
इंडिया टुडे ने जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में देश भर में हिंदी ब्लागिंग पर एक सर्वेक्षण किया. पत्रिका के अनुसार यह सर्वेक्षण अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है जो हिंदी ब्लागिंग के लिए न सिर्फ महत्वपूर्ण है अपितु उसकी दिशा तय करने में निर्णायक साबित होगा.
इस मामले में पत्रिका के प्रधान सम्पादक का कहना है; "हिंदी ब्लागिंग स्वतंत्र अभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम बन चुकी है जिसका भविष्य तो उज्जवल है ही, वर्तमान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. लेखन के मीडियम के तौर पर हिंदी ब्लागिंग अब पर्याप्त रूप से पुरानी हो चुकी है. इतनी पुरानी हो चुकी है कि अब तो इस मीडियम का विस्तार दलों, गुटों और एशोसियेशन के तौर पर भी हो रहा है. आज पूरे भारतवर्ष में बीस हज़ार से ज्यादा हिंदी ब्लॉगर हैं. यही कारण था कि हमने पहली बार इतने विशाल स्तर पर एक सर्वे किया. हमने पूरे देश के अट्ठारह बड़े और तैंतीस छोटे शहरों में अपने संवाददाताओं को भेजकर करीब आठ हज़ार हिंदी ब्लागरों से कुल तेरह प्रश्न किये और उनपर उनका मत लेते हुए यह सर्वे करवाया जिसमें कई चौकानेवाले तथ्य सामने आये हैं. आशा है कि हमारी पत्रिका हिंदी ब्लागिंग पर आगे भी सर्वेक्षण करती रहेगी. हम अपना यह सर्वेक्षण राष्ट्र को समर्पित करते हैं."
प्रस्तुत है सर्वेक्षण का परिणाम जो इंडिया टुडे के १६-२३ सितम्बर अंक में प्रकाशित होगा. वैसे आपको इंतज़ार करने की ज़रुरत नहीं है, सर्वेक्षण के परिणाम आप यहीं बांचिये.
०१. ब्लागरों से जब यह पूछा गया कि "उनकी ब्लागिंग का उद्देश्य क्या है?" तो कुल ५७.३७ प्रतिशत ब्लॉगर का यह मानना था कि ब्लागिंग का कोई उद्देश्य हो, यह ज़रूरी नहीं है. जहाँ बड़े शहरों में इस तरह का विचार रखने वाले कुल ४०.२६ प्रतिशत लोग थे वहीँ छोटे शहरों में यह आंकड़ा ५२.१८ प्रतिशत रहा. बड़े शहरों में करीब १९.२७ प्रतिशत ब्लॉगर का मानना था कि वे इन्टरनेट पर अमर होने के लिए ब्लागिंग कर रहे हैं वहीँ ९.८३ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि वे अपनी ब्लागिंग से समाज को बदल डालेंगे. छोटे शहरों में समाज बदलने को ब्लागिंग का उद्देश्य बनाने वाले ब्लागरों का आंकड़ा करीब १७.३१ प्रतिशत रहा.
०२. जब ब्लागरों से यह सवाल पूछा गया कि; "ब्लागिंग की वजह से सम्बन्ध बनाने में सहायता मिलती है?" तो ७०.१९ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि ब्लागिंग की वजह से सम्बन्ध बनते है. वहीँ १९.८३ प्रतिशत ब्लॉगर यह स्वीकार करते हैं कि ब्लागिंग की वजह से सम्बन्ध बिगड़ते है. ७.१२ प्रतिशत ब्लॉगर का यह मानना है कि ब्लागिंग की वजह से सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहते हैं. बाकी ब्लॉगर यह मानते हैं कि समबन्ध बने या बिगडें, उन्हें इसकी परवाह नहीं है.
०३. एक और महत्वपूर्ण प्रश्न था; "ब्लागिंग करने की वजह से क्या ब्लॉगर को एक पारिवारिक माहौल मिलता है?" इस प्रश्न पर ८९.१६ प्रतिशत ब्लॉगर का मानना था कि उन्हें ब्लागिंग में आने के बाद एक ही चीज मिली है और वह है पारिवारिक माहौल. ६.८७ प्रतिशत ब्लॉगर का ऐसा मानना है कि वे स्योर नहीं है कि उन्हें पारिवारिक माहौल मिला है या नहीं? ऐसे ब्लॉगर का मानना है कि अगर झगड़ा वगैरह होता रहे तो पारिवारिक माहौल का एहसास बना रहता है परन्तु चूंकि झगड़ा परमानेंट फीचर नहीं है इसलिए वे अपने विचार पर पूरी तरह जम नहीं सकते.
०४. एक प्रश्न कि; "ब्लागिंग की वजह से ब्लॉगर को कौन-कौन से रिश्तेदार मिलने की उम्मीद रहती है?" इस प्रश्न के जवाब में ८.९३ प्रतिशत ब्लॉगर का कहना था कि वे एक 'फादर फिगर' मिलने की उम्मीद से रहते हैं वहीँ ४५.६६ प्रतिशत लोग भाई-बहन मिलने की उम्मीद करते हैं. करीब १४.५७ प्रतिशत ब्लॉगर को एक अदद चाचा मिलने की उम्मीद रहती है तो १९.३१ प्रतिशत ब्लॉगर एक दोस्त मिलने की उम्मीद में ब्लागगिंग करते हैं. केवल ७.५६ प्रतिशत ब्लॉगर यह उम्मीद करते हैं कि उन्हें पूरा परिवार ही मिल जाए जिससे उन्हें किसी रिश्ते की कमी नहीं खले. करीब ३.१६ प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि पारिवारिक रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्हें टिप्पणियां मिले.
०५. हमारे संवाददाताओं ने ब्लागरों से एक सवाल किया कि; "क्या केवल अपना ब्लॉग लिखकर ब्लॉगर बना जा सकता है?" इस सवाल के जवाब में ह्वोपिंग ९७.६८ प्रतिशत ब्लॉगर का यह मानना था कि केवल ब्लॉग लिखकर ब्लागिंग नहीं की जा सकती. जहाँ २२.४४ प्रतिशत ब्लॉगर का यह मानना था कि वे अपना ब्लॉग लिखने के अलावा चर्चा करना पसंद करते हैं वहीँ ५३.७१ प्रतिशत ब्लॉगर का यह मानना है कि वे ब्लॉग लिखने के अलावा ब्लॉगर सम्मलेन को महत्वपूर्ण मानते हैं. १८.८८ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि लिखने के अलावा वे एशोसियेशन बनाने को ब्लागिंग का अभिन्न अंग मानते हैं. ४१.५१ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि लिखने के अलावा ब्लॉगर सम्मलेन, एशोसियेशन और गुटबाजी करके ही एक सम्पूर्ण ब्लॉगर बना जा सकता है. वहीँ ७.३९ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि लेखन, एशोसियेशन और सम्मलेन के अलावा पुरस्कार वितरण करके ही पूर्ण ब्लॉगर बना जा सकता है.
०६. सर्वे में एक प्रश्न था; "आप लेखन की किस विधा का समर्थन करते हैं?" इस प्रश्न के जवाब में जहाँ ८३.१५ प्रतिशत लोगों ने कविता लेखन का समर्थन किया वहीँ १४.१३ प्रतिशत लोगों ने गद्य लेखन का समर्थन किया. केवल १.१८ प्रतिशत लोगों ने दोनों का समर्थन किया. करीब १.५ प्रतिशत लोगों ने यह कहकर किसी का समर्थन नहीं किया कि वे गुट निरपेक्ष संस्कृति को जिन्दा रखना चाहते हैं.
०७. एक प्रश्न कि; "टिप्पणियां कितनी महत्वपूर्ण हैं?" के जवाब में ९१.८९ प्रतिशत ब्लॉगर ने बताया कि टिप्पणियां सबसे महत्वपूर्ण हैं. इसमें से जहाँ ८४.५६ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि टिप्पणियां पोस्ट से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं वहीँ ७.१६ प्रतिशत ब्लॉगर मानते हैं कि टिप्पणियां और पोस्ट दोनों महत्वपूर्ण हैं. करीब ८.७८ प्रतिशत ब्लॉगर मानते हैं कि पोस्ट और टिप्पणियों से ज्यादा महत्वपूर्ण वे खुद हैं.
०८. एक प्रश्न कि; "फीड अग्रीगेटर का रहना कितना ज़रूरी है?" के जवाब में करीब ९२.३९ प्रतिशत ब्लॉगर का यह मानना है कि हिंदी ब्लागिंग के लिए फीड अग्रीगेटर का होना बहुत ज़रूरी है. जहाँ ६७.७२ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि फीड अग्रीगेटर के रहने से लोगों को उठाने-गिराने में सुभीता रहता है वहीँ २८.७५ प्रतिशत ब्लॉगर का मानना था कि फीड अग्रीगेटर को पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल करने में मज़ा आता है इसलिए उसका रहना बहुत ज़रूरी है. करीब ३.१८ प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि फीड अग्रीगेटर रहे या न रहे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे लोगों को मॉस-मेल के जरिये सूचित करते हैं कि उनकी नई पोस्ट आ गई है.
०९. जब ब्लागरों से यह प्रश्न किया गया कि "ब्लागिंग करने की वजह से उनका कितने लोगों से झगड़ा हुआ है?" तो जो परिणाम सामने आये वे चौकाने वाले थे. करीब ८.१२ प्रतिशत लोग ही यह जवाब दे सके कि ब्लागिंग करने के बावजूद उनका किसी ब्लॉगर के साथ झगड़ा नहीं हुआ. ९०.१७ प्रतिशत का मानना था कि ब्लागिंग करते हुए उनका किसी न किसी ब्लॉगर से झगड़ा अवश्य हुआ है. वहीँ १.७१ प्रतिशत ब्लॉगर का मानना था कि वे स्योर नहीं है कि उनका किसी अन्य ब्लॉगर के साथ झगड़ा हुआ या नहीं? ऐसे लोगों का मानना था कि अन्य ब्लॉगर से उनकी तू-तू-मैं-मैं हुई भी तो उसे झगड़ा कह जा सकता है या नहीं इस बात पर संदेह है. केवल २४.८९ प्रतिशत ब्लॉगर ही ऐसे थे जिनका दो या दो से कम लोगों से झगड़ा हुआ है. करीब ४०.३७ प्रतिशत ब्लॉगर ऐसे हैं जिनका पाँच से ज्यादा लेकिन नौ से कम लोगों के साथ झगड़ा हुआ. जहाँ १३.७८ प्रतिशत ब्लॉगर का दस से ज्यादा और पंद्रह से कम ब्लॉगर के साथ झगड़ा हुआ वहीँ ११.१० प्रतिशत ब्लॉगर का पंद्रह से ज्यादा और तीस से कम ब्लॉगर के साथ झगड़ा हुआ. कुल ०.३ प्रतिशत ब्लॉगर थे जिन्होंने मॉस लेवल पर यानि पचास से ज्यादा लोगों के साथ झगड़ा किया है.
१०. जब ब्लागरों से यह प्रश्न किया गया कि "हिंदी ब्लागिंग में ज्यादातर झगड़े की वजह क्या है?" तो करीब केवल ७.८९ प्रतिशत लोगों ने व्यक्तिगत मतभेद को झगड़े की वजह बताया. दूसरी तरफ जहाँ ६७.१८ प्रतिशत लोगों ने धार्मिक वैमनष्य को झगड़े की जड़ बताया वहीँ १९.०९ प्रतिशत ब्लागरों ने राजनैतिक विचारधारा को झगड़े की वजह बताया. वैसे एक बात पर सारे ब्लॉगर एकमत थे कि कहीं पर झगड़ा होने से उस संस्था के डेमोक्रेटिक होने का गौरव प्राप्त होता है इसलिए हिंदी ब्लागिंग में झगड़े का मतलब है कि डेमोक्रेटिक सेटअप सुदृढ़ हो रहा है.
११. एक सवाल कि; "संबंध बनाने के लिए कौन से साधन महत्वपूर्ण हैं?" के जवाब में जो परिणाम आये वे चौकाने वाले थे. जैसे करीब ६३.३९ प्रतिशत लोगों का मानना था कि संबंध बनाने के लिए फ़ोन सबसे महत्वपूर्ण साधन है. वहीँ करीब ८.९७% प्रतिशत ब्लॉगर यह मानते हैं कि संबंध बनाने के लिए वे ई-मेल का सहारा लेते हैं. ६.९८ प्रतिशत ब्लॉगर मेल और फ़ोन दोनों का इस्तेमाल करते हैं और बाकी के ब्लॉगर मेल, फ़ोन के अलावा सम्मलेन और व्यक्तिगत मुलाकातों को सम्बन्ध बनाने के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं.
१२. जब ब्लागरों से यह पूछा गया कि; "सिनेमा, राजनीति, क्रिकेट और सामजिक मुद्दों के अलावा ब्लॉग पोस्ट के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय क्या है?" तो उसपर करीब ७५.४३ प्रतिशत ब्लागरों का मानना था कि इन सब विषयों के अलावा सबसे महत्वपूर्ण विषय है "चिट्ठाकारों" के बारे में लिखना. करीब ६.७३ प्रतिशत लोगों के लिए यात्रावर्णन एक महत्वपूर्ण विषय है वहीँ ९.११ प्रतिशत लोगों के लिए ब्लागिंग कार्यशाला महत्वपूर्ण विषय है. दूसरी तरफ ८.२७ प्रतिशत लोगों के लिए सम्मान लेन-देन कार्यक्रम महत्वपूर्ण है तो करीब ०.५% प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वे खुद सबसे महत्वपूर्ण विषय हैं.
१३. जब ब्लागरों से यह प्रश्न किया गया कि; "बीच-बीच में ब्लागिंग छोड़ देने की घोषणा एक ब्लॉगर के भविष्य के लिए कितनी महत्वपूर्ण है?" तो उसके जवाब में करीब ९२.१३ प्रतिशत ब्लॉगर मानते हैं कि ब्लागिंग छोड़ देने की घोषणा किसी भी ब्लॉगर के ब्लॉग-जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है. इसमें से करीब ६६.८९ प्रतिशत ब्लॉगर का मानना है कि ऐसी घोषणा से किसी भी ब्लॉगर का ब्लॉग-जीवन न सिर्फ बढ़ जाता है अपितु उसे टिप्पणियां भी ज्यादा मिलने लगती हैं. करीब ७.१६ प्रतिशत ब्लॉगर ही मानते हैं कि ब्लागिंग छोड़ देने की घोषणा से एक ब्लॉगर के ब्लॉग-जीवन पर ख़ास असर नहीं पड़ता. वहीँ जिन लोगों का मानना है कि ऐसी घोषणा से एक ब्लॉगर का ब्लॉग जीवन बढ़ जाता है उनमें से करीब २४.३१ प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि दो से ज्यादा बार ब्लागिंग छोड़ देने की घोषणा करने से एक ब्लॉगर का ब्लॉग जीवन औसतन तीन वर्ष बढ़ जाता है. वहीँ चार से ज्यादा घोषनाएं करने वाले ब्लॉगर का ब्लॉग जीवन औसतन पाँच वर्ष बढ़ जाता है.
तो ये थे हमारे प्रथम राष्ट्रीय ब्लॉग सर्वेक्षण के परिणाम. हमारे संवाददाताओं ने न सिर्फ पूरे देश का दौरा किया अपितु सही परिणामों के लिए सैम्पल साइज़ से कोई समझौता नहीं किया. उद्देश्य केवल एक ही था कि पूरे देश के सामने एक सच्ची तस्वीर उभर कर आये. हम उन हिंदी ब्लागरों के भी आभारी हैं जिन्होंने इस सर्वे के लिए अपना समय निकाला. आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह सर्वे हिंदी ब्लागिंग में एक मील का पत्थर साबित होगा.
---सम्पादक