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Tuesday, September 24, 2013

दुर्योधन की डायरी - पेज १३७७


@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज १३७७ Tweet this (ट्वीट करें)!

आज दिन भर बहुत व्यस्त रहा. प्रजा के लिए बनी महाराज भरत मुफ्त में पेट भरो योजना का उद्घाटन करने के लिए पिताश्री के साथ जाना पड़ा. जयद्रथ और दुशासन ने उद्घाटन समारोह के सारे इंतजाम बहुत मस्त किये थे. राजकवि तो काशीनरेश द्वारा आयोजित किसी कवि सम्मलेन में गए थे इसलिए योजना के लिए नारा लिखने का काम उप राजकवि ने किया. उन्होंने जो नारा लिखा वह भी ठीक-ठाक ही लगा. वैसे सिस्टर दुशाला ने सजेस्ट किया कि मुफ्त का गेंहू दो किलो, कार्ड दिखाओ और ले लो की जगह अगर दान का गेंहू दो किलो, कार्ड दिखाओ और ले लो होता तो अच्छा रहता. उसका कहना था कि ऐसा करने से बिना किसी मेहनत के यह बात प्रजा के बीच साबित हो जाती कि हमलोग दानी भी हैं. साथ ही यह बात एकबार फिर से बता दी जाती कि हम राजा है.

वह कह रही थी कि यह बात बीच बीच में प्रजा पर जाहिर करते रहना चाहिए क्योंकि कई बार प्रजा की हरकतों से लगता है जैसे वह हमारे राजत्व पर सवाल कर रही है.

राजमहल ने योजना के विज्ञापन के लिए कुल सत्रह अखबारों का फ्रंट पेज बुक कर लिया था. हस्तिनापुर एक्सप्रेस का तो फ्रंट और बैक-पेज दोनों ही बुक कर लिया गया था. एक समय था जब यह अखबार राजमहल के विरुद्ध खूब लिखा करता था. वो तो भला हो मामाश्री का जिन्होंने इसके नए संपादक को साध लिया और तब से अखबार हमारे पक्ष में लिखने लगा. मुझे याद है पहली बार इसी संपादक के साथ मिलकर मैंने और मामाश्री ने भीम को बदनाम किया था. गुप्तचरों द्वारा खींचकर लाई गई भीम और हिडिम्बा के विवाह की तस्वीरें सबसे पहले इसी संपादक के लिए लीक की गई थीं. साथ ही इस संपादक ने तमाम संपादकीय लिखकर साबित कर दिया था कि कैसे एक आर्य ने राक्षस कुल की एक कन्या के साथ विवाह कर घोर अपराध किया है. बड़ी थू थू हुई थी भीम की.

लिखना पड़ेगा कि प्रेस मैनेजमेंट के जो गुर मामाश्री ने तब सिखाये वह आजतक काम आ रहा है. आज ये अखबार न होते तो प्रजा को यह बताना कितना मुश्किल होता कि हाल ही में हमने चाय-पान की दुकानों पर जो स्पेशल मनोरंजन कर लगाया है वह कितना जरूरी था. इसी अखबार ने लोगों में यह बात फैलाई कि राजमहल का घाटा किस तरह से इतना बढ़ गया है कि नए कर जरूरी हो गए हैं. कैसे नहीं लगाता चाय-पान की दुकानों पर कर? प्रजा के लोग इन्हीं दुकानों पर बैठकर राजमहल और उसके लोगों की आलोचना करते हैं. जिसे देखो वह मुझे गाली देता है. मुझे अत्याचारी कहता है. दुशासन को अधर्मी कहता है. जयद्रथ के बारे में अनाप-सनाप बकता है. दुशासन ने यहाँ तक सुझाव दिया कि हस्तिनापुर में चाय-पान की दुकानों पर बैन लगा देना चाहिए. मैं तो तैयार हो गया था, वो तो कर्ण और मामाश्री ने बताया कि अगर इन दुकानों पर बैन लगा दिया गया तो लोगों में असंतोष बढ़ेगा. मामाश्री ने उसी दिन यह रहस्योद्घाटन किया कि प्रजा को आपस में बात करने से कभी रोकना नहीं चाहिए. बातचीत करने से उनके मन की भड़ास निकल जाती है. बोले; "हमें चाय और पान की दुकानों का आविष्कार करने वाले को धन्यवाद कहना चाहिए भांजे जिसने बहुत सोच समझकर इसका आविष्कार किया. अगर ये दुकानें न होंगी तो प्रजा अपनी भड़ास कहाँ निकालेगी? और यदि भड़ास न निकली तो उसके आन्दोलन का रूप लेने का खतरा हमेशा मंडराता रहेगा"

मामाश्री द्वारा सिखाये गए इसी पाठ का कमाल है कि प्रेस मैनेजमेंट में आजतक कोई दिक्कत नहीं आई. मुझे याद है, एकबार दुशासन ने पितामह और काकाश्री विदुर के हस्ताक्षर फोर्ज कर काशीनरेश को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वे भीम को काशी नगरी में प्रवेश की अनुमति न दें क्योंकि उसने गुरु द्रोण की पाठशाला में मेरी और दुशासन की कुटाई की थी. पता नहीं कैसे वह पत्र हस्तिनापुर टाइम्स के हाथों लग गया और जब बात प्रजा के बीच निकल आई तब इसी संपादक ने अपने अखबार में तरह तरह से सम्पादकीय लिखकर यह बात फैलाई कि दरअसल वह पत्र दुशासन ने नहीं बल्कि पांडवों के दल में से ही किसी ने लिखा था क्योंकि पांडव एक-दूसरे को पसंद नहीं करते थे. जब यह लगा कि प्रजा को इसबात का विश्वास नहीं हो रहा है तब इस मामले को दबाने के लिए यह बात फैलाई गई कि माताश्री मुझसे, दुशासन और मामाश्री से बहुत रुष्ट हैं. खुद मामाश्री ने सम्पादक को यह आईडिया दिया कि वह ऐसा छापेगा तो लोगों का ध्यान उसपर चला जायेगा और काशीनरेश के नाम लिखे जाने वाले पत्र की बात दब जायेगी।

वैसे तो आज के कार्यक्रम के समय लिए जाने वाली तस्वीरों से कल के अखबार भरे रहेंगे लेकिन सुनने में यह भी आया है कि कुछ लोग इस योजना का विरोध कर रहे हैं. इन लोगों से निपटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर यह भी नहीं कर सका तो फिर मामाश्री के रहने का क्या फायदा? मामाश्री ने चुनकर इक्यावन अर्थशास्त्री, इक्कीस अख़बारों के सम्पादक, ग्यारह बुद्धिजीवी, पाँच नाट्यकर्मी और एक सौ एक गुप्तचर को भाड़े पर ले लिया है जो यह फैलायेंगे कि यदि यह योजना लागू नहीं हुई तो प्रजा भूख से मर जाएगी और किस तरह से यह योजना महाराज भरत को असली श्रद्धांजलि होगी। मामाश्री ने प्लान बनाया है कि चूंकि आगे चलकर मुझे ही हस्तिनापुर का राज बनना है इसलिए प्रजा में यह सन्देश जाना जरूरी है कि इस योजना की रूपरेखा न सिर्फ मैंने तैयार की है बल्कि मैं ही यह निश्चित करूंगा कि यह योजना पूरी तरह से लागू हो और हर हस्तिनापुरवासी का कल्याण हो.

अब सोने चलता हूँ क्योंकि कल सुबह ही इन अर्थशास्त्रियों, संपादकों और बुद्धिजीवियों की क्लास लेकर उन्हें बताना है कि इस योजना के बारे में क्या-क्या बातें फैलानी हैं.

6 comments:

  1. घाटा तो हर हाल में पाटना पड़ेगा, अब भले ही उसके लिये किसको भी पटाना पड़ जाये।

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  2. Just like blind Dhritarashtra,the goongaa MMS is watching all the wrongdoings happening under his nose.The Hastinapur Express idea is a LOLLing one..

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  3. व्यंग के क्षेत्र में शरद जोशी के साथ आपका भी नाम लिया जायेगा | बेहतरीन लिखा है , यही एक ब्लॉग है जिसका मै बेसब्री से इंतज़ार करता हूँ|

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  4. कल सुबह ही इन अर्थशास्त्रियों, संपादकों और बुद्धिजीवियों की क्लास लेकर उन्हें बताना है कि इस योजना के बारे में क्या-क्या बातें फैलानी हैं.
    आपकी दुर्योधन की डायरी तो छप जाना चाहिये शायद इसकी बिक्री से सरकारी घाटा कम हो जाय।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय