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Friday, December 7, 2007

'फिलिम वालों' के ख़िलाफ़ निंदक जी का अभियान


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'निंदक' जी मिल गए. अरे, वही अखिल भारतीय निंदक महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष. रतीराम चौरसिया की पान-दुकान पर खड़े थे. रतीराम के साथ बहस में उलझे थे. उसे समझाते हुए कह रहे थे; "गजब मनई है यार तुम भी. अरे कह तो रहे हैं कि कर देंगे हिसाब, और तुम है कि एक ही जगह अटका है. हिसाब कीजिये, हिसाब कीजिये. आज तक ऐसा हुआ है का, कि तुम्हारा हिसाब नहीं दिए?"


रतीराम बोला; "ऊ सब तो ठीक है, लेकिन भजाते नहीं हैं कभी. खाली कहते है कि काल दे देंगे, काल दे देंगे. एही करते-करते चार महीना निकल गया."


"अरे ज़रा ई भी तो सोचो कि रोज आते तो हैं. आज हमरे आने से दस लोग अऊर आते हैं तुम्हारे दुकान पर." फिर मेरी तरफ़ मुड़ते हुए बोले; "का, ठीक कह रहा हूँ कि नहीं?"

मैंने कहा; "बिल्कुल ठीक कह रहे हैं. और बताईये, क्या हाल है?" मुझसे बात शुरू हुई तो रतीराम को चुप हो जाना पडा.

बोले; "वोइसे त सब ठीक है. बाकी, ई मीडिया वालों से दुखी हो गए हैं."


मैंने पूछा; "क्यों, ऐसा क्या हो गया. कोई झगड़ा हो गया क्या?"


बोले; "नहीं ऊ बात तो नहीं है. लेकिन बदमाश हो गया है सब. कल का ही बात लीजिये, ई फिलिम आई है न. अरे ओही, माधुरी वाली, आजा नच ले. उसका विरोध में सभा किए रहे. अखबार वाला आया सब. बक्तव्य भी ले गया, लेकिन बदमाशी देखिये कि छापा नहीं."

मैंने कहा; "फ़िल्म के विरोध में सभा किए. किस बात को लेकर विरोध दर्ज कराया आपने?"


बोले; "अरे आपको पता नहीं? ई फिलिम का एक गाना में जाति-सूचक शब्दों का प्रयोग कर दिया है, गीतकार ने. हमको तो बहुते बुरा लगा. हम बोले विरोध दर्ज कराना ही पड़ेगा."


"अच्छा, उस गाने को लेकर विरोध था. लेकिन अखबार वालों ने आपका वक्तव्य छापा क्यों नहीं? क्या बोले?"; मैंने उनसे पूछा.

<< एस्ट्रोपण्डित। राजस्थान पत्रिका की वेब साइट से साभार।



निंदक जी ने इधर-उधर देखते हुए मुझसे चुपके से कहा; "अरे का बतायें. ई लोग बोला, कि जब सरकारे फिलिम पर रोक लगा दिया, तो आपका बक्तव्य का महत्व नहीं रहा. इसीलिए नहीं छापे."


मैंने कहा; "अच्छा, ये बात है. क्या करियेगा, उनकी भी मजबूरी होगी कुछ."

बोले; "लेकिन फिलिम वालों के ख़िलाफ़ हमरे संगठन का विरोध जारी रहेगा. हम तो संगठन का लड़का लोगों को लगा दिए, ई खोजने के लिए कि और कौन मुद्दों पर फिलिम वालों का विरोध किया जा सकता है."

मैंने पूछा; "तो कुछ खोज पाये. मेरा मतलब कोई मुद्दा मिला, जिसपर फ़िल्म वालों का विरोध किया जा सके?"

निंदक जी ने मेरी तरफ़ देखा. मुंह पास लाते हुए धीरे से बोले; "आप अपने है, सो बता रहे हैं. बहुत सॉलिड मुद्दा खोजा है लड़कवा सब. बोल रहा था कि फिलिम में जिस तरह से पंडित और ब्राह्मण लोग को देखाता है, उससे ब्राह्मण जाति का बहुत अपमान होता है."

मैंने कहा; "अच्छा, इस मुद्दे पर फ़िल्म वालों का विरोध किया जा सकता है?"

बोले; "विरोध माने, सॉलिड विरोध. देखते नहीं कैसे देखाता है फिलिमकार लोग पंडित को. देखने से लगता है जैसे पंडित ही सबसे बड़ा घूसखोर होता है. देखाता है कि पंडित लोग घूस लेकर कुंडली मिला देता है. आ चाहे कुंडली मिलती हो, चाहे नहीं. आप ही बताईये, ई ग़लत बात है कि नहीं?"

मैंने कहा; "आप ठीक ही कहते हैं. मुद्दा तो ठीक उठाया आपने."

मेरी तरफ़ देखते हुए बोले; "और तो और, फिलिम में दिखाता है कि शादी हो या पूजा, मरण हो या कीर्तन, सब जगह पंडित एक ही 'इशलोक' बोल रहा है. अरे वही, 'मंगलम भगवान् विष्णु...'. हम पूछते हैं, का हमरे समाज का पंडित केवल यही एक ही 'इशलोक' जानता है? आप ख़ुद ही बताईये, पंडितों और ब्राह्मणों का बेइज्जती है कि नहीं ये?"

मैं सोच ही रहा था कि उन्होंने खुलासा करते हुए बताया; "और इस बार तो सोच रहे हैं कि टीवी चैनल वालों को बुला लेंगे विरोध प्रदर्शन के समय. राम बरन उकील का रिश्तेदार हैं. टीवी में काम करता है. भरोसा दिलाया है कि भइया आप प्रदर्शन कीजिये, हमारा चैनल कभरेज देगा आपका संगठन को."


उनसे बात करके मैं चला आया. 'निंदक' जी ने मुझे बताया; "आ टीवी पर कौन सा दिन देखायेगा, हम बता देंगे आपको. देखकर बतईयेगा, हमारा बक्तव्य टीवी पर कैसा लगा."


हर फिल्मकार के लिए चेतावनी टाइप दे गए हैं 'निंदक' जी.


11 comments:

  1. जब विरोध परदर्सन का डॆट फ़िक्स हो जाय बताइयेगा.. हम भी आऊँगा नारा लगाने..

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  2. अब् तो आपका ग्लोबल् कवरेज हो गया। :)

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  3. बडा करारा ब्‍यंग है समाज पर । पानठेला वाले के बात में दम है भईया ।

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  4. निंदक जी को ्शायद ज्ञात नही कि ऐसे वे विरोध नहीं बल्कि फ़िल्म की पब्लिसिटी मे सहयोग कर रहे हैं। वार्ता मन भायी………

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  5. झक्कास लिखा जी। जय हो।

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  6. झक्कास! धांसू च फांशु! जबरदस्त और मस्त!
    क्या कहे और हम. वैसे एक बात है की इस विरोध को हमारा भी समर्थन है.
    ब्राहमणों के प्रति हो रहे इस अन्याय के विरोध मे हम तो चाहते है कि एक बार पुरानी फिल्मों (जिनमे ब्राहमणों को अपमानित किया गया था ) का दुबारा से प्रदर्शन करवाकर विरोध किया जाय और फ़िर एसी फिल्मों को बैन किया जाय.

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  7. ई बहुत ग़लत बात है बंधू. आप के चक्कर में तो हमरे अमित जी भी आ जायेंगे. वो भी कहते रहते हैं "बोरो प्लस" स्वाहा. झक्कास! धांसू च फांशु! जबरदस्त और मस्त! तो आप की पोस्ट के लिए लिख ही दिए हैं बाल किशन बचुआ अब सोच में हम ये पढ़ें हैं की हम क्या लिखें ? अभी आप" बढ़िया है" से ही काम चलईये कछु और दिमाग में आवेगा तब दुबारा टिपिया देंगे.कौनसे पैसे लगते हैं.
    नीरज

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  8. धांसू च फांसू!!

    परदर्सन मा तो हमका भी आए का होही, बम्हन होय का नाते!

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  9. अभय तिवारी जी हमें भी लिफ्ट दीजियेगा. हम भी चलूँगा.

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  10. हा हा हा हा क्या बोले ब्राह्मण होते तो पहुंच चुके होते रैली लेकर।

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  11. क्या कहने शिव भाई......यह आनन्द दायक सायक है जो कि निशाने पर है....

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय