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Tuesday, November 6, 2012

मंत्री वक्तव्य मैन्युअल और क्लीन चिट


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कहते हैं मंत्री जी ने बेटी की शादी के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर लिया। अब इसमें आश्चर्य कैसा? सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग अगर न हो, तो किसे विश्वास होगा कि वह सरकारी है? बेसरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कभी होता है क्या? वैसे भी बेटी की शादी करना आसान काम है क्या? कहते हैं गंगा में जौ बोने के सामान है बेटी की शादी करना। और यह आज से नहीं, हजारों वर्षों से गंगा में जौ बोने के ही सामान रहा है। कभी किसी को कहते हुए नहीं सुना कि बेटी की शादी करना मतलब गंगा में धान बोना। बड़ी उथल-पुथल होती है तब जाकर बेटी की शादी हो पाती है। ये मंत्री लोग तो जनता के सेवक हैं, ऐसे में इनकी बात जाने दें, राजा-महाराजा के लिए भी यह काम ईजी नहीं रहा कभी। याद करें महाराज जनक को, महाराज ध्रुपद को। इतने बड़े राजाओं को भी कितने पापड़ बेलने पड़े थे बेटियों की शादी करने के लिए, यह न तो बाल्मीकि जी से छिप सका और न ही व्यास जी से।

खैर फिर से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हुआ इसलिए फिर से लोग चाहते हैं कि मंत्री जी इसके लिए नैतिक जिम्मेदारी लें और इस्तीफ़ा वगैरह दें। क्या मजाक है? इस्तीफ़ा न हुआ बीड़ी हो गई कि सरजू साहु ने माँगा और मंत्री जी ने टेंट से निकलकर थमा दिया। गोस्वामी जी ने खुद लिखा है; "बड़े भाग मंत्री पद पावा।" क्या कहा? गोस्वामी तुलसीदास ने नहीं लिखा? तो फिर नीरज गोस्वामी जी ने लिखा होगा। बढ़िया लिखने के लिए केवल दो गोस्वामी जाने जाते हैं भारतवर्ष में।


लेकिन असल सवाल यह है कि एक मंत्री से नैतिक जिम्मेदारी ले लेने की मांग जायज है क्या? यह तो वही बात हो गई कि आप शेर से डिमांड करें कि वह वेजिटेरियन हो जाए। अमेरिका से डिमांड करें कि वह बाकी के देशों में अपनी नाक घुसाना बंद करे दे। पाकिस्तान से डिमांड करें कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे दे। बैंको से डिमांड करें कि उसके टेलिकालर लोन की मार्केटिंग करने के लिए फोन न करें। सचिन से डिमांड करें कि वे रिटायर हो जाएँ। अब ऐसे में मंत्री जी अगर नैतिक जिम्मेदारी नहीं लेंगे तो और क्या कर सकते हैं? क्या मरदे, ये भी कोई सवाल है? ऐसे कठिन समय में रेफरेंस के लिए ही मंत्री वक्तव्य मैन्युअल है। तमाम वक्तव्यों से लदा पड़ा। साठ-पैंसठ वर्षों की केस स्टडी करके बनाया गया मैन्युअल। हर तरह के आरोपों के जवाब वाला मैन्युअल। मंत्री जी को तमाम संभावनाओं से लैस करने वाला। वे मैन्युअल बांचें और उसमें से जिस वक्तव्य को पढ़ने में मज़ा आया, उसे दे दें। जब वक्तव्य है तो इस्तीफ़ा देने जैसा तुच्छ काम मंत्री टाइप लोग करें तो लानत है उनके मन्त्रीपन पर।

मैन्युअल बांचकर वे कह सकते हैं कि "हमारे ऊपर लगाए गए आरोप झूठे हैं।" ये कह सकते हैं कि ;"आरोप लगाकर हमें बदनाम किया जा रहा है।" कह सकते हैं कि ;"विरोधियों की साजिश के तहत ऐसा किया जा रहा है।" इन सबके ऊपर यहाँ तक कह सकते हैं कि; "कोई भी इन आरोपों की जांच कर सकता है। मुझे इस देश के कानून पर पूरा भरोसा है।"

जी हाँ देश के कानूनों पर मंत्री जी टाइप लोगों का जितना भरोसा है उतना किसी का है क्या?

परन्तु सवाल यह भी है कि ऐसे तुच्छ आरोपों के लिए ये सारे ऑप्शन्स क्या बहुत मेहनत वाले नहीं हैं? इतने बिजी मंत्री जी के पास इतना कुछ कहने का समय बहुत मुश्किल से मिलता है। ऐसे में सबसे सरल काम है एक क्लीन चिट ले लेना। अब कौन इतना बोलकर मेहनत करे? वैसे भी जो मज़ा क्लीन चिट लेने में है वह जवाब देने में है कहाँ? जब से यह क्लीन चिट वाला ऑप्शन चलन में आया है, देश का फायदा ही फायदा हुआ है। इस ऑप्शन को लाकर देश के खजाने पर इतना बड़ा एहसान किया जा रहा है कि वित्तमंत्री अगला आम बजट पेश करते समय गृह मंत्रालय का खर्च पचास प्रतिशत तक कम कर सकते है। कमीशन बैठाओ, पैसे खर्च करो, कमीशन की समय सीमा बढाने के लिए बैठकें करो, उसे कम से कम दस साल का समय दो तब जाकर एक अदद रिपोर्ट की प्राप्ति होती है। और यहाँ एक क्लीन चिट की वजह से इतना सारा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है।

मैं तो कहता हूँ कि यह क्लीन चिट सरकारी विभागों के घोटालों की जांच पर होनेवाले खर्च को रोकने के लिए संजीवनी सामान है। लोग भले ही शिकायत करें कि सरकारी लोग राज-काज चलाने के लिए नए आईडिया नहीं लाते लेकिन सच यही है कि पिछले वर्षों में सरकारी विभागों ने क्लीन चिट इश्यू करके देश का हजारों करोड़ रुपया बचाया है। ऐसे में मैं तो शिकायत करनेवालों पर लानत भेजता हूँ। मेरा तो मानना है कि जिस तरह से सी बी आई, इनकम टैक्स, कस्टम, एक्साइज, आई बी, ईडी, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, कोयला मंत्रालय, खेल मंत्रालय, रेल मंत्रालय, मुख्यमंत्रालय, इसरो, उसरो, योजना आयोग, पुलिस आयोग, लोकायुक्त, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार, केंद्र सरकार, अरविन्द केजरीवाल, अन्ना हजारे वगैरह ने क्लीन चिट इश्यू कर के आरोपियों को ईमानदार साबित कर दिया है, कई बार लगता है कि हिटलर बेवकूफ था। उसने आत्महत्या क्यों की? अपने ऊपर लगने वाले आरोपों पर उसे क्लीन चिट लेकर मामला सलटा देना था।

फिर मन में आता है कि हिटलर क्लीन चिट कैसे लेता? इसका आविष्कार तो भारत में हाल में हुआ। अविष्कार समय पर न हुआ तो एक आदमी को अपनी जान गंवानी पडी।

क्लीन चिट इश्यू करने की गति से यही लगता है कि आनेवाले समय में चुनाव आयोग भी प्रत्याशी के इनकम वगैरह के रिकार्ड की डिमांड नहीं करेगा। उसका काम बस क्लीन चिट ले-देकर हो जायेगा। किसी ने किसी के ऊपर आरोप लगाया तो वह फट से किसी डिपार्टमेंट से क्लीन चिट लेकर मामला ख़त्म कर लेगा। अगर भ्रष्टाचार विरोधी लोग प्रेस कान्फरेन्स करके घोषणा करेंगे कि वे किसी के ऊपर आरोप लगाने वाले हैं लेकिन यह नहीं बताएँगे कि किसके ऊपर आरोप लगायेंगे, तो एक साथ कई लोग क्लीन चिट ले सकते हैं। उधर भ्रष्टाचार विरोधी ने आरोप लगाया और इधर आरोपी ने क्लीन चिट उसके मुंह पर मारा। तुरंत दान महा कल्यान। जिन्होंने इस डर से क्लीन चिट ले ली है कि हो सकता है आरोप उनके ऊपर लगने वाले हैं, उनका क्लीन चिट बेकार जाने का भी चांस नहीं। वे उसको अपने पास रख लेंगे और जब उन्हें आरोप-गति की प्राप्ति होगी तो उनके काम आ जाएगा।

जिसे भी इस बात की शंका होगी कि उसके ऊपर आरोप लग सकते हैं वह एंटीसिपेटरी क्लीन चिट ले सकता है। जिसे यह लगे कि जबतक वह मंत्री है तबतक उसके ऊपर आरोप नहीं लगेंगे लेकिन सरकार बदलने के बाद लगने के चांस हैं वह पहले से यह कह कर अप्लाई कर सकता है कि उसे दो साल या ढाई साल बाद क्लीन चित की ज़रुरत है। जिस तरह से सोशल मीडिया में मंत्रियों के बेटों और नेताओं के दामादों के खिलाफ आरोप लगाये जा रहे हैं और आरोप लगाने वालों को गिरफ्तार किया जा रहा है, यह क्लीन चिट वाला सिस्टम उसके भी काम आ सकता है। मंत्री जी का बेटा क्लीन चिट लेकर उसे स्कैन करके सोशल मीडिया में आरोप लगानेवाले के नाम अपनी ट्वीट के साथ सेंड कर देगा। आरोप लगनेवाले को गिरफ्तार करनेवाली पुलिस के पास और समय रहेगा और वह बलात्कारियों को धरा करेगी। हाल यह होगा कि मंत्री टाइप लोगों के घर में क्लीन-चिट शो-केस में बाकायदा इस तरह से रखी जायेंगी जैसे सचिन के घर में शो-केस में मैं ऑफ़ द मैच की ट्राफी रखी गई होगी। नेता टाइप प्राइवेट परसन जेब में नोटों की जगह क्लीन चिट रखा करेंगे। क्या पता कब ज़रुरत पड़ जाए।

आगे चलकर अगर सरकार को लगे कि वह पर्याप्त मात्रा में क्लीन चिट की डिमांड को पूरा नहीं कर पा रही है तो वह क्लीन चिट मंत्रालय भी खोल सकती है। अगर उसे लगे कि क्लीन चिट की उपलब्धता में दिक्कत आ रही है तो वह इंटर-मिनिस्टीरियल पैनल ऑन क्लीन चिट मैनेजमेंट बना सकती है। अगर यह लगे कि सरकार के पास समय पर क्लीन चिट डिलीवर करने के लिए वर्क-फ़ोर्स नहीं है तो फिर एन जी ओ को इस काम में लगाया जा सकता है। देखेंगे कि सलमान खुर्शीद के जिस एन जी ओ ने विकलांगों की बैशाखियाँ और हियरिंग एड नहीं बांटी, वही कल क्लीन चिट बांटेगा। अगर सरकार को यह लगेगा कि क्लीन चिट पर्याप्त मात्रा में समय पर इश्यू नहीं हो पा रही हैं तो गृह मंत्रालय के तहत वी आई पी डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम का नेटवर्क बना सकती है।

कहते हैं कोई उद्योग फूले-फले उसके लिए ऍफ़ डी आई का होना ज़रूरी है। ऐसे में ज़रुरत पड़ने पर सरकार क्लीन चिट सेक्टर में ऍफ़ डी आई भी ला सकती है। अगर सरकार चाहेगी तो क्लीन चिट वाले इस आईडिया का पेटेंट करवाकर रख लेगी और आनेवाले समय में यह आईडिया विदेशी सरकारों को फीस लेकर मुहैय्या कराएगी।

कुल मिलाकर बड़ी बिकट ईमानदारी लहराएगी और फिर अबतक आर टी आई एक्ट लाने के लिए क्रेडिट लेने वाले राहुल गांधी क्लीन चिट लाने के लिए भी कांग्रेस पार्टी को न सिर्फ क्रेडिट देंगे बल्कि कहकर लेंगे भी।

7 comments:

  1. Maine to soch lia hai ki ek karkhana ab clean chit chaapne ka laga hi leta hu... jis tarah se demand badh rahi hai, aane wale time mai yeh mobile kranti se bhi bada vayapar hoga... aur ab to clean chit baatne wale log bhi badh gaye hai...

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  2. बड़े काम का मैनुअल,
    जीते तो ...
    हारे ता...
    हर हीरो की खूबी इसके अन्दर..

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  3. बड़े दिनों (करीब २० दिन ) बाद इन्टरनेट डाकिया पोस्ट लाया ..आनंद आ
    गया . कुछ लाइने ४४० वोल्ट करंट से कम नहीं ...
    . इस्तीफ़ा न हुआ बीड़ी हो गई
    . मंत्री वक्तव्य मैन्युअल
    . एंटीसिपेटरी क्लीन चिट

    इतिहास आप को सुनहरे अक्षरों में ब्लोग्गर के साथ साथ राजनेता के सलाहकार
    के रूप में याद रखेगा ..करंट और भावी पीढ़ी के राजनेता आप की ब्लॉग पोस्ट
    को समय समय पर रेफरेंस लेने के लिए उपयोग में लायेगे .....
    जो हैं सो हैं....तनाव पूर्ण माहोल में चेहरे पर मुस्कराहट लाने के लिए आभार
    और हा ..जल्द ही नया घोटाला ...क्लीन चिट घोटाला -संयोजक अन्ना करोड़े

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  4. ...और हम बी कहके लेंगे :-)

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  5. मगर समस्या ये है कि क्लीन चिट मंत्रालय को क्लीन चिट कौन जारी करेगा ??

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  6. और त सब ठीक है लेकिन लगता है सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग की जगह सिर्फ़ उपयोग लिखना चाहिये। कोई मशीनरी का दुरुपयोग नहीं करता। सिर्फ़ उपयोग करता है।

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  7. गोस्वामीजी वाली बात से पूर्ण सहमत :) भईया की प्रतिक्रिया नहीं आयी :)

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय