पत्रकार: जी हाँ. वो तो मैं देख रहा हूँ. अच्छा मेरा एक और सवाल यह है कि इस बार सरकार ने किसानों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस की घोषणा फसल होने से पहले ही कर दी. ऐसा पहले तो नहीं हुआ था. तो इसबार ऐसा करने का कारण क्या इलेक्शन था?

मंत्री जी: जी नहीं. मिनिमम सपोर्ट प्राइस पहले ही घोषणा करने का आईडिया मुझे क्रिकेट चलाने की वजह से ही मिला......आपके मन में सवाल ज़रूर उभर रहा होगा...उसका जवाब यह है कि क्रिकेट खिलाड़ियों को जब से कान्ट्रेक्ट सिस्टम के तहत पेमेंट होना शुरू हुआ है तब से फीस की घोषणा कान्ट्रेक्ट साइन करने से पहले ही हो जाती है...मिनिमम सपोर्ट प्राइस का आईडिया मुझे वहीँ से मिला...देखा आपने कि क्रिकेट...

पत्रकार: हाँ देखा मैंने कि क्रिकेट चलाने की वजह से आप एक अच्छे कृषि मंत्री बन पाए. वैसे मेरा एक आखिरी सवाल है. आये दिन क्रिकेट खिलाड़ी आपके कहने पर तमाम लोगों के सहायतार्थ मैच खेलते रहते हैं. ऐसे में आपने कभी किसानों की सहायता के लिए क्यों नहीं मैच आयोजित किये?

मंत्री जी: अरे वाह. आप एक कृषि पत्रकार होते हुए भी इतना दिमाग रखते हैं. हमने तो सोचा था कि....चलिए आपके सुझाव को मैं याद रखूँगा और आज ही अपने मंत्रालय के अफसरों की एक मीटिंग बुलाकर इस मसले पर विचार करूंगा.

पत्रकार: लेकिन इस बात पर विचार करने के लिए तो आपको बीसीसीआई की मीटिंग बुलानी चाहिए.

मंत्री जी: वही तो बात है न. मेरे लिए दोनों एक सामान हैं. मैं मंत्रालय वालों से क्रिकेट डिस्कस कर सकता हूँ और क्रिकेट वालों से कृषि...आप नहीं समझेंगे...आप समझते तो क्रिकेट के पत्रकार नहीं बन जाते...खैर, अब मेरे पास और सवाल के लिए वक्त नहीं है...मुझे क्रिकेट असोसिएशन की मीटिंग में जाना है...

Tuesday, July 13, 2010

फ़ुटबाल विश्वकप...विजेता स्पेन...टीवी पैनल डिस्कशन

फ़ुटबाल विश्वकप ख़त्म हो गया. ऐसा ही होता है. इतिहास गवाह है कि जो टूर्नामेंट शुरू होते हैं वे ख़त्म भी हो जाते हैं. ऐसा सदियों से होता आया है और अगर २०१२ में दुनियाँ ख़त्म नहीं हुई तो आशा है कि आगे भी होता रहेगा. यही शास्वत नियम है और चूंकि दुनियाँ नियमों की बड़ी पाबन्द है इसलिए नियम पालन का यह सांस्कृतिक कर्म आगे भी होता रहेगा. वैसे भी बात फ़ुटबाल विश्वकप की हो रही है, एकता कपूर के सीरियल्स की नहीं जो भारतीय अदालतों में चल रहे न जाने कितने मुकदमों की तरह कभी ख़त्म ही नहीं होते.

वैसे अगर ध्यान दें तो हम पायेंगे कि केवल फ़ुटबाल का विश्वकप ही एक मात्र विश्वकप है जिसके मामले में हम भारतीय बड़े भाग्यशाली हैं. हम भारतीयों को वरदान मिला हुआ है कि हम आखीर तक इसे देख पायेंगे और फुटबालीय संस्कृति पालन के अपने भ्रम की रक्षा करेंगे. क्रिकेट विश्वकप की तरह नहीं कि पहले ही राऊंड में बांग्लादेश से हार गए तो छाती पीटकर खुद को अलग कर लिया. अलग भी ऐसे-वैसे नहीं. दो दिन तक सब्जी बाज़ार में जो भी मिलता है उसके सामने ऐसी मुखमुद्रा रहती है जिसे देखकर दुःख भी दुखी हो जाए.

लेकिन इस विश्वकप के मामले में ऐसा कोई लोचा नहीं है. हमें यह चिंता करने की ज़रुरत नहीं रहती कि हमारी टीम विश्व कप से बाहर हो जायेगी तो हम क्या करेंगे? ऐसे कठिन समय में हमें कितना दुखी दिखना पड़ेगा? या फिर टीवी चैनल किसे विलेन करार देंगे? फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ (एन डी टीवी इंडिया से चुराया गया विशेषण) में टीमों के मामले में हमसे धनी कोई नहीं रहता.

लगता है जैसे हमारे पास टीमों का गुच्छा है और हम रह-रह कर ज़रुरत के मुताबिक़ उस गुच्छे से एक-एक टीम तोड़ते जाते हैं और उसे अपना समर्थन दे डालते हैं. जैसे सबसे पहले हम अपना समर्थन बिना किसी शर्त के लैटिन अमेरिकी टीमों को दे देते हैं. फुटबालीय इतिहास और भौगोलिक सीमाओं की वजह से हमारा समर्थन ऑटोमैटिकली ब्राजील और अर्जेंटीना को पहुँच जाता है. हमारा शहर यानि कोलकाता तो इन दो देशों के झंडे ओढ़कर धन्य हो लेता है.

अब अगर कोई हमसे हमारे इस बिना शर्त वाले समर्थन का कारण पूछता है तो हम सबसे पहले उसे इस भाव से देखते हैं जैसे उसने दुनियाँ का सबसे बेवकूफ सवाल पूछ लिया हो. उसके बाद उसे बताते हैं; "तुझे इतना भी नहीं मालूम? अरे पगले लैटिन अमेरिकी टीमें ही असली फ़ुटबाल खेलती हैं. असली माने कलात्मक फ़ुटबाल."

दार्शनिक भाव से लैस होकर दिया गया हमारा यह स्टेटमेंट पूरी दुनियाँ के ऊपर हमारी धाक जमा देता है. लगता है जैसे हम आधी से ज्यादा दुनियाँ से कह रहे हैं कि; "बेवकूफों तुम्हें फ़ुटबाल की जरा भी समझ होती तो तुम यूरोपीय टीमों को समर्थन न दे रहे होते. हमें देखो और कुछ सीखो. फुटबालीय कला की असली समझ हमें है इसीलिए हम लैटिन अमेरिकी टीमों के कलात्मक फ़ुटबाल को समर्थन देते हैं."

वैसे कई बार मेरे मन में यह बात आई है कि अगर कोई हमसे पूछ ले कि; "प्रभु, कलात्मक फ़ुटबाल क्या होता है?" तो सोचिये तब क्या होगा? कस्सम से कह रहा हूँ अगर कोई यह प्रश्न दाग दे तो हमारी सिट्टी-पिट्टी सामूहिक तौर पे गुम हो जायेगी.

खैर, लैटिन अमेरिकी टीमों को बिना शर्त दिया गया हमारा यह समर्थन हम तब वापस खींच लेते हैं जब ये टीमें टूर्नामेंट से बाहर निकल लेती हैं. उसके बाद हम टीम खोजते हैं. चूंकि अंग्रेजों ने हमारे ऊपर राज किया है इसलिए हम इतिहास की इज्जत करते हुए उनके दुश्मन देश यानि जर्मनी को समर्थन देते हैं. चाहें तो इटली को भी दे सकते हैं. हाँ, फ्रांस को नहीं देते क्योंकि वहाँ के लोग बड़े साम्राज्यवादी टाइप होते हैं. वैसे अगर कोई अफ्रीकी टीम तब तक करतब दिखाती रहती है तो हम उन्हें समर्थन दे लेते हैं. अफ्रीकी टीमों के खिलाड़ियों का काला होना उन्हें हमारे समर्थन के लायक बनाता है.

ऐसा करके हम अपनी महान संस्कृति की रक्षा करते हुए खेल को राजनीति और नस्लवाद से दूर कर देते हैं.

टीमों को समर्थन देने की हमारी यह फिलास्फी हमें फ़ुटबाल विश्वकप से चिपका देती है. टीमें खेलती हैं. हारती हैं. जीतती हैं. कोई भी टीम जीते या हारे हम भारतीयों के पटाखे फूटेंगे ही फूटेंगे. हमारे पटाखे कभी खाली नहीं जाते. हम हार-जीत से ऊपर उठकर अपनी खेल संस्कृति की रक्षा ऐसे ही करते हैं.

स्पेन ने विश्वकप जीत लिया. हम खुश हो लिए. हालेंड जीत जाता तो भी खुश हो लेते. हमारे जर्नलिस्ट से लेकर नेता तक, सभी खुश हैं. जनता की ख़ुशी का तो ठिकाना नहीं है. उसकी ख़ुशी चारों दिशाओं में गूँज रही है. हम फ़ुटबाल के खेल को अलग नज़र से देखते हैं.

एक नमूना देखिये;

सीएनएन आईबीएन पर राजदीप सरदेसाई स्पेन की जीत के बाद पैनल डिस्कशन कर रहे हैं. बड़े मजेदार लोग आये हैं इस डिस्कशन में. राजदीप सरदेसाई अपनी खोज से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्पेन की जीत का कारण उस देश की टीम का पूरी तरह से सेकुलर होना है.

वे सोहेल सेठ से पूछ रहे हैं; "सो, यू आल्सो बीलीव सोहेल सेठ दैट मेन रीजन बिहाइंड स्पेन्स सक्सेस इज द फैक्ट दैट होल टीम इज सेकुलर? आई मीन लुकिंग ऐट द टीम वन कैन से दैट स्पेन इज अ टीम ऑफ़ अमर अकबर एंथनी?"

उनका सवाल सुनकर सोहेल सेठ बोले; "लुक राजदीप, आई केयर अ डैम ह्वेदर टीम इज सेकुलर आर नॉट. फॉर मी, सक्सेस इज इम्पोर्टेंट. आई मीन ह्वाट हैव वी अचीव्ड इन अ गेम लाइक फ़ुटबाल इन लास्ट फिफ्टी ईयर्स? पालीटीसीयंस आर ऐट द हेम फॉर डिकेड्स एंड ऐज आई आलवेज से, पालीटीसीयंस आर स्काऊंड्रल्स आल ओवर द वर्ल्ड. दैट इज प्रीसाइजली द रीजन व्हाई....."

"ओके ओके. लेट मी ब्रिंग ममता दी इन द डिस्कशन. सो, ममता दी, फ़ुटबाल इज अ पैशन इन योर स्टेट ऐंड यू अस्पायर टू बिकम चीफ मिनिस्टर ऑफ़ बेंगोल. टेल मी, कैन यू डू समथिंग टू पुट थिंग्स इन आर्डर? आई मीन डू यू हैव एनी प्लान?"; राजदीप सरदेसाई ने ममता बनर्जी से पूछा.

वे बोलीं; "लेट मी टेल इयु राजदीप दैट टू प्रोमोट फूटबाल इन आभर इस्टेट, रेल मिनिस्टरी हैज आलरेडी इसुड फास्ट क्लास पासेज फार लाइफ टाइम टू होल इस्पेनिश टीम. दीस थाटी ईयार्स रूल आफ लेफ्ट फ्रोंट हैज डोन नाथिंग फार फुटबोल. आई हैभ इभेन इन्भाइटेड आल इस्पेन टीम ऐट दा ओकेझान आफ ईनागारेशान आफ झोलाखाली रेल्भे इस्टेशान ईन साउथ टूवेंटीफोर परगोना. उई आर आल्सो प्रोपोजिंग नेम आफ देयार कैप्टान ऑन द कैटरिंग बोर्ड ऑफ दी रेल्भे."

"ओके ओके. आई टेक योर वर्ड्स. बट लेट मी आस्क लालू जी. लालू जी, ऐज अ रेलवे मिनिस्टर ममता दी इज गोइंग टू डू सो मच फॉर फ़ुटबाल. यू वेयर आल्सो रेलवे मिनिस्टर. डिड यू एवर थिंक ऑफ डूइंग समथिंग फॉर फ़ुटबाल?"; राजदीप सरदेसाई इस बार लालू जी से मुखातिब थे.

"नै नै..फस्ट आई टेल यू...अरे लिसेन टू मी..देखिये..इंडिया इज ए नेशन ऑफ भिलेज. इन भिलेज कबड्डी इज द मेन खेला..... ई फ़ुटबाल बाहर का खेला है. आ ममता दी को गाँव का खबर है कुछ? अपना 'संस्कृत' में कबड्डी है. ऊंची कूद है. आज जरूरत है ई सब खेला का जो है, प्रमोशन हो. फ़ुटबाल में पैसा बर्बाद होगा खाली और कुछ नहीं"; लालू जी ने अपना स्टैंड ले लिया.

उनकी बात सुनकर राजदीप सरदेसाई बोले; "लेकिन लालू जी, आप एक बात बताइए. बिहार में इलेक्शन नज़दीक है. आप स्पेन के खिलाड़ी से कैपेनिंग करवाएंगे?"

वे बोले; "अभी जो है, आप ने बताया कि स्पेन का पूरा टीम सेकुलर है. त हम ज़रूर लायेंगे उनको चुनाव प्रचार के लिए. देश में सेकुलरवाद फैले, आज का ज़रुरत है. नीतीश के खिलाफ हम सेकुलर मोर्चा खोल दिए हैं. ज़रूर लायेंगे स्पेन का खिलाड़ी. काहे नै लायेंगे?"

"तो लालू जी, कौन से खिलाड़ी को लाना चाहते हैं आप?"; राजदीप ने फिर सवाल किया.

"ओइसे त बहुत खिलाड़ी है बाकी हम उसको...ऊ का नाम है उसका...एक मिनट..हाँ, ऊ डेभिड भिल्ला को लायेंगे चुनाव प्रचार के लिए"; लालू जी ने अपनी पसंद राजदीप को बता दी.

वे बोले; "हा हा हा..लालू जी उनका नाम डेभिड भिल्ला नहीं डेविड विया है. डेविड विया."

यह बात सुनकर लालू जी चकित. बोले; "का बात करते हैं? ई कैसा नाम है? अरे दू ठू एल है भाई और उसको ई लोग भिया बोलता है? ई कैसा अंग्रेजी है इस्पेन का?"

उधर एक पैनल डिस्कशन टाइम्स नाऊ पर ख़त्म होने वाला है. जाते-जाते अरनब गोस्वामी फुटबाल फेडरेशन के पटेल साहब पर चढ़ गए हैं; "बट बट बट... मिस्टर पटेल...मिस्टर पटेल..प्रोमिज अस टूनाइट ऑन दिस चैनल टू आवर व्यूअर्स दैट इफ नॉट इन टू थाऊजेंड फोर्टीन ऐटलीस्ट इन टू थाऊजेंड एटीन इंडिया इज गोइंग टू विन द फीफा वर्ल्ड कप. प्रोमिज अस..."

उधर पटेल साहब अकबकाये से कह रहे हैं; "लुक अरनब...अरनब..फर्स्ट लिसेन टू मी...यस यस...दैट इज प्रिसैजली ह्वाट आई वाज टेलिंग ऊ... सी, फोर इयर्स बैक वी वेयर ऐट वन हंड्रेड फोर्टीन इन फीफा रैंकिंग...नाऊ वी आर ऐट वन थर्टीफोर..इट्स नॉट दैट वी आर नाट इम्प्रूविंग...वी आर कांसटेंटली इम्प्रूविंग...बट यू विल हैव टू गिव अस सम मोर टाइम टू...."

एक डिस्कशन सबसे तेज चैनल पर चल रहा है. यह डिस्कशन नहीं सीधी बात है जो प्रभु चावला बाबा रामदेव के साथ कर रहे हैं. चकित न होवें. बाबा रामदेव फ़ुटबाल तो क्या स्नूकर पर भी बोल सकते है. तो सीधी बात में चावला जी उनसे कह रहे हैं; "हे हे हे..आप तो अब चुनाव भी लड़ने वाले हैं. ये बताइए कि देश की फ़ुटबाल टीम विश्वकप जीते उसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?"

बाबा रामदेव बोले; " हे.. हे..कलयुग में फ़ुटबाल विश्वकप जीतने का एकमात्र उपाय योग ही है...ओ कुछ नहीं करना है बस सांस लेना और छोड़ना है....सुबह पाँच बजे उठिए..गहरी लम्बी सांस लीजिये...एक बार योग की आदत पड़ जायेगी तो सबकुछ हो जाएगा....हम तो जीवन देते हैं... साथ में योग के सहारे अब फ़ुटबाल विश्वकप भी दे सकते हैं...कुछ नहीं करना है बस सांस लेना और छोड़ना है..."

एनडीटीवी इंडिया पर रवीश कुमार स्पेन की विश्वकप विजय पर कह रहे हैं; "...और शायद स्पेन में दलित समाज को पहले ही सामाजिक बदलाव का उत्प्रेरक मान लिया गया था. स्पेन की पूरी टीम में अगर एक भी दलित खिलाड़ी नहीं है तो उसका कारण यह नहीं कि वहाँ दलितों को उनकी जगह नहीं दी जाती बल्कि उसका कारण यह है कि सैकड़ों साल पहले ही स्पेन के उच्च समाज ने दलित समाज को अपने अन्दर समाहित कर लिया....."

एक कार्यक्रम इंडिया टीवी पर भी चल रहा है. एंकर अपने संवाददाता से पूछ रहा है;"उमेश क्या कह रहे हैं माद्रिद के लोग? क्या वे भी ऐसा मानते हैं कि डेविड विला को पाताल भैरवी से आशीर्वाद मिला है कि वे दुनियाँ के सबसे बड़े फुटबालर बनेगे?......जी हाँ, आज हम पहली बार बता रहे हैं कि कैसे स्पेन के खिलाड़ी डेविड विला ने हिमालय की गुफाओं में पूरे एक साल तक तपस्या करके पाताल भैरवी का आशीर्वाद प्राप्त किया..आज हम मिला रहे हैं आपको उस पाताल भैरवी से जिसने स्पेन के फुटबालर डेविड विला को सबसे बड़ा फुटबालर होने का आशीर्वाद दिया है...जी हाँ हिमालय की गुफाओं में वास करने वाली पाताल भैरवी..जी हाँ, आपको यह जानकार आश्चर्य होगा...."

इंडिया टीवी वालों को अभी भी लगता है कि उनके प्रोग्राम देखने वालों को आश्चर्य भी होता है.

खैर, जो भी हो, यह सब के बावजूद हमें भरोसा है कि भारत एक दिन फ़ुटबाल विश्वकप में....

Tuesday, July 6, 2010

फिल्म रावण से परेशान इन्द्र की अप्सराएँ

मणि सर, कैमरा से एक्टिंग करवा के कितने दिन फिल्म बनायेंगे?
एक मल्टीप्लेक्स में नाइट शो देखकर देवराज इन्द्र की अप्सराएं आकाशमार्ग से जा रही हैं. देखने से लग रहा है जैसे कुछ दुखी हैं. ये जब पिछले साल आई थीं तो अर्थव्यवस्था की मंदी को लेकर चिंतित थीं. आइये सुनते हैं इसबार ये क्या कह रही हैं?

सहजन्या

देवराज को विदित है हमसब धरती पर आई थी
फिल्म देखने की उत्कंठा दस दिन से छाई थी
किन्तु उन्हें क्या पता कि कैसा धोखा खाया हमने
मुद्रा और समय का अपव्यय कर क्या पाया हमने?

अगर सुनेंगे वे क्या सोचेंगे, हमको यह भय है

चित्रलेखा

खूब हँसेंगे हमपर वे यह बात अभी से तय है

हम तो उनसे कह देंगे नारद ने हमें ठगा है
कैसे उनकी राय पर चलकर धक्का हमें लगा है
मर्त्यलोक से पिछले हफ्ते ही लौटे थे जब वे
और मिले थे देवराज के महल में हमसब से वे
हमने जब उनसे अपने मन की ये बात बताई
हमें देखनी थी इक मूवी उत्कंठा जतलाई
उन्होंने ही रावण को रेकमेंड किया था हमको
महीलोक में क्या हिट है ये ट्रेंड दिया था हमको

हम तो सोच नहीं सकते कि वे असत्य बोलेंगे

रम्भा

और मुझे यह संशय था वे भेद नहीं खोलेंगे

मूर्ख बनाया देवर्षि ने हमसब को बातों से
हँसी-हँसी में खेल गए वे मन के जज्बातों से
मैं कहती हूँ हमसब मिलकर देवर्षि से बोलें
जो नुक्सान हुआ है हमको पूरा उनसे ले लें

सहजन्या

अरी तुझे क्या सचमुच लगता देवर्षि दे देंगे?
वे ऐसे हैं बात-बात में हमसे ही ले लेंगे
जो कुछ हुआ उसे हम भूलें इतना भी रोना क्या?
थोड़ा समय और कुछ मुद्रा गई और खोना क्या?

रम्भा

इसी बहाने देवर्षि को हम सब जान चुकी हैं
इसी बहाने उनको बढ़िया से पहचान चुकी हैं

आगे से यह ध्यान रहे कि फिल्म देखनी हो जब

सहजन्या

रिव्यू पढ़ेंगी और फैसला मिलकर लेंगी हमसब

रम्भा

अरी कहाँ तू भी सहजन्ये बातें करे रिव्यू की
क्रिटिक खेलते राजनीति फिल्मों पर अपने व्यू की
सुना नहीं क्या तुमने निर्देशक बस ऐसे-वैसे
रिव्यू लिखा लेते लोगों से मन-माफिक दे पैसे

पैसे लेकर क्रिटिक खेलते जनता से यह खेला

चित्रलेखा

उनकी कारस्तानी ही तो सबसे बड़ा झमेला

अगर सुनो मेरी बातें तो मैं भी अब कुछ बोलूँ
अपनी ज्ञान-तिजोरी का ढकना थोड़ा सा खोलूँ
हमें याद है सम्मलेन, जब फिल्मकार आये थे
और साथ में अपने अनुभव की गठरी लाये थे
तुझे याद है बिमल राय ने मान दिया था हमको
कैसी फिल्में हम देखें ये ज्ञान दिया था हमको
अगर कहानी बढ़िया हो इक फिल्म तभी बनती है
नहीं अगर यह संभव तो फिर पब्लिक सिर धुनती है
मगर यहाँ यह संभव है क्या जब निर्देशक सारे
एक कहानी के पीछे फिरते हैं मारे-मारे
अभी तलक वे रामायण और रावण पर अटके हैं
उन्हें देखकर यही लगा करता है सब सटके हैं

रम्भा

सही कहा यह बात हमें भी अन्तः तक खलती है
मायानगरी उन्ही पुरानी ढर्रों पर चलती है
रावण कहीं है, कहीं राम हैं और कहीं दुर्योधन
बार-बार इनको ही देखे भारत के सारे जन
फिल्मकार को लगता है कैमरा-वर्क बस करके
और साथ में सॉंग-डांस कुछ उल्टा-पुल्टा भर के
उनके लिए गिरेगी कोई बढ़िया फिल्म गगन से
नहीं पता जनता धिक्कारे उनको अन्तःमन से
इसी फिल्म में ऐसा क्या है जिसके पैसे देकर
जनगण देखे और निकलता पीड़ा सिर में लेकर
ऊपर से वह शीलन वाला पॉपकॉर्न का ठोंगा
पचहत्तर रूपये देकर ले मूरख ही वह होगा

चित्रलेखा

सही कहा तूने रम्भे सिरदर्द बहुत होता है
हम इतनी कोमल हैं कि मन अन्दर तक रोता है
चलकर सीधे वैद्यराज से औषधि कोई लेकर
और साथ में दासी को आदेश वगैरह देकर
हम सोयेंगी रात्रि पहर तक पीड़ा तब जायेगी

रम्भा

उसके पहले देवराज की चिट्ठी आ जाएगी


ये बातें हो रही थीं कि अचानक एक जगह उन्हें एक शिविर और उसके आस-पास हलचल दिखाई देती है.

सहजन्या

मही सजी है, लोग व्यस्त हैं कैसा कोलाहल है?
सुबह से पहले जगे हुए सब लोगों में हलचल है
मंच सजा है, भजन गान भी कर्ण सुन रहे मेरे
पता नहीं यह कौन साधु कीर्तन कर रहा सबेरे?

रम्भा

साधु नहीं ये योग-गुरु हैं बैठे शिविर लगाए
श्वांस कर रहे अन्दर बाहर लोगों को भरमाये
कभी-कभी ये भजन गान कर के ही सुख पाते हैं
बड़ा नाम है इनका सब इनके पीछे आते हैं
वैसे तो हैं हरिद्वार में इनका कोई आश्रम
पर फैले साम्राज्य और करते इसलिए परिश्रम

सहजन्या

अरी तुझे तो मालूम है सब, कैसे यह सब जाना?

रम्भा

फैले इनके शिष्य मही पर ऐसा ताना-बाना

वैसे भी जब रावण सी फिल्में बनती जायेंगी
योग गुरु की धरती पर चादर तनती जायेगी
रावण देख देख कर मुद्रा का अपव्यय करके ही
.........................................
.........................................

Friday, July 2, 2010

ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की नई ब्लॉग-वसीयत

अप्रैल २००८ में अपने हलकान भाई, यानि ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' ने अपनी ब्लॉग-वसीयत लिखी थी. मैंने उसे अपने ब्लॉग पर पब्लिश भी किया था. चूंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी हिंदी ब्लॉगर ने अपनी ब्लॉग-वसीयत लिखवाई थी, इसलिए उस वसीयत में केवल ग्यारह प्वाइंट थे. हलकान भाई ने वसीयत के बारे में लिखा था;

मैंने अभी तक ग्यारह बातें ही लिखी हैं. इसका कारण यह है कि ग्यारह की संख्या शुभ मानी जाती है. मैं अपनी इस वसीयत में आगे और भी 'कामना' जोड़ सकता हूँ. मैंने फैसला किया है कि इस काम के लिए मैं किसी ब्लॉगर-वकील से बात करूंगा.

पिछले हफ्ते हलकान भाई ने अपनी ब्लॉग वसीयत में बदलाव किया. उन्होंने मुझे नई वसीयत दिखाते हुए कहा; "ले जाओ, अपने ब्लॉग पर छाप देना. तुम्हें अपना लिखा हुआ कुछ छापने की आदत तो है नहीं. कभी डायरी, कभी चिट्ठी छापते रहते हो. ले जाओ एक बार फिर से मेरी वसीयत छाप दो."

मैंने कहा; "जाने दीजिये हलकान भाई. आप इसे पाने ब्लॉग पर ही छाप दीजियेगा."

वे बोले; "नए ट्रेंड के अनुसार एक ही पोस्ट जितने ज्यादा ब्लॉग पर छपे उतना ज्यादा नाम होता है. इसलिए ले जाओ और इसे अपने ब्लॉग पर छाप दो. मैं भी बाद में अपने ब्लॉग पर छाप दूंगा. वसीयत तो मेरी ही है. और ब्लॉग भी मेरा है."

तो मैं हलकान भाई की नई वसीयत छाप रहा हूँ. आप बांचिये.

.....................................................................................

मैं ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' , ब्रह्माण्ड का सबसे धाँसू हिन्दी ब्लॉगर, अपने पूरे होश-ओ-हवाश में ये ब्लॉग-वसीयत लिख रहा हूँ. कल तक मैं समझता था कि वसीयत केवल घर-बार, जमीन-जायदाद, बैंक लॉकर, सोना-चाँदी वगैरह के भविष्य में होने वाले बँटवारे के लिए लिखी जाती है. लेकिन जब से एक साईट ने मेरे ब्लॉग की कीमत दस लाख डॉलर से ज्यादा आंकी है, तबसे ये ब्लॉग ही मेरी सबसे अमूल्य निधि बन बैठा है. रूपये-पैसे, सोना-चाँदी वगैरह की कीमत मेरे लिए दो कौड़ी की भी नहीं रही. इसलिए ये ब्लॉग-वसीयत लिखना मेरे लिए मजबूरी हो चुकी है.

मेरी वसीयत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं.

०१. जिस दिन मेरा आखिरी क्षण आये और डॉक्टर मुझे मृत घोषित कर दें तो भी डॉक्टरों की बात पर विश्वास न किया जाय. मैं सचमुच मरा हूँ कि नहीं ये जानने के लिए मेरे कान में कहा जाय; "हलकान उठो, तुम्हारी पोस्ट पर नया कमेंट आया है." ये सुनने के बाद भी अगर मैं उठकर न बैठूं तो मुझे मृत मान लिया जाय.

०२. मेरे चले जाने के बाद मेरे ब्लॉग के संचालन का काम मेरे तीनों पुत्रों के हाथों में दे दिया जाय. मेरे ब्लॉग का नाम भी बारूद से बदलकर 'बारूद का ढेर' कर दिया जाय. जब मैं अकेले लिखता था तबतक तो बारूद नाम समझ में आता है लेकिन जब वही ब्लॉग मेरी जगह मेरे तीन पुत्र संचालित करेंगे तो 'बारूद का ढेर' नाम खूब
फबेगा.

०३. मेरे मरने के बाद मेरे ब्लॉग को सामूहिक ब्लॉग में कन्वर्ट कर दिया जाय. जब तक मैं लिखूंगा तब तक सप्ताह में तीन से ज्यादा पोस्ट नहीं लिख पाऊंगा. इस बात की वजह से मुझे उन ब्लागरों से हमेशा ईर्ष्या होती रही है जो दिन में पाँच-पाँच पोस्ट ठेलते रहते हैं. मेरी दिली तमन्ना है कि मेरे पुत्र एक दिन में कम से कम बीस पोस्ट ठेलें ताकि हर फीड एग्रीगेटर के पेज पर मेरा ब्लॉग ही छाया रहे. मेरी आत्मा को शान्ति देने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं हो सकता.

०४. मेरी मृत्यु के बाद मेरे पुत्र सिर्फ़ उन्ही ब्लॉग पर कमेंट करें जिनके ब्लॉग पर मैं कमेंट करता रहा हूँ. मुझे श्रद्धांजलि देते हुए हुए जितनी भी पोस्ट लिखी जाय, उनपर बहुत सारी फर्जी आईडी बनाकर ढेर सारा कमेंट अवश्य करें. मेरा मंझला पुत्र, जो मुहल्ले के तमाम घरों की दीवारों पर चोरी-छिपे गालियाँ लिखता है, उसे मैं बेनामी कमेंट करने और बाकी के ब्लागरों के लिए गालियाँ लिखने का महत्वपूर्ण काम सौंपता हूँ.

