वे एक बार फिर से विधायक चुन दिए गए हैं. शहर से निकलने वाले अखबार के पेज चार पर छपे हर विज्ञापन में उनकी तस्वीर है. तस्वीर के दोनों तरफ दो और तस्वीरें हैं. इन तीन तस्वीरों के नीचे कुछ और तस्वीरें. जिस तरह से उनकी तस्वीर को बाकी तस्वीरों ने घेर लिया है उसे देखकर लग रहा है कि उनकी तस्वीर कोई तस्वीर नहीं बल्कि गठबंधन वाली कोई सरकार है और बाकी की तस्वीरों ने बिना शर्त समर्थन देते हुए उसे थाम रखा है. वैसे कभी-कभी यह भी लगता है जैसे उन्हें थामने का महत्वपूर्ण काम उनकी मूंछों ने कर रखा है. बाकी की छपी तस्वीरें सारी साइड हीरो के रोल में हैं. लीड रोल में तो जी मूंछें ही हैं.
ये विज्ञापन इस बात की सूचना देते हैं कि उनकी जीत ऐतिहासिक है. शायद इसलिए कि जेल में रहते हुए विधायक जी तीसरी बार चुन दिए गए हैं. उनके समर्थकों को शायद इस बात पर विश्वास है कि हजारों वर्ष पहले मथुरा की जेल में हुई सबसे बड़ी ऐतिहासिक घटना के बाद जनता द्वारा उनका चुन दिया जाना भारतवर्ष के इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी ऐतिहासिक घटना है.
छपी तस्वीरों में बने उनके चेहरे पर विनम्रता के सारे लक्षण हैं. जुड़े हुए हाथ. शालीन चेहरा. विनम्र कुर्ते का विनम्र कालर. विनम्र पोज और विनम्र ही चश्मा. यहाँ तक कि अँगुलियों में पड़ी अगूठियाँ भी कुछ कम विनम्र नहीं दिख रही. विनम्रता का हाल यह है कि महाराणा स्टाइल वाली उनकी मूंछें तक विनम्र लग रही हैं. मानो धमकी दे रही हों कि मैं तो ऐसे ही विनम्र दिखूंगी, जाओ जो उखाड़ना हो, उखाड़ लो. कुल मिलाकर मूंछों की विनम्रता ऐसी कि शायद ही कोई इन मूंछों से आँखें मिलाने की हिम्मत कर सके.
एक विज्ञापन में छपी तस्वीरों के ऊपर संस्कृत का श्लोक टीप दिया गया है जिसे देखकर लग रहा है कि इस श्लोक को विधायक जी को पवित्र बनाने के काम में लगा दिया गया है और वह आज काम पूरा करके ही लौटेगा.
इन तस्वीरों के अलावा इस पेज पर छोटे कालम के तीन समाचार छपे है. एक के अनुसार हनुमान मंदिर के पास शनिवार को बाइक के धक्के से एक युवती गंभीर रूप से घायल हो गई. दूसरे समाचार के अनुसार श्रम विभाग द्वारा चलाये जा रहे बाल श्रम विद्यालय अब सबेरे साढ़े सात बजे खुलेंगे और तीसरे के अनुसार थाना क्षेत्र अंतर्गत अवैध ढंग से बेंची जा रही सीमेंट पकड़ी गई.
विज्ञापनों के बीच छपे ये समाचार इस कागज़ को अखबार का पेज बना रहे हैं.
उनकी जीत की ख़ुशी में उनकी 'फैमिली' ने सहस्त्र चंडी पाठ का आयोजन किया है जिसमें उनकी पार्टी के दो नंबर वाले दो नेता आये हैं. इनमें से एक को द्वारिकाधीश का भाई शायद इसलिए करार दिया गया है ताकि विधायक जी को सुदामा बताया जा सके और उनके गाँव-घर को सुदामानगरी. मूछों वाले सुदामा विज्ञापनों में खूब फब रहे हैं. इन विज्ञापनों के प्रायोजक इलाके के साइड नेता, उप नेता, नरम नेता, गरम नेता, व्यापारी नेता, जिला परिषद् के सदस्य वगैरह हैं. देखने से ये लोग़ विधायक-प्रेमी मालूम होते हैं.
विधायक जी की फैमिली ने इलाके की जनता का आभार प्रकट किया है. उधर जनता ने विधायक जी का आभार प्रकट किया है. उधर विधायक जी ने जनता को धन्य बताया तो लगे हाथ जनता ने भी विधायक जी को धन्य करार दे दिया. दोनों एक-दूसरे को धन्य बता रहे हैं. दोनों को देख कर लग रहा है कि आसमान में खड़े देवता इस समय इनके ऊपर पक्के तौर पर पुष्पवर्षा कर रहे होंगे. इन दोनों 'पार्टियों' की धन्यता मिलकर लोकतंत्र को धन्य बना रही है. इस तरह पूरा इलाका पिछले एक महीने से धन्य हुआ जा रहा है.
कुल मिलाकर चुनाव के बाद इस धन्य मौसम में इलाके की धन्यता नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है.
फैमिली का नागरिक अभिनन्दन रोज हो रहा है. सोमवार को अभिनन्दन हो लिया तो लोग़ मंगलवार का कार्यक्रम बन रहा हैं. बुधवार, वृहस्पतिवार और शुक्रवार भी पीछे नहीं हैं. आलम यह है कि विधायक जी की 'फैमिली' हफ्ते के सातों दिन बुक है. फैमिली के लोग़ वक्तव्य दे रहे हैं और अखबार उन्हें छाप दे रहे हैं. अखबार भी बेचारे क्या करें? वक्तव्य मिले या विज्ञापन, छापने के लिए ही मिले हैं.
एक रोज नागरिकों ने मिलकर विधायक जी की बेटी को ३४ किलो की माला पहना दी. चार लोग़ माला पकड़कर खड़े हुए तब जाकर फोटो खींची जा सकी. एक और अभिनन्दन में उनकी पत्नी को चाँदी की तलवार भेंट कर दी गई. हाथ में तलवार उठाये उनकी फोटो देखकर लगा मानो वहीँ से छलांग लगाकर घोड़े पर सवार होंगी और अंग्रेजों से बदला लेने लन्दन तक घोड़ा दौड़ा देंगी.
कुल मिलाकर बिकट लोकतंत्रीय महौल की सृष्टि हुई है. धन्यता के इस मौसम में हर कोई खुद को विधायक जी से जोड़ने के लिए कमर कसे दिखाई दे रहा है. उनसे जुड़ने के लिए हर कोई नए नए रास्ते तलाश रहा है. नई-नई कहानियां गढ़ी जा रही हैं.
"अरे, पप्पू के वियाह में आये थे. अरे हाँ, यही पप्पू. अपने भइया के बड़े लड़के. अरे चार-चार बाडीगार्ड. ये बड़े-बड़े. हाथ में स्टेनगन लिए हुए. बाकी खाना नहीं खाया उन्होंने. मन्त्र लिए हैं न. बाहर नहीं खाते. देवी भक्त इतने बड़े कि कोई मंगलवार नागा नहीं जाता था कि वो 'बिन्धाजल' बिन्ध्वासिनी के दरबार में दर्शन करने न जाते हों."
"बहुत कोशिश की सी आई डी ने पकड़ने की. बाकी कोई तरकीब काम नहीं आई. दिमाग ऐसा कि पुलिस को झांसा देना उनके बायें हाथ का खेल समझिये. एक बार रात को हमारी चाह दूकान पर आये. बोले बढ़िया चाह बनाओ. हाँ तो हमने भी जो चाह बनाई तो बोले कि महराज कलकत्ता घूमे, बम्बई घूमे, दिल्ली घूमे लेकिन ऐसी चाह कहीं नहीं मिलती."
"अरे, हमारे गुड्डू तो उन्ही की गाड़ी चलाते हैं. आजतक पुलिस, थाना, कोरट कहीं भी मेरा काम रुका नहीं. उन्ही की वजह से दरोगा भी सलूट मारता है गुड्डू को."
"अरे उनके कुत्ते ने मुझे काट लिया था. एक बार क्या हुआ कि हम मिलने गए उनके घर पर. देखते क्या हैं कि ओसारे में कुत्ता बैठा. कुत्ता तो क्या स्साला देखने में पूरा शेर. इधर हम ओसारे में घुसे उधर वोह भौंका. उधर हा हा करते करते यही जांघ में दांत घुसा दिया. वो तो उनका बाडीगार्ड पकड़ा नहीं होता तो किलो भर मांस निकाल लेता की. हाँ तो फिर तुरंत फोन करके डाक्टर बुलाये. चौदह इंजेक्शन लगा था."
कुल मिलाकर उन्हें जानने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. किसी न किसी चाय-पान की दूकान पर कोई न कोई दूर का रिश्तेदार मिल ही जाएगा. मौसी की जेठानी के छोटे लड़के के बड़े स्साले से लेकर साढू के साले के नाती तक हर जगह विराजमान हैं. अब उनके ऊपर चल रहे मुक़दमे हटाने की मांग भी उठने लगी है.
साथ ही उठ रहा है भारत का लोकतंत्र.
Saturday, April 14, 2012
विधायक जी
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आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
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संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भैया हमरे दूर.... थोड़े और दूर... के रिश्तेदार का क्या 'सीन' खिंचे हो... मजा आ गया. अब सोचते हो उत्ते दू...र.. के भी नहीं है. अपने ही है. एक बार कंधे पर हाथ रखा था हमरे... तब से हम अकड़ के चलते है...
ReplyDeleteबेहतरीन! श्री लाल शुक्ल याद दिलाती है आपका लेखन
ReplyDeleteबस उठता ही रहे , उठ ही न जाए लोकतंत्र.
ReplyDeleteकुछ उठाते हैं लोकतंत्र
ReplyDeleteकुछ दिखाते है लोकतंत्र
कुछ लिखते हैं लोकतंत्र
कुछ बाँचते हैं लोकतंत्र।
़़़़
वाह वाह !!!
लोकतन्त्र की गंगा में नहा कर पवित्र हो गये हैं नेताजी।
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