नाम है राज ठाकरे. पुराने सैनिक हैं. शिव सेना में थे. एक स्तर तक जाकर सैनिक ख़ुद को नेता समझने लगता है. ये किसी स्तर तक तो नहीं गए, लेकिन ख़ुद को नेता ज़रूर समझते थे. सालों तक ऐसे ही समझते रहे. एक दिन किसी ने बताया या शायद बिना बताये ही इन्हें पता चला कि ये नेता नहीं रहे. सालों तक ख़ुद को नेता समझने वाले को अचानक एक दिन पता चले कि वो नेता नहीं रहा तो समझ सकते हैं उसे कैसा लगेगा. इन्हें भी पता चला जब धम्म से आ गिरे. लेकिन पट्ठे पर नेता बनने का जूनून सवार था. लिहाजा और कोई रास्ता न मिलने पर पार्टी बना डाली. पार्टी बनी तो नेता हो गए.
पार्टी के कार्य-कलाप उसके नाम को जस्टीफाई करते हैं. पत्रकार ने पार्टी के नाम के बारे में पूछा तो बोले; "पार्टी का नाम बिल्कुल ठीक है; महाराष्ट्र नव निर्माण सेना."
"लेकिन महाराष्ट्र का नव निर्माण कर सकेंगे आप?"; पत्रकार ने फिर से सवाल किया.
"बिल्कुल करेंगे. हमने काम भी शुरू कर दिया है. देख नहीं रहे हमारे कार्यकर्त्ता तोड़-फोड़ में लगे हैं"; उन्होंने जवाब दिया.
"लेकिन तोड़-फोड़ करने से तो राज्य की बहुत क्षति होगी"; फिर से सवाल किया गया.
"देखिये, हमारी पार्टी का नाम ही है महाराष्ट्र नव निर्माण सेना. अगर हम पहले महाराष्ट्र को तोड़ेंगे नहीं तो नव निर्माण कैसे करेंगे. इसीलिए हमने अपनी पार्टी के 'कार्यकर्ताओं' को तोड़-फोड़ करने के लिए कहा है. आप समझिए कि हमारा ये कदम राज्य के नव निर्माण के लिए पहला कदम है"; उन्होंने समझाते हुए कहा.
पत्रकार उनके जवाब से संतुष्ट नज़र आ आया. कुछ देर सोचकर उसने फिर सवाल किया; "तोड़-फोड़ के लिए और क्या प्लान है आपका?"
"हमने समाजवादी पार्टी का विरोध करना शुरू कर दिया है. हमारे विरोध के बाद उन्होंने लाठियाँ बाटने का वादा किया है. उनके वादे के बाद हमने तलवारें बाटने का वादा कर लिया है. तोड़-फोड़ को हमारी पार्टियां अब एक अलग स्तर पर ले जायेंगी"; उन्होंने लगभग आश्वस्त करते हुए कहा.
"तो आपका विरोध केवल समाजवादी पार्टी तक सीमित रहेगा या किसी और पार्टी का भी विरोध करेंगे आप?; पत्रकार ने पूछा.
"हमने पहले सोचा कि जिन पार्टियों का विरोध करना है उनकी एक सूची बना लें. बाद में हमें लगा कि क्या जरूरत है सूची बनाने की. एक ही बार में उत्तर भारतीयों का विरोध कर डालें; मेहनत से बच जायेंगे"; राज ठाकरे ने अपनी कार्य कुशलता का परिचय देते हुए बताया.
"तो मेहनत से बचने के लिए आपने उत्तर भारतीयों का विरोध किया. वैसे आपने अमिताभ बच्चन का अलग से विरोध किया. इसका क्या कारण है?"; पत्रकार ने पूछा.
"वे महाराष्ट्र के लिए कुछ नहीं करते. वे केवल यहाँ रहते और काम करते हैं. यहाँ केवल टैक्स देते हैं. लेकिन स्कूल खोलने यूपी चले जाते हैं. हमें उनके स्कूल खोलने को लेकर साजिश नज़र आ रही है. हमारी पार्टी ने हिसाब लगाया तो हमें पता चला कि अगर वे स्कूल खोलेंगे तो यूपी में महिलाएं शिक्षित हो जायेंगी. वही महिलाएं फिर महाराष्ट्र में आकर अच्छी नौकरियां अपने कब्जे में ले लेंगी"; उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा.
"लेकिन जया बच्चन ने कहा है कि आप अगर जमीन दे देंगे तो अमिताभ बच्चन यहाँ भी स्कूल बनवा देंगे. आपके पास जमीन भी है जो आपने और मनोहर जोशी जी ने कई सौ करोड़ देकर खरीदी थी. आप उन्हें जमीन देंगे?"; पत्रकार ने पूछा.
"वो जमीन हमने स्कूल खोलने के लिए नहीं खरीदी है. वैसे भी महाराष्ट्र में स्कूल खोलकर हमें अपना नुक्सान थोड़ी करना है"; ठाकरे ने बताया.
पत्रकार अचम्भे में पड़ गया. उसे पता था कि राज ठाकरे अमिताभ बच्चन से इसलिए नाराज थे क्योंकि वे अमिताभ बच्चन से महाराष्ट्र में स्कूल खुलवाना चाहते थे. उसने पूछा; "लेकिन आप तो चाहते थे कि अमिताभ बच्चन महाराष्ट्र में स्कूल खोलें. लेकिन अब आप कह रहे हैं कि उनके स्कूल खोलने से आपको नुक्सान होगा. ऐसा क्यों?"
"अरे आप लोग बड़े भोले हैं. आप ख़ुद ही सोचिये, अगर उन्होंने यहाँ स्कूल खोल दिया तो उसमें महिलाएं पढेंगी-लिखेंगी. वे जब शिक्षित हो जायेंगी तो हमारा तो वोट बैंक चला जायेगा. न न, मैं उन्हें जमीन नहीं दूँगा स्कूल खोलने के लिए"; उन्होंने अपनी सोच का खुलासा किया.
पत्रकार उनकी बातें सुनकर हैरान था. उसे उनकी राजनीति की अच्छी-खासी समझ हो चुकी थी. वो उनका इंटरव्यू बीच में ही समाप्त कर उठ गया. राज ठाकरे अपने किसी कार्यकर्ता को फ़ोन पर समझाने लगे कि कहाँ-कहाँ सिनेमा हाल में भोजपुरी फिल्में चल रही हैं, जहाँ तोड़-फोड़ करनी है.
Monday, February 4, 2008
ठाकरे के राज
@mishrashiv I'm reading: ठाकरे के राजTweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सब संस्कारों की बात है.... बड़े बुजुर्गो (बड़े ठाकरे) ने बताया ही नही होगा कि सिर्फ़ ये पार्टी अपने बाप की है, मुम्बई नही ....... :)
ReplyDeleteजमाये रहिये। फिकिर नाट। राज ठाकरे को हिंदी समझ नहीं आती।
ReplyDeleteहाँ शिवसेना का नव निर्माण पहले कर ही चुका है अब पूरे महाराष्ट्र का नव निर्माण की सोच !
ReplyDeleteदिनकर जी ने ऐसे ही निर्माता निर्देशक के लिए लिखा है : -
"जब नाश मनुज पर छाता है ,
पहले विवेक मर जाता है /"
जी आपसे सहमत हैं. नव निर्माण के बगैर कुछ नहीं होगा जी.
ReplyDeleteवाह शिव भाई. बहुत ही मारक व्यंग्य लिख मारा आपने.
ReplyDeleteलेकिन क्या आपको पता नही कि बेचारे राज ठाकरे जी की बहुत बड़ी मज़बूरी ही उनसे यह सब करवा रही है.
और वो मज़बूरी है महाराष्ट्र की राजनीति मे बने रहने की.
अगर वो ये सब नहीं करेंगे तो शायद साल दो साल मे ही उनकी दुकान पर ताला लग जायेगा.
लेकिन जो विश्लेषक लोग महाराष्ट्र की राजनीति समझते है उनका कहना है की ये सब (यानी मराठियों को छोड़ कर सबका विरोध) यंहा की राजनीति की धुरी है जिसपर सब दल घूमते हैं. फ़िर चाहे वो भाजपा हो या कांग्रेस शिव सेना हो या मनसे.
मज़ा आ गया। सही मस्ती ली है।
ReplyDeleteवैसे मुंबई से हिन्दी फ़िल्में प्रतिबंधित करने के बारे में क्या खयाल है?
फिलम क्या जी, पूरी फिलम इण्डस्ट्री को बन करवा दो. हिन्दी सिनेमा बनानी हो तो उत्तम प्रदेश जाओ.
ReplyDeleteलगे रहो राज भाई, नव निर्माण भले ही मुश्किल काम हो , तोड़ फोड़ तो आसान है.
बहुत बढ़िया लिखा है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सही पकड़ा!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा व्यंग्य -- सटीक व्यंग्य .
ReplyDeleteठाकरे और अमर सिंह से पंगा नही लेने का क्या..:) समझा की समझाने भेजनेका..?
ReplyDeleteबढिया व्यंग्य.........
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteहमें मालूम पड़ गया है की आप को जेड़ श्रेणी की सुरक्षा मिल चुकी है तभी आप वहाँ वाम पंथियों के खिलाफ और यहाँ महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के ख़िलाफ़ लिख रहे हैं....भाई अगर आप की खोपडी क्षति ग्रस्त हो गयी तो उसका नव निर्माण सम्भव नहीं होगा बताये देते हैं....आप की दूसरे के फटे में टांग अडाने की आदत कब जायेगी...भगवान् जाने... हम तो आप को लेकर अब काफ़ी चिंतित रहने लगे हैं...
{पी. एस. : अच्छा लेख लिखा आपने लेकिन अगर मुझ पर भरोसा कर के लिखा है तो डीलीट करने में ही भलाई है....सच कहना और सुखी रहना)
नीरज
अशिक्षा और वोट आर्धारित प्रजातांत्रिक राजनीति मेँ बहुत गहरा सम्बन्ध है। कोई भी सफल राजनेता स्वतंत्र सोच वाले लोगों को पसन्द नहीं कर सकता। यही बात राज ठाकरे जी के साथ है और अन्य दलों के साथ है।
ReplyDeleteजो तबके जिस अवस्था में हैं - उसी में रहें। अगर वे वोट बैंक हैं तो उनका उत्थान उन्हे सेटेलाइट की बजाय स्वतंत्र तारा न बना दे - यह प्रत्येक राजनेता चाहेगा।
बहुत सुन्दर लिखा। और समझ में आने वाला भी!
क्या बात है? इसे कहते हैं सामयिक व्यंग्य। राज का तो काम बने न बने पर समाजवादियों को मुम्बई में काम मिल गया। अमिताभ जी के परिवार की मन्दिर यात्रा भी कुछ दिन के लिये टली।
ReplyDeleteक्या बात है! आप तो परसाई जी की लाइन पकड़ रहे हैं ... और वह भी इतनी कुशलता से!
ReplyDeleteबहुत खुब शिवकुमारजी,
ReplyDeleteराज ठाकरे पगला गये है| उन्हे समझ लेना चाहीये था की अमिताभ बच्चन क्या, कोई भी अगर युपी मे स्कूल खोले तो भी युपी मे कुछ फरक नही पडने वाला| आजादी के बाद बाकी राज्य तो प्रगती कर गये लेकीन हम युपीवाले थोडीही बदलेंगे|
हम ज्यादा बच्चे इसी लिये पैदा करते है ताकी दो चार को मुंबई भेज सके|
देखते है ठाकरे क्या करते है| हम युपी बिहार को नही सुधारेंगे, देश मे सबसे ज्यादा उपजाऊ जमीन होते हुए भी हम गरीब ही रहेंगे| मायावती, मुलायम हमारे और लालू, राबडी हमारे पडोस मे राज्य करेंगे|
बेचारे ठाकरे, उन्हे क्या पता युपी क्या चीज है| ठाकरे आप कुछ भी कहो हम मुंबई मे आते रहेंगे, फुटपाथ पर रहेंगे लेकीन खुद के घर को नही सुधारेंगे|
सटीक लिखा है।
ReplyDelete