"हें हें ..तो मानते हैं न कि कोई न कोई योजना है?"; प्रभु चावला जी ने हलकान भाई से अपने चिर-परिचित अंदाज़ में पूछा.
हलकान भाई ने शायद सीधी बात का अक्षय कुमार एपिसोड देख रखा था. उन्होंने अक्षय कुमार 'ईस्टाइल' में दांत चियारते हुए कहा; " हे हे ..नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. हमारी पार्टी ने अभी तक कुछ फैसला नहीं किया है. जब चुनाव परिणाम आयेंगे तो फिर देखा जाएगा. हमारा मानना है कि राजनीति में विचारों का विरोध होता है, लोगों का नहीं. "
अपने हलकान भाई यानी ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' राष्ट्रीय ब्लॉगर दल के महासचिव की कैपेसिटी में सीधी बात नामक कार्यक्रम में प्रभु चावला जी से 'सीधी बात' कर रहे थे. सोलहवीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न होने और नतीजे आने के बीच एक रविवार पड़ गया था. चावला जी ने हलकान भाई को उस रविवार में फिट कर दिया था.
चुनावों में हमसब के दल राष्ट्रीय ब्लॉगर दल यानि 'राब्लाद' का बहुत जोर प्रचार करने की वजह से हलकान भाई को समय नहीं मिला था. वे कुछ थके हुए भी थे लेकिन प्रभु चावला जी द्वारा कई दिनों की कोशिश के बाद वे कार्यक्रम में जाने के लिए तैयार हो गए थे.
"धनबाद ब्लॉगर एशोसियेशन का विलय झारखण्ड ब्लॉगर एशोसियेशन में जब पिछले साल हुआ, उसी से आभास हो गया था कहीं न कहीं यह राजनीतिक महत्वाकांक्षा अब केवल राज्य स्तर की नहीं रही. अब यह राष्ट्रीय हो गई है."; प्रभु चावला जी ने फिर से चार-पांच अदाओं में अपना सिर हिलाते-घुमाते हुए कहा.
अब हलकान भाई को लगा कि अक्षय कुमार 'ईस्टाइल' में बात को टाला नहीं जा सकता. वे अचानक राग दरबारी के लंगड़ की तरह आध्यात्म मोड में आते हुए बोले; "हमारी लड़ाई तो सत्त की लड़ाई है चावला जी. आप पत्रकार हैं न. आप नहीं समझेंगे. आपलोग कहीं न कहीं कहीं नामक जुमला बोलकर पता नहीं क्या-क्या कह जाते हैं. वैसे भी महत्वाकांक्षा कोई बुरी बात नहीं है. "
"हें हें..लेकिन बातें तो हो रही हैं न. आठ महीने पहले रायपुर में जो सम्मलेन हुआ, खबर है कि उसी में यह निर्णय ले लिया गया था कि हाई कमान के फैसले को न मानते हुए प्रदेश ब्लॉगर एशोसियेशन वहां की सभी लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करेगा"; प्रभु चावला जी ने अपने किसी विश्वस्त सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी को साझा किया.
"देखिये सम्मलेन के निर्णय पहले ब्लॉग पर लिख दिए जाते थे. फोटो-सोटो छप जाया करती थी तो पता चलता था कि क्या हुआ है. जितने लोग सम्मलेन में जाते थे, उतनी पोस्ट आती थी. अब तो सम्मेलनों के निर्णय गुप्त रखे जाते हैं. ऐसे में आपको कहाँ से जानकारी मिली?"; हलकान भाई ने बड़े सर्द लहजे में कहा. इतना कहकर वे हँसने लगे.
उनकी हँसी से प्रभावित प्रभु चावला बोले; "हें हें...कुछ न कुछ तो बात होगी..बिना आग धुंआ नहीं उठता. अच्छा चलिए एक बात बताइए. अगर कांग्रेस को इन चुनावों में कुछ कम सीटें मिलीं तो आपकी पार्टी उसे समर्थन देगी?"
चावला जी की बात सुनकर हलकान भाई ने उनसे उल्टा सवाल किया; "आप यही सवाल कांग्रेस पार्टी से पूछिए. मेरा मतलब अगर आर. बी. डी. को कुछ कम सीटें मिलीं तो कांग्रेस समर्थन करेगी क्या?"
उनका सवाल सुनकर प्रभु चावला सकपका गए. खैर, फिर से दो-तीन बार अपना सिर इधर-उधर करते बोले; "कोलीशन पोलिटिक्स में तो आपको समर्थन देना ही पड़ेगा."
"क्यों देना पड़ेगा? अगर हम सबसे बड़े दल बनकर उभरे जो कि हम उभरेंगे तो फिर तो कांग्रेस समर्थन करेगी हमारी पार्टी को"; इतना कहते हुए हलकान भाई सीरियसता की एक और सीढ़ी चढ़ गए.
उनका आत्मविश्वास देखकर प्रभु चावला की टाई ढीली हो गई. हें हें करते हुए बोले; "अच्छा, आपको क्या लगता है? आपकी पार्टी देश को चला पाएगी? जिस राजनीति की ज़रुरत है कोलीशन को चलाने में आपलोगों को वह राजनीति आती है?"
"बहुत अच्छे ढंग से. बहुत अच्छे ढंग से चलाएगी देश को हमारी पार्टी. चावला साहब हमें राजनीति में नौसिखुआ मत समझिये...... आज की तारीख में पूरे देश में सत्य, अहिंसा, इंसानियत, मुरौव्वत, वगैरह-वगैरह अगर किसी समाज में है तो वह है ब्लॉग समाज. हम एक दिन इस देश में सरकार बनायेंगे यह बात हमें पांच साल पहले से ही पता थी"; हलकान भाई ने जानकारी दी.
"आपकी पार्टी के पास कोई प्लान है देश को चलाने का? मेरा मतलब आपने कोई खाका खींचा है कि आप देश को कैसे चलाएंगे? क्या बदलाव लायेंगे?"; प्रभु चावला जी ने सीधा सवाल पूछा.
"देश को चलाने के लिए हमने पहले से ही प्लान बना रखा है. हमारा प्लान पुराना है........ हम बिना प्लान के कुछ नहीं करते. हमारा प्लान है कि हम पहले समाज को बदलेंगे. फिर देश को बदल डालेंगे. फिर हम विश्व को बदलेंगे. उसके बाद अगर वैज्ञानिकों का, वैसे हमारे ब्लॉग जगत में भी बहुत वैज्ञानिक हैं, फिर भी अगर वैज्ञानिकों का साथ मिला तो हम ब्रह्माण्ड को बदल डालेंगे. आज देखने की बात है कि क्यों हमें लोगों का इतना बड़ा समर्थन मिल रहा है? आज की तारीख
में..."; हलकान भाई बहुत जोश में बोलते जा रहे थे.
मैं टीवी देखते-देखते उन्हें चीयर-अप कर रहा था; "कम्मान, हलकान भाई, कम्मान... आज प्रभु चावला को पहली बार कोई मिला है. आज उनको पता चलेगा कि असली पोलिटिशियन क्या होता है...अब हमारी सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता..."
अचानक लगा जैसे कोई बार-बार पीठ पर थपकी दे रहा है. आँखें खुल गईं. देखा तो पत्नी सामने खड़ी थीं. बोलीं; "सरकार बन गई हो तो अब चाय पी ली जाय?'
मैंने कहा; "क्या हुआ?"
वे बोलीं; "क्या हुआ वो तो तुम बताओगे."
अब कैसे बताता कि सपने में क्या देखा. बता देता तो भद्द पिट जाती.
सुबह से सोच रहा हूँ. इस तरह का सपना? कहीं ये सम्मेलनों, एसोशियेशनों का असर तो नहीं है?
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Friday, May 28, 2010
Monday, May 24, 2010
"टू कंडेम्न इज ह्यूमन एंड टू स्ट्रांगली कंडेम्न इज डिवाइन"
शायद मंत्री जी ने सचिव जी से कहा होगा; "बहुत हो गया अब. अब तो नक्सलियों की घोर निंदा कर ही दो."
सचिव जी ने शाम को पत्रकारों के बीच दंतेवाड़ा नरसंहार की निंदा कर डाली. बोले; "वी स्ट्रांगली कंडेम्न द इंसिडेंट."
हिंदी में बोले तो; "हम इस घटना की तीव्र निंदा करते हैं."
खैर, इतना कहकर वे पत्रकारों की तरफ देखने लगे. चेहरा देखकर लगा जैसे उनके मन में आशा थी कि उनकी बात सुनकर पत्रकार हाथ उठाकर नारा 'गाने' लगेंगे. यह कहते हुए कि; "सचिव जी तुम कंडेम्न करो, हम तुम्हारे साथ हैं."
लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
शाम को एक मित्र ने ट्वीट किया. उन्होंने लिखा; "टू कंडेम्न इज ह्यूमन एंड टू स्ट्रांगली कंडेम्न इज डिवाइन."
गजब है. पता नहीं निंदा का कितना बड़ा भण्डार है सरकार के पास जो ख़त्म ही नहीं होता. ये निंदा करना एक तरह का पॉलिसी स्टेटमेंट है. नक्सलियों ने हमला किया, निंदा कर डालो. रेल-लाइन उड़ा दी, निंदा कर डालो. अगर केवल नक्सलियों की निंदा से मन न भरे तो राज्य सरकारों की निंदा कर डालो. आतंकवादी हमला करें, उनकी निंदा कर डालो. मंहगाई बढ़ गई है, जमाखोरों की निंदा कर दो. देसी निंदा से बोर हो जाओ तो विदेशी निंदा करते हुए पकिस्तान की निंदा कर डालो. विदेशी निंदा को और व्यापक बनाना चाहो तो तो नॉर्थ कोरिया की निंदा कर डालो.
भ्रष्टाचार से लेकर मंहगाई तक और नक्सल समस्या से लेकर पाकिस्तानी आतंकवाद तक, सब के लिए एक ही हथियार है, निंदा. चाहे जितना दागते जाओ, लेकिन यह हथियार ऐसा है कि इसका गोला ख़त्म ही नहीं होगा. बाहर से खरीदने का भी लोचा नहीं है. जितना चाहो, अपने यहाँ प्रोड्यूस कर लो. जिसको चाहे उसको प्रोडक्शन फ्लोर पर लगा दो. प्रधानमंत्री निंदा कर लें तो गृहमंत्री को भिड़ा दो. उसके बाद भी लगे कि और ज़रुरत है तो राष्ट्रपति से निंदा करवा दो. राष्ट्रीय स्तर पर निंदा करके फारिग हो लो तो राज्य स्तर पर निंदा करवा डालो. इतना सब करने के बाद भी अगर लगे कि पूरी निंदा नहीं हुई तो जिला स्तर पर करवा डालो. दस लोगों का एक जुलूस निकालो और एक जगह इकठ्ठा होकर किसी सयाने आदमी को एक मंच पर खड़ाकर मोहल्ला स्तर पर भी निंदा करवा दो.
इतनी निंदा करवा दो कि पूरे देश में निंदा की आंधी आ जाए. एक बार आंधी चल गई तो देश की सारी समस्याओं को अपने साथ उड़ा ले जायेगी.
निंदा का इतना बड़ा उपयोग देखते हुए मैं तो मांग रखता हूँ कि केंद्र सरकार का अपना एक निंदा मंत्रालय होना चाहिए. उस मंत्रालय का काम ही होगा कि वह समस्याओं की एक लिस्ट बनाये और प्रियोरिटी के हिसाब से लोगों को सेलेक्ट करके उनकी निंदा करने का प्लान बनाये. किस मुद्दे पर सबसे पहले किसे निंदा करनी है और बाद में किसे करनी है, उसके लिए साफ़-साफ़ एक नीति की घोषणा करे. जैसे अगर नक्सलियों द्वारा किये गए नरसंहार में पचीस से ज्यादा लोग मारे गए हैं तो गृह सचिव उसकी निंदा करें. पचास से ज्यादा मारे जाएँ तो गृह मंत्री और अगर सौ से ज्यादा मारे जाएँ तो निंदा का काम प्रधानमन्त्री के जिम्मे रहे. अगर पचीस से कम लोग मारें जाएँ तो उसके लिए केवल निंदा की जाए लेकिन अगर पचीस से ज्यादा मारे जाएँ तो फिर घोर निंदा की जाए.
निंदा करके भी लगे कि कुछ और करने की ज़रुरत है तो फिर राष्ट्रपति से यह बयान जारी करवा देना चाहिए कि; "देश में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है." देखिये कैसे समस्याएं ख़त्म होंगी.
निंदा मंत्रालय में कम से कम दो निंदा राज्य मंत्री हों. राज्य मंत्रियों का काम होगा कि वे डेली अपनी सलाह दूसरे मंत्रालयों को भेजें, यह बताने के लिए कि किस समस्या पर किसकी निंदा की जा सकती है. जैसे अगर मंहगाई कम नहीं हो रही तो व्यापारियों और जमाखोरों की निंदा करने के लिए सलाह की एक कॉपी वित्त मंत्री को भेजी जानी चाहिए. उसी सलाह की एक कॉपी कृषि मंत्री के पास और दूसरी कॉपी वाणिज्य मंत्री को भेजी जानी चाहिए. मेरा विश्वास है कि अगर शाम तक तीन-तीन मंत्री जमाखोरों की निंदा कर देंगे तो देश के सारे जमाखोर शर्म के मारे आत्महत्या कर लेंगे और मंहगाई की समस्या पूरे देश से ख़त्म हो जायेगी.
वैसे ही अगर सीमा पर पाकिस्तानी रेंजेर्स फायरिंग करें तो तुरंत एक सलाह रक्षा मंत्रालय में भेजकर एक घंटे के भीतर रक्षा मंत्री से निंदा करवा देनी चाहिए. रक्षा मंत्री एक बार निंदा कर लें तो फिर रक्षा राज्य मंत्री को चांस दिया जाय ताकि वे जब निंदा करें तो इतनी मात्रा में निंदा का प्रोडक्शन हो जाए कि जिन पाकिस्तानी रेजरों ने गोलीबारी की हो वे अपने ही रायफल से खुद को गोली मार लें.
कोई ज़रूरी नहीं कि केवल मनुष्यों की निंदा की जाए. देशों की निंदा भी की जा सकती है. अगर ज़रुरत हो तो सड़कों की निंदा पर भी विचार किया जा सकता है. जैसे केंद्र सरकार से चला हुआ एक रुपया अगर आम आदमी तक पहुचते-पहुचते पंद्रह पैसा रह जाए तो सिस्टम की निंदा कर डालो. उससे भी अगर न हो तो बिचौलियों की निंदा कर डालो. कहीं कुछ भी मिले, उसकी निंदा कर डालो. मंत्री कहीं फंस जाएँ तो किसी स्पोर्ट्स अशोशियेसन की निंदा की जानी चाहिए.
हर मुद्दे पर निंदा रिपोर्ट बननी चाहिए. रिपोर्ट की कॉपी हर महीने प्रधानमंत्री को मिलनी चाहिए. कौन से मंत्री ने एक महीने में किसकी कितनी बार निंदा की उसकी रिपोर्ट प्रधानमन्त्री को मिलनी ज़रूरी भी है. एक कैबिनेट कमिटी ऑन कंडेम्नेशन रहनी चाहिए जो मंत्रालयों के बीच निंदा का को-आर्डिनेशन देखेगी. कैबिनेट कमिटी की बैठक हर तीन महीने पर होनी चाहिए.
मैं तो कहूँगा कि निंदा को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री जी को हर वर्ष निंदा पुरस्कारों की घोषणा करनी चाहिए. पुरस्कार मंत्रियों को भरपूर निंदा करने के लिए प्रेरित करेंगे. जिस मंत्री ने पूरे वर्ष में सबसे ज्यादा निंदा की हो उसे गोल्ड मेडल मिलना चाहिए. दूसरे और तीसरे नंबर पर आने वाले मंत्री को सिल्वर और ब्रोंज मेडल मिलना चाहिए. लिस्ट में चौथे और पांचवें स्थान पर आने वाले मंत्रियों सांत्वना पुरस्कार में ताम्र पत्र और शाल मिलनी चाहिए.
अगर चिंता करके देश की समस्याएं नहीं दूर हो सकीं तो हताश होने की ज़रुरत नहीं है. एक बार निंदा को चांस दिया जाना चाहिए.
सचिव जी ने शाम को पत्रकारों के बीच दंतेवाड़ा नरसंहार की निंदा कर डाली. बोले; "वी स्ट्रांगली कंडेम्न द इंसिडेंट."
हिंदी में बोले तो; "हम इस घटना की तीव्र निंदा करते हैं."
खैर, इतना कहकर वे पत्रकारों की तरफ देखने लगे. चेहरा देखकर लगा जैसे उनके मन में आशा थी कि उनकी बात सुनकर पत्रकार हाथ उठाकर नारा 'गाने' लगेंगे. यह कहते हुए कि; "सचिव जी तुम कंडेम्न करो, हम तुम्हारे साथ हैं."
लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
शाम को एक मित्र ने ट्वीट किया. उन्होंने लिखा; "टू कंडेम्न इज ह्यूमन एंड टू स्ट्रांगली कंडेम्न इज डिवाइन."
गजब है. पता नहीं निंदा का कितना बड़ा भण्डार है सरकार के पास जो ख़त्म ही नहीं होता. ये निंदा करना एक तरह का पॉलिसी स्टेटमेंट है. नक्सलियों ने हमला किया, निंदा कर डालो. रेल-लाइन उड़ा दी, निंदा कर डालो. अगर केवल नक्सलियों की निंदा से मन न भरे तो राज्य सरकारों की निंदा कर डालो. आतंकवादी हमला करें, उनकी निंदा कर डालो. मंहगाई बढ़ गई है, जमाखोरों की निंदा कर दो. देसी निंदा से बोर हो जाओ तो विदेशी निंदा करते हुए पकिस्तान की निंदा कर डालो. विदेशी निंदा को और व्यापक बनाना चाहो तो तो नॉर्थ कोरिया की निंदा कर डालो.
भ्रष्टाचार से लेकर मंहगाई तक और नक्सल समस्या से लेकर पाकिस्तानी आतंकवाद तक, सब के लिए एक ही हथियार है, निंदा. चाहे जितना दागते जाओ, लेकिन यह हथियार ऐसा है कि इसका गोला ख़त्म ही नहीं होगा. बाहर से खरीदने का भी लोचा नहीं है. जितना चाहो, अपने यहाँ प्रोड्यूस कर लो. जिसको चाहे उसको प्रोडक्शन फ्लोर पर लगा दो. प्रधानमंत्री निंदा कर लें तो गृहमंत्री को भिड़ा दो. उसके बाद भी लगे कि और ज़रुरत है तो राष्ट्रपति से निंदा करवा दो. राष्ट्रीय स्तर पर निंदा करके फारिग हो लो तो राज्य स्तर पर निंदा करवा डालो. इतना सब करने के बाद भी अगर लगे कि पूरी निंदा नहीं हुई तो जिला स्तर पर करवा डालो. दस लोगों का एक जुलूस निकालो और एक जगह इकठ्ठा होकर किसी सयाने आदमी को एक मंच पर खड़ाकर मोहल्ला स्तर पर भी निंदा करवा दो.
इतनी निंदा करवा दो कि पूरे देश में निंदा की आंधी आ जाए. एक बार आंधी चल गई तो देश की सारी समस्याओं को अपने साथ उड़ा ले जायेगी.
निंदा का इतना बड़ा उपयोग देखते हुए मैं तो मांग रखता हूँ कि केंद्र सरकार का अपना एक निंदा मंत्रालय होना चाहिए. उस मंत्रालय का काम ही होगा कि वह समस्याओं की एक लिस्ट बनाये और प्रियोरिटी के हिसाब से लोगों को सेलेक्ट करके उनकी निंदा करने का प्लान बनाये. किस मुद्दे पर सबसे पहले किसे निंदा करनी है और बाद में किसे करनी है, उसके लिए साफ़-साफ़ एक नीति की घोषणा करे. जैसे अगर नक्सलियों द्वारा किये गए नरसंहार में पचीस से ज्यादा लोग मारे गए हैं तो गृह सचिव उसकी निंदा करें. पचास से ज्यादा मारे जाएँ तो गृह मंत्री और अगर सौ से ज्यादा मारे जाएँ तो निंदा का काम प्रधानमन्त्री के जिम्मे रहे. अगर पचीस से कम लोग मारें जाएँ तो उसके लिए केवल निंदा की जाए लेकिन अगर पचीस से ज्यादा मारे जाएँ तो फिर घोर निंदा की जाए.
निंदा करके भी लगे कि कुछ और करने की ज़रुरत है तो फिर राष्ट्रपति से यह बयान जारी करवा देना चाहिए कि; "देश में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है." देखिये कैसे समस्याएं ख़त्म होंगी.
निंदा मंत्रालय में कम से कम दो निंदा राज्य मंत्री हों. राज्य मंत्रियों का काम होगा कि वे डेली अपनी सलाह दूसरे मंत्रालयों को भेजें, यह बताने के लिए कि किस समस्या पर किसकी निंदा की जा सकती है. जैसे अगर मंहगाई कम नहीं हो रही तो व्यापारियों और जमाखोरों की निंदा करने के लिए सलाह की एक कॉपी वित्त मंत्री को भेजी जानी चाहिए. उसी सलाह की एक कॉपी कृषि मंत्री के पास और दूसरी कॉपी वाणिज्य मंत्री को भेजी जानी चाहिए. मेरा विश्वास है कि अगर शाम तक तीन-तीन मंत्री जमाखोरों की निंदा कर देंगे तो देश के सारे जमाखोर शर्म के मारे आत्महत्या कर लेंगे और मंहगाई की समस्या पूरे देश से ख़त्म हो जायेगी.
वैसे ही अगर सीमा पर पाकिस्तानी रेंजेर्स फायरिंग करें तो तुरंत एक सलाह रक्षा मंत्रालय में भेजकर एक घंटे के भीतर रक्षा मंत्री से निंदा करवा देनी चाहिए. रक्षा मंत्री एक बार निंदा कर लें तो फिर रक्षा राज्य मंत्री को चांस दिया जाय ताकि वे जब निंदा करें तो इतनी मात्रा में निंदा का प्रोडक्शन हो जाए कि जिन पाकिस्तानी रेजरों ने गोलीबारी की हो वे अपने ही रायफल से खुद को गोली मार लें.
कोई ज़रूरी नहीं कि केवल मनुष्यों की निंदा की जाए. देशों की निंदा भी की जा सकती है. अगर ज़रुरत हो तो सड़कों की निंदा पर भी विचार किया जा सकता है. जैसे केंद्र सरकार से चला हुआ एक रुपया अगर आम आदमी तक पहुचते-पहुचते पंद्रह पैसा रह जाए तो सिस्टम की निंदा कर डालो. उससे भी अगर न हो तो बिचौलियों की निंदा कर डालो. कहीं कुछ भी मिले, उसकी निंदा कर डालो. मंत्री कहीं फंस जाएँ तो किसी स्पोर्ट्स अशोशियेसन की निंदा की जानी चाहिए.
हर मुद्दे पर निंदा रिपोर्ट बननी चाहिए. रिपोर्ट की कॉपी हर महीने प्रधानमंत्री को मिलनी चाहिए. कौन से मंत्री ने एक महीने में किसकी कितनी बार निंदा की उसकी रिपोर्ट प्रधानमन्त्री को मिलनी ज़रूरी भी है. एक कैबिनेट कमिटी ऑन कंडेम्नेशन रहनी चाहिए जो मंत्रालयों के बीच निंदा का को-आर्डिनेशन देखेगी. कैबिनेट कमिटी की बैठक हर तीन महीने पर होनी चाहिए.
मैं तो कहूँगा कि निंदा को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री जी को हर वर्ष निंदा पुरस्कारों की घोषणा करनी चाहिए. पुरस्कार मंत्रियों को भरपूर निंदा करने के लिए प्रेरित करेंगे. जिस मंत्री ने पूरे वर्ष में सबसे ज्यादा निंदा की हो उसे गोल्ड मेडल मिलना चाहिए. दूसरे और तीसरे नंबर पर आने वाले मंत्री को सिल्वर और ब्रोंज मेडल मिलना चाहिए. लिस्ट में चौथे और पांचवें स्थान पर आने वाले मंत्रियों सांत्वना पुरस्कार में ताम्र पत्र और शाल मिलनी चाहिए.
अगर चिंता करके देश की समस्याएं नहीं दूर हो सकीं तो हताश होने की ज़रुरत नहीं है. एक बार निंदा को चांस दिया जाना चाहिए.
Tuesday, May 18, 2010
सत्ता की नीति कहती शर्म छोड़ मुँह मोड़ो...
बहुत दिनों बाद तुकबंदी जोड़ने बैठा तो करीब पचास ग्राम मिलावटी तुकबंदी जुड़ गई. मिलावटी इसलिए कि हिंदी में अंग्रेजी के शब्द मढ़ दिए गए हैं. अब इसके लिए कोई हिंदी-द्रोही कह कर चैन से न बैठे तो कोई बात नहीं. मैं हिंदी की आधी सेवा करता हूँ....:-)
खैर, आप तुकबंदी झेलिये.
.....................................................................................
एक वर्ष का समय बहुत है
प्रजा यही दोहराती
शर्मराज क्या करूँ बहाना
बुद्धि समझ न पाती
प्रजा रो रही रोटी खातिर
मिले कहाँ से रोटी
जनता करे शिकायत; मेरी
खाल हो गई मोटी
बढ़ा हुआ है दाम अभी तक
सब्जी और फलों का
रोज झेलते तीखा हमला
जनता और दलों का
मंत्री-संत्री, चेले-चमचे
रोज काण्ड रचते हैं
इनलोगों के कर्म देख हम
खुद से ही बचते हैं
उधर पड़ोसी अड़ा हुआ है
नहीं कान देता है
उसको कितना भी समझा दूँ
कहाँ मान देता है?
कूटनीति में उसका पलड़ा
सदा पड़ा है भारी
हर मोर्चे पर बस हम हारें
हँसती दुनियाँ सारी
एक पड़ोसी जब भी चाहे
अन्दर आ जाता है
कभी जमीं पर कब्ज़ा करता
कभी टोह पाता है
जिन्हें मिली है जिम्मेदारी
करें प्रजा की रक्षा
वही नहीं अब कर पाते हैं
खुद की ज़रा सुरक्षा
एक वर्ष पहले ज्यों तुमने
मान दिया था हमको
कैसे लड़ूँ चुनाव यहाँ पर
ज्ञान दिया था हमको
वैसे ही हे शर्मराज कुछ
सबक आज सिखला दो
बाँट लो अपने अनुभव; औ
रास्ता हमें दिखला दो
शर्मराज ने नज़र उठाई
और शांत-मुख लेकर
बोले सुन लो भ्रात आज फिर
चित्त-कान सब देकर
प्रजा कभी संतुष्ट न होगी
तुम बस इतना सुन लो
जो भी ज्ञान सुनाता हूँ बस
चित्त-ध्यान दे गुन लो
सत्ता की नीति कहती शर्म छोड़ मुँह मोड़ो
.................बातों पर न कान दो तो नाम हो जाएगा
कोई दे उलाहना या जितना भी धिक्कारे
.................उसको बुरा बता दो बदनाम हो जाएगा
थोड़ी रेवड़ी मीडिया को थोड़ी बुद्धिजीवियों को
.................अगर बाँट दो तो फिर काम हो जाएगा
मीडिया की हेल्प लेकर फैलाओ हंगामा, गर
.................शोर-शराबे में केला आम हो जाएगा
मंहगाई के मुद्दे पर तुम खेलों की बात करो
.................विदेशी मुद्दों पर करो वीमेन रिजर्वेशन की
भ्रष्टचार के मुद्दे पर नक्सलियों की बात करो
.................आतंरिक सुरक्षा पर करो फ़ारेन-रिलेशन की
कृषि की समस्या पर बात कर नरेगा की; और
.................बेरोजगारी पर करो हायर एजुकेशन की
सूखे की स्थिति पर बात करो रेल की; और
.................पानी की कमी पर करो फ़ूड इन्फ्लेशन की
राजधर्म की बात पर जो शोर करे जनता तो
.................अपनी ईमानदारी का प्रक्षेपास्त्र छोड़ देना
उसका भी असर न हो बुद्धिहीन प्रजा पर; तो
.................बातों को घुमाकर एक धाँसू मोड़ देना
अगर जनता बात करे भ्रष्टाचारी मंत्री की; तो
.................सबूतों के अभाव वाला दांव जोड़ देना
इतना सब करने पर भी लोग अगर बोलें; तो
.................सीधा पुलिस वालों को भेज टांग तोड़ देना
नक्सलियों की बात अगर मीडिया उठाये तो
.................सख्ती से निबटने का करना प्रचार तुम
उसके बाद भी नक्सली मारें सैनिकों को; तो
.................उनकी घोर निंदा पर करना विचार तुम
अगर घोर निंदा से भी बात न जमती हो
.................बुलाना फिर मंत्रियों की मीटिंग बार-बार तुम
उसके बाद भी अगर ठोस कदम की बात हो; तो
.................मानवाधिकार वालों को भेजना धिक्कार तुम
टेलिकॉम घोटाले की बात कहीं उठ जाए
.................धज्जी उड़ाना वहीँ सीधे उस सवाल का
मंत्री जी के इस्तीफे की अगर कभी मांग उट्ठे
.................तुरंत बात छेंड देना क्रिकेट के बवाल का
सी बी आई और प्रवर्तन निदेशालय को लगा
.................पीछा करो मोदी और उसके जंजाल का
इसका फायदा होगा कि दबेंगे साथी दल वाले
.................उनके ऊपर रहेगा फिर कंट्रोल कमाल का
इतने दांव-पेंच से भी काम न बने अगर; तो
.................धर्मनिरपेक्षता का हथियार तुम चलाना
तुष्टिवादी दलों और नेताओं को साथ लेना
.................फिर भी अगर काम न हो डुगडुगी बजाना
डुगडुगी की आवाज़ सुन भी साथ कोई न दे तो
.................सी बी आई को लगवा कर केस खुलवाना
दूर बैठे नेताओं को संतरी भेज बुलवाकर
.................पास बैठा कर उनकी औकात बतलाना
"धन्य हुआ हे शर्मराज मैं पाकर ऐसा मान
आशा है कि देंगे मुझको आगे भी यूं ज्ञान"
खैर, आप तुकबंदी झेलिये.
.....................................................................................
एक वर्ष का समय बहुत है
प्रजा यही दोहराती
शर्मराज क्या करूँ बहाना
बुद्धि समझ न पाती
प्रजा रो रही रोटी खातिर
मिले कहाँ से रोटी
जनता करे शिकायत; मेरी
खाल हो गई मोटी
बढ़ा हुआ है दाम अभी तक
सब्जी और फलों का
रोज झेलते तीखा हमला
जनता और दलों का
मंत्री-संत्री, चेले-चमचे
रोज काण्ड रचते हैं
इनलोगों के कर्म देख हम
खुद से ही बचते हैं
उधर पड़ोसी अड़ा हुआ है
नहीं कान देता है
उसको कितना भी समझा दूँ
कहाँ मान देता है?
कूटनीति में उसका पलड़ा
सदा पड़ा है भारी
हर मोर्चे पर बस हम हारें
हँसती दुनियाँ सारी
एक पड़ोसी जब भी चाहे
अन्दर आ जाता है
कभी जमीं पर कब्ज़ा करता
कभी टोह पाता है
जिन्हें मिली है जिम्मेदारी
करें प्रजा की रक्षा
वही नहीं अब कर पाते हैं
खुद की ज़रा सुरक्षा
एक वर्ष पहले ज्यों तुमने
मान दिया था हमको
कैसे लड़ूँ चुनाव यहाँ पर
ज्ञान दिया था हमको
वैसे ही हे शर्मराज कुछ
सबक आज सिखला दो
बाँट लो अपने अनुभव; औ
रास्ता हमें दिखला दो
शर्मराज ने नज़र उठाई
और शांत-मुख लेकर
बोले सुन लो भ्रात आज फिर
चित्त-कान सब देकर
प्रजा कभी संतुष्ट न होगी
तुम बस इतना सुन लो
जो भी ज्ञान सुनाता हूँ बस
चित्त-ध्यान दे गुन लो
सत्ता की नीति कहती शर्म छोड़ मुँह मोड़ो
.................बातों पर न कान दो तो नाम हो जाएगा
कोई दे उलाहना या जितना भी धिक्कारे
.................उसको बुरा बता दो बदनाम हो जाएगा
थोड़ी रेवड़ी मीडिया को थोड़ी बुद्धिजीवियों को
.................अगर बाँट दो तो फिर काम हो जाएगा
मीडिया की हेल्प लेकर फैलाओ हंगामा, गर
.................शोर-शराबे में केला आम हो जाएगा
मंहगाई के मुद्दे पर तुम खेलों की बात करो
.................विदेशी मुद्दों पर करो वीमेन रिजर्वेशन की
भ्रष्टचार के मुद्दे पर नक्सलियों की बात करो
.................आतंरिक सुरक्षा पर करो फ़ारेन-रिलेशन की
कृषि की समस्या पर बात कर नरेगा की; और
.................बेरोजगारी पर करो हायर एजुकेशन की
सूखे की स्थिति पर बात करो रेल की; और
.................पानी की कमी पर करो फ़ूड इन्फ्लेशन की
राजधर्म की बात पर जो शोर करे जनता तो
.................अपनी ईमानदारी का प्रक्षेपास्त्र छोड़ देना
उसका भी असर न हो बुद्धिहीन प्रजा पर; तो
.................बातों को घुमाकर एक धाँसू मोड़ देना
अगर जनता बात करे भ्रष्टाचारी मंत्री की; तो
.................सबूतों के अभाव वाला दांव जोड़ देना
इतना सब करने पर भी लोग अगर बोलें; तो
.................सीधा पुलिस वालों को भेज टांग तोड़ देना
नक्सलियों की बात अगर मीडिया उठाये तो
.................सख्ती से निबटने का करना प्रचार तुम
उसके बाद भी नक्सली मारें सैनिकों को; तो
.................उनकी घोर निंदा पर करना विचार तुम
अगर घोर निंदा से भी बात न जमती हो
.................बुलाना फिर मंत्रियों की मीटिंग बार-बार तुम
उसके बाद भी अगर ठोस कदम की बात हो; तो
.................मानवाधिकार वालों को भेजना धिक्कार तुम
टेलिकॉम घोटाले की बात कहीं उठ जाए
.................धज्जी उड़ाना वहीँ सीधे उस सवाल का
मंत्री जी के इस्तीफे की अगर कभी मांग उट्ठे
.................तुरंत बात छेंड देना क्रिकेट के बवाल का
सी बी आई और प्रवर्तन निदेशालय को लगा
.................पीछा करो मोदी और उसके जंजाल का
इसका फायदा होगा कि दबेंगे साथी दल वाले
.................उनके ऊपर रहेगा फिर कंट्रोल कमाल का
इतने दांव-पेंच से भी काम न बने अगर; तो
.................धर्मनिरपेक्षता का हथियार तुम चलाना
तुष्टिवादी दलों और नेताओं को साथ लेना
.................फिर भी अगर काम न हो डुगडुगी बजाना
डुगडुगी की आवाज़ सुन भी साथ कोई न दे तो
.................सी बी आई को लगवा कर केस खुलवाना
दूर बैठे नेताओं को संतरी भेज बुलवाकर
.................पास बैठा कर उनकी औकात बतलाना
"धन्य हुआ हे शर्मराज मैं पाकर ऐसा मान
आशा है कि देंगे मुझको आगे भी यूं ज्ञान"
Tuesday, May 11, 2010
ईमानदारी की बाढ़
जब से हमें श्री मनमोहन सिंह के रूप में एक ईमानदार प्रधानमंत्री मिला है, तब से देश में ईमानदारी का बड़ा बोल-बाला है. आम आदमी, ख़ास आदमी, पत्रकार, कलाकार, सलाहकार, लेखक, आलोचक, समाज सेवक, उजबक से लेकर बकबक तक अपनी बात के शुरू और अंत में यह बताना नहीं भूलते कि हमारे प्रधानमंत्री कितने ईमानदार हैं.
प्रधानमंत्री की ईमानदारी का असर उनके मंत्रियों पर भी साफ़ दिखाई दे रहा है. ऐसा नहीं कि उनके मंत्री पहले से ईमानदार नहीं थे. वे पहले से ही ईमानदार थे लेकिन कैबिनेट में आने के बाद उनकी ईमानदारी दिन दूनी रात चौगुनी के हिसाब से बढ़ी है.
कभी-कभी तो लगता है कि ईमानदारी जल्द ही खतरे के निशान से ऊपर बहने लगेगी.
अब थरूर साहब को ही देख लीजिये. उन्होंने पूरे देश के सामने यह राज खोल के रख दिया कि वे ईमानदार हैं. यह अलग बात है कि उन्होंने जो राज खोला उसको देखकर लोगों ने कहा कि; "यह तो कोई राज की बात नहीं है. हमें तो पता है कि आप ईमानदार हैं. आपको बताने की ज़रुरत नहीं थी."
यह बात सुनकर थरूर जी ने जनता को उसकी समझदारी के लिए धन्यवाद दिया और अपनी ईमानदारी को कांख में दबाये अपने घर की तरफ चल पड़े. अब वे घर में बैठे अपनी ईमानदारी में रोज कुछ ग्राम ईमानदारी और जमा कर ले रहे हैं. उनका मानना है कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनके पास भारी मात्रा में ईमानदारी की सेविंग्स हो जायेगी. तब वे उस ईमानदारी को पूरे देश के सामने चमकाएँगे और देश उनकी ईमानदारी का लोहा मानेगा.
उधर राजा साहब, अरे अपने स्पेक्ट्रम राजा, वे भी ईमानदार बनकर उभरे हैं. उनकी ईमानदारी तो ढाई-तीन साल पहले टू-जी स्पेक्ट्रम के आक्शन के समय से थोड़ी-थोड़ी उभरने लगी थी लेकिन पूरी तरह से उभर कर हाल ही में सामने आई जब उनकी ईमानदारी को टैप करके टीवी चैनलों पर चला दिया गया. पता चला कि लोगों ने जितना सोचा था वे उससे कहीं ज्यादा और आगे तक ईमानदार हैं.
उनकी ईमानदारी का आलम यह है कि उनके नेता ने सीधा-सीधा कह दिया कि; "मेरे पास इससे ईमानदार आदमी और कोई नहीं है जिसे मिनिस्टर बनाया जा सके. चूंकि मिनिस्टर बने रहने से एक नेता की ईमानदारी में इजाफा होता है इसलिए मैं चाहूँगा कि राजा मिनिस्टर बने रहें जिससे अगले आम चुनाव तक वे देश के सबसे बड़े ईमानदार बन जाएँ और पूरा देश उनकी ईमानदारी पर नाज़ कर सके. देश के लोगों को यह शिकायत रहती है कि उनके सामने सिनेमा स्टार और क्रिकेटर छोड़कर और कोई रोल मॉडल नहीं है. मैं चाहता हूँ कि ऐंडीमुत्थु राजा देश के लोगों के लिए ईमानदारी का रोल मॉडल बनें. ऊपर से वे दलित भी हैं. ईमानदारी और दलितत्व का संगम राजा को महान बनाता है."
अभी कल की ही बात है, जयराम रमेश जी ने ईमानदारी का एक नया ही मोर्चा खोल दिया. पता चला उनकी ईमानदारी चायना-सेंट्रिक है. वैसे तो लोगों को इस बात पर शंका है कि इनकी ईमानदारी मज़बूत रह पाएगी या नहीं? कारण यह है कि अपनी ईमानदारी की वजह से वे प्रधानमंत्री जी से शाबासी पा चुके हैं. लिहाजा इनकी ईमानदारी चीनी सामानों की तरह जल्द ही टूट सकती है.
थरूर जी की ईमानदारी पर लोग काफी कुछ बोल चुके हैं. जयराम रमेश की ईमानदारी नेसेंट हाइड्रोजन की तरह अभी नेसेंट स्टेज में है, लिहाजा लोग अभी ज्यादा कुछ नहीं कह पा रहे. हाँ कुछ लोगों से जब स्पेक्ट्रम राजा की ईमानदारी पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपने वक्तव्य दिए.
हमारे ब्लॉग पत्रकार ने लोगों से सवाल किया कि; "स्पेक्ट्रम राजा के स्पेक्ट्रम टेप के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?"
तमाम लोगों ने जो कुछ कहा वो आपके सामने है.
प्रधानमंत्री जी: स्पेक्ट्रम का मुद्दा कोई मुद्दा है? महत्वपूर्ण है जीडीपी ग्रोथ रेट. इस दिशा में काम कर रहे हैं और आशा है कि फिनान्सिअल इयर टू थाऊजेंड टेन-एलेवेन से हम डबल डिजिट ग्रोथ अचीव कर लेंगे. इस ग्रोथ रेट को अचीव करने के लिए हमने वित्तमंत्री को चिट्ठी भेज दी है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि जल्द ही यह रेट अचीव कर ली जायेगी.
ममता बनर्जी: होम तो पाहिले ही बोला था कि स्पेक्ट्रोम बेचने का जोरूरोत नेहीं है. हामको मालूम था कि इंडोट्रीयोलिस्ट लोग पाहिले स्पेक्ट्रोम मांगेगा फीर ऊसी स्पेक्ट्रोम को राखने के लिये जोमीं मांगेगा. ई लोग होमेशा जोमीं लेने का पीछे रेहता है. होमने तो पाहिले ही कह दीया है, अगोर सोरकार जोमीं देगा तो होम कोइबिनेट छोड़ देगा.
शशि थरूर: देखिये चीप रेट में स्पेक्ट्रम देने में कुछ भी बुरा नहीं है. मैं इसे तब तक गलत नहीं मानता जब तक चीप रेट में स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनी किसी न किसी को स्वेट इक्वीटी अलोट करती रहे.
मुकेश अम्बानी: देखिये जैसे सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि गैस भण्डार रिलायंस का नहीं बल्कि पूरे देश का है वैसे ही स्पेक्ट्रम किसी कंपनी का नहीं बल्कि पूरे देश का है. जैसे देश की गैस मेरे पास है वैसे ही देश का स्पेक्ट्रम किसी और के पास होगा. इसको इतना सीरीयसली लेने की ज़रुरत नहीं है. देखा जाय तो जो उद्योगपति देश की गैस और देश का स्पेक्ट्रम अपने पास रख रहा है वह तो देश सेवा ही कर रहा है न. इसलिए इसको लेकर इतना हाय-हाय करने की ज़रुरत......
वित्तमंत्री: इयू सी, देयार हैज बीन प्राईस राइज ऑफ़ सो मेनी थिंग्स इन द कोंट्री डियुरिंग लास्ट टू ईयर्स.... उई आल शुड आप्रीसियेट द फैक्ट दैट गावरमेंट इज एबुल टू सेल सामथींग टू द सिटीजंस ऑफ़ दीस कोंट्री ऐट चीप रेट्स. पीपूल हूँ हैव गाट स्पेक्ट्रोम आर अल्सो सिटीजंस ऑफ़ दीस कोंट्री...
आमिर खान: हा.. आई एम टोटली ऐन अपोलिटिकल मैन...मुझे राजनीति में दिलचस्पी नहीं है. जो भी हुआ हो, हमें हमेशा यह कहना चाहिए कि; 'आल इज वेल...आल इज वेल...'
राम जेठमलानी: मैंने अभी तक टेप पूरी तरह से पढ़ा नहीं है. मैं जब तक टेप पढ़ नहीं लेता कुछ भी कमेन्ट नहीं करूंगा..
ब्लॉगर हलकान विद्रोही :ये स्पेक्ट्रम उस्पेकट्रंम में क्या आनी-जानी है...मदर्स डे के दिन उसकी बात करो.हा हा हा...हैपी मदर्स डे...हैपी मदर्स दे. मैंने आज ही माँ के ऊपर एक कविता लिखी है..सुनिए;
मैं तेरा बेटा हूँ और तू मेरी माँ
मांगता हूँ बस इक चोकलेट
झट से कह दे हाँ..
मेरी माँ...प्यारी माँ..
मेरी माँ..प्यारी माँ..
ललित मोदी : मैं चाहूँगा कि मामले की पूरी जानकारी लेने के लिए आप मुझे पांच दिन का समय दें. उसके बाद ही मैं कुछ बोल पाऊँगा.
लालू जी : संसद में हम कह दिए रहे...न्यूक्लीयर डील के समय अपना भाषन में बोल दिए रहे कि कम्यूनिस्ट लोग...वहां राजा जी भी थे..कि ; "तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं..हाँ..आ तुम अगर किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी..." का बोला..भक्क..ए राजा का बात कर रहा है?..हम तो सोचे कि डी राजा का बात कर रहा है...वोमेन रिजर्भेशन पर हम आ मुलायम सिंह जी...साथ हैं. का समझा?
एम करूणानिधि : थांबी राजवइ एल्लोरुम दलित एंगरदनालेइ कुट्रम चट्टराल. नान उरुदिआग~ सोल्लिगिरेंन अवरगल राजनामा सेईय~ वेंडीदूल्लाइ..
प्रधानमंत्री की ईमानदारी का असर उनके मंत्रियों पर भी साफ़ दिखाई दे रहा है. ऐसा नहीं कि उनके मंत्री पहले से ईमानदार नहीं थे. वे पहले से ही ईमानदार थे लेकिन कैबिनेट में आने के बाद उनकी ईमानदारी दिन दूनी रात चौगुनी के हिसाब से बढ़ी है.
कभी-कभी तो लगता है कि ईमानदारी जल्द ही खतरे के निशान से ऊपर बहने लगेगी.
अब थरूर साहब को ही देख लीजिये. उन्होंने पूरे देश के सामने यह राज खोल के रख दिया कि वे ईमानदार हैं. यह अलग बात है कि उन्होंने जो राज खोला उसको देखकर लोगों ने कहा कि; "यह तो कोई राज की बात नहीं है. हमें तो पता है कि आप ईमानदार हैं. आपको बताने की ज़रुरत नहीं थी."
यह बात सुनकर थरूर जी ने जनता को उसकी समझदारी के लिए धन्यवाद दिया और अपनी ईमानदारी को कांख में दबाये अपने घर की तरफ चल पड़े. अब वे घर में बैठे अपनी ईमानदारी में रोज कुछ ग्राम ईमानदारी और जमा कर ले रहे हैं. उनका मानना है कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनके पास भारी मात्रा में ईमानदारी की सेविंग्स हो जायेगी. तब वे उस ईमानदारी को पूरे देश के सामने चमकाएँगे और देश उनकी ईमानदारी का लोहा मानेगा.
उधर राजा साहब, अरे अपने स्पेक्ट्रम राजा, वे भी ईमानदार बनकर उभरे हैं. उनकी ईमानदारी तो ढाई-तीन साल पहले टू-जी स्पेक्ट्रम के आक्शन के समय से थोड़ी-थोड़ी उभरने लगी थी लेकिन पूरी तरह से उभर कर हाल ही में सामने आई जब उनकी ईमानदारी को टैप करके टीवी चैनलों पर चला दिया गया. पता चला कि लोगों ने जितना सोचा था वे उससे कहीं ज्यादा और आगे तक ईमानदार हैं.
उनकी ईमानदारी का आलम यह है कि उनके नेता ने सीधा-सीधा कह दिया कि; "मेरे पास इससे ईमानदार आदमी और कोई नहीं है जिसे मिनिस्टर बनाया जा सके. चूंकि मिनिस्टर बने रहने से एक नेता की ईमानदारी में इजाफा होता है इसलिए मैं चाहूँगा कि राजा मिनिस्टर बने रहें जिससे अगले आम चुनाव तक वे देश के सबसे बड़े ईमानदार बन जाएँ और पूरा देश उनकी ईमानदारी पर नाज़ कर सके. देश के लोगों को यह शिकायत रहती है कि उनके सामने सिनेमा स्टार और क्रिकेटर छोड़कर और कोई रोल मॉडल नहीं है. मैं चाहता हूँ कि ऐंडीमुत्थु राजा देश के लोगों के लिए ईमानदारी का रोल मॉडल बनें. ऊपर से वे दलित भी हैं. ईमानदारी और दलितत्व का संगम राजा को महान बनाता है."
अभी कल की ही बात है, जयराम रमेश जी ने ईमानदारी का एक नया ही मोर्चा खोल दिया. पता चला उनकी ईमानदारी चायना-सेंट्रिक है. वैसे तो लोगों को इस बात पर शंका है कि इनकी ईमानदारी मज़बूत रह पाएगी या नहीं? कारण यह है कि अपनी ईमानदारी की वजह से वे प्रधानमंत्री जी से शाबासी पा चुके हैं. लिहाजा इनकी ईमानदारी चीनी सामानों की तरह जल्द ही टूट सकती है.
थरूर जी की ईमानदारी पर लोग काफी कुछ बोल चुके हैं. जयराम रमेश की ईमानदारी नेसेंट हाइड्रोजन की तरह अभी नेसेंट स्टेज में है, लिहाजा लोग अभी ज्यादा कुछ नहीं कह पा रहे. हाँ कुछ लोगों से जब स्पेक्ट्रम राजा की ईमानदारी पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपने वक्तव्य दिए.
हमारे ब्लॉग पत्रकार ने लोगों से सवाल किया कि; "स्पेक्ट्रम राजा के स्पेक्ट्रम टेप के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?"
तमाम लोगों ने जो कुछ कहा वो आपके सामने है.
प्रधानमंत्री जी: स्पेक्ट्रम का मुद्दा कोई मुद्दा है? महत्वपूर्ण है जीडीपी ग्रोथ रेट. इस दिशा में काम कर रहे हैं और आशा है कि फिनान्सिअल इयर टू थाऊजेंड टेन-एलेवेन से हम डबल डिजिट ग्रोथ अचीव कर लेंगे. इस ग्रोथ रेट को अचीव करने के लिए हमने वित्तमंत्री को चिट्ठी भेज दी है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि जल्द ही यह रेट अचीव कर ली जायेगी.
ममता बनर्जी: होम तो पाहिले ही बोला था कि स्पेक्ट्रोम बेचने का जोरूरोत नेहीं है. हामको मालूम था कि इंडोट्रीयोलिस्ट लोग पाहिले स्पेक्ट्रोम मांगेगा फीर ऊसी स्पेक्ट्रोम को राखने के लिये जोमीं मांगेगा. ई लोग होमेशा जोमीं लेने का पीछे रेहता है. होमने तो पाहिले ही कह दीया है, अगोर सोरकार जोमीं देगा तो होम कोइबिनेट छोड़ देगा.
शशि थरूर: देखिये चीप रेट में स्पेक्ट्रम देने में कुछ भी बुरा नहीं है. मैं इसे तब तक गलत नहीं मानता जब तक चीप रेट में स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनी किसी न किसी को स्वेट इक्वीटी अलोट करती रहे.
मुकेश अम्बानी: देखिये जैसे सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि गैस भण्डार रिलायंस का नहीं बल्कि पूरे देश का है वैसे ही स्पेक्ट्रम किसी कंपनी का नहीं बल्कि पूरे देश का है. जैसे देश की गैस मेरे पास है वैसे ही देश का स्पेक्ट्रम किसी और के पास होगा. इसको इतना सीरीयसली लेने की ज़रुरत नहीं है. देखा जाय तो जो उद्योगपति देश की गैस और देश का स्पेक्ट्रम अपने पास रख रहा है वह तो देश सेवा ही कर रहा है न. इसलिए इसको लेकर इतना हाय-हाय करने की ज़रुरत......
वित्तमंत्री: इयू सी, देयार हैज बीन प्राईस राइज ऑफ़ सो मेनी थिंग्स इन द कोंट्री डियुरिंग लास्ट टू ईयर्स.... उई आल शुड आप्रीसियेट द फैक्ट दैट गावरमेंट इज एबुल टू सेल सामथींग टू द सिटीजंस ऑफ़ दीस कोंट्री ऐट चीप रेट्स. पीपूल हूँ हैव गाट स्पेक्ट्रोम आर अल्सो सिटीजंस ऑफ़ दीस कोंट्री...
आमिर खान: हा.. आई एम टोटली ऐन अपोलिटिकल मैन...मुझे राजनीति में दिलचस्पी नहीं है. जो भी हुआ हो, हमें हमेशा यह कहना चाहिए कि; 'आल इज वेल...आल इज वेल...'
राम जेठमलानी: मैंने अभी तक टेप पूरी तरह से पढ़ा नहीं है. मैं जब तक टेप पढ़ नहीं लेता कुछ भी कमेन्ट नहीं करूंगा..
ब्लॉगर हलकान विद्रोही :ये स्पेक्ट्रम उस्पेकट्रंम में क्या आनी-जानी है...मदर्स डे के दिन उसकी बात करो.हा हा हा...हैपी मदर्स डे...हैपी मदर्स दे. मैंने आज ही माँ के ऊपर एक कविता लिखी है..सुनिए;
मैं तेरा बेटा हूँ और तू मेरी माँ
मांगता हूँ बस इक चोकलेट
झट से कह दे हाँ..
मेरी माँ...प्यारी माँ..
मेरी माँ..प्यारी माँ..
ललित मोदी : मैं चाहूँगा कि मामले की पूरी जानकारी लेने के लिए आप मुझे पांच दिन का समय दें. उसके बाद ही मैं कुछ बोल पाऊँगा.
लालू जी : संसद में हम कह दिए रहे...न्यूक्लीयर डील के समय अपना भाषन में बोल दिए रहे कि कम्यूनिस्ट लोग...वहां राजा जी भी थे..कि ; "तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं..हाँ..आ तुम अगर किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी..." का बोला..भक्क..ए राजा का बात कर रहा है?..हम तो सोचे कि डी राजा का बात कर रहा है...वोमेन रिजर्भेशन पर हम आ मुलायम सिंह जी...साथ हैं. का समझा?
एम करूणानिधि : थांबी राजवइ एल्लोरुम दलित एंगरदनालेइ कुट्रम चट्टराल. नान उरुदिआग~ सोल्लिगिरेंन अवरगल राजनामा सेईय~ वेंडीदूल्लाइ..
Friday, May 7, 2010
फिर से अधूरा इंटरव्यू
कल दोपहर करीब एक बजे नरोत्तम जी का फ़ोन मिला. क्या कहा? कौन नारोत्तम जी? अरे अपने नारोत्तन कालसखा जी, अरे वही मानवाधिकार वाले. हमेशा की तरह हलकाए से लग रहे थे. आवाज़ सुनकर लगा जैसे कोई आदमी मैराथन दौड़ते हुए हांफ रहा हो और बात भी करना चाहता हो.
मैंने पूछा; "क्या बात है? बड़े परेशान लग रहे हैं?"
वे बोले; "तुम पहले फटाफट मेरा एक इंटरव्यू ले लो."
उनकी बात सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा. मुझे पता है कि नरोत्तम जी ने इंटरव्यू देने में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है लेकिन इंटरव्यू लेने के लिए मुझसे कह रहे हैं?
मैंने पूछा; "क्या बात है? सब ठीक-ठाक है तो?"
वे बोले; "पहले मैं तुरंत एक इंटरव्यू देना चाहता हूँ."
मैंने पूछा; "अचानक इंटरव्यू का ख़याल क्यों आ गया? वो भी आप चाहते हैं कि मैं आपका इंटरव्यू लूँ?"
मेरी बात सुनकर भड़क गए. बोले; " आफिस में बैठकर करते क्या हो? इन्टरनेट कनेक्शन भी नहीं है क्या आफिस में?"
मैंने कहा; "ऐसी बात नहीं, कनेक्शन तो है. वैसे आप इंटरव्यू क्यों देना चाहते हैं?"
मेरी बात सुनकर और झल्ला गए. बोले; "कुछ भी पता नहीं है. अरे अजमल को फांसी की सजा हो गई."
मैंने कहा; "अजमल को फांसी की सजा हो गई! कौन अजमल?"
मेरी बात सुनकर बोले; "ओह जीजज..इस आदमी को यह भी नहीं पता कि मैं कौन से अजमल की बात कर रहा हूँ. अरे मैं अजमल कसाब की बात कर रहा हूँ."
उनकी बात सुनकर मुझे याद आया कि कसाब का पूरा नाम अजमल कसाब है. उनकी बात सुनकर एक बार के लिए लगा जैसे उन्हें कसाब कहने में शायद बुरा लगता हो क्योंकि सुना है कसाब का मतलब कसाई होता है. शायद इसीलिए वे उसे उसके फर्स्ट नेम से पुकारते हैं.
यही सोचते हुए मैंने उनसे कहा; "लेकिन कालसखा साहब आप मुझे इंटरव्यू क्यों देना चाहते हैं? आपकी तो वैसे ही आज टीवी न्यूज़ चैनलों पर बड़ी डिमांड रहेगी."
मेरी बात सुनकर बोले; "अरे टीवी पर तो इंटरव्यू रात को लिए जायेंगे. पैनल डिस्कशन भी सारे रात को होंगे. ऐसे तुम क्या चाहते हो कि मैं शाम तक इंतज़ार करूं? मेरा मन कर रहा है कि अभी तुरंत इंटरव्यू दे डालूँ. मैं अपनी अभिव्यक्ति की कुलबुलाहट को संभाल नहीं पा रहा हूँ. अभी फिलहाल टीवी पर आम लोगों के इंटरव्यू आ रहे हैं इसलिए मैंने सोचा कि तुम्हारे ब्लॉग पर ही इंटरव्यू दे डालूँ."
मैंने कहा; "ना बाबा न. बुरा मत मानियेगा लेकिन मैं आपका इंटरव्यू नहीं ले सकता."
वे बोले; "क्यों नहीं ले सकते? क्या प्रॉब्लम क्या है तुम्हें?"
मैंने कहा; "पिछली बार मेरा 'ब्लॉग-पत्रकार' आपका इंटरव्यू लेते हुए बेहोश हो गया था. इस बार तो वो भी नहीं है."
वे बोले; "क्यों नहीं है? कहाँ गया वो? उसने क्या कोई और ब्लॉग ज्वाइन कर लिया?"
मैंने कहा; "नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है. असल में उसने राजनीति ज्वाइन कर ली."
वे बोले; "मुझे उसके अन्दर छिपा हुआ राजनीतिज्ञ उसी दिन दिख गया था जिस दिन वो मेरा इंटरव्यू लेते हुए बेहोश हुआ था. वैसे कौन सी पार्टी ज्वाइन की उसने?"
मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरा ब्लॉग-पत्रकार देवगौड़ा जी का इंटरव्यू लेने बंगलुरू गया था और वहीँ उसने उनकी पार्टी ज्वाइन कर ली. मेरी बात सुनकर बोले; "वो सब छोड़ो ब्लॉग-पत्रकार और मिल जायेंगे लेकिन पहले मेरा इंटरव्यू लो. तुम खुद ले लो."
क्या करता? आपलोग तो जानते ही हैं कि मेरा ब्लॉग कभी किसी की डायरी के पेज से तो कभी किसी के इंटरव्यू से चलता है. भविष्य में अगर नई पोस्ट के लिए विषय न मिला तो कलसखा जी के इंटरव्यू से एक पोस्ट बन जायेगी, यही सोचते हुए मैंने उनका इंटरव्यू लिया. पेश है इंटरव्यू. आप बांचिये.
************************************************************************************
शिव: नमस्कार कालसखा जी.
नरोत्तम जी : नमस्कार वगैरह ठीक है जल्दी से मुद्दे पर आइये और सवाल पूछिए.
शिव: जी जरूर. आप ये बताइए कि आज स्पेशल कोर्ट ने कसाब को फांसी की सजा सुना दी. ऐसे में आपको कैसा लग रहा है?
नरोत्तम जी: आपका सवाल सुनकर मुझे ख़ुशी हुई. मुझे लगा जैसे कोई टीवी चैनल का पत्रकार मुझसे सवाल कर रहा है. वैसे जहाँ तक अजमल को फाँसी की सज़ा सुनाये जाने की बात है, तो मेरा कहना यही है कि मैं पर्सनली कैपिटल पनिसमेंट के खिलाफ हूँ. किसी को फाँसी की सजा बेसिक ह्यूमन राइट्स वायलेशन है.
शिव: मतलब यह कि फाँसी की सजा के मुद्दे पर आप आधुनिक फैशन के हिसाब से चलते हैं?
नरोत्तम जी: देखिये यह फैशन की बात नहीं है. मैं आपसे एक सवाल करता हूँ. जो जज किसी को जीवन दे नहीं सकता उसे जीवन लेने का अधिकार है क्या?
शिव: यह बात तो उस अपराधी पर भी लागू होती है जिसने किसी का जीवन ले लिया हो.
नरोत्तम जी: नहीं. यही तो बुनियादी फर्क है. वह तो अपराधी है. उसका काम अपराध करना है लेकिन दूसरी तरफ तो जज है. उसका काम अपराध करना तो नहीं है न.
शिव: आपके कहने का मतलब जज अगर किसी को फाँसी की सज़ा सुनाता है तो वह भी अपराध करना हो गया?
नरोत्तम जी: नहीं आप मेरी बात समझ नहीं रहे. मेरे कहने का मतलब है जज का काम है कानून का फैसला सुनाना. किसी को सज़ा देकर उसका जीवन लेना नहीं है.
शिव: लेकिन भारतीय कानून तो कहता है कि रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर केसेज में फाँसी की सजा होनी चाहिए.
नरोत्तम जी: नहीं इसे केवल भारतीय कानून के हिसाब से देखा जाना ठीक नहीं होगा. आज लगभग पूरे यूरोप में कैपिटल पनिसमेंट अबोलिस हो रहा है. ऐसे में हमें चाहिए कि हम अपने कानून पर फिर से विचार करें. आज देश में एक बदलाव लाने की ज़रुरत है. जीवन अपने आप में बहुमूल्य होता है.
शिव: लेकिन एक आतंकवादी का जीवन ही बहुमूल्य है? जिन लोगों को उसने मारा उनका जीवन क्या...
नरोत्तम जी: देखिये कोई भी इंसान पैदा होते ही आतंकवादी नहीं बन जाता. आतंकवाद क्या है पहले इसे डिफाइन करना पड़ेगा. उसकी तह में जाना पड़ेगा. युवक आतंकवादी क्यों बनते हैं? आज पूरे विश्व में इस तरह का माहौल तैयार हो गया है कि शोषित युवा को आतंकवादी करार दिया जा रहा है. वह युवा जिसका शोषण सरकारें कर रही हैं. सरकार का आतंकवाद सबसे पहले है और सबसे बड़ा भी. इन युवकों का आतंकवाद तो सरकार के आतंकवाद का जवाब है. क्या है आतंकवाद? ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार टेरोरिज्म इज अ काम्प्लेक्स टर्म व्हिच सिग्निफाई....
शिव: क्या सर? आप एक अपराधी को मिली सजा को गलत साबित करने के लिए आप टेरोरिज्म की परिभाषा डिक्शनरी से दे रहे हैं. अगर आतंकवादियों को उचित सजा नहीं मिले तो..
नरोत्तम जी (बीच में काटते हुए): आप एक बात बताइए. किसी को फाँसी की सजा देने से आतंकवाद रुक जाएगा क्या?
शिव: माना कि नहीं रुकेगा लेकिन क्या ऐसे में अपराध की सजा देना बंद कर दिया जाए?
नरोत्तम जी: नहीं, मैं वो नहीं कह रहा हूँ. फाँसी की जगह और कोई सजा दीजिये. उस तथाकथित आतंकवादी को सुधारने की कोशिश कीजिये.
शिव: आपको लगता है कि कसाब को सुधारा जा सकता है?
नरोत्तम जी: क्यों नहीं? अगर गौतम बुद्ध की वजह से अंगुलिमाल जैसा अपराधी सुधर सकता है तो अजमल तो उससे बहुत छोटा अपराधी है. हमें ज़रुरत है उसे सपोर्ट करने की. उसे ऐसा वातावरण देने की जिसमें उसका जीवन अच्छा हो. अपराध को अपने बीच से हटाइए, अपराधी को नहीं. पिछले तीस सालों में यूरोप और अमेरिका में कैपिटल पनिसमेंट के खिलाफ अभियान चलाये जा रहे हैं. क्यों चलाये जा रहे हैं? क्योंकि किसी को फाँसी की सजा देना बदले की भावना से दिया गया फैसला होता है. ऐसे में मानव जाति की भलाई इसी में है कि लोग समझें.....
अभी वे बोल ही रहे थे कि उनके फोन की घंटी बजी. हेलो कहते ही बोले; "ओह अरनब...आई वाज वेटिंग फॉर योर कॉल...आई एम कमिंग...बी देयर विदिन टेन मिनट्स...हू आर द आदर पैनेलिस्ट? हू? मनीष तिवारी? ग्रेट!.... हू...तरुण बिजय?..जस्ट द राइट पीपुल...कोलिन फ्रॉम आर साइड?..बस आ रहा हूँ."
इतना कह कर मुझे छोड़ कर चले गए. इतना गुस्सा आया कि क्या कहूँ? अभी भी लोग ब्लॉग वालों को न जाने क्या समझते हैं? टीवी वालों के सामने कुछ समझते ही नहीं. मन तो हुआ कि इसी बात के प्रोटेस्ट में एक महीना कोई पोस्ट ही न लिखूं. फिर सोचा कि नरोत्तम जी का इंटरव्यू अपने ब्लॉग पर छापूँ ही नहीं. फिर सोचा कि चलो छाप देता हूँ नहीं तो भविष्य में इंटरव्यू न दे तो....
मैंने पूछा; "क्या बात है? बड़े परेशान लग रहे हैं?"
वे बोले; "तुम पहले फटाफट मेरा एक इंटरव्यू ले लो."
उनकी बात सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा. मुझे पता है कि नरोत्तम जी ने इंटरव्यू देने में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है लेकिन इंटरव्यू लेने के लिए मुझसे कह रहे हैं?
मैंने पूछा; "क्या बात है? सब ठीक-ठाक है तो?"
वे बोले; "पहले मैं तुरंत एक इंटरव्यू देना चाहता हूँ."
मैंने पूछा; "अचानक इंटरव्यू का ख़याल क्यों आ गया? वो भी आप चाहते हैं कि मैं आपका इंटरव्यू लूँ?"
मेरी बात सुनकर भड़क गए. बोले; " आफिस में बैठकर करते क्या हो? इन्टरनेट कनेक्शन भी नहीं है क्या आफिस में?"
मैंने कहा; "ऐसी बात नहीं, कनेक्शन तो है. वैसे आप इंटरव्यू क्यों देना चाहते हैं?"
मेरी बात सुनकर और झल्ला गए. बोले; "कुछ भी पता नहीं है. अरे अजमल को फांसी की सजा हो गई."
मैंने कहा; "अजमल को फांसी की सजा हो गई! कौन अजमल?"
मेरी बात सुनकर बोले; "ओह जीजज..इस आदमी को यह भी नहीं पता कि मैं कौन से अजमल की बात कर रहा हूँ. अरे मैं अजमल कसाब की बात कर रहा हूँ."
उनकी बात सुनकर मुझे याद आया कि कसाब का पूरा नाम अजमल कसाब है. उनकी बात सुनकर एक बार के लिए लगा जैसे उन्हें कसाब कहने में शायद बुरा लगता हो क्योंकि सुना है कसाब का मतलब कसाई होता है. शायद इसीलिए वे उसे उसके फर्स्ट नेम से पुकारते हैं.
यही सोचते हुए मैंने उनसे कहा; "लेकिन कालसखा साहब आप मुझे इंटरव्यू क्यों देना चाहते हैं? आपकी तो वैसे ही आज टीवी न्यूज़ चैनलों पर बड़ी डिमांड रहेगी."
मेरी बात सुनकर बोले; "अरे टीवी पर तो इंटरव्यू रात को लिए जायेंगे. पैनल डिस्कशन भी सारे रात को होंगे. ऐसे तुम क्या चाहते हो कि मैं शाम तक इंतज़ार करूं? मेरा मन कर रहा है कि अभी तुरंत इंटरव्यू दे डालूँ. मैं अपनी अभिव्यक्ति की कुलबुलाहट को संभाल नहीं पा रहा हूँ. अभी फिलहाल टीवी पर आम लोगों के इंटरव्यू आ रहे हैं इसलिए मैंने सोचा कि तुम्हारे ब्लॉग पर ही इंटरव्यू दे डालूँ."
मैंने कहा; "ना बाबा न. बुरा मत मानियेगा लेकिन मैं आपका इंटरव्यू नहीं ले सकता."
वे बोले; "क्यों नहीं ले सकते? क्या प्रॉब्लम क्या है तुम्हें?"
मैंने कहा; "पिछली बार मेरा 'ब्लॉग-पत्रकार' आपका इंटरव्यू लेते हुए बेहोश हो गया था. इस बार तो वो भी नहीं है."
वे बोले; "क्यों नहीं है? कहाँ गया वो? उसने क्या कोई और ब्लॉग ज्वाइन कर लिया?"
मैंने कहा; "नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है. असल में उसने राजनीति ज्वाइन कर ली."
वे बोले; "मुझे उसके अन्दर छिपा हुआ राजनीतिज्ञ उसी दिन दिख गया था जिस दिन वो मेरा इंटरव्यू लेते हुए बेहोश हुआ था. वैसे कौन सी पार्टी ज्वाइन की उसने?"
मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरा ब्लॉग-पत्रकार देवगौड़ा जी का इंटरव्यू लेने बंगलुरू गया था और वहीँ उसने उनकी पार्टी ज्वाइन कर ली. मेरी बात सुनकर बोले; "वो सब छोड़ो ब्लॉग-पत्रकार और मिल जायेंगे लेकिन पहले मेरा इंटरव्यू लो. तुम खुद ले लो."
क्या करता? आपलोग तो जानते ही हैं कि मेरा ब्लॉग कभी किसी की डायरी के पेज से तो कभी किसी के इंटरव्यू से चलता है. भविष्य में अगर नई पोस्ट के लिए विषय न मिला तो कलसखा जी के इंटरव्यू से एक पोस्ट बन जायेगी, यही सोचते हुए मैंने उनका इंटरव्यू लिया. पेश है इंटरव्यू. आप बांचिये.
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शिव: नमस्कार कालसखा जी.
नरोत्तम जी : नमस्कार वगैरह ठीक है जल्दी से मुद्दे पर आइये और सवाल पूछिए.
शिव: जी जरूर. आप ये बताइए कि आज स्पेशल कोर्ट ने कसाब को फांसी की सजा सुना दी. ऐसे में आपको कैसा लग रहा है?
नरोत्तम जी: आपका सवाल सुनकर मुझे ख़ुशी हुई. मुझे लगा जैसे कोई टीवी चैनल का पत्रकार मुझसे सवाल कर रहा है. वैसे जहाँ तक अजमल को फाँसी की सज़ा सुनाये जाने की बात है, तो मेरा कहना यही है कि मैं पर्सनली कैपिटल पनिसमेंट के खिलाफ हूँ. किसी को फाँसी की सजा बेसिक ह्यूमन राइट्स वायलेशन है.
शिव: मतलब यह कि फाँसी की सजा के मुद्दे पर आप आधुनिक फैशन के हिसाब से चलते हैं?
नरोत्तम जी: देखिये यह फैशन की बात नहीं है. मैं आपसे एक सवाल करता हूँ. जो जज किसी को जीवन दे नहीं सकता उसे जीवन लेने का अधिकार है क्या?
शिव: यह बात तो उस अपराधी पर भी लागू होती है जिसने किसी का जीवन ले लिया हो.
नरोत्तम जी: नहीं. यही तो बुनियादी फर्क है. वह तो अपराधी है. उसका काम अपराध करना है लेकिन दूसरी तरफ तो जज है. उसका काम अपराध करना तो नहीं है न.
शिव: आपके कहने का मतलब जज अगर किसी को फाँसी की सज़ा सुनाता है तो वह भी अपराध करना हो गया?
नरोत्तम जी: नहीं आप मेरी बात समझ नहीं रहे. मेरे कहने का मतलब है जज का काम है कानून का फैसला सुनाना. किसी को सज़ा देकर उसका जीवन लेना नहीं है.
शिव: लेकिन भारतीय कानून तो कहता है कि रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर केसेज में फाँसी की सजा होनी चाहिए.
नरोत्तम जी: नहीं इसे केवल भारतीय कानून के हिसाब से देखा जाना ठीक नहीं होगा. आज लगभग पूरे यूरोप में कैपिटल पनिसमेंट अबोलिस हो रहा है. ऐसे में हमें चाहिए कि हम अपने कानून पर फिर से विचार करें. आज देश में एक बदलाव लाने की ज़रुरत है. जीवन अपने आप में बहुमूल्य होता है.
शिव: लेकिन एक आतंकवादी का जीवन ही बहुमूल्य है? जिन लोगों को उसने मारा उनका जीवन क्या...
नरोत्तम जी: देखिये कोई भी इंसान पैदा होते ही आतंकवादी नहीं बन जाता. आतंकवाद क्या है पहले इसे डिफाइन करना पड़ेगा. उसकी तह में जाना पड़ेगा. युवक आतंकवादी क्यों बनते हैं? आज पूरे विश्व में इस तरह का माहौल तैयार हो गया है कि शोषित युवा को आतंकवादी करार दिया जा रहा है. वह युवा जिसका शोषण सरकारें कर रही हैं. सरकार का आतंकवाद सबसे पहले है और सबसे बड़ा भी. इन युवकों का आतंकवाद तो सरकार के आतंकवाद का जवाब है. क्या है आतंकवाद? ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार टेरोरिज्म इज अ काम्प्लेक्स टर्म व्हिच सिग्निफाई....
शिव: क्या सर? आप एक अपराधी को मिली सजा को गलत साबित करने के लिए आप टेरोरिज्म की परिभाषा डिक्शनरी से दे रहे हैं. अगर आतंकवादियों को उचित सजा नहीं मिले तो..
नरोत्तम जी (बीच में काटते हुए): आप एक बात बताइए. किसी को फाँसी की सजा देने से आतंकवाद रुक जाएगा क्या?
शिव: माना कि नहीं रुकेगा लेकिन क्या ऐसे में अपराध की सजा देना बंद कर दिया जाए?
नरोत्तम जी: नहीं, मैं वो नहीं कह रहा हूँ. फाँसी की जगह और कोई सजा दीजिये. उस तथाकथित आतंकवादी को सुधारने की कोशिश कीजिये.
शिव: आपको लगता है कि कसाब को सुधारा जा सकता है?
नरोत्तम जी: क्यों नहीं? अगर गौतम बुद्ध की वजह से अंगुलिमाल जैसा अपराधी सुधर सकता है तो अजमल तो उससे बहुत छोटा अपराधी है. हमें ज़रुरत है उसे सपोर्ट करने की. उसे ऐसा वातावरण देने की जिसमें उसका जीवन अच्छा हो. अपराध को अपने बीच से हटाइए, अपराधी को नहीं. पिछले तीस सालों में यूरोप और अमेरिका में कैपिटल पनिसमेंट के खिलाफ अभियान चलाये जा रहे हैं. क्यों चलाये जा रहे हैं? क्योंकि किसी को फाँसी की सजा देना बदले की भावना से दिया गया फैसला होता है. ऐसे में मानव जाति की भलाई इसी में है कि लोग समझें.....
अभी वे बोल ही रहे थे कि उनके फोन की घंटी बजी. हेलो कहते ही बोले; "ओह अरनब...आई वाज वेटिंग फॉर योर कॉल...आई एम कमिंग...बी देयर विदिन टेन मिनट्स...हू आर द आदर पैनेलिस्ट? हू? मनीष तिवारी? ग्रेट!.... हू...तरुण बिजय?..जस्ट द राइट पीपुल...कोलिन फ्रॉम आर साइड?..बस आ रहा हूँ."
इतना कह कर मुझे छोड़ कर चले गए. इतना गुस्सा आया कि क्या कहूँ? अभी भी लोग ब्लॉग वालों को न जाने क्या समझते हैं? टीवी वालों के सामने कुछ समझते ही नहीं. मन तो हुआ कि इसी बात के प्रोटेस्ट में एक महीना कोई पोस्ट ही न लिखूं. फिर सोचा कि नरोत्तम जी का इंटरव्यू अपने ब्लॉग पर छापूँ ही नहीं. फिर सोचा कि चलो छाप देता हूँ नहीं तो भविष्य में इंटरव्यू न दे तो....