०५. इतने दिनों तक ब्लॉग लिखने के बावजूद मैं आजतक बिना छंद और तुकबंदी की एक भी कविता नहीं लिख सका. ये बात मेरे मन में हीन भावना पैदा करती रही है. मेरा छोटा पुत्र जो रह-रहकर आसमान की तरफ़ देखने लगता है और जिसके अन्दर बुद्धिजीवी बनने के सभी लक्षण मौजूद हैं, मैं उसे बिना छंदों और बिना तुकबंदी वाली कविता लिखने का काम सौंपता हूँ. अगर मेरा छोटा पुत्र इस काम को न कर सके तो उसे चिंता करने की जरूरत नहीं. वह जयशंकर प्रसाद, राम दरश मिश्र और पाब्लो नेरुदा की कविताओं को अपनी कविता बताकर तब तक छापता रहे जब तक पकड़ा न जाए.

०६. मैंने ब्लॉग लिखकर समाजवाद लाने की एक कवायद शुरू की थी. इतने दिनों के बाद मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि समाजवाद के आने का चांस बहुत कम है. लेकिन चूंकि मैं इस दर्शन में विश्वास रखता हूँ कि इंसान को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरी इस अधूरी कोशिश को मेरे तीनों पुत्र आगे बढायें. हिम्मत न हारना ही असली समाजवादी की निशानी है.

०७. मैंने अपनी 'बकलमख़ुद' लिखकर तैयार कर ली है. हालांकि अजित वडनेरकर जी ने मुझे लिखने के लिए कभी नहीं कहा लेकिन मैंने इस आशा से लिख लिया था कि वे एक न एक दिन जरूर कहेंगे. अगर मेरे जीते जी वे नहीं कहते हैं तो फिर मेरे पुत्रों को मैं जिम्मेदारी सौंपता हूँ कि वे मेरे बकलमख़ुद को मेरे ही ब्लॉग पर छाप लें.

०८. मैंने अभी तक के अपने ब्लागिंग कैरियर में बाकी के ब्लागरों के लेखन को कूड़ा बताया है. मैं चाहता हूँ कि मेरे जाने के बाद मेरे पुत्र मेरे इस काम को आगे बढायें और वे हर दूसरे दिन किसी न किसी ब्लॉगर के लेखन को कूड़ा बताएं. मैं यह भी चाहता हूँ कि मेरे तीनों पुत्र महीने में कम से कम एक बार हिन्दी ब्लागिंग में विद्यमान अपरिपक्वता के बारे में लिखकर बहस जरूर करवाएं. ऐसी पोस्ट पर टिप्पणियों की संख्या में कमीं नहीं आती.

०९. मैंने कई बार ऐसी पोस्ट लिखी जिसमें तमाम महान लोगों को दो कौड़ी का बताया. कई बार तो मैं गाँधी जी को भी बेकार घोषित कर चुका हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे पुत्र मेरे इस काम को भी आगे बढायें. महीने में कम से कम एक पोस्ट ऐसी लिखें जिसमें किसी महापुरुष को बेकार बतायें. ऐसी पोस्ट लिखने से खूब नाम होता है.

१०. मेरे ब्लॉग पर लगाए गए विज्ञापन की कमाई को मेरे पुत्र आपस में बाँट लें. मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि इस मामले में कोई झगडा नहीं होगा क्योंकि कमाई की रकम १०० डॉलर पार नहीं कर सकेगी.

११. बहुत कोशिश करने के बाद भी मैं अपने ब्लॉग पर आजतक एक भी विमर्श नहीं चला सका. विश्व साहित्य हो या जाति की समस्या, नारी मुक्ति आन्दोलन हो या फिर विश्व अर्थव्यवस्था, साम्यवाद हो या फिर साम्राज्यवाद, ऐसे किसी भी विषय मैं एक भी बहस आयोजित न कर पाने की अक्षमता मुझे बहुत खलती है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र मेरे इस ब्लॉग पर महीने में कम से कम एक बहस जरूर आयोजित करें. ऐसी बहस चलाने से मेरी इस हीन भावना से मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी.

१२. जब तक मैं ब्लॉग लिख रहा हूँ मैंने अपनी तमाम पोस्ट में मेरे अन्दर की कन्फ्यूजियाहट ही दर्शाई है. तीन साल तक ब्लागिंग करने के बावजूद मैं खुद कभी इस कन्फ्यूजन से निकल नहीं पाया कि ब्लागिंग मेरे लिए उपयोगी है या नहीं? मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे तीनों पुत्र भी इसी कन्फ्यूजन का शिकार रहें. ऐसा करने से दूसरों के मन में उनकी छवि एक आत्मनिरीक्षण करने वाले ब्लॉगर की बनी रहेगी.

१३. पिछले तीन महीने से मैं ब्लागिंग पर एक शोध कर रहा हूँ. इस शोध से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि ब्लॉग एग्रीगेटर सिवाय फर्जीवाड़ा के और कुछ नहीं. मैंने अपनी खोज से यह सिद्ध कर दिया है कि पुराने हिंदी ब्लॉगर असल में ब्लॉगर नहीं बल्कि मठाधीश हैं और एग्रीगेटर के फर्जीवाड़े की वजह से उन्हें ब्लॉगर माना जाता है. मैं जब तक जिंदा हूँ, इस मुद्दे पर मैं रोज पोस्ट ठेलता रहूँगा. मेरे मरने के बाद मेरे तीनों पुत्र मेरे शोध को न सिर्फ आगे बढ़ाएं बल्कि हर दृष्टिकोण से पैदा होनेवाले फर्जीवाड़े पर लिखें.

१४. मेरे ब्लॉग बारूद के अलवा मेरे नौ और ब्लॉग हैं जिन्हें मैं फर्जी आई डी से चलाता हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे मरने के बाद मेरे बाकी के ब्लॉग भी मेरे पुत्र चलायें. मेरे बाकी के ब्लॉग हैं;

मैं चन्दन तुम पानी
देख फकीरा रोया
डाकिया डाक लाया
क्रांति संभव है
ब्लॉग-आत्मा
यहाँ से भारत को देखो
बादल पर लिख दिया तेरा नाम
जिगर मा बड़ी आग है
जिंदगानी फिर कहाँ

१५. मैं जब से ब्लॉग लिख रहा हूँ तब से ही मैंने अपने ब्लॉग को हर एग्रीगेटर से जोड़ रखा है. हर एग्रीगेटर से जुड़े रहने के बावजूद मैं उन्हें गाली ही देता आया हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र अपने ब्लॉग को नए-पुराने और भविष्य में आनेवाले अग्रीगेटर से जोडें और मेरी परंपरा को निभाते हुए उन्हें गाली देते रहें.

१६. तमाम ब्लागरों को कमेन्ट करके गाली देने की मेरी क्षमता की वजह से मुझे आजतक एक निहायत ही ईमानदार और खरी-खरी कहने वाला ब्लॉगर माना जाता रहा है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र मेरे इस काम को आगे बढायें जिससे लोग उन्हें भी ईमानदार मानें.

१७. तमाम कोशिश करने के बाद भी मैं एक भी अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर मिलन अटेंड नहीं कर पाया. मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं एक बार अमेरिका में ब्लॉगर मिलन का आयोजन करूं. अगर मेरे जीते जी मैं यह कार्य न कर सकूं तो मेरे पुत्र यह कार्य अवश्य करें और एक ब्लॉगर मिलन वाशिंगटन में आयोजित करें. ऐसा करने से मेरी आत्मा को शांति मिलेगी.

१८. अपने तीन साल के ब्लागिंग जीवन में अब तक मैं अट्टारह बार ब्लागिंग छोड़ने की धमकी दे चुका हूँ और चार बार ब्लॉग बंद कर चुका हूँ. इसका फायदा यह होता है कि टिप्पणियां खूब मिलती हैं और लोगों की टिप्पणी से साबित होता है कि मैं महत्वपूर्ण ब्लॉगर हूँ. मेरे बाद मेरे पुत्र महीने में कम से कम एक बार ब्लागिंग छोड़ने की बात को लेकर पोस्ट अवश्य लिखें. इससे धमकी की प्रैक्टिस होती रहती है.

१९. अपने तीन साल के ब्लागिंग जीवन में करीब हर चौथे दिन मैंने ब्लॉग जगत के तथाकथित खराब माहौल के बारे में पोस्ट लिख कर माहौल खराब करने की कोशिश की. यह बहुत दुर्लभ और महान कला है जिसपर प्रैक्टिस की सहायता से ही मास्टरी की जा सकती है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र माहौल खराब करने की प्रैक्टिस करते रहे. इससे बहुत नाम होता है.

२०. मेरी सबसे बड़ी ब्लॉग-तमन्ना यह है कि एक दिन मेरे ब्लॉग की चर्चा टाइम मैगेजीन में हो. अगर मेरे जीते जी यह संभव नहीं होता तो मैं चाहूँगा कि मेरे पुत्र मेरे बाद भी कोशिश करें जिससे मेरे ब्लॉग के बारे में कभी न कभी टाइम मैगेजीन में अवश्य छपे.

२१. ब्लॉग लेखन के दौरान मैंने हमेशा ही महिलाओं के उठने-बैठने से लेकर उनके खान-पान और पोशाक के बारे में बहुत ज्ञान दिया है. उन्हें हमेशा रास्ता दिखाया है कि उन्हें समाज में कैसे रहना है और कैसे चलना है. मेरे बाद मेरे पुत्र भी यह काम करते रहें. ऐसा करने से उनकी गिनती भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े रक्षकों में होगी जो ईमेज-स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है.

साल २०१० में बनने वाली वसीयत में बस इतना ही. अगर भविष्य में मैंने अपनी वसीयत में कोई बदलाव किया तो सार्वजनिक तौर पर उसकी सूचना अपने साथी ब्लागरों को अवश्य दूंगा.

ब्लाग वसीयत लिखी हलकान 'विद्रोही' दिनांक २४-०६-२०१०,