मणि सर, कैमरा से एक्टिंग करवा के कितने दिन फिल्म बनायेंगे?एक मल्टीप्लेक्स में नाइट शो देखकर देवराज इन्द्र की अप्सराएं आकाशमार्ग से जा रही हैं. देखने से लग रहा है जैसे कुछ दुखी हैं. ये जब पिछले साल आई थीं तो अर्थव्यवस्था की मंदी को लेकर चिंतित थीं. आइये सुनते हैं इसबार ये क्या कह रही हैं?
सहजन्या
देवराज को विदित है हमसब धरती पर आई थी
फिल्म देखने की उत्कंठा दस दिन से छाई थी
किन्तु उन्हें क्या पता कि कैसा धोखा खाया हमने
मुद्रा और समय का अपव्यय कर क्या पाया हमने?
अगर सुनेंगे वे क्या सोचेंगे, हमको यह भय है
चित्रलेखा
खूब हँसेंगे हमपर वे यह बात अभी से तय है
हम तो उनसे कह देंगे नारद ने हमें ठगा है
कैसे उनकी राय पर चलकर धक्का हमें लगा है
मर्त्यलोक से पिछले हफ्ते ही लौटे थे जब वे
और मिले थे देवराज के महल में हमसब से वे
हमने जब उनसे अपने मन की ये बात बताई
हमें देखनी थी इक मूवी उत्कंठा जतलाई
उन्होंने ही रावण को रेकमेंड किया था हमको
महीलोक में क्या हिट है ये ट्रेंड दिया था हमको
हम तो सोच नहीं सकते कि वे असत्य बोलेंगे
रम्भा
और मुझे यह संशय था वे भेद नहीं खोलेंगे
मूर्ख बनाया देवर्षि ने हमसब को बातों से
हँसी-हँसी में खेल गए वे मन के जज्बातों से
मैं कहती हूँ हमसब मिलकर देवर्षि से बोलें
जो नुक्सान हुआ है हमको पूरा उनसे ले लें
सहजन्या
अरी तुझे क्या सचमुच लगता देवर्षि दे देंगे?
वे ऐसे हैं बात-बात में हमसे ही ले लेंगे
जो कुछ हुआ उसे हम भूलें इतना भी रोना क्या?
थोड़ा समय और कुछ मुद्रा गई और खोना क्या?
रम्भा
इसी बहाने देवर्षि को हम सब जान चुकी हैं
इसी बहाने उनको बढ़िया से पहचान चुकी हैं
आगे से यह ध्यान रहे कि फिल्म देखनी हो जब
सहजन्या
रिव्यू पढ़ेंगी और फैसला मिलकर लेंगी हमसब
रम्भा
अरी कहाँ तू भी सहजन्ये बातें करे रिव्यू की
क्रिटिक खेलते राजनीति फिल्मों पर अपने व्यू की
सुना नहीं क्या तुमने निर्देशक बस ऐसे-वैसे
रिव्यू लिखा लेते लोगों से मन-माफिक दे पैसे
पैसे लेकर क्रिटिक खेलते जनता से यह खेला
चित्रलेखा
उनकी कारस्तानी ही तो सबसे बड़ा झमेला
अगर सुनो मेरी बातें तो मैं भी अब कुछ बोलूँ
अपनी ज्ञान-तिजोरी का ढकना थोड़ा सा खोलूँ
हमें याद है सम्मलेन, जब फिल्मकार आये थे
और साथ में अपने अनुभव की गठरी लाये थे
तुझे याद है बिमल राय ने मान दिया था हमको
कैसी फिल्में हम देखें ये ज्ञान दिया था हमको
अगर कहानी बढ़िया हो इक फिल्म तभी बनती है
नहीं अगर यह संभव तो फिर पब्लिक सिर धुनती है
मगर यहाँ यह संभव है क्या जब निर्देशक सारे
एक कहानी के पीछे फिरते हैं मारे-मारे
अभी तलक वे रामायण और रावण पर अटके हैं
उन्हें देखकर यही लगा करता है सब सटके हैं
रम्भा
सही कहा यह बात हमें भी अन्तः तक खलती है
मायानगरी उन्ही पुरानी ढर्रों पर चलती है
रावण कहीं है, कहीं राम हैं और कहीं दुर्योधन
बार-बार इनको ही देखे भारत के सारे जन
फिल्मकार को लगता है कैमरा-वर्क बस करके
और साथ में सॉंग-डांस कुछ उल्टा-पुल्टा भर के
उनके लिए गिरेगी कोई बढ़िया फिल्म गगन से
नहीं पता जनता धिक्कारे उनको अन्तःमन से
इसी फिल्म में ऐसा क्या है जिसके पैसे देकर
जनगण देखे और निकलता पीड़ा सिर में लेकर
ऊपर से वह शीलन वाला पॉपकॉर्न का ठोंगा
पचहत्तर रूपये देकर ले मूरख ही वह होगा
चित्रलेखा
सही कहा तूने रम्भे सिरदर्द बहुत होता है
हम इतनी कोमल हैं कि मन अन्दर तक रोता है
चलकर सीधे वैद्यराज से औषधि कोई लेकर
और साथ में दासी को आदेश वगैरह देकर
हम सोयेंगी रात्रि पहर तक पीड़ा तब जायेगी
रम्भा
उसके पहले देवराज की चिट्ठी आ जाएगी
ये बातें हो रही थीं कि अचानक एक जगह उन्हें एक शिविर और उसके आस-पास हलचल दिखाई देती है.
सहजन्या
मही सजी है, लोग व्यस्त हैं कैसा कोलाहल है?
सुबह से पहले जगे हुए सब लोगों में हलचल है
मंच सजा है, भजन गान भी कर्ण सुन रहे मेरे
पता नहीं यह कौन साधु कीर्तन कर रहा सबेरे?
रम्भा
साधु नहीं ये योग-गुरु हैं बैठे शिविर लगाए
श्वांस कर रहे अन्दर बाहर लोगों को भरमाये
कभी-कभी ये भजन गान कर के ही सुख पाते हैं
बड़ा नाम है इनका सब इनके पीछे आते हैं
वैसे तो हैं हरिद्वार में इनका कोई आश्रम
पर फैले साम्राज्य और करते इसलिए परिश्रम
सहजन्या
अरी तुझे तो मालूम है सब, कैसे यह सब जाना?
रम्भा
फैले इनके शिष्य मही पर ऐसा ताना-बाना
वैसे भी जब रावण सी फिल्में बनती जायेंगी
योग गुरु की धरती पर चादर तनती जायेगी
रावण देख देख कर मुद्रा का अपव्यय करके ही
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व्यय-अपव्यय का झमेला भी उतना सरल नहीं, सुधिजन.
ReplyDeleteबन्द से बेहाल भारत, बचाए पेट्रोल न फूँक कर विदेशी धन.
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आज सारी अप्सराओं के नाम जान लिये :)
शेष उनकी व्यथा सही है.
हमने भी आलोम-विलोम न करते हुए रावण पर मुद्रा अपव्यय नहीं की है. जेब में होती तो करते? 50 ग्राम दाल खरीद कर कंगले हो गए.
कविता भी खूब कर लेते हैं आप.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है। क्या बात है।
ReplyDeleteदिल्ली से टिपिया रहे हैं कोलकता आकर आगे तारीफ़ करेंगे।
हा-हा-हा........................................................................................................................
ReplyDeleteरावण देख-देख कर मुद्रा का अपव्यय भी कर ही
ReplyDeleteलौंग-मुलेठी-नीम चबाओ, हो न दिमाग अब दही
कभी अप्सराएँ सालाना यात्रा में मिल जाएँ
उनको भी पिक्चर में लेकर बम्बइये खिल जाएँ
युगों-युगों से सदा सजी सी रहती हैं जो हिट-हिट
मायानगरी में आकर झेलें क्रिटिकों की गिटपिट
नोट बना देता कैसे अच्छे-अच्छों को गिरगिट
कम्प्रोमाइज़ करें नहीं तो जाय अप्सरा भी पिट
बहुत रोचक कल्पना, "रावण" देखकर पड़ा कलपना
रावण द्वारा हम भी प्रताड़ित किये गए हैं...बुरा हो ऐसे घोर अज्ञानी डायरेक्टर का जिनके नाम के बाद लोग श्रद्धा से सर सर करते डोलते हैं...लगता है उन्होंने अद्धा पी कर ये फिल्म बनायीं होगी...सिवा एक वाटर फाल के जिसका छोटा भाई जो हमारी खोपोली में भी गिरता है फिल्म में कुछ नहीं मिला ...जो मिला वो सर में दर्द बन कर चिपक गया...
ReplyDeleteदेव कन्याओं के साथ जो नारद ने किया है वो अक्षम्य है...हम खुद विष्णु के दरबार में गुहार लगाने जाने वाले हैं...सोचते हैं क्यूँ ना स्वर्ग में एक दिन का बंद घ्षित कर दें...नारद की अक्ल ठिकाने लग जाएगी...
बहुत जोर लिखे हैं आप बंधू...हम इस पोस्ट का जवाब कविता में देने वाले थे लेकिन शाम को एम्.डी.टी.वी पर वार्ता का कार्य क्रम है याने एम्.डी. के साथ विडिओ कांफ्रेंस हैं सो उसमें लगे हुए हैं...फिर आयेंगे...तनिक सब्र कीजिये...
नीरज
हमको तो पढकर यह किस्सा आया बहुत मज़ा,
ReplyDeleteफ़िल्मों के दीवानों को देखो कैसी मिली सज़ा॥
अप्सरायें अभी भी वैद्यराज से दवा लेती हैं?! कोई भी एलोपैथिक डाक्टर इतने सुकर्म नहीं कर पाया कि स्वर्ग पंहुंच सके? वैरी बैड!
ReplyDeleteरावण से सम्बंधित अप्सरा संवाद ...
ReplyDeleteज्ञानवर्धन हुआ और मनोरंजन भी ...:):)
बेचारी..
ReplyDeleteअच्छा हुआ रावण नहीं देखी नहीं तो हमारी भी कल्पना अप्सरा बन यही राग छेड़ रही होतीं ।
ReplyDeleteअच्छा है कि रम्भा, चित्रलेखा आदि तमाम अप्सराएं देवलोक में ही विचरण करती रहती हैं... कल को कहीं धरती पर आकर ब्लॉगिंग करने लगें तो फिर तो अनुमान ही लगाया जा सकता है कि ब्लॉगजगत में क्या होगा.....
ReplyDeleteअभी पलक-पुलक टाईप ओढ़निया ब्लॉगिंग ताजा ही है :)
मस्त पोस्ट है।
रावण तो हमने भी नहीं देखी। मुद्रा बच गयी…॥:)अप्सराओं को बोलेगें कि बहनों अगली बार पिक्चर देखने का मन बने तो एडवाइस शिव भगवान से लेने का नारद की रिलाइबिलिटी तो गयी क्षीर सागर में।
ReplyDelete'शीलन वाला पॉपकॉर्न' हा हा ! जनेरा का भूजा कै किलो आएगा पचहत्तर रुपये में ?
ReplyDeleteMesmerizing review !
ReplyDeleteI have not seen the movie but heard a lot that it's a sheer waste of time. Thanks to you for saving my money. Not gonna watch now.
By the way, why didn't the 'apsara' go to Ashwinikumar?
Hats off for this beautiful, poetic review.
हम तो रावण का पोस्टर देख कर ही समझ गये थे कि अंदर मामा मारीच भी नहीं निकलेंगे । नारद जी का क्या है, वो बेचारे खुद गफलत में रहते हैं । मल्टीप्लेक्स में रावण देखने गये थे लेकिन शो "राजनीति" का चल रहा था । उन्हें लगा कि "रावण" ही देख कर उठे हैं ।
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