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Wednesday, January 21, 2009

.....ऐसे में काहे का आम आदमी जी?


@mishrashiv I'm reading: .....ऐसे में काहे का आम आदमी जी?Tweet this (ट्वीट करें)!

प्रधानमंत्री जैसे ख़ास लोगों को सारी सुविधायें रहती हैं. इतनी सुविधायें कि वे कुछ भी कर सकते हैं. अब देखिये न, दो दिन पहले प्रधानमन्त्री आम आदमी बन गए. आम आदमी के रूप में तमाम अखबारों में फोटू-सोटू भी छप गए. फोटू के नीचे जानकारी दी गई कि प्रधानमंत्री अपना ड्राइविंग लाईसेंस रि-न्यू कराने के लिए ख़ुद गए.

अखबारों और टीवी न्यूज़ चैनल के कैमरामैन भाई उमड़ पड़े. ये देखने और दिखाने के लिए कि आम आदमी के रूप में प्रधानमंत्री कैसे लगते हैं?

लेकिन सच बताऊँ तो मुझे तो बिल्कुल वैसे ही लगे जैसे प्रधानमंत्री बने लगते हैं. वही पहनावा, वही चाल-ढाल और वही मुस्कुराने का अंदाज़. आम आदमी कब मुस्कुराता है, ये बात कैमरा पकड़े पत्रकार नहीं बता सकते. कहते हैं, समरथ को नहीं दोष गोसाईं. आख़िर वे समर्थ हैं. प्रधानमंत्री हैं. ऐसे में जब चाहे, जो चाहें, बन सकते हैं. यहाँ तक कि आम आदमी भी.

कोई आम आदमी थोड़े न हैं जो कुछ बनने के सपने ही देखता रहता है. बन नहीं पाता.

लेकिन उन्हें अचानक आम आदमी बनने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी? क्या देखना चाहते थे कि आम आदमी बनकर कैसा महसूस होता है? या ये देखना चाहते थे कि प्रधानमंत्री को आम आदमी के रूप में देखकर लोगों का रिएक्शन कैसा रहेगा?

खैर, सोचने लगा तो मुझे लगा शायद आम आदमी बनने का उनका निर्णय अपने सचिव के साथ हुई बातचीत के दौरान लिया गया हो. कैसी बातचीत?

शायद ऐसा कुछ हुआ हो...

प्रधानमंत्री: भाई, बहुत दिन हो गए, कुछ नया नहीं हो रहा है. बड़ी बोरियत के दिन हैं.

सचिव: हाँ सर. मुझे भी यही लग रहा है. जबसे न्यूक्लीयर डील पास हुई है, लगता है जैसे करने के लिए कुछ बचा ही नहीं. मुंबई में हुआ आतंकवादी हमला भी अब पुराना हो गया. संसद का अधिवेशन भी ख़त्म हो गया. सत्यम के डूबने के बाद आपने वक्तव्य दे ही दिए कि किसी को बख्शा नहीं जायेगा. दो-तीन दिन से मैं भी बड़ा बोर हो रहा हूँ.

प्रधानमंत्री: सही कह रहे हो. अब तो पकिस्तान भी कुछ करने की एक्टिंग करने लगा है. अब उसके ख़िलाफ़ कहने को भी कुछ नहीं रहा. ऐसे में बोरियत के दिन काटे नहीं कटते. २६ जनवरी की तैयारियां चल रही हैं लेकिन उससे मन नहीं बहलता.

सचिव: सर, आपका कहना बिल्कुल ठीक है. वैसे एक सुझाव दूँ सर?

प्रधानमंत्री: ज़रूर दीजिये. आप सचिव हैं. आप सुझाव नहीं देंगे तो कौन देगा? आप दीजिये. उसे मानना है कि नहीं, वो मुझपर छोड़ दीजिये.

सचिव: सर, बोरियत दूर करने के लिए आप नई फ़िल्म देख लीजिये. चांदनी चौक टू चाइना.

प्रधानमंत्री: हो गया? छ महीने हो गए जब से लेफ्ट वालों ने हमें सपोर्ट देना बंद किया है. और आप ऐसी फ़िल्म देखने का सुझाव भी दे रहे हैं जिसका नाम चांदनी चौक टू चाइना है. कहाँ गई है आपकी बुद्धि?

सचिव: सॉरी सर. वो क्या हुआ कि मैं कल ही अक्षय कुमार के साथ बैठकर फ़िल्म देख कर आया हूँ न. उन्होंने दिल्ली में हुए फ़िल्म के प्रीमियर के पास मुझे भेजे थे. वहां मिली आवाभगत से मैं प्रभावित हो गया इसीलिए लेफ्ट वाली बात भूल गया.

