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Friday, May 25, 2012

चंदू इन एक्सक्लूसिव चैट विथ डॉक्टर सिंह


@mishrashiv I'm reading: चंदू इन एक्सक्लूसिव चैट विथ डॉक्टर सिंहTweet this (ट्वीट करें)!

चंदू ने उत्तरप्रदेश चुनावों के समय राहुल गांधी जी का एक इंटरव्यू किया था. चूंकि राहुल जी हमेशा सच बोलने और लिखने वालों के साथ रहते हैं, लिहाजा उन्होंने चंदू की बड़ी प्रशंसा की. चंदू की प्रशंसा के चर्चे इतने फैले कि प्रधानमंत्री ने फैसला किया कि वे पाँच संपादकों से मिलें उससे अच्छा केवल चंदू को इंटरव्यू दे दें. जो काम पाँच सम्पादक मिलकर नहीं कर सकेंगे वह काम चंदू अकेले ही कर देगा. परसों यूपीए-टू की तीसरी सालगिरह मनाई गई. मीटिंग हुई. खाना-पीना हुआ. मुस्कुराहटें बिखेरी गईं. विचार-विमर्श करने की ऐक्टिंग की गई. कुछ ने खुश दिखने की ऐक्टिंग की. कुछ ने दुखी दिखने की. कुछ पुराने मित्र नहीं आये. सरकार को नए मित्र मिले. फोटो वगैरह की खिचाई हुई. इन्ही सब के बीच चंदू को मौका मिला कि वह प्रधानमंत्री का इंटरव्यू ले सके.

कल ही दिल्ली से लौटा और इंटरव्यू की ट्रांसक्रिप्ट मुझे थमा दी. बोला; "एक्सक्लूसिव इंटरव्यू है. तमाम पत्र-पत्रिकाएँ चाहती थीं कि मैं उन्हें बेंच दूँ लेकिन चूंकि मैं ब्लाग-पत्रकारिता धर्म का पालन करना चाहता था इसलिए ये मैं आपको दे रहा हूँ. आप ही छापिये."

तो पेश है प्रधानमंत्री का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू. आप बांचिये.

चंदू: सर, नमस्कार.

प्रधानमंत्री:

चंदू: सर नमस्कार.

प्रधानमंत्री:

चंदू: सर, मैंने कहा नमस्कार. आप कुछ बोलिए.

प्रधानमंत्री: बोलूँ? मतलब आप मुझे बोलने की इजाजत देते हैं?

चंदू: सर, आप देश के प्रधानमंत्री हैं. मैं एक अदना सा पत्रकार. मेरी क्या हैसियत कि मैं आपको इजाजत दूँ.

प्रधानमंत्री: देखिये यह इजाजत नहीं चंदू जी, दरसल यह आदत की बात है.

चंदू: समझ गया सर, समझ गया.

प्रधानमंत्री: आप तो बहुत समझदार हैं. काश इतनी समझदारी अरनब गोस्वामी के पास होती. वैसे मुझे आने में थोड़ी देर हो गई. दरअसल हमलोग खा रहे थे.

चंदू: कोई बात नहीं सर. पार्टी है तो खाना-पीना तो होगा ही.

प्रधानमंत्री: हे हे..क्या बात कही आपने. पार्टी है तो खाना-पीना तो होगा ही. वैसे भी सबके साथ खाने में समय ज्यादा लगता है. और लोग़ रहते हैं तो बातचीत करते हुए खाते हैं. हँसते हुए खाते हैं. विचार-विमर्च करके खाते हैं. ऐसे में समय ज्यादा लग ही जाता है.

चंदू: बिलकुल सही बात कह रहे हैं सर. इंसान को अकेले खाना हो तो उसे कितना टाइम लगेगा खाने में? साथ की बात कुछ और है.

प्रधानमंत्री: हे हे हे..बिलकुल सही कहा आपने. वैसे आपने खाया या नहीं?

चंदू: नहीं सर, मैंने नहीं खाया. वो पार्टी में दाल-रोटी नहीं थी न. यहाँ तो सारे परदेशी-विदेशी व्यंजन हैं.

प्रधानमंत्री: क्या बात कर रहे हैं? आप पत्रकार होकर दाल-रोटी खाते हैं?

चंदू: सर, अब आप तो जानते ही हैं कि मैं एक ब्लाग-पत्रकार हूँ इसलिए मेरे पास कोई च्वायस नहीं है.

प्रधानमंत्री: चंदू जी पत्रकार को बहुत चूजी होना चाहिए. च्वायस तो पत्रकार खुद बनाता है.

चंदू: क्या फरक पड़ता है सर. बात तो पेट भरने से है. मेरा पेट दाल-रोटी से ही भर जाता है. कह सकते हैं यह बुरी आदत हो गई पेट भरने की. वैसे भी सर, दाल-रोटी खाने का फायदा यह रहता है कि खानेवाले को आटा-दाल का भाव पता लगता रहता है.

प्रधानमंत्री: हे हे हे..ये खूब कही आपने. इसी बात पर आपको एक शेर सुनाता हूँ.

चंदू: अरे सर, अभी तो इंटरव्यू की शुरुआत है. शेर कहने के लिए तो और भी मौके आगे आयेंगे.

प्रधानमंत्री: चलिए आपने कहा तो मैं रुक जात हूँ नहीं तो मैं सुनाता कि; माना कि तेरी दीद के काबिल..

चंदू: हाँ सर, मुझे पता है कि आप यही सुनाते.

प्रधानमंत्री: हे हे हे..

चंदू: सर, आपसे मेरा पहला सवाल है कि आप इन आठ सालों को कैसे देखते हैं? कैसे गुज़रे ये साल?

प्रधानमंत्री: कैसे देखते हैं की बात पर तो यही कहूँगा कि पीछे मुड कर देखते हैं. रही बात कि ये आठ कैसे गुजरे तो उसपर यह कहूँगा कि गुजरे तो क्या हमने गुज़ार दिए.

चंदू: वैसे सर, आप अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं?

प्रधानमंत्री : सबसे बड़ी उपलब्धि की बात पूछेंगे तो मैं यही कहूँगा कि हमारी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि वह खड़ी रह गई.

चंदू: और आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि?

प्रधानमंत्री: मेरी सबसे बड़ी व्यक्तिगत उपलब्धि की बात करेंगे तो मैं कहूँगा कि मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि मैंने अपनी सरकार को खड़ी रखा.

चंदू: इसी के साथ यह भी पूछता चलूं कि इन आठ सालों में देश की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही?

प्रधानमंत्री: देश की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि देश ने मेरी सरकार को झेला.

चंदू: लेकिन वहीँ यह आरोप भी लगते रहे हैं कि बहुत सारी पार्टियों और नेताओं को मैनिपुलेट करके सरकार को खड़ी रखा गया.

प्रधानमंत्री: अब राजनीति की बातों में मुझे मत घसीटिए. मैं एक इकॉनोमिस्ट हूँ. मुझे राजनीति नहीं आती.

चंदू : परन्तु सर, तमाम लोग़ यह मानते हैं कि आप राजनीतिज्ञ हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो माइनॉरिटी की सरकार आठ सालों तक नहीं चलती.

प्रधानमंत्री : आप मेजर प्वाइंट मिस कर रहे हैं. यह राजनीति की बात नहीं बल्कि इकॉनोमिक्स की बात है. देश की इकॉनोमी को आगे बढ़ाने के लिए हमें समर्थन मिलता रहता है. हम लेते रहते हैं और सरकार चलती रही है.

चंदू : लेकिन सर, कुछ लोग़ कहते हैं यह इकॉनोमिक्स की नहीं बल्कि फिनांस की बात है.

प्रधानमंत्री: देखिये मैं इकॉनोमिस्ट हूँ और मेरा मानना है कि इकॉनोमिक्स और फिनांस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.

चंदू: कौन से सिक्के के, सर?

प्रधानमंत्री: उस सिक्के के जो हमें आगे ले जाता है.

चंदू: लेकिन सर, सिक्का खरा है या खोटा, यह भी तो देखना पड़ेगा.

प्रधानमंत्री: नहीं-नहीं, असली प्वाइंट यह है कि सिक्का पहलू में है या नहीं. यह अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार बात कर रहा हूँ मैं. आपतो जानते ही हैं कि मैं बेसिकेली एक इकॉनोमिस्ट हूँ.

चंदू; ओके सर. आपकी सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि विकास की बात बहुत हद तक बेमानी है. आप इसे कैसे देखते हैं?

प्रधानमंत्री: विकास की बात में कैसी बेईमानी चंदू जी? विकास में बेईमानी की बात करने वाले सही नहीं कह रहे.

चंदू: आपने शायद सुना नहीं. मैंने बेमानी की बात की. बेमानी की सर. बेईमानी की नहीं.

प्रधानमंत्री : ओह, आपका मतलब बेमानी से था? अब समझा, अब समझा. देखिये, यह तो देखने वाले की नज़र पर निर्भर करता है. हम प्रधानमंत्री की हैसियत से देखते हैं तो हमें तो यह लगता है कि विकास की बात बेईमानी ..सॉरी बेमानी नहीं है. मेरे हिसाब से तो भरपूर विकास हुआ है.

चंदू: लेकिन सर..

प्रधानमंत्री: मुझे पता है कि आपको और आपकी तरह ही तमाम लोगों को यही लगता है कि विकास नहीं हुआ. लेकिन आंकड़े यह बताते हैं कि विकास हुआ है. गरीबी कम हुई है. अमीरी बढ़ी है. लोगों के हाथ में पैसा आया है. खर्च बढ़ा है. लोगों का फेसबुक स्टेटस...सॉरी स्टेटस बढ़ा है. एक्सपोर्ट बढ़ा है. इम्पोर्ट बढ़ा है. डॉलर तक बढवा दिया हमने. और सब तो जाने दीजिये मंहगाई बढ़ गई. अब आपको इससे बड़ा और क्या सबूत चाहिए?

चंदू: आप खुद कह रहे हैं कि मंहगाई बढ़ी है.

प्रधानमंत्री: देखिये, मंहगाई बढ़ने का मतलब है विकास हो रहा है. यह अर्थशास्त्र का सिद्धांत है. हम अर्थ-सिद्धांतवादी हैं इसलिए अगर विकास की बात करेंगे तो वह भी अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार ही करेंगे.

चंदू : परन्तु सर, क्या आंकड़े सबकुछ दर्शाते हैं? आचार्य नवजोत सिंह सिद्धू ने खुद कहा है कि आंकड़े बिकिनी की तरह होते है.....

प्रधानमंत्री: मैं समझ गया, मैं समझ गया. आचार्य सिद्धू का प्रसिद्द सदुपदेश जो वे किसी और से चुरा कर एक्स्ट्रा इनिंग्स में बोलते रहते हैं, उसके बारे में मुझे पता है. लेकिन लोकतंत्र में आंकड़ों का बहुत महत्व है.

चंदू: सर, मेरा अगला सवाल यह है कि अब आठ परसेंट वाली ग्रोथ रुक गई है. ग्रोथ कम होने लगी है. इसका क्या कारण है?

प्रधानमंत्री: इसका सबसे बड़ा कारण ग्रीस है. ग्रीस ने भारत की ग्रोथ रोक दी है. क्या आपने अखबारों में नहीं पढ़ा?

चंदू: लेकिन कुछ लोग़ मानते हैं कि सरकार ग्रीस को एस्केप-गोट बना रही है.

प्रधानमंत्री: देखिये अगर ऐसा है भी तो लोगों को इस बात पर खुश होना चाहिए कि सरकार कुछ बना ही तो रही है, बिगाड़ तो नहीं रही न.

चंदू: लेकिन सर, ये एस्केप-गोट बनाने की जगह कुछ सड़क वगैरह बनाने से अच्छा रहता न.

प्रधानमंत्री: देखिये, एक देश की सरकार के लिए एस्केप-गोट बनाना शासन के तमाम सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है.

चंदू: मतलब क्या ग्रीस सचमुच इतना इम्पार्टेंट है?

प्रधानमंत्री: बहुत इम्पार्टेंट है. और मैंने तो अपने हर मंत्री से कह दिया कि उन्हें अपना-अपना ग्रीस खोज लेना चाहिए.

चंदू: मसलन?

प्रधानमंत्री: मसलन इंडियन इकॉनोमी का सबसे बड़ा ग्रीस खुद ग्रीस है. इसके अलावा भी सरकार का अपना ग्रीस है. ममता जी सरकार की सबसे बड़ी ग्रीस हैं. उनकी वजह से ही तमाम रिफार्म्स रुक गए. चिदंबरम जी के ग्रीस रहमान मलिक हैं जो उनकी बात नहीं मानते. प्रनब बाबू का ग्रीस गिरता हुआ रुपया और यूरोपियन इकॉनोमी है....आप देखिये कि हमसे प्रेरित होकर ही बीजेपी वालों ने भी अपने-अपने ग्रीस खोज लिए हैं. जैसे गडकरी के ग्रीस नरेन्द्र मोदी हैं. वैसे ही सुषमा जी के ग्रीस अरुण जेटली हैं. अब तो ममता जी ने भी इस ग्रीस खोजो अभियान के तहत कार्टूनिस्ट और सवाल करने वाली छात्राओं में अपना ग्रीस ढूढ़ लिया है. मैं आपको बताता हूँ कि यह ग्रीस सच में बहुत इम्पार्टेंट है. हमारी बड़ी उपलब्धियों में यह भी है कि हमने लोगों को अपने-अपने ग्रीस खोजना सिखा दिया है.

चंदू : सर, मेरा एक सवाल करप्शन को लेकर है. लोगों में यह धारणा बनी है कि आपकी सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है.

प्रधानमंत्री : हे हे..ऐसी बात नहीं है. लोगों को आधा-सच देखने की आदत है. अगर आप देखें तो यह भी जानेंगे कि हमारी सरकार ने ही सबसे ज्यादा नेताओं को जेल भेजा है.हमने तो यह सिद्धांत ही बना दिया है हम भ्रष्टाचार बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेंगे.

चंदू: लेकिन सर, भ्रष्टाचार हुए है तभी तो लोग़ जेल जा रहे हैं. भ्रष्टाचार होते ही नहीं तो लोग़ जेल क्यों जाते?

प्रधानमंत्री: यही तो आप नहीं समझ पाए. दरअसल यह लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला प्रोसेस है. भ्रष्टाचारी को छूट है कि वह भ्रष्टाचार करे और सरकार को छूट है कि वह उन्हें पकड़े.

चंदू: सर, लोग़ ऐसा मानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है. उसके लिए सरकार का क्या प्लान है?

प्रधानमंत्री: सब ठीक हो जाएगा. हम पेट्रोल और डीजल वगैरह का दाम बढ़ाके सब ठीक कर देंगे.

चंदू : लेकिन सर, क्या यह करना सही रहेगा? मंहगाई के मारे लोग़ परेशान हैं. क्या वे और परेशान नहीं हो जायेंगे?

प्रधानमंत्री: देखिये, देश को इस बोहरान से निकालने का सबसे बढ़िया तरीका यही है. आप लार्जर पिक्चर देखिये. मंहगाई जैसी छोटी बात से निकलिये.

चंदू: अच्छा सर, आप कहते हैं तो निकल जाता हूँ. मेरा अगला सवाल यह है कि यूपी इलेक्शन में आपकी पार्टी ह़र गई. उसे लेकर विचार-विमर्श चल रहा है?

प्रधानमंत्री: मुझे पोलिटिक्स में मत घसीटिए. मैं तो इकॉनोमिस्ट हूँ.

चंदू : लेकिन सर...

प्रधानमंत्री: देखिये इलेक्शन तो एन डी ए भी हारा था. इलेक्शन की बात पर भी हम एन डी ए को ही फालो करते हैं. टूजी पर भी हमने एन डी ए को ही फालो किया था. हम सारी नीति उन्ही की फालो करते हैं. इसलिए अगर आपको हमारी फैल्योर की बात याद आये तो यह समझ कर संतोष करें कि यह दरअसल एन डी ए का फैल्योर है.

चंदू : अब कुछ व्यक्तिगत सवालों पर आ जाते हैं.

प्रधानमंत्री: नहीं-नहीं. चंदू जी देखिये, एक देश के प्रधानमंत्री के लिए व्यक्तिगत कुछ नहीं होता. जो कुछ भी होता है सब पब्लिक होता है. इसलिए व्यक्तिगत सवालों का जवाब देना मैं ठीक नहीं समझता. अब इस इंटरव्यू को मैं इस शेर के साथ ख़त्म करना चाहूँगा कि; माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो देख.

चंदू: एक छोटा सा सवाल यह है सर कि आपने यह शेर क्यों कहा?

प्रधानमंत्री: बस ऐसे ही कह दिया. हमें यह शेर पसंद है इसलिए मैं कह देता हूँ. आप इसको ऐसे देखिये कि जो मुझे पसंद है उसको मैं कह देता हूँ.

चंदू: बहुत-बहुत धन्यवाद सर. इस इंटरव्यू और इस शेर के लिए.

10 comments:

  1. क्या बात है सर!
    चंदूजी को इस बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए. अब अगला इंटरव्यू तो नरेन्द्र मोदी का ही बनता है. साहेब दिल्ली में हाजिर हैं. चंदू जी को भेजा जाए.

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  2. परसों ही ब्लॉग को उलट पलट के देख रहा था की ग्यारह मई के बाद ... थोडा अंतराल बढ़ रहा था ... ट्विटर पर चंदू जी का हाल चाल मिलता रहने से उम्मीद की किरण जगी हुई थी ..और मिला पुनः एक बेहतरीन लेख .....

    ग्रीस ने कमाल कर दिया हर एक के पास " एस्केप-गोट " होना कितना जरुरी हैं ..प्रधानमंत्री जी ने बेहतरीन तरीके से समझाया ...और अंत में बिना शेर पढ़े रहा नहीं गया ..... कटाक्ष और हास्य का गजब का तालमेल बिठाते हैं भैया .... जय हो ..इंतजार रहेगा अगली पोस्ट का..

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  3. माना कि सरकार चलाने के काबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरी इमानदारी तो देख, वफादारी तो देख!

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  4. "दरअसल यह लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला प्रोसेस है. भ्रष्टाचारी को छूट है कि वह भ्रष्टाचार करे और सरकार को छूट है कि वह उन्हें पकड़े." ..हा पहले लूट लो , फिर छूट लो ... :)

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  5. मन श्रद्धा से भर जाता है. भगवान के घर में चमत्कार होता ही है. गुंगा भी न केवल बोलता है बल्की इंटरव्यू भी देता है.

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  6. चंदू तो काबिले तारीफ है। आपका इन्टर्व्यू कब लेगा?

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  7. ऐसे इण्टरव्यू से न जाने कितना कुछ सीखने को मिलता है।

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  8. चंदू: वैसे सर, आप अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं?
    प्रधानमंत्री : सबसे बड़ी उपलब्धि की बात पूछेंगे तो मैं यही कहूँगा कि हमारी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि वह खड़ी रह गई.
    चंदू: और आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि?
    प्रधानमंत्री: मेरी सबसे बड़ी व्यक्तिगत उपलब्धि की बात करेंगे तो मैं कहूँगा कि मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि मैंने अपनी सरकार को खड़ी रखा.


    वाह...सच में ये सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है...इतने आंधी तूफ़ान चले लेकिन वो खड़ी रही...ये अलग बात है के उसे खड़ी रखने के चक्कर में जनता लेट गयी...अब जनता का क्या है लेटे या बैठे...खड़े होना तो उसने सीखा ही नहीं है ना...
    बहुत विचारोतेजक इंटर व्यू है आपका...जियो...

    नीरज

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  9. ममता जी सरकार की सबसे बड़ी ग्रीस हैं. उनकी वजह से ही तमाम रिफार्म्स रुक गए. चिदंबरम जी के ग्रीस रहमान मलिक हैं जो उनकी बात नहीं मानते. प्रनब बाबू का ग्रीस गिरता हुआ रुपया और यूरोपियन इकॉनोमी है....आप देखिये कि हमसे प्रेरित होकर ही बीजेपी वालों ने भी अपने-अपने ग्रीस खोज लिए हैं. जैसे गडकरी के ग्रीस नरेन्द्र मोदी हैं. वैसे ही सुषमा जी के ग्रीस अरुण जेटली हैं.
    हा हा हा ।
    हमेशा का तरह जबरदस्त ।

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  10. शानदार इंटरव्यू है जी! चंदू जी ही इस तरह का इंटरव्यू ले सकते हैं।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय