दुर्योधन की डायरी - पेज २२
बीस दिन से ज्यादा बीत चुके हैं राजमहल छोड़कर गुरु द्रोण की पाठशाला आए हुए. जब राजमहल से बाहर निकल कर पाठशाला आने की बात शुरू हुई तो मैंने सोचा था बड़ा मज़ा आएगा. पाठशाला में जाने के बाद अपने मन से रह सकूंगा. लेकिन यहाँ आकर पता चला कि मामला बिल्कुल उल्टा है. पाठशाला को-एड भी नहीं है. ऊपर से ये गुरु द्रोण पढाई-लिखाई को लेकर बड़े सख्त निकले. हालत ये हो गई है कि पूरा समय होमवर्क करने में लग जाता है. रात को हॉस्टल की दीवार फांद कर आज तक बाहर नहीं जा सका.
मेरी समझ में यह नहीं आता कि पढाए-लिखाई को गुरुदेव इतनी अहमियत क्यों देते हैं. उन्हें समझने की जरूरत है कि मैं एक राजा का पुत्र हूँ. राजा के पुत्र को पढ़ने-लिखने की क्या जरूरत है? अरे मुझे तो राजा ही बनना है. कौन सा पढ़-लिख कर क्लर्क बनना है. ये पढाई-लिखाई की जरूरत उन्हें होती है जिनके पिता राजा नहीं होते.
इतनी छोटी बात गुरुदेव की समझ में क्यों नहीं आती? कभी-कभी सोचता हूँ कि जिस गुरु को इतनी छोटी सी बात की समझ नहीं है, वो क्या एक राजा के पुत्र को पढ़ाने लायक है.
गुरुदेव की सख्ती की तो हद हो गई है. कहते हैं मैं किताबों से भरा अपना बस्ता ख़ुद लेकर पाठशाला आया करूं. अरे मैं ऐसा क्यों करूं? इस तरह से तो बस्ता ढोते-ढोते ही थक जाऊंगा. और फिर मैं एक राजा का पुत्र हूँ. मुझे बस्ता ढोने की क्या जरूरत है? पिता श्री ने साथ में नौकर क्या इसीलिए भेजे थे कि उन्हें मेरा बस्ता न ढोना पड़े बल्कि वे मुझे बस्ता ढोते देख हँसें.
मुझे तो गुरुदेव से कोफ्त सी होने लगी है. कई बार सोचता हूँ कि गुरुदेव प्राइवेट ट्यूशन करते हैं, यह आरोप लगाकर उन्हें गुरु के पद से सस्पेंड करवा दूँ. फिर सोचता हूँ कुछ दिन और देख लेता हूँ, फिर कोई फैसला लूंगा.
आज की ही बात ले लो. रीतिकाल की एक कविता की व्याख्या ठीक तरह से नहीं कर पाया तो गुरुदेव ने मुझे क्लास में खडा कर दिया. अरे मैं कहता हूँ एक राजा के पुत्र को कविता पढ़ने और उसकी व्याख्या करने की जरूरत ही क्या है. राजा के दरबार में कवियों की कोई कमी रहती है क्या? मैं तो कहता हूँ कि जितनी कविता व्याख्या के लिए देनी हो, एक बार में ही सब दे दें. मैं जब राजा बनूँगा तो दरबार में बैठे तमाम कवियों से उनकी व्याख्या करवा लूंगा.
इतने दिनों तक गुरुदेव की सख्ती झेलकर कल मेरा धैर्य जवाब दे गया. कल क्लास बंक करके मैं आखेट करने चला गया था. जब वापस आया तो देखा कि मेरा ही इंतजार कर रहे थे. मुझसे पूछने लगे कि मेरी हिम्मत कैसे हुई क्लास बंक करके आखेट करने की? मैंने तो दो टूक जवाब दे दिया कि राजा का पुत्र आखेट नहीं करेगा तो क्या क्रिकेट खेलेगा? जो मजा आखेट करने में है वो क्रिकेट खेलने में कहाँ? ऐसे भी क्रिकेट एक टीम गेम है. और एक राज-पुत्र का टीम गेम से क्या लेना-देना?
मैंने तो तंग आकर आज उन्हें कह ही दिया कि मुझे उनकी सख्ती पसंद नहीं है. दुशासन तो सजेस्ट कर रहा था कि मैं उन्हें कह दूँ कि वे अपनी औकात में रहें. आज तो मैंने ऐसा नहीं कहा लेकिन अगली बार वे नाराज हुए तो मैं पक्का ही कह दूँगा.
कभी-कभी लगता है जैसे गुरुदेव मुझे जलील करने के लिए कुछ बोलने से नहीं हिचकते. कल जब मैं आखेट से थका-हारा वापस लौटा तो मेरे ऊपर बमक गए. जब मैंने उन्हें दो टूक जवाब दे दिया तो जाते-जाते किसी शायर की गजल के शेर बोल गए. बोले;
उसूलों पर जो आंच आए तो टकराना जरूरी है
अगर जिंदा हैं तो जिंदा नज़र आना जरूरी है
नई उम्रों की ख़ुदमुख्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है, कहाँ जाना जरूरी है
एक बार तो इच्छा हुई कि उन्हें बता दूँ कि इसी गजल का अगला शेर है;
थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें
सलीका-मंद साखों का लचक जाना जरूरी है
Wednesday, February 27, 2008
दुर्योधन की डायरी - पेज २२
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज २२Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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वाह! वाह! वाह!
ReplyDeleteहास्य के साथ व्यंग्य का अति अद्भुत और अति मारक मिश्रण.
आप की लेखनी धन्य
bilakul sahI jagah pahuce aap.,दुर्योधन अपनी आत्मकथा के समस्त अधिकार हमे सोप गया है,आप चाहे तो आकर देख सकते है .अत: तुरंत चैक भिजवा दे अन्यथा हमे अपने एक बंदे को नोटिस के साथ भेजना पडेगा,जो जब तक आप चैक नही देगे आप्का मेहमान बन कर रहेगा,आपको बता दू आजकल हमारा नोटिस देने का काम खली कर रहा है..:)(खाने का इंतजाम कर के रखियेगा)
ReplyDeleteशानधारम्
ReplyDeleteधन्यवादम...
ReplyDelete@ अरुण जी,
ReplyDeleteभैया ये तो आपने बड़ी उलझन में डाल दिया. लेकिन एक बात बता कर ठीक ही किया कि दुर्योधन की डायरी का कॉपीराईट आपके पास है. मिल कर बात कर लेंगे न.
और खली को नोटिस पंहुचाने के काम पर लगा दिया है आपने. स्टार न्यूज़ वाले तो ये बताते हुए बड़े दुखी थे कि बेचारे को हिन्दी भी लिखने-पढने नहीं आती. उससे कहियेगा जब नोटिस लेकर चले तो मुझसे फ़ोन पर बात कर ले. ताकि घर का रास्ता ठीक-ठीक बता दूँ उसको...:-)
बहुत बढिया!!
ReplyDeleteबढ़िया डायरी हाथ लगी है, एकदम सटीक है!!
ReplyDeleteपढ़वाते रहिए ऐसे ही पन्ने!
आप सच कहते हैं बंधू किसी भी काल में पढे लिखे की हालत एक सी होती है अब देखिये ना गुरु चेला दोनों ही "वसीम बरेलवी" (उनका इस जनम का नाम) की ग़ज़लों के शरों को अपनी बातचीत में खूब कोट करते हैं लेकिन महाभारत के किसी पृष्ट पर वसीम के नाम का चर्चा तक नहीं हुआ, जब की दुर्योधन की डायरी से सिद्ध हो जाता है की वो भी उसी काल के शायर थे,बिचारे (कवि और शायरों को अब इसी से संबोधित किया जाता है) को फ़िर से वोही शेर अब कलयुग में आ कर सुनाने पढे जिन्हें भी हम आप जैसे चंद लोग ही सुन समझ के वाह वा किए हैं...
ReplyDeleteदुर्योधन के ख्याल वाकई महान हैं बल्कि ये कहें की जब तक सूरज चाँद रहेगा तब तक ये ख्याल कभी बासी नहीं होंगे...
आगे के पृष्ट भी अगर मिल गए हों तो शीघ्र सार्वजनिक करें.
नीरज
हा हा बहुत खूब लिखा है अब आप अपने रंग में वापस आ गये हैं
ReplyDeleteसही कहा जिंदा है तो जिंदा नजर आना जरुरी है
हम नजर आ रहे है न?
सुयोधन पर वास्तव में तरस आ रहा है। कोई ढंग के बेंक से लोन ले कर भी वह फॉरेन जा सकता था पढ़ने। अण्डर टेकर के रूप में अनेक मिल जाते - राजा का सबसे बड़ा बेटा था। काहे को द्रोण की पाठशाला में ऐसी तैसी करा रहा था!
ReplyDeletejiyo,bhai,jiyo.jari raho.har panne ka intjar rahega.
ReplyDeleteranjana
jay ho....bas itna hi likh sakta hun
ReplyDeleteआप चिंता मत करिये! अरुण जी को मैं देख लूंगा. दुर्योधन कापीराईट असल में मुझे दे गया था. उसके कागजात अरुण जी ने मार लिए. मैं इस आशय की नामजद रपट दर्ज करा चुका हूँ. आगे समझ लेंगे. आप छापिये जम के.
ReplyDeleteअति उत्तम मिश्रा जी.सावधान!’दुर्योधन की डायरी’ पर कापीराईट को लेकर,महाभारत छिड गया हॆ.एक ’नास्तिक की डायरी’ मेरे पास भी हॆ.उसके दो-तीन पेज ही प्रकाशित कर पाया हूं.मुझे भी डर हॆ कही कोई सिर फिरा कापीराईट का दावा न ठोक दे.खॆर ! चलो भला करेगी होलिका मईया,इसमें आप ऒर हम क्या कर सकते हॆं भईया?
ReplyDeleteHEY AARYA ..... HAME TO ATI PRASANNATA HOTI HAI AAP KE IS DIARY (DURYODHAN) KE PADHNE SE
ReplyDeleteLEKIN KINCHIT BHAI BHI HO RAHA
HAI ... KI KANHI USE (DURYODHAN)
KO IN BATON KA PATA CHAL GAYA TO
...... KANHI AAP KE NAM O KANHI
MAN-HANI KA MUKADMA NA KAR DE...
SO HE DEV(SHIV)US DUST(YUDHISTHIR) KO APNE VISWAS ME LEKAR HI YE PUNEET KARYA KIYE JAIN.....
PRANAM.....
S K JHA
CHANDIGARH.
WAH! Mein to prashnsa krne k bhi layak nahin.....Bhakt ka pranam svikaar krein bus :-)
ReplyDeleteजय हो गुरूदेव. :)
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