प्रधानमंत्री: राइट. सॉरी आपको कहना ही चाहिए.

सचिव: सर, आपको एक बात बतानी थी.

प्रधानमंत्री: कौन सी बात?

सचिव: वो क्या है सर, कि आपका ड्राइविंग लाईसेंस रि-न्यू करने का समय आ गया है. कल मोटर वेहिकल डिपार्टमेंट वालों को बुला लूँ?

प्रधानमंत्री: बुला लीजिये. लेकिन बुलाने की क्या ज़रूरत है? उन्हें बोलिए रि-न्यू करके भेज देंगे.

सचिव: ठीक है सर. वैसा ही करता हूँ.

प्रधानमंत्री: .....अरे रुकिए. उन्हें ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है.

सचिव: क्यों सर?

प्रधानमंत्री: मैं सोच रहा हूँ कि मैं ख़ुद ही चला जाऊं.

सचिव: आप ख़ुद ही जायेंगे! लेकिन सर...लाईसेंस के लिए आप ख़ुद ही जायेंगे? ऐसा तो आम आदमी करते हैं.

प्रधानमंत्री: अरे इसीलिए तो मैं जाना चाहता हूँ. ये बढ़िया रहेगा न. कल एक घंटे के लिए मैं आम आदमी बनना चाहता हूँ. मज़ा आ जाएगा आम आदमी बनाकर. कल एक घंटे के लिए ही सही, बोरियत से छुटकारा तो मिलेगा.

सचिव: ठीक कहा सर. मैं अभी सारे अखबारों और टीवी न्यूज़ चैनल वालों को ख़बर पहुँचा देता हूँ कि कल आप मोटर वेहिकल डिपार्टमेंट के कार्यालय पर आम आदमी बनेंगे.

प्रधानमंत्री मोटर वेहिकल डिपार्टमेंट के कार्यालय जाकर फोटू खिंचा आम आदमी बन गए. लेकिन ये भी बनना कोई बनना है? न तो वहां दलालों को घूस दिया. न तो डिपार्टमेंट के बाबू ने उन्हें घंटे भर बिठा के रखा. न ही बाबू ने फाइल न मिलने के बहाने दूसरे दिन आने के लिए कहा.

ऐसे में काहे का आम आदमी जी? आम आदमी तो हम उन्हें तब मानते जब उन्हें किसी दलाल को पकड़कर घूस देकर अपना काम करवाना पड़ता.

26 comments:

  1. यह सब प्रचार के हथकंडे है -चुनाव नजदीक है ! आम आदमी का प्रधान मंत्री बनना तो समझ में आता है मगर प्रधानमंत्री का अपने भारत में पड़ पर बने रहते हुए भी पल भर के लिए ही सही फिर आम आदमी बन जाना -बात कुछ हजम नही हुयी ! दरख्वास्त है की इसे गंभीरता से न लिया जाय ! कोई ले भी नही रहा .बात आयी गयी हो गयी !

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  2. धूर्त हो नेता न हो संभव नहीं।
    मूर्ख हो जनता न हो संभव नहीं॥

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  3. शिव भैया की जै हो,बहुत सही कहा आपने आम आदमी मुस्कुरात्ता ही कब है।इस देश मे सबसे कठिन है आम आदमी बनना।कुछ दिन पहले मैने भी आम आदमी बनने की कोशिश की थी पर आर टो ओ को खबर लग गई और उसने मुझे आम आदमी तक़ बनने नही दिया।बस्तर के लिये निकल रहा हूं इसलिये विस्तार से नही लिख रहा हूं।वैसे आप्ने लिखा बहुत गज़ब है।

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  4. प्रधानमंत्रीजी फ़िर से खास बन गये और आपकी ये पोस्ट बांच ही नहीं पाये।

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  5. इस में जरा एक कानूनी पेच भी है। आज लिखते हैं।

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  6. प्रधानमंत्री: अरे इसीलिए तो मैं जाना चाहता हूँ. ये बढ़िया रहेगा न. कल एक घंटे के लिए मैं आम आदमी बनना चाहता हूँ. मज़ा आ जाएगा आम आदमी बनाकर. कल एक घंटे के लिए ही सही, बोरियत से छुटकारा तो मिलेगा.
    " ओह तो बोरियत ही दूर करनी थी क्या??"

    Regards

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  7. जब आम आदमी बन ही गए तो इतना फोटो काहे का....आम आदमी के इतने फोटो तो नहीं खींचे जाते हैं न।

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  8. इस अनार बनाम आम आदमी के लिये छुट्टी के दिन अफ़सर दफ़तर खोल कर बैठे थे जो आम दिनो मे भी आम आदमी का काम करके नही देते जी . रोड आम आदमी के लिये बंद थे :)

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  9. ये हमारे अधिकारो का हनन है.. हम आवाज़ उठाएँगे..


    -आम आदमी

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  10. सही कहा.. हम बोरियत दूर करने के लिए ख़ास दिखना चाह रहे हैं.. कुछ इस पर भी टार्च मारिये..

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  11. आम आदमी तो हम उन्हें तब मानते जब उन्हें किसी दलाल को पकड़कर घूस देकर अपना काम करवाना पड़ता.

    बिलकुल यही बात हम हो सोचे रहे.

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  12. टोटल नौटंकी है सारी.

    बेहतरीन लिखा.

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  13. क्या किजियेगा लाईसेंस बना कर..अब सारी उम्र सरकार ड्राइवर देगी.. खैर प्रचार तो हो ही गया.. फोकट में..

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  14. 'न तो वहां दलालों को घूस दिया. न तो डिपार्टमेंट के बाबू ने उन्हें घंटे भर बिठा के रखा. न ही बाबू ने फाइल न मिलने के बहाने दूसरे दिन आने के लिए कहा.'

    धेत, ये भी कोई आम आदमी हुआ. आम आदमी भी ना बन पाये ढंग से.

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  15. पब्लिक को लल्लू समझे हैं का ?

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  16. @ दिनेश राय द्विवेदी जी
    कानूनी पेंच है? किसी धारा/भंवर में फंसने का चांस है क्या, सर?

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  17. Bilkul sahi kaha...

    आम आदमी तो हम उन्हें तब मानते जब उन्हें किसी दलाल को पकड़कर घूस देकर अपना काम करवाना पड़ता !

    chalo khabri chainalon ko khuraak mila...

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  18. यह तो आम आदमी को घाटा हो गया! क्लर्क प्रधानमंत्री जी से जो घूस न उगाह पाया, सो उसकी भरपाई रेट बढ़ा कर अगले आदमी से करेगा।

    घूस लेयक का भी तो सिद्धांत होता है। टोटल घूस तो कम नहीं की जा सकती! मनमोहन जी के बदले मोहनलाल जी को ज्यादा पैसा देना ही होगा। :)

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  19. वाह,बहुत बढ़िया ! अब रहस्य समझ में आया।
    घुघूती बासूती

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  20. हमारे ईमान दार जी भी नोटंकीवाज निकले, भईया आम बनो या न बनो अगई सरकार तुम्हारी ही आयेगी... दिल्ली का हाल देख लिया, हम भुखे मरेगे, तुम्हे गालिया देगे, अपने सपनो को ,अपने अरमनो को टुटत देखे गे.... लेकिन माई बाप वोट तो आप कॊ ही देगे, फ़िर क्यो शहजादे को झोपडी मे भेजते है, क्यो आप भी आम आदमी बनने का नाटक करते हॊ, अजी जब तक हम जेसे है आप की कुर्सी पक्की पिछले ६१ साल से हम टस से मस नही हुये, अब क्या होगे:
    धन्यवाद

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  21. haan ek ghante ke liye to aam aadmi banna afford kiya hi ja sakta hai.

    bahut sahi pakda aapne

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  22. टोटल फर्जी काम है बंधू...ड्राइविंग लाईसेंस उनका बनता है जिनको ड्राइविंग आती हो...जो ख़ुद किसी पर लदे हों वो क्या ड्राईव करेंगे जी ? जो आदमी ख़ुद को ड्राईव नहीं कर सकता उसके लिए लाईसेंस की क्या जरूरत....???? ये सही कहा आपने की आज कल जनाब बोर हो रहे हैं...और कुछ नहीं तो टाईम पास के लिए एनजीओग्राफी करवा आए हैं जनाब....आम आदमी की एनजीओग्राफी की ख़बर उसके पड़ोसी तक को नहीं लगती यहाँ पूरा देश फूल तोड़ तोड़ कर उन्हें भेज रहा है...गेट वेल सून....जब तक चुनाव नहीं होते ये ही सब कुछ होता रहेगा...
    नीरज

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  23. ऐसे में काहे का आम आदमी जी? आम आदमी तो हम उन्हें तब मानते जब उन्हें किसी दलाल को पकड़कर घूस देकर अपना काम करवाना पड़ता.
    ठीक कहा जी ।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय