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Wednesday, November 14, 2007

दिल्ली में बन्दर - कुछ उतरे सडकों पर कुछ घर के अन्दर


@mishrashiv I'm reading: दिल्ली में बन्दर - कुछ उतरे सडकों पर कुछ घर के अन्दरTweet this (ट्वीट करें)!



टीवी पर देखा समाचार
मुद्दा था, बंदरों का अत्याचार
ये दिल्ली की बात है
आपने क्या सोचा
बात होगी यूपी की
या फिर शायद बिहार

समाचार यह है कि
दिल्ली के अन्दर
हड़कंप मचा रहे हैं
चारों तरफ़ बन्दर

तीज में, त्यौहार में
हाट में, बाज़ार में
जहाँ देखिये
बस बन्दर ही बन्दर हैं
कुछ मिले सडकों पर
कुछ घर के अन्दर हैं

हम भी अजीब लोग हैं
क्यों नहीं मानते कि;
दिल्ली में बंदरों का अत्याचार
इक पुराना रोग है

लेकिन हम है कि
बंदरों के होने पर
विस्मय दर्शा रहे हैं
हमें देख बन्दर भी
मन ही मन हर्षा रहे हैं

दिल्ली की परेशानी
आज की नहीं हैं
दिल्ली तो सदियों से
बंदरों से परेशान रही है

8 comments:

  1. शिव भाई ये क्या बात हुई गद्य लिखते लिखते पद्य लिखने लग गए पर व्यंग्य आपसे छुटता नही है. दिल्ली क्या इन बंदरों ने तो पूरे देश को आतंकित कर रखा है.हां ये जरूर है इनकी मुख्य कर्मस्थली दिल्ली होने के कारण वंहा ज्यादा आतंक है. अब कुछ इन बंदरो के प्रकार, जाती,प्रजाति गुणवत्ता पर भी लिखा जाय.

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  2. भाई दिल्ली के राजनीतिक बन्दर तो सारे देश को हलकान कर रहे है कुछ उन पर भाई लिखे. कविता वैसे सामायिक है

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  3. पता नही दिल्ली वाले
    बन्दरों से परेशान हैं
    या बन्दर दिल्ली वालों से।
    दिल्ली वालों ने
    बन्दरों के जंगल काटे
    इसी लिए यह बन्दर
    दिल्ली वालों को
    आए दिन काटे
    अब दिल्ली वालों का दुख
    कौन बाँटें!!!???

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  4. गुड् है जी! बंदर की जगह ब्लागर लिखें तो कैसा रहे?

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  5. मस्त!!
    मुझे तो लगता है कुछ दिन बाद दिल्ली को कहीं "बंदरधानी" न घोषित कर दिया जाए!

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  6. बंधू
    बधाई
    बहुत लपेट के मारे हैं आप बन्दर सी हरकतों वाले इंसानों को. कहीं असली बंदरों ने आप का ब्लॉग पढ़ लिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे सोच लीजियेगा. सच कहते हैं आप हमारी तबियत झक कर दिए हैं.
    यूं ही लिखिए और लिखते जाईये.
    नीरज

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  7. कवित निश्चित रूप से बेहतरीन थी पर कुछ संदेश देने में असफल रही.
    आप जैसे परिपक्व लेखक से सभी को कुछ ज्यादा अच्छे की उम्मीद बनी रहती है. खैर ये हलके-फुल्के तौर पर काफ़ी अच्छा लगा. थोड़ा इस पर भी प्रकाश डालते की बंदरों की जिस देश में पूजा होती है, वहाँ बंदरो से निपटना कितना दुष्कर है. मार आप सकते नही क्यूंकि भगवान् के तुल्य है..

    गौरव त्रिपाठी.

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  8. अरे भैया तुम दिल्ली से और हम जयपुर से परेशान है,यहां के बन्दर नही रिक्शेवाले शैतान है,जयपुर नगर व्यवस्था बडा दिमागी काम,रिक्शे में घन्टी नही भिडते लोग तमाम,क्या करें दाहिने चलना छोडो? मिर्जा और इस्माइल की मिर्जा इस्माइल रोड,मिर्जा इस्माइल या मिर्जा वीप,बडा भयंकर लोड,टंगडी आखिर तुडवा बैठे?वसु अन्ध रा का फ़ोटो देखा,सुख और चैन नही,बन्गाल आन्ध्रा का रा पटक कर,बीजेपी को चैन नही,ठंड में रडुआ फ़ोटो सेंकें? वैश आली में वो रहती हैं,मान सर ओवर में मैं,सडक का कूकर कुचल गया है,निकली केवल टें,गली में कुत्ता रोते?

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय