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Sunday, September 30, 2007

स्वराज मुखर्जी के भ्रम के सेतु


@mishrashiv I'm reading: स्वराज मुखर्जी के भ्रम के सेतुTweet this (ट्वीट करें)!


मुझे आलोक पुराणिक जी से बड़ी इर्ष्या होती है। इर्ष्या भी केवल इसलिए कि उन्हें न जाने कितनी बार बीए के उन छात्रों का परीक्षा में लिखा हुआ निबंध मिल जाता है, जिन्होंने हिन्दी के पेपर में टाप किया है। फिर मैं ये सोचकर ख़ुद को समझा लेता हूँ कि पुराणिक जी तो ख़ुद शिक्षक हैं, और शिक्षक को परीक्षार्थी का लिखा निबंध आसानी से उपलब्ध हो ही सकता है.

लेकिन ऐसा कुछ मेरे साथ भी हुआ.पिछले दिनों कलकत्ते में बहुत बरसात हुई और कई घरों में पानी घुस गया। मुझे सड़क पर जमे पानी पर तैरती एक चिट्ठी के दर्शन हुए, जो किसी स्वराज मुख़र्जी नामक नौजवान ने भारत सरकार को लिखी थी. अब इस नौजवान ने परीक्षा में निबंध लिखा होता, तो मैं पता लगाने की कोशिश करता कि उसने परीक्षा में टाप किया या नहीं. लेकिन बात चिठ्ठी की थी सो मैंने ऐसी कोई कोशिश नहीं की. प्रस्तुत है उस चिट्ठी का हिन्दी अनुवाद.

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आदरणीय भारत सरकार,

मैं यहाँ पर कुशल पूर्वक हूँ और आपकी कुशलता की कामना प्रकाश करात जी से करता हूँ। अखबारों की रपट देखकर आपकी कुशलता के बारे में संदेह बना हुआ है. वैसे सच कहूं तो मेरी कुशलता में भी पिछले दिनों भ्रम की मिलावट हो गई है. कह सकते हैं कि इस मिलावट की वजह से मेरी कुशलता भी आधी रह गई है. इंसान भ्रमित होगा तो भ्रम को दूर करने का प्रयास भी करेगा. इसी प्रयास का परिणाम है ये चिट्ठी, जो मैं आपको लिख रहा हूँ.

सरकार, मेरे मन में भ्रम की उत्पत्ति के कारण बहुत से हैं। पहला कारण है आपका 'राम-सेतु तोड़ अभियान'. भाग्यविधाता, मन में भ्रम इस बात को लेकर है कि आपने अपने इस प्रोजेक्ट का नाम 'सेतु-समुद्रम' क्यों रखा. मुझे समझ में नहीं आया कि आप समुद्र पर सेतु बनाना चाहते हैं, या पहले से बने हुए सेतु को नष्ट करना चाहते हैं. अगर सेतु बनाना चाहते हैं, तो उसकी उपयोगिता मुझे समझ में नहीं आई, क्योंकि पानी में चलने वाले जहाज सेतु के ऊपर से होकर गुजरते हैं, इस बात पर मुझे संदेह है. अगर आप सेतु तोड़ना चाहते हैं, तो इसका मतलब आप स्वीकार कर रहे हैं कि वहाँ पर एक सेतु पहले से था. कौन सी बात सच है, मैं फैसला नहीं कर पा रहा हूँ. अगर मेरे इस भ्रम को दूर कर सकें, तो बड़ी कृपा होगी.आपने हलफनामा देकर कहा कि राम नहीं थे, इसलिए राम-सेतु के होने का सवाल ही नहीं है। सरकार, ये क्या किया आपने? पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी ने अयोध्या के जिस सबसे प्रसिद्ध ताले को खुलवाया था, वो क्या किसी के घर का ताला था? उन्हें राम पर विश्वास नहीं था? आपने सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे को वापस ले लिया. लेकिन भ्रम अभी भी बना हुआ है कि आपने क्या मान लिया कि राम थे. आप तीन महीने के बाद एक और हलफनामा दाखिल करेंगे. ये तीन महीने का समय क्यों माँगा आपने? क्या सीबीआई की जांच बैठायेंगे? और सीबीआई भी क्या जांच करेगी. राम के बारे में उसे दस्तावेज कहाँ से मिलेंगे? बीस साल हो गए, बोफोर्स मामले की जांच करते. जहाँ दस्तावेज मौजूद हैं, वहाँ तो सीबीआई कुछ कर नहीं पाई, यहाँ, इस मामले में क्या कर सकेगी? कहीँ तीन महीने का समय इस लिए तो नहीं माँगा, क्योंकि आपके पास हलफनामा टाईप करने वाले नहीं हैं?

आपने बताया है कि इस सेतु के रहने से पैसे, तेल और समय का बड़ा नुकसान वगैरह होता है। किसके पैसे का नुकसान होता है? आपके राज्य में पैसे के नुकसान का सबसे बड़ा कारण क्या ये सेतु ही रह गया है? मेरी समझ में आता है कि अगर 'जहाजी कम्पनीयों' का नुकसान हो रहा है तो वे कहीँ न कहीँ से वसूल कर ही लेंगे. हाँ, अगर सरकार का नुकसान हो रहा है तो आपको क्या फिक्र. लगा दीजिये कोई टैक्स और वसूल कर लीजिये अपना नुकसान. वैसे भी खाने-पीने से लेकर उठने-बैठने तक पर टैक्स वसूल कर लेते हैं आप. फिर क्या चिंता. एक टैक्स और सही. टैक्स का नाम कुछ भी रख दीजिये, जैसे 'राम-सेतु टैक्स'. वैसे ऐसा नाम रखने पर वोट बैंक खिसक जाने का ख़तरा है. इसलिये आप एक कमेटी बैठा दीजिये जो नाम खोजकर आपको बता देगी.

अखबारों की खबरों से लगता है कि देश की अर्थव्यवस्था सही पटरी पर चले, इसके लिए इस सेतु का टूटना जरूरी है। देश का विकास और किसी बात पर निर्भर नहीं करता क्या? मेरी एक छोटी सी बात सुनिये और आप ख़ुद ही सोचिये. मैं रहता हूँ कलकत्ते में. यहाँ रांची से सब्जियाँ आती हैं. तीन दिन लगते हैं ट्रक को रांची से कलकत्ते पहुँचाने में. ख़ुद ही सोचिये, जो दूरी बारह घंटे में तय की जा सकती है, उसके लिए तीन दिन. इसकी वजह से सब्जियों के दाम आसमान पर रहते हैं. इसके लिए कुछ कीजिये जहाँपनाह. आम जनता को भी राहत मिलेगी.स्थल मार्ग के चलते भी पैसा और समय नष्ट होता है, और आप हैं कि जल-मार्ग के पीछे पड़े हुए हैं. सडकों की हालत पर गौर कीजिये. मैंने सुना था कि जो मिन्ट-मिन्ट पर गौर करे, वही 'गौरमिन्ट' है. लेकिन आप गौर करते भी हैं, तो सालों के बाद. मैं ये नहीं कहता कि आप कोशिश नहीं करते, लेकिन कोशिश कर रहे हैं, सारी उर्जा इस बात को दिखाने पर खर्च करते रहते हैं.

कई बातों में तो आप सालों के बाद भी गौर नहीं करते। शिक्षा की हालत सुधारने के लिए आप 'एडुकेशन सेस' वसूल कर लेते हैं. लेकिन शिक्षा की अवस्था में बदलाव दिखाई नहीं दे रहा. कुछ कीजिये हुजूर. आतंकवादियों के हमले से मरने वालों की संख्या के मामले में अब केवल इराक हमसे आगे है. ज़रा इसके बारे में भी सोचिये. न्याय-व्यवस्था को ठीक कराने का कोई उपाय देखिये. पूरे देश के किसानों की स्थिति ख़राब है. ये अलग बात है कि पिछले दो-तीन सालों में अखबार बाजी से लगता है कि देश के विदर्भ नामक इलाके में ही किसान रहते हैं, बाकी के इलाके में उद्योगपति रहते हैं. उनकी समस्या भी आप अनोखे ढंग से सुलझाते हैं.आप के प्रधानमंत्री कुछ नेताओं और कुछ टीवी पत्रकारों को लेकर वहाँ पहुँच जाते हैं और शाम तक किसानों की समस्या हल कर के चले आते हैं. सरकार, इस तरह से आप क़रीब चार बार विदर्भ के किसानों की समस्या सुलझा चुके है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि समस्या फिर से खडी हो जाती है. वैसे तो छोटा मुँह और बड़ी बात होगी, लेकिन मैं कहूँगा कि एक बार दिल्ली में रहकर ही समस्या का समाधान खोजिए, हो सकता है समाधान हो जाए.

सरकार, सुना है पिछले दो सालों में केवल सार्वजनिक वितरण प्रणाली से ३१ हजार करोड़ रुपये खुरचन में निकल गये. अब इसमें रक्षा-शिक्षा, रेल-खेल, हेल्थ-वेल्थ, ट्रांसपोर्ट-एयरपोर्ट वगैरह को जोड़ लें तो खुरचन की मात्रा लाखों करोड़ में पंहुच जायेगी. तो सरकार इस खुरचन को जाने से रोकने के लिये कोई जुगत लगायें क्यों कि इसे भी आर्थिक नुक्सान के नाम से जाना जाता है.

आज देश के शेयर बाजार ने आपको दुनिया में मशहूर कर दिया है। सभी आपकी नीतियों की प्रशंसा करते नहीं थकते. लेकिन सुना है इसी बाजार में आतंकवादियों का पैसा भी लगा हुआ है. गृहमंत्री को शेरवानी बदलने और बाल सवारने से फुर्सत निकालने के लिए कहिये. कुछ कीजिये नहीं तो जिस शेयर बाजार की वजह से आपकी साख इतनी ऊपर है, उसी में कुछ गड़बड़ होने से समस्या खडी हो जायेगी. इलेक्शन सामने है, कुछ भी गड़बड़ हुआ नहीं कि गाडी पटरी से उतरी. इफ्तार पार्टियों से फुर्सत मिले तो इन बातों की ओर भी ध्यान दीजिये.

बाकी क्या लिखूं, आप तो ख़ुद समझदार है। समस्या केवल इतनी है कि समझदारी का काम नहीं करते.

आपका शुभाकांक्षी

स्वराज मुख़र्जी

17 comments:

  1. आपने एक गम्भीर मुद्दे पर बहुत ही रोचक,सार्थक और बेबाक बात कही है ,निश्चिंत रहें अब आलोक पुराणिक जीं आप से द्वेष कराने लगेंगे -टेंपो बनाए रखें .

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  2. हा हा, मारक!!! जबरदस्त..शब्द नहीं है बस इस सेतु के बारे में यह कह सकता हूँ...कि

    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है


    टाईप सेतु है यह!! :)


    करारा आईटम पेश किया है, बधाई.

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  3. विषय बड़ा गम्भीर है परन्तु आपकी शैली ने काफ़ी फ़र्क ला दिया है समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली उन खबरों से जो सेतु-समुद्रम के बारे में अनर्गल टिप्पणियाँ करके लोगों की धर्मिक भावनायें उकसाती हैं।
    बाकी आलोक पुराणिक जी का पुण्य नाम लेकर लेख की शुरुआत हुई है सो उनके लिये भी सहानुभूति। लगता है कि उनके ट्रेड सीक्रेट धीरे धीरे लीक होते जा रहे हैं।

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  4. क्या भैया; इतना जबरदस्त लिखोगे तो बहुतों के पेट में दरद होगा. उसके इलाज के लिये भी लिखना पड़ेगा!
    पर सरकार के पेट होता है या नहीं - ये कैसे पता चले! सरकार के पेट नहीं होगा तो दरद कैसे होगा?
    शायद सरकार के पेट नहीं होता, नेता के होता है. पर चिठ्ठी नेता को तो लिखी नहीं!

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  5. बहुत खूब। अब यह पत्र सरकार को भेज दिया जाना चाहिए।

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  6. रोचक च चौंचक लिखा है जी।
    प्रकाश करातजी को लिखना हो, तो कायदे से चीनी भाषा में लिखिये, तब समझेंगे। भारतीय बोली-बानी मुश्किल से समझते हैं वह।
    और जी, टिप्पणीकारों ने लिखा है कि आलोक पुराणिक ईषर्या करेंगे टाइप। तो जी आलोक पुराणिक तो अपनी व्यंग्यकार बिरादरी के विस्तार का इंतजार कर रहे हैं। सीनियर व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदीजी ने एक जगह जो लिखा है, उसका आशय यह है कि व्यंगकार साहित्यकारों के लिए चमरटोली का निवासी टाइप होता है। जहां कोई कायदे के साहित्यकार लेखक झांकने नहीं जाते। कविता, उपन्यास, कहानी के टीलों से उतर व्यंग्य की जमीन पर आना कम लोगों की सुहाता है। सो जी हम तो चमरटोली में ही छान रहे हैं और छानते रहेंगे, हमारी टोली की जनसंख्या बढ़े, इसी कामना के साथ, आप ज्ञान जीके कुंसंग में रहकर कुछ और न लिखें, सिर्फ सीरियस व्यंग्य लिखें।

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  7. जबरदस्त!!

    आपकी लेखन शैली बताती है कि आप निस्पृह होते हुए यह सब आसानी से लिख जाते हैं!!
    बहुत बड़ा गुण है यह!!
    बनाए रखें

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  8. कमाल का लिखा है आपने. भोमियो से अब चीनी भाषा में भी अनुवाद की सुविधा मांगी जाए

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  9. प्रभु
    लगता है मुखर्जी बाबू को मालूम होगा की " भैंस के आगे बीन " बजाने से उसके दूध देने की क्षमता में कोई वृद्धि नहीं होती इसीलिये उन्होंने अपना ये पत्र पानी में फैंक दिया, सरकार तक पहुँचता तो वो भी पानी में फैंक देती. ऐसे सारगर्भित विषय वाले पत्र आदिकाल से पानी के ही हवाले किए जाते रहे हैं.
    मैं ख़ुद काफ़ी समय से उस जूँ की खोज मैं हूँ जो किसी के कान पर रेंग सके.
    आप बहुत अच्छा लिखते हैं, और ये तो कमाल का लिखा है.
    नीरज

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  10. इतनी बारीक काट का मलहम उर्फ मरहम कहाँ मिलेगा शिव भाई। बहुत सधी और लगने वाली चोट है।

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  11. वाह शिव कुमार जी!
    बहुत ही रोचक अंदाज़ में सरकार और उसकी नीतियों की खबर ली है! मगर लगता नहीं कि सरकार या उसके नेता और अफसरों के कान पर ये जूँ भी रेंग पायेगी. अब नीरज गोस्वामी जी ऐसी जूँ की तलाश में लगे हैं, तो उन्हें भी शुभकामनायें!

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  12. पहली बार आपके व्यंग्य की धार से साक्षात्कार हुआ। बहुत ही रोचक पत्र लिखवाय है आपने। मजा आ गया!

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  13. अभी ज्ञान जी की पोस्ट से यहां तक पहुंचा. क्या जबर्दस्त व्यंग्य है जी. हम भी आज से तलाश में निकलते है कहीं कुछ पर्चा हमें भी मिल जाये.

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  14. baat me dhaar to hai , lakin iktarfaa hai, bandhu!kuchh ram kee baanar-senaa par bhee arj karen.

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  15. आपने बहुत ही बेहतरीन और व्यंग्यात्मक शैली मे सरकार की किरकिरी की है. इस लेख के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

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  16. आपने बहुत ही बेहतरीन और व्यंग्यात्मक शैली मे सरकार की किरकिरी की है. इस लेख के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय