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Friday, October 15, 2010

रीयल इन्टरनल ऑडिट रिपोर्ट


@mishrashiv I'm reading: रीयल इन्टरनल ऑडिट रिपोर्टTweet this (ट्वीट करें)!

ब्लागिंग के सबसे महत्वपूर्ण अलिखित सिद्धांत के अनुसार ब्लॉगर एक अति सजग प्राणी होता है. लेकिन यह सजगता इसलिए नहीं कि तन कर बैठे हैं कि अपने पास सांप, बिच्छू, मच्छर वगैरह को नहीं फटकने देंगे. वह तो इसलिए रहती है कि हमेशा सजग रहने से कहीं से भी पोस्ट बन सकती है.

एक ब्लॉगर को और क्या चाहिए? एक नई पोस्ट.

पिछले ५-६ दिनों से एक अस्पताल में हूँ. आते-जाते, उठते-बैठते यही सोचते रहते है कि कहाँ से एक अदद पोस्ट निकल सकती है? और रहना भी चाहिए. एक ब्लॉगर के लिए एक नई पोस्ट नारायण के सामान है. किस वेश में नारायण मिल जाएँ, कौन जानता है?

कभी-कभी मन में यह भी आता है कि; "यार आदमी हो या ब्लॉगर?"

हाँ तो मैं हॉस्पिटल की बात कर रहा था. हॉस्पिटल के सबसे बड़े डॉक्टर और मालिक के आफिस में बैठा था. टेबिल पर उनके नाम आये तमाम निमंत्रण पत्र, क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट, पत्रिका में छपी उनकी तस्वीरें, इधर-उधर बिखरे पड़े थे. ध्यान चला ही जाता है. पहले ऐसा केवल ऑडिट करने की पुरानी आदत की वजह से था लेकिन अब ब्लागिंग की वजह से है. खैर, ध्यान गया तो देखा कि इन सब चीजों के अलावा वहीँ पर एक मोटा चिट्ठा रखा था. उत्सुकता वस खोल लिया.
पिछले सप्ताह की हॉस्पिटल की इन्टरनल ऑडिट रिपोर्ट थी. पहली बार मन में आया कि इसे पढ़ना पाप है. इसलिए नहीं पढ़ा. डॉक्टर साहब से मुलाकात करने के लिए जैसे-जैसे इंतज़ार बढ़ता जाता वैसे-वैसे गुस्सा आता. अंत में सोचा कि कुछ न कुछ तो पढ़ना होगा नहीं तो इतनी देर तक यहाँ बैठेंगे कैसे? समय कैसे कटेगा? काफी उधेड़-बुन के बाद मन में विचार आया कि जब पढ़ना ही है तो उनके क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट को नहीं पढ़कर यह इन्टरनल ऑडिट रिपोर्ट ही पढ़ डालूँ.

उलट-पलट कर सरसरी निगाह डाली. पता चला कि यह तो ब्लॉग पोस्ट का मैटेरियल है. जितना पढ़ा था उसका अनुवाद छाप रहा हूँ. आपलोग भी पढ़िए.



रीयल इन्टरनल ऑडिट रिपोर्ट फॉर द पीरियड फ्रॉम फोर्थ ऑफ अक्टूबर टू टेंथ ऑफ अक्टूबर.

गिवेन अंडर द सील ऑफ मिस्टर अशोक दीवान, हेड, इन्टरनल ऑडिट डिपार्टमेंट


कार्डियेक डिपार्टमेंट

तमाम डिपार्टमेंटल रेकॉर्ड्स की जांच करने के बाद हम रिपोर्ट करते हैं कि डॉक्टर कौल ने बाहर से आये एक मरीज को ईको की सही रीडिंग बता दी. सात अक्टूबर को जिस मरीज के ग्रैडिएंट की रीडिंग डॉक्टर माखन लाल ने एक सौ सात और तिरासी बताई थी उसी मरीज की रीडिंग को दूसरे ही दिन डॉक्टर कौल ने केवल चौरासी और पैतालीस बताई. पहली बार ईको करते हुए डॉक्टर माखन लाल ने एक सौ सात की रीडिंग बताकर उस मरीज को डराकर ऑपरेशन के लिए राजी कर लिया था लेकिन जब डॉक्टर कौल ने उसे अपनी रीडिंग बताई तो मरीज यह कहकर हॉस्पिटल छोड़ गया कि उसे अभी ऑपरेशन की ज़रुरत नहीं है. डॉक्टर कौल की इस हरकत से हॉस्पिटल को पूरे साढ़े तीन लाख रूपये का नुक्सान हो गया.

कुछ मरीज बड़े घाघ होते हैं. यह मरीज भी घाघ टाइप ही था. काफी रिसर्च करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि गूगल ने सुई से लेकर हार्ट प्रोंबलम्स तक पर विकिपीडिया का निर्माण कर डाला है. ऐसे में कुछ मरीजों को हर चीज की जानकारी रहती है. वह वीकीपीडिया घोंटकर और यू-ट्यूब पर हर तरह की सर्जरी के विडियो देखकर ही हॉस्पिटल में प्रवेश करता है.

ऐसे में हर डिपार्टमेंट के डॉक्टरों के बीच को-आर्डिनेशन की बहुत ज़रुरत है.

ऑडिट रिपोर्ट्स ऑन असिस्टेंट्स डाक्टर्स टू डॉक्टर रेहान

पिछले सप्ताह लिए गए सी सी टीवी फूटेज देखकर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि डॉक्टर बोस अपनी एक्टिंग क्षमता को और निखारने पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. तमाम मरीजों के साथ उनकी बातचीत की सी सी टीवी फूटेज को देखने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उन्हें अपनी एक्टिंग क्षमता को जल्द से जल्द निखारने पर ध्यान देना चाहिए. मरीजों की ईको रिपोर्ट, ब्लड रिपोर्ट, एक्स-रे वगैरह देखते हुए वे केवल तीन-चार तरह की मुख-मुद्राएं (बोले तो फेसियल एक्सप्रेशन) बनाकर ही मरीज को डराते हैं. रिपोर्ट देखते समय उनके माथे पर केवल दो बल पड़ते हैं. वे केवल एक तरह से ही मुँह बिचकाते हैं. ऐसा करने से मरीज के पूरी तरह से डरने के चांसेज कम रहते हैं. हम मैनेजमेंट को सलाह देते हैं कि डॉक्टर बोस को जल्द से जल्द रोशन तनेजा के एक्टिंग स्कूल में भेजा जाय ताकि वे मरीजों को डराने के और फेसियल एक्श्प्रेसन सीख पाएं.

अगर इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो आनेवाले दिनों में मरीजों को सर्जरी के लिए राजी करने के लिए तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.

बिलिंग डिपार्टमेंट

पिछले सप्ताह बिलिंग डिपार्टमेंट में मरीजों और उनके घरवालों की तरफ से कुल आठ शिकायतें मिलीं. आठ में सात शिकायतें एक्स्ट्रा बिलिंग को लेकर की गईं थीं. यह एक नॉर्मल रूटीन है. इन शिकायतों को ज्यादा महत्व देने की ज़रुरत नहीं है. हाँ जिस शिकायत को महत्व देने की ज़रुरत है वह इस बारे में है कि ऑपरेशन थियेटर में एक मरीज को छोटे से ऑपरेशन जिसमें केवल पंद्रह मिनट लगते हैं उसके लिए कुल एक सौ चौदह इंजेक्शन का बिल बना दिया गया. कान के इस ऑपरेशन के लिए एक सौ चौदह इंजेक्शन कुछ ज्यादा ही है. बिलिंग करते समय इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिए ऐसा कुछ न लिखा जाय जिससे मरीज के घर वाले बिलिंग डिपार्टमेंट में गाली-गलौज शुरू कर दें.

इस तरह की तू-तू मैं-मैं वहाँ उपस्थित प्रोस्पेक्टिव कस्टमर के ऊपर गलत असर डालती हैं.

फिनांस डिपार्टमेंट

पिछले सप्ताह फिनांस डिपार्टमेंट ने बाहर से आये एक मरीज से मानवता के नाते चेक से पेमेंट लेने के लिए हामी भर दी. हालाँकि चेक 'ऐट पार' था और उसी दिन हॉस्पिटल के अकाउंट में क्रेडिट भी हो गया लेकिन मानवता के नाते मरीजों को इस तरह की छूट देना ठीक नहीं है. मरीजों की आदत खराब होते देर नहीं लगेगी. तमाम रेकॉर्ड्स देखने के बाद हम रिपोर्ट करते हैं कि इस चेक से पेमेंट एक्सेप्ट करने से पहले मरीज से केवल एक लेटर लिखवाया गया. अगर तीन-चार बार उसे इधर से उधर दौड़ाया गया होता तो हारकर कहीं न कहीं से कैश का इंतजाम करके कैश ही जमा करता.

हमारी सलाह है कि आगे से इस तरह की हरकतों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए.

कैफेटेरिया एंड फ़ूड स्टेशन

हमारी सलाह पर ही हॉस्पिटल के अन्दर हाल ही में तीसरा कैफेटेरिया खुला जिसमें थाई और चायनीज फ़ूड मिलता है. हमरे डिपार्टमेंट का शुरू से ही मानना है कि हॉस्पिटल बिजनेस का असली फॉरवर्ड इंटीग्रेशन फ़ूड स्टेशन और कैफेटेरिया ही हो सकता है. ऐसे में हाल ही में अरब देशों से आनेवाले मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हम रेकमेंड करते हैं कि हॉस्पिटल मैनेजमेंट यमनी, सउदी और ईरानी फ़ूड के लिए एक अलग फ़ूड स्टेशन खोले. वैसे तो नए फ़ूड स्टेशन के लिए ढाई एकड़ ज़मीन की जरूरत है लेकिन सरकार बावन एकड़ ज़मीन देने के लिए तैयार है. हमें सरकार द्वारा दी जाने वाली ज़मीन ले लेनी चाहिए. आगे यह ज़मीन और किसी काम आ सकती है.

कार पार्किंग

पिछले सप्ताह का काम देखने वाली एजेंसी ने पार्किंग से होनेवाले इनकम पर कमीशन बढ़ाने के लिए एक बार फिर से मैनेजमेंट को पत्र लिखा है. हमारी सलाह है कि मैनेजमेंट अब कार पार्किंग का बिजनेस आउटसोर्स न करके खुद ही करे. ऐसा करने से कंपनी को करीब बासठ करोड़ का एडीशनल रेवेन्यू मिलेगा.

न्यू एवेन्यू ऑफ रेवेन्यू

शुरुआत में हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने बाहर से आनेवाले मरीजों के रिश्तेदारों को ठहराने के लिए गेस्ट हाउस सर्विस चला रखा था. बाद में उसे यह कहकर बंद कर दिया गया कि उस बिजनेस को हॉस्पिटल के बिजनेस के साथ कन्वर्ज करने में मुश्किलें आ रही थीं. पिछले सप्ताह हॉस्पिटल के इन्क्वाइरी काउंटर पर गेस्ट हाउस के लिए कुल तेरह सौ बासठ इन्क्वाइरी आई. वैसे तो हम पहले भी कह चुके हैं लेकिन एक बार फिर से सलाह देते हैं कि मैनेजमेंट गेस्ट हाउस बिजनेस को फिर से शुरू करने के बारे में विचार करे. ऐसा करने से करीब बत्तीस करोड़ .....

पढ़ ही रहा था कि अन्दर से किसी ने पुकारा; 'हंजी, कलकत्ते से जो आये हैं....."

इतना सुनकर रिपोर्ट को छोड़ देना पड़ा. दो मिनट बाद ही डॉक्टर रुपी भगवान के सामने थे.....

23 comments:

  1. ब्लॉगर बीमारी से जाये पर अपनी ब्लॉगरी से न जाये :)

    बीमारी तो एक बार ठीक भी हो सकती है लेकिन ब्लॉगरपन कैसे ठीक हो।

    चलिए इसी बहाने हमें इत्ती बढ़िया पोस्ट पढ़ने मिल गई :)

    शानदार पोस्ट।

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  2. आपकी रिपोर्ट पढ़कर तो हमने ये तय किया है कि डाक्टर को भगवान् की पदवी से अपदस्थ कर दिया जाना चाहिए
    और तथा कथित अस्पतालों पर मानवाधिकार के अंतर्गत कारर्वाई होनी चाहिए

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  3. पिछले दिनों होस्पिटलनुमा मन्दीर के डॉक्टरनुमा भगवान से दो चार होना पड़ा था. यह रपट कतई बनावटी नहीं लगती.

    एवेन्यू ऑफ रेवेन्यू जैसे शब्द प्रयोग लाजवाब है.

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  4. रिपोर्ट में ये भी तो जिक्र किया गया था के वहां हल्दी राम का आउट लेट खुलवा दिया जाए ताकि लोग मरीज के मिलने के बहाने चटपटी चीजें भी वहां खा सकें...
    इसके अलावा एक सौ सीटों वाला आडिटोरियम भी बनवाया जाए जिसमें एक दम ताज़ा रिलीज फ़िल्में दिखाई जाएँ...मरीज के आपरेशन के दौरान जो लगभग लगभग दो ढाई घंटे का होता है, मरीज के परिजनों अपने तनाव को फिल्म देख कर दूर कर सकते हैं...
    जैसे दबंग फिल्म देख कर निकला परिजन मरीज के आपरेशन बिगड़ने की खबर को भी बहुत हलके से लेगा और हुड हुड दबंग गाता मस्त रहेगा...
    इसके अलावा एक छोटा माल भी खोला जा सकता है जिसमें बच्चों के लिए बाउंसी, झूले आदि का प्रावधान हों...माल में हर तरह का माल याने हर तरह के कपड़े,हेयर कटिंग सेलून, जूते, किराने का सामान,आइसक्रीम ,किताबें,खिलौने,लैपटाप , मोबाइल रखें जा सकते हैं...रखे जा सकता है ताकि परिजन बाहर से कुछ भी न लाएं और हास्पिटल में ही सब सुविधाएँ प्राप्त करें...इस से उन्हें लगेगा ही नहीं के वो हास्पिटल में हैं इसलिए वो दो की जगह पांच दिनों तक मरीज के रुकने पर ऐतराज़ नहीं करेंगे...
    (रिपोर्ट कॉफी लंबी है...जिसे बाद में बताएँगे...)

    नीरज

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  5. इस पर तो ध्यान ही नहीं गया है पर अब हर वस्तु बहुत ध्यान व समग्रता से देखते हैं।

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  6. ऐसे भी हैं जो मरीज को रेफर करने वाले को बिल का तीस प्रतिशत देते हैं.

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  7. यह गलत परम्परा की शुरुआत है। ब्लॉगर लोग अब अस्पताल में नर्स देखने की बजाय वहां रखे कागज पत्तर देखने लगेंगे!

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  8. हा हा, ज्ञान भैया की टिपण्णी से ध्यान आया
    नर्सों वाला पाना पढना भूल गए क्या? शुरुआत उसी से करनी थी न.

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  9. मन में तो एक बार आया कि खींच कर छाप दें हम भी कुछ, लेकिन याद आया- 'सांई बैर न कीजिए ... विप्र, परोसी, बैद ... युगन ते यहि चलि आईं', सोचा आप लोगों को भी ध्‍यान करा दें, फिर आगे आपकी जैसी मरजी.

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  10. लीजिए अगली पोस्ट का क्लू भी मिल गया । अगली पोस्ट नर्स पर ।

    वैसे बहुत जोर लिखे हो आप ।

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  11. दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. `कुछ मरीज बड़े घाघ होते हैं.....'

    ब्लागर की तरह :)

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  13. If Cafeteria is a natural forward integration for a Hospital ; Mosquito breeding farm should be a natural backward integration , and the LIFE goes on.

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  14. हमेशा की तरह शानदार। कॉर्पोरेट कल्चर से लैस अस्पताल इसी प्रकार की ऑडिट रिपोर्ट के पात्र हैं।

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  15. हाहाहा बहुत उम्दा पोस्ट है भाईसाहब ..!!

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  16. ओह लाजवाब...मारक....

    एकदम सटीक चित्र खींच दिया है.....

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  17. मिश्र जी प्रणाम । माना कि ब्लागिरी के लिये हर तरफ मसाला ढूंढना पड़ता है लेकिन भगवानजी के पेट पर लात........। कित्ते सारे भगवानजी लोग नाराज हो रहे होंगे । ज्ञान जी की सलाह में दम है । वो कहते हैं न कि उधार प्रेम की कैंची है और प्रेमवत व्यवहार से कस्टमर की जेब से सब वसूला जा सकता है शायद इसीलिये सुंदर नर्सों की व्यवस्था अस्पतालों में की जाती है ।

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  18. बहुत उम्दा विश्लेषण किया है आपने, मुझे लगता है इस आंतरिक रिपोर्ट को पढकर कई मरीज़ स्वस्थ्य हो जायेंगे :)

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  19. Hilarious and thought provoking.

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  20. Hilarious and thought provoking.

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय