रतिराम जी की दूकान पर गया कल. बहुत भीड़ थी. पूजा के मौसम में भीड़ जायज भी है. एक दम अंतिम लाइन में कुछ देर खड़े रहे. लगा पान पाने के लिए बहुत टाइम लगेया, सो चले आये. दो घंटे बाद फिर गए. मैंने कहा पान लगाइए.
वे बोले; "पिछला बार आये थे, रुके, फिर चले काहे गए? आप चले गए त लगा जईसे चीन वाले सैनिक सब जैसी सोच काहे नहीं रखते हैं?"
मैंने कहा; "नहीं, वो बात नहीं है. लेकिन आप चीन के सैनिकों से मेरी तुलना कर रहे हैं?"
वे बोले; "त औउर का करें? हमको लगा आप चीनी सैनिकों की तरह आये, पता नहीं का देखा औउर वापस चले गए. औउर कुछ नहीं त एगो पान खाते और इहाँ का जमीने रंग देते."
उनकी बात सुनकर हंसी आ गई. वे बोले; "हंसिये मत. ऊ लोग भी त एही किया न. आया था लोग और कुछ नहीं त पत्थरे रंग कर चला गया."
मैंने कहा; "हम तो पान खाने आये थे. यहाँ जब पान नहीं मिला तो कुछ रंगने का सवाल ही नहीं था."
वे बोले; "आ नहीं. अईसा नहीं होना चाहिए. जब आये हैं त कुछ कर के जाइए. देखिये चीन का सैनिकवा सब आया. औउर कुछ नहीं त पत्थरे रंग दिया. लालरंग से. इसको कहते हैं रंगबाज सैनिक."
मैंने कहा; "हाँ वो तो है. लेकिन इतनी भीड़ देखकर..."
वे बोले; "सीखिए कुछ ऊ लोग से. आपका तरह ऊ लोग भी भीड़ देखता त बिना रंगे ही चला जाता. सोचिये, ऊ लोग सोचता कि अभी त पाकिस्तानी सब भीड़ लगा कर रक्खा है. कहीं-कहीं बंगलादेशी भी है. अईसे में चलो वापस. जब ई लोग चल जाएगा, त फिर आयेंगे और रंग डालेंगे. लेकिन नाही. ऊ लोग आया, पत्थर सब को रंगा तब गया."
मैंने कहा; "हाँ वो तो है. ऐसा पहली बार देखने को मिला कि दूसरे देश के लोग पत्थर रंगने के लिए आये."
वे बोले; "आप भी न. अईसा का पहला बार हुआ है. औउर जो लोग को ऊ लोग पहले ही रंग दिया है, ऊका हिसाब नहीं रखते आप?"
मैंने कहा; "आप के कहने का मतलब?"
वे बोले; "मतलब का आपको नहीं बुझाता है? अपना देश का न जाने केतना सब के ऊपर चीन का रंग पाहिले से ही चढ़ा हुआ है. ऊ लोग पूरा सराबोर है चीन के रंग में. का सत्ता वाला औउर का भत्ता वाला. नीलोत्पल बसु को नहीं देखे का टीवी पर? देखते तो पता चलता कि लाल रंग से केतना नहाये हुए हैं."
मैंने कहा; "हाँ एक दिन देखा था मैंने उनको."
वे बोले; "सोचिये कैसा चिरकुट है. कह रहा था कि कौनो सीरियस बात नहीं है."
मैंने कहा; "हाँ. लेकिन यही बात तो सरकार के विदेश मंत्री भी कह रहे हैं."
वे बोले; "ऊ काहे नहीं कहेंगे? जो मनई सब फाइभ इस्टार का पर्शीडेनशियल सूट में ठहरेगा ऊ को त सब हरियाली ही दिखेगा न. ऊ तो डेढ़ लाख रोज का भाड़ा दे रहा है. अईसे में उसको मन में शिकायत का भाव नहीं न आएगा."
मैंने कहा; "आपकी इस बात में दम है."
वे बोले; "खाली इस बात में? आपको नहीं लगता कि हमरा हर बात में दम ही रहता है?"
मैंने कहा; "मैं मानता हूँ कि आपकी हर बात में दम है. लेकिन सरकार कह रही है कि ज्यादा चिंता करने की ज़रुरत नहीं है."
वे बोले; " सरकार वाला बड़ा आदमी है सब. उन लोगों को चिंता काहे होगा?"
मैंने कहा; "सरकार का कहना है कि सब मीडिया का क्रिएट किया हुआ है."
वे बोले; "बस अब एक ही बात बाकी है. ऊ भी बोल ही देना चाहिए."
मैंने पूछा; "कौन सी बात?"
वे बोले; "एही कि चीन का सैनिक सब को मीडिया बोलाता है ताकी न्यूज बनाया जा सके."
मैं उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया. मैंने कहा; "चलिए अब जो होगा सो देखा जाएगा. पान खिलाइए."
वे बोले; "अभिये खाइए."
पान खाकर चला आया. चीनी से परेशानी नाप रहा हूँ अब. क्या करूं? त्यौहार का मौसम है न.
Monday, September 21, 2009
आये हैं तो कुछ रंग डालिए
@mishrashiv I'm reading: आये हैं तो कुछ रंग डालिएTweet this (ट्वीट करें)!
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Damdaar lekhani..majedar prasang..
ReplyDeletebahut badhayi..
आप बहुत अच्छा लिखते है..
ReplyDeleteलिखते रहे..
टूटे चाँद से झांकता झींगुर
आप बहुत अच्छा लिखते है..
ReplyDeleteलिखते रहे..
टूटे चाँद को ललछरहूं रंगता झींगुर
चीनी (शूगर- देखिये हमारा पिछला कमेन्ट) से छूटे तो चीन पर जा अटके...आपकी प्रॉब्लम क्या है बंधू ....?? चुप चाप रति राम जी की बात सुनते, पान लेते और चल देते...भीड़ थी तो क्या हुआ...??आप क्या तुर्रम खां है जो भीड़ से अलग रहेंगे..? बुद्धि जीवी हैं? ईमानदार हैं? हरीशचंद्र हैं? हैं क्या...?? आम इंसान हैं और भीड़ में खड़े रहने से उसका हिस्सा बनने से कतराते हैं???? आपको को तो...छोडिये क्या कहना है...
ReplyDeleteअब चीन वालों ने पत्थर रंग दिया तो सबको परेशानी हो गयी...एक जटाधारी बदमाश ने गली के बीचों बीच एक पत्थर रंग दिया और धूनी रमा कर बैठ गया तो कोई कुछ नहीं बोला सिवाय जय "बाबाजी की" के ...यहाँ आपको हर उस जगह पर जिसका कब्जा सरकार से लेना मुश्किल है एक पत्थर रंगा मिलेगा...आप भी मुंह में पान दबाये वहां से सर झुका कर निकल लेंगे...उस पर पोस्ट नहीं लिखेंगे...हमें मालूम है ना...आप भी मिडिया से कम थोड़े ही हैं...गुरु हैं गुरु...निरीह चीनियों पर कुछ भी लिख देंगे...उनको हिंदी जो पढ़नी नहीं आती...दम है तो इसे हिब्रू में लिख कर दिखाओ उनको...
नीरज
नटखट बालक शैतानी करे और किसी को पता न चले फिर शैतानी किये का क्या फायदा, सो आए थे बदमाशी में और जाते जाते 'चीन' लिख गए, वरना पता ही न चलता कब से आना-जाना चल रहा है.
ReplyDeleteआपकी हर बात (पोस्ट) में दम होता है. बढ़ीया लिखे हो.
बहुत अच्छा लिखा है। इस मसले अभी तक की सबसे मौजू और मजेदार पोस्ट लगी मुझे ये पोस्ट! बधाई!
ReplyDeleteये कुश कुछ लिखते नहीं तो कम से कम टिपियाना ही कायदे से सीख लें। सबेरे से बता रहे हैं सबको कि बहुत अच्छा लिखा है , बहुत अच्छा लिखा है। ज्ञान जी भी उनको फ़ालॊ किये हैं! सही कहा गया है- विद्युत धारा न्यूनतम प्रतिरोध के रास्ते को फ़ालो करती है!
विद्युत धारा न्यूनतम प्रतिरोध के रास्ते का अनुसरण करती है!
ReplyDeleteज्ञानजी की जानकारी के लिये- Current follows the least resistant path.
ReplyDeleteका मिसर जी ...आप भी...रति राम जी के बहकाने में आ गये...अरे चीन का भावना नहीं न समझ रहा है लोग...चीन वाला सब त खाली....हिंदी दिवस मनाने आया था...इहां पहुंचा तो पता चला कि ..हिंदी दिवस पर हिंदी लिखने में तो औउरो लोग लगे हैं...सो जाते जाते ...ऊ पत्थरवा सब पर लिखते गया...ई रति राम जी न खाली एही बतवा सब को सुना सुना कर भीड लगाये रहते हैं....सुने हैं दशहरा पर एक ठो चीनी रावण भी गिफ़्ट करने वाला है लोग...हाईट थोडा कम है बस...बकिया सुने है...कि जलेगा एक दम पटापट...रति राम से पूछियेगा ...सच है का...
ReplyDeletebahut badiya post..and nice mataphor rangne ka
ReplyDeleteअब चीनी लौट गए क्या ?
ReplyDeleteहम तो चूक गए इस सब्जेक्ट पर लिखने से !
(फुरसतिया follows the maximum resistance path.)
रतिराम जी की सोच समझ और चिंतन ........बस क्या कहिये...खाली पाने नहीं खिलाते हैं,देश दुनिया की पूरी जानकारियो रखते हैं...हम तो उनके चिंतन से बहुतै परभावित हैं....लाख टके की बात कही है उन्होंने...एकदम खरी चोखी...
ReplyDeleteरतिराम को चुनाव में खड़ा कर दिजिये. विदेश मंत्री की योग्यता वाला पान लगा रहा है और आप पान खाकर चले आये. कभी तो देश के बारे में सोचिये कि बस, पान चुभला कर पन्ना रंगने से मिडिया कहवायेंगे.
ReplyDeleteअच्छा रंगे हैं. :)
भारत वाले अपनी सीमा की साफ-सफाई नहीं कर पा रहे हैं तो एक भले पड़ोसी की तरह चीन ने अपना फर्ज अदा कर दिया।
ReplyDeleteहम भी कभी कभार अपने पड़ोसी के घर का कूड़ा उठवाकर फेंक देते हैं, ताकि मुहल्ला साफ सुथरा लगे। अपना दरवाजा रंगा पुता हो और पड़ोसी का गन्दा लगे तो बेइज्जती खराब हो जाती है।
“...कैसा दरिद्र पड़ोसी पाया है” कोई कह दे तो कैसा लगेगा? इसी लाज में पड़ोसी का खयाल भी रखना पड़ता है।
चीन ने वइसाइच कएला है।:)
मामला रतिरामजी की पूरी जानकारी में है ही नहीं, खामखा तीस मार खाँ बन रहे है. एक समझदार बन्धू का कहना है कि चीन से भारत को कोई (जरूर साम्प्रदायिक व्यक्ति है यह कोई) लड़वाना चाहता है, वरना तो चीन अहिंसाप्रेमी देश है. भारत काहे उँगली कर रहा है समझ में नहीं आता....आप तो जो है, पान खाईये. भगवा वाले लड़वा देगें और आपको पता भी नहीं चलेगा.
ReplyDeleteसमझदार होने में और समझदारी का दिखावा करने में फरक होत है, संजय बाबू. न जाने केतना चिरकुट सब समझदारी का देखावा करने में चित होइ जात हैं. ई बंधू भी कुछ ओइसे ही हैं. हम देख लिया हूँ.
ReplyDeleteमिसिर जी बताये त हम अपना खिलाफ किया गया टिप्पणिया का जबाब देने चल आये. अब जा रहे हैं. बेटा का भरोसे छोड़ के आये हैं दूकान. कहीं कोई चीनी न घुस जाए दुकनवा में.
ऊपर वालो ने जिस तरह से टिपियाया है हम कोम्प्लेक्स के शिकार हो गए है ....की हमारा विदेस नीति ज्ञान कितना कम है ससुरा .खैर आप अच्छा लिखते है लिखते रहिये
ReplyDeleteचीनी सीमा में घुसे और पत्थर रंग कर चले गये । पेंटिंग का इतना शौक है तो पान खा के अपने घर की दीवारें रंग लें ।
ReplyDeleteआदरणीय ज्ञान सर,
ReplyDeleteबेहद सधे हुए मौलिक आलेख पर इतनी टिप्पणियों के बाद कुछ भी कहना शेष नहीं रह जाता है.
सटीक तरीके से सब कुछ कह दिया है.
बधाई और आभार.
Aapka lekh aur Neeraj jee ki tippani bhaee bahut maja aaya. Bahut sal pahale ja cheeni akraman hua tha tabki likhi Bhaee sahab kee ek kawita kee do line yad aa gaee
ReplyDeletePracheen me cheen, Kocheen me cheen
Chau ki najaron me har cheej me cheen
Chau to ab nahee to Hoo sahee.
SACH KAHA ... VYANG KE PEECHI BAT SAMAJH GAYEE HUM BHI .... CHEENI, CHEEN AUR LAAL RANG KE RANGE DESI AUR VIDESHI KHAMBON AUR DIWAARON SE ABHI SE SAJAG RAHNE KI JAROORAT HAI .....
ReplyDeletePAR HUM JAAGENGE NAHI .... SARKAAR NE BOL TO DIYA .... FKR KI BAAT NAHI HAI KOI .....
रतिराम भाई के हर बात में दम है. 'रंगबाज सैनिक' एक ठो बढ़िया टर्म सीखे हैं आज हम.
ReplyDeleteजब पनवाडी के यहां जाते हैं तो क्या कोई ऐसे ही लौट आता है? कम से कम चूना तो लगा जाते:)
ReplyDeleteBAHUT JAN MIL KAR BAHUT KUCH KAH DIYE HAIN AB HAM KA KAHEN.
ReplyDeleteSO CHUP CHAAP HI NIKAL LETE HAIN
PADH KAR.
अपना देश का न जाने केतना सब के ऊपर चीन का रंग पाहिले से ही चढ़ा हुआ है. ऊ लोग पूरा सराबोर है चीन के रंग में. का सत्ता वाला औउर का भत्ता वाला.
ReplyDeleteबिलकुल फिट्ट बात है भाई. एक बात ई जान लीजिए कि आपके रतिभान जी बहुत सही-सही बाति कहते हैं सब अउर आप हैं कि उंको भावै नईं देते हैं. पान खाते हैं अउर चल देते हैं.
अउर हां!
ReplyDeleteज्ञान भैया पर ज़ुर्माना लगाइए त! ऊ टिप्पनी में कापी-पेस्ट कर रहे हैं. आ लिंक में कुछ मिलावट भी कर दे रहे हैं.
मैं केवल उपस्थिति पंजिका में टंकणाक्षर जमाने आया हूँ। इतने विद्वानों के आगे बोल कर क्यों चाल चिन्हाऊँ ;)
ReplyDeleteगज़ब की शैली और रति राम की समझ के तो कायल हो गए !
ReplyDeleteइष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
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