त्रेता युग
जामवंत जी ने हनुमान जी को याद दिलाया कि वे उड़ सकते हैं. बड़े-बुजुर्ग हमेशा से परोपकारी रहे हैं. उन्हें तो बस परोपकार करने का मौका चाहिए. वे कभी पीछे नहीं हटेंगे. दरअसल एक उम्र पर पहुंचकर उन्हें इसके अलावा कुछ और करना न तो आता है और न ही भाता है. जामवंत जी भी इसके अपवाद नहीं थे. हनुमान जी ने जामवंत जी को थैंक्स कहा और श्रीलंका की उड़ान भर ली. बैकग्राऊंड से रवींद्र जैन अपनी सुरीली आवाज़ में गाये जा रहे हैं; "राममन्त्र के पंख लगाकर हनुमत भरे उड़ान...हनुमत भरे उड़ान."
उधर हनुमान जी अपने दोनों पाँव ठीक वैसे ही ऊपर-नीचे करते उड़े जा रहे हैं जैसे पलंग पर पेट के बल लेटा डेढ़ साल का बच्चा अपने पाँव ऊपर-नीचे करता है. देखकर कोई भी बता सकता है कि वे इस समय ज्यादा ऊपर नहीं उड़ रहे हैं क्योंकि मौसम सुहाना है. बादल ऊंचाई पर हैं. रास्ता साफ़ है. दूर-दूर तक सबकुछ दिखाई दे रहा है. लिहाज़ा सामने से आते किसी राक्षस या वायुयान से टकराने की सम्भावना नगण्य है. सूर्य भगवान का पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम स्ट्रॉंग है इसलिए वे अपनी रोशनी पूरे संसार को बांटे जा रहे हैं. हिंद महासागर नीचे अविरल बहता जा रहा है.
हनुमान जी एकाग्र-चित्त उड़े जा रहे है. ठीक वैसे ही जैसे राहुल द्रविड़ पिच पर एकाग्र-चित्त होकर ऑफ स्टंप से बाहर जानेवाली गेंदों को बिना किसी छेड़-छाड़ के छोड़ दिया करते हैं. देखकर ही लग रहा है कि उन्हें उड़ने में बहुत मज़ा आ रहा है. वे किसी बच्चे की सी मुखमुद्रा लिए आनंदित दिखाई दे रहे हैं. अचानक देखते क्या हैं कि समुद्र में से सामने एक विशालकाय महिला उभरी. उसने बड़ा वीभत्स मेक-अप किया है. बड़े-बड़े बाल, माथे पर बहुत बड़ी बिंदी, मुँह के दोनों कोनों पर बड़े-बड़े तिरछे दांत और बड़ी गाढ़ी होठ-लाली से लैस यह महिला हनुमान जी के रास्ते में मुँह बाए खड़ी हो गई. उसे देख हनुमान जी ने खुद को उसके मुँह के आगे हवा में ही पार्क कर लिया. वह महिला जोर-जोर से हा हा हा करके हँसी. उसकी हँसी उसके मेक-अप से मेल खा रही है.
हनुमान जी ने उसे प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा. उस महिला को लगा कि अब समय आ गया है कि वह अपना परिचय दे. उसने कहा; "मैं सुरसा हूँ. हा हा हा हा हा."
उसकी हँसी सुनकर कोई भी कह सकता है कि शायद उसे सुरसा होने पर बड़ा गर्व है. वैसे यह भी कह सकता है कि जैसे हनुमान जी उड़ना एन्जॉय करते हैं वैसे ही सुरसा हँसना एन्जॉय करती है. उसकी हँसी सुनकर हनुमान जी ने कहा; "वह तो ठीक है लेकिन आप इतना हँस क्यों रही हैं?"
सुरसा बोली; "हँसी ही मेरी पहचान है. मैं जब तक नहीं हँसती लोग़ मुझे राक्षसी समझते ही नहीं. अब तुम्ही सोचो कि अगर मैं हँसना बंद कर दूँ तो कौन मुझे सीरियसली लेगा?"
उसकी बात शायद हनुमान जी की समझ में आ गई इसीलिए उन्होंने उसकी हँसी की बाबत और कोई सवाल नहीं किया. आगे बोले; "लेकिन मुझसे क्या चाहती हो?"
वो बोली; "आज देवताओं ने तुम्हें मेरा आहार बनाकर भेजा है. आशा है मेरी बात तुम्हारी समझ में आ गई होगी. नहीं आई हो तो फिर मैं काव्य में सुनाऊं कि; आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा..."
उसकी बात सुनकर हनुमान जी डर गए. उन्होंने सोचा जल्दी से हाँ कर दें नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि यह अपनी बात काव्य में सुनाना शुरू करे तो साथ में आगे-पीछे की दस-पंद्रह चौपाई और सुना दे. आखिर उन्हें भी पता है कि कविता सुनाने वाला अगर सुनाने के मोड में आ जाए तो फिर सामनेवाले के ऊपर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है.
वे झट से बोले; "नहीं-नहीं मैं समझ गया. लेकिन हे माता अभी तो मैं भगवान श्री राम के कार्य हेतु श्रीलंका जा रहा हूँ. इसलिए आप मुझे छोड़ दें. मुझे बहुत बड़ा कार्य करना है. माता सीता की खोज करनी है. हे माता आप समझ गईं या काव्य में बताऊँ कि; "राम काजु करि फिरि मैं आवौं...."
हनुमान जी की बात सुनकर अब डरने की बारी सुरसा जी की थी. वे बोलीं; "समझ गई मैं. तुम्हारी बात पूरी तरह से मेरी समझ में आ गई."
अभी वे बात कर ही रहे थे कि आस-पास बकरी की सी आवाज़ सुनाई दी. हनुमान जी और सुरसा दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि समुद्र के ऊपर इस समय बकरी कहाँ से आ सकती है? वे इस आवाज़ के बारे में अभी सोच ही रहे थे कि उन्होंने देखा कि उनके सामने सूट-बूट पहने, छोटी सी चोटी बांधे एक मनुष्य खड़ा हुआ है.
उसने हनुमान जी को प्रणाम किया और बोला; "हे बजरंगबली, आप तो श्रीलंका जा रहे हैं. मैं यह बताने आया था कि मेरी फिल्म रा-वन कोलम्बो के सैवोय थियेटर में रिलीज होनेवाली है. आप से रिक्वेस्ट है कि आप वह फिल्म ज़रूर देखें."
इस मनुष्य को देखकर शायद हनुमान जी पहचान गए. बोले; "अरे तुम तो वही हो न जो परसों किष्किन्धा के आस-पास के इलाके में अपनी फिल्म का प्रचार करने वाये थे? महाराज सुग्रीव की सेना के कई बानर उसदिन अपना कर्त्तव्य भुलाकर तुम्हारा नाच-गाना देखने चले गए थे?"
उनकी बात सुनकर वह मनुष्य बोला; "हाँ, भगवन मैं वही हूँ. दरअसल मैं अपनी मूवी का प्रचार करने आपके इलाके में गया था. मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मेरी मूवी ज़रूर देखें."
इस बार हनुमान जी बिदक गए. बोले; "तुमने पिछले वर्षा ऋतु से ही परेशान करके रख दिया है. जहाँ दृष्टि जाती है बस तुम्ही दिखाई देते हो. चित्रकूट हो या किष्किन्धा, अयोध्या हो या जनकपुर सब जगह तुम्ही दिखाई दे रहे हो. पागल कर दिया है तुमने सबको."
"लेकिन प्रभु, मेरी बात तो सुनिए. इस मूवी में रजनीकांत भी हैं. मैंने विदेशी गायक से इसमें गाना गवाया है. आप ज़रूर देखिएगा यह मूवी. आपको अच्छा लगेगा"; वह मनुष्य गिडगिडाने लगा.
उसकी बातें हनुमान जी को विरक्त कर रही थीं. बहुत नाराज़ होते हुए बोले; "हे माता, इस मनुष्य ने पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मचा कर रखा है. मैं इसकी मूवी देखूँ उससे अच्छा तो यह होगा कि आप मुझे अपना आहार बना लें. माता सीता की खोज अंगद कर लेंगे."
कट टू द्वापर युग.
महाभारत की लड़ाई चल रही है.
महाराज धृतराष्ट्र के सारथी संजय उन्हें युद्ध के मैदान से आँखों देखा हाल बता रहे हैं. अचानक देखते क्या हैं कि उनकी स्क्रीन पर महाभारत की लड़ाई दिखनी बंद हो गई. सामने सूट-बूट में लैस एक मनुष्य नृत्य करते हुए गाने लागा; छम्मक छल्लो...चम्मक छल्लो..."
संजय की समझ में नहीं आ रहा कि यह कौन है? अभी वे कुछ सोच पाते कि आवाज़ आई; "महाराज धृतराष्ट्र की जय हो. महराज आज दिन भर युद्ध की रनिंग कमेंट्री सुनकर जब आप थक जायें तो आज रात्रिकालीन शो में मेरी मूवी रा-वन देखना न भूलें. बहुत बढ़िया मूवी है. बहुत पैसा खर्च करके मैंने यह मूवी बनाई है. आप आनंद से सरा-बोर हो जायेंगे."
उसकी आवाज़ सुनकर धृतराष्ट्र को लगा कि यह कौन है जो उनका मज़ाक उड़ा रहा है. आखिर जो व्यक्ति अँधा हो वह मूवी कैसे देखेगा? वे नाराज़ होते हुए बोले; "संजय यह कौन धृष्ट है जो मेरी हँसी उड़ा रहा है?"
संजय बोले; "महाराज यह एक चलचित्र अभिनेता है जो अपनी मूवी का विज्ञापन करते नहीं थक रहा. इसने पूरी पृथ्वी पर सबको परेशान करके रख दिया है. यह चाहता है कि आप इसकी मूवी देखें."
महाराज धृतराष्ट्र को बहुत गुस्सा आया. बोले; "क्या इसे यह नहीं मालूम कि मैं देख नहीं सकता?"
संजय अभी कुछ बोलते कि वह अभिनेता बोला; "महाराज आप केवल बैठे रहिये. संजय जी पूरी मूवी का वर्णन आपके सामने रखते जायेंगे. आप उसे फील करते रहिएगा. और हाँ, छम्मक छल्लो को अच्छी तरह से फील करियेगा. अब मैं जा रहा हूँ. मुझे पांडवों के शिविर में भी अपनी मूवी का विज्ञापन करना है."
इतना कहकर संजय की स्क्रीन से वह गायब हो गया. महाराज रात्रिकालीन शो का इंतजार करने लगे.
Saturday, October 22, 2011
युग-युग में रा-वन
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रा-वन..पुराणकाल में आप ही पहुंचा सकते है..क्या अद्भुत मिश्रण किया है मिश्राजी..नाम सार्थक है आपका! बैकग्राउन्ड म्युझिक एवं दो युगोमें भाषाका मिलन भी मुगटका मोरपंख है! अद्भुत..अद्भुत!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...आनंद आ गया !
ReplyDeleteप्रचारक वहां भी पंहुच गए ....
यह तो मोबाइल एड को भी मात दे रहे हैं !
इनसे जान सही छुड़ाई , सीता माँ को तो अंगद खोजते रहेंगे :-)
आभार हंसाने के लिए शिव भाई !
ओह....
ReplyDeleteएक शब्द नहीं अभी मेरे पास अभी जो कह सकूँ....
हे व्यंगकार...आपको नमन....आपके उर्वर मस्तिष्क को नमन...दिव्यदृष्टि को नमन, जो कहाँ से कहाँ तक चली जाती हैं...ओह....
बस...लाजवाब !!!!
गुरुदेव, क्या क्लास्सिक पीस है.
ReplyDeleteरा.वन का चौथे डाईमेंशन में प्रोमोशन सिर्फ आपके ब्लॉग पर ही मिल सकता था.
पर डर यह है की कहीं उन्हें(एस.आर.के को) क्लू मिल गयी, तो असल में ही हनुमान जी सुरसा का आहार ना बन जाएँ.
एक रा.वन के कारण रामायण बदल जाएगी.
बढ़िया वीकेंडी पोस्ट के लिए धन्यवाद!
eh.....bare tam pe tape hain.......
ReplyDeleteabhi abhi kbc pe big-b ke saat hi
iska ad dekha.......
sachmuch.......gajjabbe 'kalpnashilta'......
pranam.
हम यह पोस्ट बांच ही रहे थे कि वो ही महानुभाव आकर हमारे बगल में खड़े होकर बकरियाने लगे अपनी पिक्चर के बारे में। हमने कहा जाते हैं आप कि मारूं खैंव के मानस मुद्रा वाली कोई टिप्पणी। इस पर वे ऐसे गो,वेन्ट गान हुये कि अभी तक दुबारा नहीं दिखे। :)
ReplyDeleteमैं इसकी मूवी देखूँ उससे अच्छा तो यह होगा कि आप मुझे अपना आहार बना लें - hahahahahaha
ReplyDeleteलगता है वो सूट पहना हुआ मनुष्य इस पोस्ट में भी प्रचार करने के लिए आ गया है..अतिउत्तम..
ReplyDeleteरा -वन के विज्ञपन का चमत्कार है या चम्मक-छल्लो का पता नहीं ,लेकिन मज़ा आ गया :) "और हाँ, छम्मक छल्लो को अच्छी तरह से फील करियेगा." (महराज को छोडिये, भैया दुशासन क्या फील कर रहे होंगे मुझे उसकी चिंता लगी है :D)
ReplyDeleteदेखनी ही पड़ेगी अब तो रा 1, जो न देखेगा उस पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लग जायेगा।
ReplyDeleteठीक दशा है कलजुग की, दीवाली में रावन फिल्म आ रही है।
ReplyDeleteहा हा हा हा साहरूखवा को भेजते हैं लिंक आ कहते हैंकि ई मिसर जी तो तुमको डुबा दिए बेट्टा , जो जो ई पोस्ट पढेगा ऊ तो तुमहरा रा वन को कामेडी जान के देखने जाएगा ..
ReplyDeleteका हाल कर दिए प्रभु इनका , सीटी स्कैन करके भी छोड देते तो गईयेले था रावनवा लेकिन आप तो पोस्टमार्टम रपट धर दिए डायरेक्ट्ली
इस आलेख की शैली बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteई हनुमान भी शाहरुख खान है का? :)
ReplyDeleteजब प्रमोशन का यह हाल है तो प्रसारित होने के बाद ...हनुमान जी जान बचाए वैसे त्रेता युग ज्यादा रोचक टाइप है द्वापर आते आते खान साहब थोडा
ReplyDeleteथक से गए है ....वैसे आप के विचार निर्माता तक तो पहुच ही जायेगे |
सम्भावना नगण्य है ..फिर भी कही तोडा बहुत चल भी गयी तो मानहानि का मुक़दमा हम सब मिल कर लड़ेगे ....
जय हो, आपके हाथ शायद टाइम मशीन लग गयी है जिससे रा-वन पौराणिक काल में भी पहुँच गया।
ReplyDeleteमजेदार लेख।
अभी वे बात कर ही रहे थे कि आस-पास बकरी की सी आवाज़ सुनाई दी. हनुमान जी और सुरसा दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि समुद्र के ऊपर इस समय बकरी कहाँ से आ सकती है? वे इस आवाज़ के बारे में अभी सोच ही रहे थे कि उन्होंने देखा कि उनके सामने सूट-बूट पहने, छोटी सी चोटी बांधे एक मनुष्य खड़ा हुआ है.
ReplyDeleteबहुत आनन्द आया इस वाक्य में तो। प्रचार की इंतिहा हो गयी।
इस से पूर्व मैं केवल भूख लगने पर इसे पकड़ा करता था या फिर अधिक खाने के बाद इस में फंसी गैस के कारण...आज पहली बार अत्यधिक हंसने के कारण पेट पकड़ने की नौबत आई है...हनुमान -सुरसा संवाद आपकी विलक्षण हास्य प्रतिभा का परिचायक है...उस पर बकरी नुमा व्यक्ति का वहां प्रकट होने वाला प्रसंग आपकी प्रतिभा के केक पर लगी चेरी के समान है...अद्भुत...सच आपकी कल्पना शीलता की कोई मिसाल मुझे ढूंढें नहीं मिलती...द्वापर युग तक तो मैंने अभी तक छानबीन कर डाली है...अब तो डायनोसौर युग वाले समय में लोगों की प्रतिभा खंगालनी बाकी है...आप धन्य हैं बंधू...
ReplyDeleteनीरज
Wonderful!!! इस पर तो गजगामिनी जैसी फिल्म बन सकती है :D
ReplyDeleteई सैरुकवा बहुते थेथर अमदी है भाईसाब.. पर का करें थेथरों का जम्माना है..
ReplyDeleteहनुमानजी के उड़ने का तो गजब चित्रण है. एकदम गजब !
ReplyDeleteमुझे भी लोग बोलेंगे कि चलो देखने. मैं भी सुरसा के मुंह में जाना ज्यादा पसंद करूँगा :)
हनुमान जी हनुमान जी नैया रा वन की पर करो हनुमान जी :-)
ReplyDeleteवाह, व्यंग सम्राट की जय हो, लेख की प्रशंसा करने में असमर्थता महसूस कर रहा हूँ, बस गला फाड़ के हँसे जा रहा हूँ,गज़ब कर दिया आपने पेट में दर्द होने लगा है, मुझे डर है की कही लोग मुझे पागल ना समझने लगे, क्यों की मै सोंच सोंच के हंस रहा हूँ,अरे बाप रे....
ReplyDelete:)
ReplyDeletewtch me also
ReplyDeletegood
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गाथा रही ये हनुमान जी महाभारत सब ..हास्य व्यंग्य का पुट --आप की .रचनाएं मन में घर कर जाती हैं
ReplyDeleteभ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण --में आप का स्वागत है -हो सके तो अपना सुझाव और समर्थन भी दें
हनुमान जी को विरक्त कर रही थीं. बहुत नाराज़ होते हुए बोले; "हे माता, इस मनुष्य ने पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मचा कर रखा है. मैं इसकी मूवी देखूँ उससे अच्छा तो यह होगा कि आप मुझे अपना आहार बना लें. माता सीता की खोज अंगद कर लेंगे."
मैं इसकी मूवी देखूँ उससे अच्छा तो यह होगा कि आप मुझे अपना आहार बना लें. माता सीता की खोज अंगद कर लेंगे."
ReplyDeleteऔर
महाराज रात्रिकालीन शो का इंतजार करने लगे.
हा हा हा .
अद्धभुत लेख मिश्रा जी, साधुवाद
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