जैसा कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया कि बारिश स्कैम के लिए जिम्मेदार सभी लोगों की प्रेस कांफ्रेंस के बारे में लिखूँगा. पिछली बार आपने कोलकाता के प्रभारी बादल की प्रेस कांफ्रेंस की रिपोर्टिंग देखी. आज पेश है कोलकाता के आकाश में छाने वाले बादलों को कंट्रोल करने वाले देवता की प्रेस कांफ्रेंस.
पत्रकार आ चुके हैं. देवता के सेक्यूरिटी गार्ड चाहते थे कि पत्रकार अपने जूते कांफ्रेंस हाल से बाहर उतार कर अन्दर घुसें. देवता ने मना कर दिया. बोले; "पत्रकार भी अपने हैं और जूते भी अपने ही हैं. जो अपने हैं उनसे कैसा खतरा? जूते समेत ही इन्हें अन्दर जाने दो."
उनकी बात सुनकर उनका एक सलाहकार बोला; "हे देव, चूंकि मामला बहुत गरमाया हुआ है और आपके द्वारा साध ली गई मीडिया को देखकर पूरे देवलोक के निवासी यह सोचते हैं कि आपकी यह प्रेस कांफ्रेंस केवल खानापूर्ती है, इसलिए मैं आपको एक सलाह देना चाहूँगा. अगर ऐसे मौकों पर मैं सलाह नहीं दे सकता तो फिर मेरे सलाहकार रहने का क्या फायदा? और तो और, हे देव, बिना सलाह लिए मैं अपनी सैलेरी लेकर गिल्टी फील करूँगा."
देव बोले; "सलाह दीजिये. जरूर दीजिये. सलाह के लिए ही तो आपको स्वर्ण मुद्राएं मिलती हैं. सलाह देने का आपका अधिकार बनता है."
अपने देव से ग्रीन सिग्नल मिलते ही सलाहकार बोला उठा; "तो हे देव, यह रही मेरी सलाह. ध्यान देकर सुनें.... मेरी सलाह यह है कि यहाँ उपस्थित पत्रकारों में से किसी एक को कहकर अपने ऊपर जूता फेंकवा लें. इससे दो बातें होंगी. एक तो आपकी अपनी मीडिया की क्रेडिबिलिटी बनी रहेगी और दूसरा उस पत्रकार को क्षमा करके आप अपना कद बढ़ा लेंगे."
सलाहकार की बात सुनकर देव प्रसन्न हो गए. बोले; "वाह! वाह! तुम्हारी सलाह पाकर हम धन्य हुए. ऐसा सलाहकार किसी और देवता के पास कहाँ? कहो तो अभी गैजेट साइन करके तुम्हें देवलोक महारत्न सम्मान दिलवा दूँ?"
सलाहकार हमेशा की तरह लजाने की एक्टिंग करने लगा. 'लजाते' हुए बोला; "सेवक को केवल देव का आशीर्वाद चाहिए. महारत्न सम्मान तो मिल ही जाएगा. महारत्न सम्मान देव के आशीर्वाद से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है."
देवता अपने सलाहकार के चमचत्व गुण से भाव विभोर हो गया. वातावरण में चारों तरफ चमचत्व के कण तैर रहे थे. ऊपर से बाकी देवता इस दृश्य को देखकर खुश हुए जा रहे थे. एक देवता ने इस प्रेस कांफ्रेंस पर पुष्पवर्षा कर डाली. सलाहकार ने एक पत्रकार को इस बात के लिए पटा लिया कि कोई कठिन सवाल पूछकर देवता से उचित उत्तर की कामना भंग होने का अभिनय करते हुए वह पत्रकार देवता के ऊपर जूता फेंकेगा. बाद में देवता उसे क्षमा कर देंगे. मीडिया की क्रेडिबिलिटी भी बन जायेगी और उधर उस देवता का कद भी एवेरेस्ट टाइप हो जाएगा.
प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुई. देव बोले; "फ्रेंड्स, ऐज यू आर अवेयर, देयर हैव बीन सम....."
अभी देवता ने बोलना शुरू ही किया था कि तीन-चार पत्रकारों ने देवता से देवभाषा में बोलने के लिए कहा. उनकी बात सुनकर देवता बोले; "देवताओं से क्यों देवभाषा बोलवाना चाहते है आपलोग? हम देवता हैं. हमें आंग्ल भाषा में बोलना ही शोभा देता है."
इधर-उधर की बातें हुई. मौका देखते हुए देवता ने अपने सेन्स ऑफ ह्यूमर का प्रदर्शन किया. कुछ ठहाके लगे. उसके बाद पत्रकारों ने प्रश्न दागना शुरू किया. नमूना देखिये;
पत्रकार: क्या यह सही है कि आपके आदेश पर ही कोलकाता के बादलों ने कोलकाता पर वर्षा नहीं करके वहाँ के पानी का कोटा किसी और जगह दे दिया?
देवता: देखिये, यह पहली बार नहीं हुआ है. ऐसा पहले भी होता आया है. मुझसे पहले कोलकाता के प्रभारी देव ने ऐसा कई बार किया था. एक जगह के पानी को दूसरी जगह गिरवा देना कोई नई बात नहीं है.
पत्रकार: लेकिन पहले जो होता आया है उसकी आड़ में ऐसा करना आपको शोभा देता है क्या?
देवता: देखिये, देवों के काम करने का एक तरीका है. हमारा हर फैसला पहले किये गए फैसलों के आधार पर होता है. और जैसा कि मैंने बताया कि हमारे पहले भी वहाँ के प्रभारी देव यह करते रहे हैं....
पत्रकार: क्या यह सच है कि आपने इस बात का फैसला बिना किसी और को बताये कर लिया? क्या यह तानाशाही का प्रतीक नहीं है?
देवता: देखिये, यह तानाशाही है या नहीं वह तो आप पूरा सच जानकर ही निश्चित करें.
पत्रकार: लेकिन डी बी आई (देवलोक ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) की इन्टेरिम रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आपने यह फैसला खुद ही लिया है.
देवता: यह सच नहीं है. यह फैसला लेने से पहले जीओडी यानि ग्रुप ऑफ देवाज की कम से कम तीन मीटिंग्स हुई. इन मीटिंग्स की जानकारी देवराज को भी थी.
पत्रकार: परन्तु देवराज का कहना है कि उन्हें इस फैसले की जानकारी नहीं दी गई. आपने उन्हें अँधेरे में रखा.
देवता: यह सच नहीं है. देवराज को इसकी जानकारी थी. जिस दिन मैंने मिनट्स ऑफ मीटिंग्स उन्हें भेजी थी, वे डांस कंसर्ट में बिजी थे और शायद इसीलिए उन्होंने मिनट्स बुक नहीं देखा.
पत्रकार: आपके ऊपर यह आरोप भी है कि आप मेनका के दूर के रिश्तेदार हैं और इसीलिए उसने देवराज को कहकर आपको कोलकाता जैसे मलाईदार इलाके का प्रभारी बनाया गया. क्या यह रिश्तेदारवाद को बढ़ावा देना नहीं हुआ?
देवता: किसी का रिश्तेदार होना कोई अपराध नहीं है. वैसे हम आपको बता दें कि हमारी नियुक्ति हमारी योग्यता की वजह से हुई है.
पत्रकार: यह अफवाह भी है कि उड़ीसा के कुछ इलाकों से पिछले महीने आपको करीब सात हज़ार घंटे की पूजा-अर्चना मिली और इसलिए आपने कोलकाता का पानी उड़ीसा के उन्ही इलाकों को दे दिया?
देवता: देखिये, देवताओं में चूंकि मैं बहुत पॉपुलर हूँ इसलिए मेरे भक्त हर इलाके में हैं. आप उड़ीसा की बात करते हैं? मेरे भक्त तो रांची में भी हैं. मुझे वहाँ से भी कई हज़ार घंटे की पूजा-अर्चना मिलती रहती है. लेकिन कोलकाता में बरसात न होने की बात को मुझे मिली पूजा से जोड़ना उचित नहीं होगा.
पत्रकार: लेकिन ऐसी खबर आई है कि डीबीआई ने देवराज इन्द्र से ख़ास तौर इस ऐंगिल की जांच करवाने की सिफारिश की है?
देवता: अब यह तो देवराज पर निर्भर करता है कि वे क्या करते हैं. लेकिन मैं यहाँ बता देना चाहता हूँ कि देवराज हमारे देव हैं. हमें उनमें पूरा विश्वास है.
पत्रकार: आपके ऊपर यह आरोप भी हैं कि आपके क्षेत्र के बादल बहुत उद्दंड हो गए हैं. उनके अन्दर डिसिप्लिन नाम की कोई चीज ही नहीं रही. इसी की वजह से वे ढंग से बरसात नहीं कर पाते.
देवता: यह भी गलत आरोप है. जब मैंने अपने इलाके का कार्यभार संभाला था तब वहाँ बादलों की पैदावार बहुत कम होती थी. ऐसे में पानी भी कम ही बरसता था. अब ऐसा नहीं है. अब बादल भी खूब पैदा होते हैं और पानी भी खूब बरसता है.
पत्रकार: कहाँ खूब बरसता है? अगर खूब ही बरसता तो फिर इतना बवाल क्यों होता?
देवता: आप कदाचित उत्तेजित हो रहे हैं. आप बात समझ नहीं रहे हैं. अगर आप देखेंगे तो....
अभी वे बोल ही रहे थे कि पत्रकार ने दाहिने हाथ से अपने दाहिने पाँव का जूता उठाकर इस तरह से देवता की तरफ फेंका कि वह जूता उनके दाहिनी कनपटी के दाहिने तरफ से निकल गया. वहाँ उपस्थित बाकी पत्रकारों, देवता के सिक्यूरिटी गार्ड्स और उसके सलाहकार ने इस पत्रकार को पकड़ लिया. इधर देवता के सिक्यूरिटी गार्ड्स उस पत्रकार को पुलिस को सौंपने की धमकी दे ही रहे थे कि देवता ने कहा; "जाने दो. जाने दो. इस पत्रकार को देखकर लगता है जैसे इसे बहकाया गया है. इसकी गलती नहीं है. किसी ने इसे बहका कर हमारे ऊपर यह आक्रमण करवाया है. इसमें असुरों का हाथ है. यह तो निष्कपट निश्छल पत्रकार मात्र है. इसे छोड़ दो. मैं देवराज से भी आग्रह करूँगा कि वे इसके विरुद्ध कोई कार्यवाई न करें. इसे कारवास की सजा न मिले."
देवता की बात सुनकर उसके सलाहकार ने पत्रकार को देखते हुए अपनी बाएँ आँख दबा दी. पत्रकार मुस्कुरा उठा.
दूसरे दिन ही देवलोक वासियों ने मीडिया की भरपूर सराहना की. उस पत्रकार का नागरिक अभिनन्दन किया गया. देवलोक वासियों में मीडिया की क्रेडिबिलिटी एकबार फिर से वापस आ गई थी. सब इस बात से आश्वस्त थे कि जबतक मीडिया है तबतक उनके अधिकारों की रक्षा होती रहेगी.
Saturday, August 6, 2011
मॉंनसून स्कैम - पार्ट २
@mishrashiv I'm reading: मॉंनसून स्कैम - पार्ट २Tweet this (ट्वीट करें)!
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बड़े अच्छे से हैण्डल किया, बारिश हुई की नहीं?
ReplyDeleteदर असल देवता असली बात बता नहीं रहा है...ये टू जी स्कैम का ही हिस्सा है...देवता के मुख्य निजी सचिव ने देवता के इशारे पर बादलों को जो जी.पी.आर.एस. सिस्टम जगह लोकेट करने के दिया था वो कंडम और बेकार था जिसे अमेरिका ने सस्ते में देवता को बेच दिया था. याने भंगार को भारी स्वर्ण मुद्राएँ देकर खरीदा गया था...बादल बिचारे उस जी.पी.आर.एस. के भरोसे कलकत्ते पर पानी बरसा रहे थे और वो बरस रहा था खोपोली में...
ReplyDeleteनीरज
Bahut khoob! Media ke Devdeep aur Fuhar ne kya pratikriya dee?
ReplyDeleteवाह! अगले भाग का इंतजार है!
ReplyDeleteवैसे आप इन दोनों भागों को दुर्योधन के माध्यम से पेश कर सकते थे। :)
लगता है दुर्योधन को अब भाव मिलना कम हो गया! :) :)
मन में इस जीवनोपरांत स्वर्ग पाने की जो लालसा थी, वह जाती रही। इस ज्ञानचक्षु ओपन करने के लिये ओपन हार्ट धन्यवाद! :)
ReplyDeleteअब पता चला कि आज कोलकाता में बारिश क्यों नहीं थम रही। ज़रूर इस प्रेस कन्फ़्रेन्स के बाद का असर है!
ReplyDeleteआदरणीय ज्ञानदत्त जी, ने जो ओपन हार्ट धन्यवाद दिया है, उसके लिए मै भी उनका बहुत आभारी हूँ, लेख के लिए बस, मै तो यही कहूँगा,
ReplyDeleteइशारों इशारों में सब कहने वाले बता ये हुनर तूने सीखा कहाँ से...लाजवाब व्यंग..
आदरणीय ज्ञानदत्त जी, का ओपन हार्ट धन्यवाद कहने के लिए मै बहुत आभारी हूँ,
ReplyDeleteव्यंग हमेशा की तरह ही बहुत कुछ कह रहा है,
मै सिर्फ इतना ही कहूँगा,
इशारों इशारों में सब कहने वाले बता ये हुनर तूने सीखा कहाँ से.. बेमिसाल....आभार....
'वातावरण में चमचत्व के कण तैर रहे थे..' - क्या उक्ति है!
ReplyDeleteइसका एक्टि-विली यूसेज किया जायेगा.
अब तो जूता-फिकवाने में भी स्केम हो गया है. जनता ये भी ना कर पाए तो और क्या करेगी.
मीडिया जिंदाबाद! देवताओं के लिए कुछ ना ही बोला जाए तो ही खुद के लिए अच्छा है.
इतनी डिटेल स्टडी पढवाने के लिए धन्यवाद!
जबरजस्त राप्चिक प्रेस कान्फ्रेंस रहा :)
ReplyDeleteजब ये प्रेस कान्फ्रेंस चल रहा होगा तो स्टूडियो में बैठे न्यूज रीडर क्वेश्चन तैयार कर रहे होंगे - पत्रकार किस अखबार से था, उसे जूता फेंकते हुए कैसा लगा, जूता न लगने पर कैसा लगा :)
अजब जगब (गजब) सांठगांठ है, ये अपने यहाँ के नेता लोग देवताओं की कूटनीति से ही प्रेरित हैं ।
ReplyDeleteवाह! लगता है देवताओं में भी भरत-तत्व आ गया है..
ReplyDeleteबहुत अच्छी रिपोर्टिंग है! पढ़कर दृश्य आँखों के सामने साकार हो गए!
ReplyDeleteज़रा धरती पर भी उतरिये- इधर पंजाब के बादल अपनी उम्र की उलटी गिनती कर रहे हैं :)
ReplyDeleteमानसून स्कैम की इन्क्वायरी की इन्क्वायरी बहुत अच्छे से बिठाई है आपने...
ReplyDeleteदेवराज कितनी प्लानिंग से अपने महकमे सम्हालते हैं...बादल डिसिप्लिन में न होते हुए भी ऊपर के आर्डर के हिसाब से बरसते हैं.
ये एकदम नयी तरह की बरसात थी.
बहुत ही लाजवाब सर आपका यह दिल्ली की सरकार ने भी पढ लिया शायद यहा का हाल कुछ इतर नही है कोलकाता से ..
ReplyDeleteAb mujje avkaash prapt devta ki adhyakshta mein bethe commission ki report ka intzaar hai.....report kab tak aa jaane k asaar hain ? :-) Badiya interview )
ReplyDeleteAb mujhe avkaash prapt devta ki adhyakshta mein bethi commission ki report ka intezaar hai...report kab tak aa jaane k aasar hain ?:-) Badiya Interiew :)
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