लड़ाई ख़त्म चुकी थी. कौरव हार चुके थे. पितामह भी धर्मराज युधिष्ठिर को समझा-बुझा कर शासन करने के लिए राजी कर चुके थे. धर्मराज के पास भी राज करने के सिवा और कुछ भी करने के लिए बचा नहीं था. उन्होंने फैसला किया कि खुद को व्यस्त रखने के लिए राज करना जरूरी है. भगवान श्रीकृष्ण भी भविष्य के हस्तिनापुर की नीव कैसी हो, इसपर चिंतन कर रहे थे. अर्जुन गांडीव को धो-पोंछ कर रखने की तैयारी कर रहे थे. बात भी सही थी. जब कोई शत्रु बचा ही नहीं तो फिर गांडीव धो-पोंछ कर रखना ही श्रेयस्कर था. सहदेव भविष्यवाणियां करने में व्यस्त थे. भीम सुबह के नाश्ते के बाद दोपहर के भोजन का मेन्यू और शाम के नाश्ते के बाद रात के भोजन का मेन्यू फाइनल करने में व्यस्त रहने लगे थे. द्रौपदी ने अपने केश बाँधने की तैयारी कर ली थी. हेयर स्टाइलिस्ट उन्हें तरह-तरह के हेयर स्टाइल वाले ब्रॉश्चर दिखाने में व्यस्त थी. माता कुंती अपने व्यस्त पुत्रों को देखकर प्रसन्न होने में व्यस्त थीं.
हस्तिनापुर में तमाम पदों पर बैठनेवाले के नामों की चर्चा चल रही थी. लोग अनुमान लगाने में व्यस्त थे. कौन सा विभाग किसे मिलेगा? कौन हस्तिनापुर में व्यापार मंत्री बनेगा? कौन सेनापति बनेगा? कौन रक्षामंत्री बनेगा? मीडिया व्यस्त. सोशल मीडिया व्यस्त. अखबार व्यस्त. संपादक व्यस्त. महान टीवी चैनलों के महान ऐंकर व्यस्त. चिरकुट चैनलों के चिरकुट ऐंकर व्यस्त. खबरिया टीवी चैनल धर्मराज युधिष्ठिर पर डाक्यूमेंट्री ठेल रहे थे. जिन टीवी चैनलों ने द्रौपदी के चीरहरण के लिए वर्षों तक धर्मराज युधिष्ठिर के द्यूतक्रीड़ा को दोषी माना था, उन्होंने भी उनके बारे में पॉजिटिव बातें ही दिखाने की शपथ ले रखी थी. इन डॉक्यूमेंट्री में लगभग सभी चैनलों ने यह तय कर लिया था कि किसी भी हालत में धर्मराज के जीवन से जुड़े द्यूतक्रीड़ा एपिसोड को नहीं दिखाना है. उन्हें शंका थी कि कहीं लोग यह कहकर हंसी उड़ाना न शुरू कर दें कि; अरे धर्मराज तो जुआ खेलते थे.
तमाम बातों को लेकर लोग चर्चा में व्यस्त थे. जो चर्चा में व्यस्त नहीं थे वे धर्मराज की जय-जयकार में व्यस्त थे. जो जयकार में व्यस्त नहीं थे वे अपना काम करने में व्यस्त थे. जिनके पास कोई काम नहीं था वे धर्मराज को सुझाव देने में व्यस्त थे. जिधर नज़र पड़ती उधर ही व्यस्त लोगों का मजमा दिखाई देता. कुल मिलाकर हस्तिनापुर विकट व्यस्तकाल से गुजर रहा था.
सब तरफ पांडवों के समर्थक ही दिखाई दे रहे थे. कौरवों के समर्थक या तो चुपके से छुट्टियां बिताने अवंती चले गए थे या कन्वर्ट होकर पांडवों के समर्थक पद की शपथ ले चुके थे. पत्रकार चिंतामणि गोस्वामी यह सोचकर व्यस्त थे कि कैसे धर्मराज युधिष्ठिर से एक साक्षात्कार निकाल लिया जाय? अपनी इस इच्छा को फलीभूत होते हुए देखने हेतु वे एकबार नकुल के सारथी से 'सोर्स' भी लगवा चुके थे. उसने पत्रकारश्री को वचन दिया था कि वह नकुल से कहकर उनका यह काम करवा देगा.
इधर धर्मराज युधिष्ठिर पदों पर बैठनेवाले की संभावित सूची को लेकर व्यस्त थे. उन्हें पता था कि कौरवों के वर्षों पुराने कुशासन के कारण हस्तिनापुर एक लाबीस्ट-प्रधान राज्य बन चुका था. एक दिन धर्मराज हस्तिनापुर में भरे जाने वाले पदों के संभावित उम्मीदवारों की सूची देख रहे थे. उन्हें पता था कि किसको कहाँ लगाना है? किसको कौन सा पद देना है. इंद्रप्रस्थ में अपने सुशासन के चलते उन्हें सब पता था कि क्या-क्या करना है. इधर दाहिने हाथ में लेखनी और बाएं हाथ में सूची लिए धर्मराज ने अपना काम शुरू ही किया था कि सेवक संदेश लेकर आया और बोला; "हे महाराज, हे पांडुनंदन धर्मराज युधिष्ठिर, आपसे मिलने प्रजा के कुछ लोग आये हैं"
धर्मराज को लगा कि प्रजा के लोग क्यों आये हैं? अचानक क्या हो गया? उन्होंने अभीतक किसी जनता दरबार लगाने का अनाउंसमेंट भी नहीं करवाया था. खैर, कुछ सोचने के बाद उन्होंने कहा; "ठीक है उन्हें अंदर भेज दो"
सेवक को कुछ याद आया और उसने धर्मराज को जानकारी देते हुए कहा; "परन्तु महाराज, करीब डेढ़ हज़ार लोग आये हैं. सबको अंदर ले तो आऊँ परन्तु वे खड़े कहाँ होंगे?"
धर्मराज ने कुछ सोचकर कहा; "इतने आये हैं? परन्तु क्यों? और सारे क्यों मिलना चाहते हैं?"
सेवक बोला; "ये तो पता नहीं महाराज लेकिन कहा तो यही"
धर्मराज बोले; "तो फिर उनसे कहो कि केवल १०-१५ लोग ही अंदर आएं"
सेवक ने जाकर भीड़ को सूचना दी. बोला; "महाराज को मैंने जानकारी दी. उन्होंने आप में से केवल १०-१५ लोगों को उनसे मिलने की आज्ञा दी है."
अभी उनसे इतना कहा ही था कि भीड़ में से एक युवक चिल्लाया; "मैंने आपसे कहा था कि उन्हें मेरा नाम बताएं. आपने क्या बताया नहीं कि मैं चहचह डॉट कॉम पर उनका फालोवर हूँ? और मुखसर्ग डॉट कॉम पर भी उनका समर्थक हूँ?"
सेवक बोला; "अब यह सब मुझे नहीं पता. उन्होंने तो यही कहा कि १०-१५ लोगों से ज्यादा लोग नहीं जा सकते. आपस में फैसला कर लें कि कौन कौन जाएगा"
उसका इतना कहना था कि बातों का सैलाब आ गया. एकसाथ हज़ारों लोगों ने बोलना शुरू कर दिया. कौन क्या कह रहा था, किसी की समझ में नहीं आ रहा था. कुछ वैसा ही नज़ारा था जैसा पेड़ पर बैठे पक्षियों के झुंड ने नीचे किसी सर्प को देख लिया हो. कोई तर्क दे रहा था तो कोई कुतर्क. सब एकसाथ कुछ न कुछ दे रहे थे. चारों तरफ से तर्क, वितर्क, कुतर्क के वाणों की वर्षा हो रही थी. किसी को पता भी नहीं चल रहा था कि वह क्या कह रहा है? क्या सुन रहा है? क्या कहना चाहता है? क्या सुनना चाहता है?
यह कार्यक्रम देर तक चलने की संभावना को देखते हुए अचानक सेवक चिल्लाया; "अगर इसी क्षण आपसब चुप नहीं हुए तो आपसब को राजमहल के अहाते से बाहर कर दिया जाएगा"
भय बिनु होइ न प्रीति के सिद्धान्त को एकबार फिर से सही पाया गया. सब चुप हो गए. कुछ देर बाद भीड़ ने दस लोगों को जाने दिया. थोड़ी देर में ही दसों धर्मराज युधिष्ठिर के सामने थे. उन्हें देखते ही धर्मराज ने पूछा; "हे, महानुभावों, अपना परिचय दें एवं यहाँ आने का प्रयोजन बताएं."
उनकी बात सुनते ही उनमें से एक अति उत्साहित होकर बोला; "महाराज, पहचाना मुझे? मैं रमाकांत. आपको चहचह डॉट कॉम पर फॉलो करता हूँ"
उसकी बात सुनकर धर्मराज बोले; "रमाकांत! मैंने यह नाम पहले नहीं सुना. अपना पूरा परिचय दें."
वो बोला; "अरे धर्मराज, मैं चहचह डॉट कॉम पर आपका फालोवर. अरे वो @धर्मराजभक्त याद है आपको? वो मेरा ही हैंडल है. अरे वही जिसकी डीपी में त्रिशूल लगा हुआ है. मैं आपकी हर चहचह आर सी करता था. मैंने ही पहली बार #फाइवविलेजेजफॉरपांडव हैसटैग चहचह डॉट कॉम पर ट्रेंड करवाया था. याद है आपको? दुर्योधन का वह फोटोशॉप किया पिक्चर जिसमें आप उसकी छाती पर पाँव रख तलवार घुसाने ही वाले थे, उसे मैंने ही अपनी कारीगरी से बनाया था."
धर्मराज बोले; "मुझे सब याद है लेकिन आपने वहां डी पी में त्रिशूल लगाया है और यहाँ अपना नाम रमाकांत बता रहे हैं तो मैं कैसे पहचानूँगा?"
अभी ये दोनों बात ही कर रहे थे कि एक और समर्थक बोल पड़ा; "और महाराज मुझे पहचाना आपने? मैं वही हूँ जिसने चहचह डॉट कॉम पर अपनी चहचह में दुशासन को गाली दिया था. पाँच सौ आर सी मिला था उसे."
अचानक एक और सामने आया. बोला; "और मैंने जयद्रथ को पूरा सात महीने तक ट्रॉल किया था"
सबने अपना-अपना परिचय दिया। सुनकर धर्मराज बोले; "मुझसे क्या चाहते हैं महानुभावों?"
एक बोला; "महाराज, देखिये आप भी मानेंगे कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के दौरान ही नहीं, उससे पहले से ही हमने आपके लिए काम किया. हस्तिनापुर की प्रजा के बीच पूरा समर्थन और माहौल हमने तैयार किया. आप जरूर मानेंगे कि युद्ध में आपकी विजय हमारे कारण ही हुई."
धर्मराज बोले; "हे महानुभावों, मैं मानता हूँ कि आपने हम पांडवों का समर्थन किया परन्तु इसका बार-बार बखान करके मुझे शर्मिंदा न करें. आप भी मानेंगे कि युद्ध जीतने के लिए हमारे साथ तमाम योद्धा लड़े. उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ाई की. तो क्या उनको इसका क्रेडिट नहीं मिलना चाहिए? वैसे आप चाहते क्या हैं?"
समर्थकों में से एक बोला; "हम यह चाहते हैं कि आप हस्तिनापुर में तमाम पदों पर नियुक्ति हमारे अनुसार करें. हम जिसे कहें उसे सेनापति बनायें. जिसे कहें उसे रक्षामंत्री बनाएं. हम जिसे कहें उसे ………
धर्मराज ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा; "हे समर्थकश्री, समर्थन करना एक बात है और राजकाज के कामों में दखल देना सर्वथा दूसरी. युद्ध समाप्त हो चुका है. अब राज-काज करने का समय आ गया है. अब मुझे काम करना है. अब पदों पर नियुक्ति का काम मुझे करने दें क्योंकि अगर राजकाज ठीक से नहीं चला तो बेइज्जती मेरी होगी, आपकी नहीं. सत्य तो यह है कि केशव भी पदों पर नियुक्ति के मुद्दे पर मुझे कुछ नहीं कह रहे. आपको समझना चाहिए कि ............."
अचानक सब चुप हो गए. कुछ ही मिनटों में समर्थकगण वहां से छंटने. जाते-जाते एक बोल गया; "चलो यहाँ से. सब ऐसे ही होते हैं. जब जरूरत थी तो समर्थन ले लिया और आज कह रहे हैं..........राजकाज चलाने दो, इन्हें भी देख लेंगे जैसे कौरवों को देखा"
Friday, May 23, 2014
महाभारत के बाद
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ट्विटर योद्धा को समर्पित :)
ReplyDeleteहमने तो चह चह डॉट कॉम के साथ उनके समर्थन में कई पोस्ट लिख डाले हमें तो मीडिया एडवाइजर का पद चाहिए
ReplyDeleteआनंद दायक लिखा है महानुभाव। पढ़ कर हम भी हल्का हो गए हैं। लेकिन चह चह डॉट कॉम को कुछ तो खुश रखना ही पड़ेगा धर्मराज को।
ReplyDeleteवाह !! ये अचानक टाइप "यूरेका !! मिल गया !!" वाली लाजवाब पोस्ट थी :) ... अंग्रेजी में दुनिया भर के सुझाव भेज भेज के कमबख्त लैपटॉप के प्रोसेसर को भी पार्किन्सन की बीमारी लगवा इन योद्धाओं ने .. !!
ReplyDeleteवाह भैया .. जब दिमाग में आये तो फटाक से ठेल दिया करिए !!
शैलेश
वाराणसी
1.माता कुंती अपने व्यस्त पुत्रों को देखकर प्रसन्न होने में व्यस्त थीं
ReplyDelete2.लगभग सभी चैनलों ने यह तय कर लिया था कि किसी भी हालत में धर्मराज के जीवन से जुड़े द्यूतक्रीड़ा एपिसोड को नहीं दिखाना है
3.कौरवों के समर्थक या तो चुपके से छुट्टियां बिताने अवंती चले गए थे या कन्वर्ट होकर पांडवों के समर्थक पद की शपथ ले चुके थे
Bejod...Aapki lekhni aur paarkhi nazar ka jawab nahin...Bahut maza aaya bandhu...waah.
Wah bahut hee jordar.
ReplyDeleteकैसी कैसी समानता।
ReplyDeleteरोचक।
ReplyDeleteजबरदस्त
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