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Sunday, November 11, 2007

हर रंग कुछ कहता है


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आज सुबह एक टीवी चैनल पर एक रिपोर्ट देखी. कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में सब कुछ नीला हो गया है. विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने स्टेडियम में नीले रंग का प्रयोग कर के अपनी पार्टी का प्रचार करना शुरू कर दिया है. अब चूंकि उनकी पार्टी का रंग नीला है तो ऐसे आरोप स्वाभाविक हैं. मैंने सोचा नीले रंग में स्टेडियम को रंगने के पीछे क्या कारण हो सकता है.

बहुत सोचने के बाद मुझे लगा शायद कुछ ऐसा हुआ हो:-
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिवों की भीड़ लगी हुई थी. निजी सचिव, खेल मंत्रालय के सचिव, अम्बेडकर मामलों की मंत्रालय के सचिव, मुख्य सचिव, जरूरी सचिव, गैर-जरूरी सचिव, सब मौजूद हैं. मुख्यमंत्री ने मीटिंग बुलाई थी.

जरूरी हथजोड़ और आशीर्वाद कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री ने मीटिंग शुरू करते हुए कहा; "रंगीन कंपनी का प्रचार देखा है आप लोगों ने?"

सबके चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे. 'रंगीन कंपनी' से मुख्यमंत्री का आशय समझ नहीं पाये, लेकिन हिम्मत नहीं हुई कि मुख्यमंत्री से कुछ कहें. मुख्यमंत्री ने इन डरे हुए सचिवों की हालत का अंदाजा लगा लिया. मुस्कुराते हुए कहा; "लगता है आपलोगों को समझ में नहीं आया. कोई बात नहीं है. सचिवों को नेताओं की भाषा अक्सर समझ में नहीं आती."

निजी सचिव ने बड़ी हिम्मत करके कहा; "नहीं, ऐसी बात नहीं है मैडम. हमें अब आपकी भाषा थोडी-थोडी समझ में आने लगी है. थोड़े दिन और लगेंगे पारंगत होने में. क्षमा कीजिये, लेकिन कौन से प्रचार की बात कर रही हैं आप?"

"अरे वही प्रचार, जिसमें कहा गया है कि "हर रंग कुछ कहता है"; मुख्यमंत्री ने समझाते हुए कहा।

"अच्छा, आप रंग बनाने वाली कंपनी के प्रचार की बात कर रही हैं. हाँ हाँ मैडम, हमने देखा है वो प्रचार"; निजी सचिव ने बताया.

"आप सब केवल देखते हैं या कभी सोचते भी हैं? कभी सोचा है कि अगर हर रंग कुछ कहता है तो ग्रीन मतलब हरा रंग भी कुछ कहता होगा. केवल देखने से काम नहीं चलता."; मुख्यमंत्री ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा.

सभी सचिवों की बोलती बंद. बेचारे तुरंत 'सोचनीय' मुद्रा में आ गए. अभी सोच ही रहे थे कि मुख्यमंत्री को क्या जवाब दें कि मुख्यमंत्री ने पूछा; "वैसे आपको क्या लगता है, हरा रंग क्या कहता होगा?"

निजी सचिव ने सकुचाते हुए कहा; "मैडम आपके सामने कैसे कहूं, लेकिन मेरी समझ बताती है कि हरा रंग कुछ ठीक नहीं कहता. जब भी देखते हैं, हमें तो लगता है जैसे ये रंग समाजवादी पार्टी के बारे में कुछ कहता है."

अब तक लगभग सभी सचिवों को मुख्यमंत्री की बात समझ में आने लगी थी. खेल मंत्रालय के सचिव ने भी निजी सचिव का समर्थन करते हुए कहा; "सर ठीक कह रहे हैं मैडम. हमें भी ये हरा रंग उसी पार्टी की याद दिलाता है. वैसे, अचानक हरे रंग की याद कैसे आ गई आपको?"

मुख्यमंत्री ने बताया; "आएगी कैसे नहीं. अभी हाल ही में कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम की मरम्मत के लिए हमने पैसा दिया है. पहले मेरे दिमाग में नहीं आई बात, लेकिन बाद में लगा कि ग्रीन के बारे में मुझे सोचना चाहिए था."

निजी सचिव ने मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते हुए कहा; "आप ठीक कह रही हैं मैडम. लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है, सोचना है तो अभी भी सोच सकते हैं."

"अच्छा, तो सोच कर बताईये कि क्या किया जा सकता है. अब पैसा तो हमने दे दिया है. उसे वापस तो ले नहीं सकते लेकिन ऐसा कुछ तो जरूर कर सकते हैं कि ग्रीन के ऊपर कोई और रंग आ जाए. मेरा मतलब रंग जमाने का कोई आईडिया निकालिए"; मुख्यमंत्री ने सोचते हुए कहा.

एक सचिव को ब्रेन-वेव आ गई. उसने कहा; "मैडम क्यों न इस ग्रीन की समस्या को ब्लू से सुलझाया जाय. आप इजाज़त दें तो मैं एक आईडिया देता हूँ."

"हाँ-हाँ बताईये, क्या कहना चाहते हैं आप?"; मुख्यमंत्री का चेहरा चमक उठा. उन्हें इस अफसर से कुछ अच्छा सुनने की उम्मीद जाग गई.

"मैं कह रहा था मैडम, स्टेडियम को नीले रंग से भर दें. नीले रंग का पैवेलियन, नीले रंग की कुर्सियाँ, नीले रंग का...मतलब मैडम सब कुछ नीला ही नीला"; अफसर ने अपना आईडिया बताया.

"नहीं नहीं. इसमें तो पूरी राजनीति दिखाई देगी वो भी सरे-आम. हमने पहले ही आधे लखनऊ को नीले रंग में रंग दिया है. अब नीला रंग लखनऊ से कानपुर पहुँच गया तो लोग सवाल उठाएंगे. हमारा हाथी ही नीला रहने दीजिये"; मुख्यमंत्री ने अपनी शंका जताते हुए कहा.

"देखिये मैडम, हाथियों का क्या भरोसा. आज जो हाथी नीले हैं, कल 'सफ़ेद' भी तो हो सकते हैं. आपने तो पहले भी देखा है अपने हाथियों को सफ़ेद होते हुए. जब तक हम सब कुछ नीला कर सकें, तब तक जारी रखें. मीडिया और विपक्षी पार्टियों की खिलाफत का तरीका निकल ही आएगा. आप निश्चिंत रहे"; निजी सचिव ने समझाया.

तब तक एक और सचिव की बुद्धि का ज्वालामुखी फूट पड़ा. उसने बताया; "मैडम, आप निश्चिंत होकर पूरे स्टेडियम को नीले रंग में रंगवा दें. हमें केवल ये प्रचार करना है कि ये नीला रंग टीम इंडिया की हौसला आफजाई के लिए है. हम ये भी जोड़ देंगे कि हमने 'चक दे इंडिया' के थीम पर स्टेडियम को नीला कर डाला है."

मुख्यमंत्री ने इस अफसर की जमकर प्रशंसा की. उसे प्रमोशन का वादा भी किया है. सुना है रविवार को दस मिनट के लिए वे क्रिकेट देखने कानपुर जा रही हैं.

वैसे हम उन्हें नहीं बल्कि फुरसतिया शुकुल जी को स्टेडियम में देखने की कोशिश करेंगे.
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(चित्र ग्रीन पार्क स्टेडियम, कानपुर का। जब वैसे ही नीलाभ दीखता है तो नाम भी ब्ल्यू पार्क स्टेडियमWink रखने में क्या हर्ज है?)


12 comments:

  1. हम स्टेडियम नहीं गये। अच्छा किया वर्ना आपका ये 'रंग' कैसे देख पाते।

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  2. बाकी सब तो ठीक है लेकिन नाम बदलने वाला आइडिया ’बहन जी’ को नही जँचेगा। अगर नाम बदलना ही है थोड़ी भारी भरकम रखेंगी, इ का ग्रीन पार्क से ब्लू पार्क। कल को अगर वहाँ फिल्म दिखायी गयी तो उस फिल्म को का कहेंगे?

    आप ही तनिक सोचिए।
    नाम रखना ही है तो कुछ ऐसा रखिए, क्रिकेट उद्दारक माननीय बहन मायावती स्टेडियम, फिर हर तरफ़ बड़े बड़े कट-आउट लगाए जाए, मैदान मे ड्रिंक्स के लिए हाथी आए और सब कुछ नीला नीला हो। और हाँ इसके प्रायोजक सिर्फ़ एक ही कम्पनी होगी, वही जो ताजमहल कारीडोर मे इन्वाल्व थी।

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  3. अनूप जी ये नही बताये कि गये तो थे पर गलती से चड्डी काले रंग की पहन गये थे तो लौटाये दिये गये...तो दिखाई खेल के बजाये न्यूज चैनल पर दे रहे थे...:)

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  4. भई छक्का है यह पोस्ट तो।
    वैसे सच बात यह है कि सिर्फ दिल का कलर परमानेंट काला रखना चाहिए, बाकी कलरों का क्या है, मौका मुकाम देखकर चेंज कर लेना चाहिए।

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  5. हर रंग चाहे कुछ कहे ना कहे लेकिन आप जो कहते हैं वो कमाल का होता है....

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  6. शिव भैया यहां तो हर टिप्पणीकार एक ही रंग में रंगा दिख रहा है, आप का रंग( वैसे शिव जी का रंग भी नीला ही माना जाता है न?)कुछ की तो कल्पना घोड़े दौड़ा रही है तो क्रिकेट के मैदान में फ़िल्में भी देखी जा रही हैं। बहुत प्यारी चुटकी ली है आप ने, बधाई

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  7. वैसे आपके ब्लॉग की भी ऊपर वाली चौडी सी पट्टी भी नीली ही है. आप भी तो कहीं .... के प्रचार वगैरह मी तो.. खैर मुझे क्या..

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  8. @ पुनीत ओमर,

    पुनीत, मेरे ब्लॉग पर नीला रंग पहले से है भाई....मैंने उसे बदला नहीं है.

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  9. वाह! वाह! क्या बात कही है मज़ा आ गया.हर रंग के बहाने आप तो बहुत कुछ कह गए जनाब. ये आपकी लेखनी का ही कमाल है.

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय