(सं) वैधानिक सूचना: पिछले महिने अपना होली का कोटा पूरा कर चुके थे लेकिन अब सोच रहे हैं कि ३३ प्रतिशत एक्स्ट्रा अलाट करवा लें.
मौसम को बूझने की कोशिश कर रहे हैं. समस्या केवल एक ही है. पहेली तक बूझने की आदत नहीं है तो ऐसे में मौसम को बूझने का काम बड़ा कठिन टाइप लग रहा है. कभी-कभी लगता है जैसे बूझने और 'बुझाने' का काम सब के लिए नहीं बना है. पिछले एक महीने के अन्दर ये दूसरी बार था जब उन्होंने न केवल मौसम को बूझा बल्कि उसे 'बुझाने' का काम भी हाथ में लिया. ये अलग बात है कि बुझाने के चक्कर में दोनों बार हाथ जल गए. वो भी तब जब पानी लेकर बुझाने निकले थे. सर्दी चलती बनी, लिहाजा पानी गरम हो गया होगा.
मौसम को बूझना बड़ा कठिन काम लगता है. पिछले महीने जब मौसम को बूझने की कोशिश की गई तो इस बात पर जा बैठे कि होली एक महिना पहले ही आ गई. तो दो-चार लोग अपना होली का कोटा पूरा यूटिलाईज कर लिए. देखा-देखी मैंने भी कर लिया. अब भैया जब अपना कोटा पहले ही खपत कर चुके हैं तो फिर बचता क्या है बूझने के लिए? लेकिन हमको तो उसने काटा है न. क्या कहते हैं उसे, हाँ ब्लागिंग का कीड़ा. काट के पूरा बड़ा सा घाव बना चुका है. लिहाजा थोड़ा कोटा बधवा लिया है मैंने. बूझने के लिए अपनी 'चिरईबुद्धि' लेकर निकल पड़े हैं. ऊपर से मन में ये बात कि भले ही पास में 'चिरईबुद्धि' हो लेकिन दिखाना भी है कि ये बात सच नहीं है. हमरे पास तो 'गिद्धबुद्धि' है. सो निकल पड़े. अब निकले हैं तो लोग देखेंगे भी. प्रयोगशाला में जायेंगे. मन ही मन हँसेंगे; 'देखो ये चिरईबुद्धि' भी मौसम को बूझने का प्रयास कर रहा है. दो-तीन दिन दौड़ लगायेंगे इधर-उधर. फिर वापस आ जायेंगे. ये सोचते हुए कि फालतू मैं इतना दौडे. मौसम को बूझने का तो दूर, उसको महसूस भी नहीं कर सके.
जो महसूस किए उसको अगर बोल दें तो लोग हंसेगे. कहेंगे इस बकलोल को देखो, क्या मौसम को बूझा है. अरे तीन दिन में ये जो बूझ के ले आया है, वो हम तीन साल से बूझ रहे हैं. कोई बात नहीं है. अभी नया-नया बुझवैया है सो ऐसा करेगा ही. नया धोबी साबुन ज़रा ज्यादा लगाता है. सो भैया, हम मौसम को बूझने निकल पड़े हैं. जितना महसूस करेंगे या फिर बूझेंगे, आप सब को जल्दी ही बताएँगे. बताएँगे? हाँ हाँ जरूर बताएँगे. आप सुनेंगे? गाली देना हो तो सामने दे दीजियेगा. मन में देकर गाली बेकार में खर्चा न करें.
हमको लेबलियाने नहीं आता. तो ये जो लिखा गया है क्या कहें इसे? मानेंगे आप? ठीक है तो सुनिए, ये 'मुफ्त गद्य' है.
Tuesday, March 4, 2008
मौसम बूझने के लिए अपना कोटा बढ़वा लिया है
@mishrashiv I'm reading: मौसम बूझने के लिए अपना कोटा बढ़वा लिया हैTweet this (ट्वीट करें)!
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ब्लागरी में मौज
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अ(वैधानिक) कमेण्ट - यह न तो होली पर निशाना है न मौसम पर। और न यह बकलोली पोस्ट है न चिरईबुद्धि वाली।
ReplyDeleteऐसा बुद्धिमत्तापूर्ण लिखने वाले गिने चुने हैं। उनकी जमात की दीक्षा ले ली हो तो भगवान ही मालिक है या स्वर्गीय(?)माओत्से-तुंग!
लिखा बढ़िया है।
कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
ReplyDeleteजोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री
'मुक्त गद्य' तो यह कतई नहीं है, उस पर हमारा कापीराइट है, बकलोल गद्य पर भी हमारा ही है.. हां, चिरई गद्य से आप संतुष्ट रहना चाहते हों, तो अलग बात है, उस पर अब तक हमने कापीराइट का सोचा नहीं है.
ReplyDelete@ प्रमोद जी,
ReplyDeleteसर, हम 'मुक्त गद्य' थोड़े न कहे हैं इसको...हम तो कहे कि ई 'मुफ्त गद्य' है.....:-) बाकी, चिरई गद्य के लिए हम राजी हैं न...:-)
चूंकि ज्ञानदत्त जी ने हमारी बात पहले ही चोरी कर के डाल दी है, सो रिपीट करके लिखने से हम सकुचा रहे थे.. मन मारके लिख रहे हैं.. कि लिखा बढ़िया है.
ReplyDeleteअपनी मोनोपोली सिर्फ चिरकुट गद्य की है। इस में हाथ ना डालियेगा।
ReplyDeleteलेबल होना चाहिए -यूरो गद्य।
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteहम चुप हैं क्यों की आप की पोस्ट के ज्ञान का हाथी हमारी बुद्धि के फाटक की छोटी सी खिड़की से अन्दर जाने में असमर्थ है. अब जब हम चिरई और बकलोल शब्दों के मानी से अनभिज्ञ हैं तो क्या टिपियायें बताईये. हाँ एक बात है मौसम पर आप कुछ भी keh सकते हैं अगर आप की बात सच निकली तो वाह वाह और न निकली तो ग्लोबल वार्मिंग का नाम लेकर बच निकालिए.
वैसे आप कहना क्या चाहते थे अपनी इस पोस्ट पर जरा खुल के बताईये न...?पलीज़.
नीरज
इतना ज्ञानपूर्ण और अच्छा कैसे लिख लेते हैं मुफ्त गद्य. :)
ReplyDeleteवाह-वा ! अपने 'मुफ़्त गद्य' में मामला जमा दिया आपने .
ReplyDeleteऔर ये 'चिरई गद्य' की जगह अनुप्रासमय नाम स्वीकार कीजिए ' गौरैया गद्य' . क्योंकि कौवे-बाज आदि तो ज्ञान जी की शब्दावली में हांव-हांव कर ही रहे हैं तो गौरैया अपना सरल-सरस गद्य क्यों न लिखे .
ये सब क्या लिखने लग गए.
ReplyDeleteमुफ्त गद्य. अद्भुत है और हमरी समझ से बाहर भी. अच्छा हुआ जो मुफ्त गद्य निकला.
वैसे भी समझ में नहीं आने वाला गद्य मुफ्त हो, वही अच्छा.
भइया जी - सान्द्र अम्ल नीर क्षीर से एक कदम आगे है - आपका भी अंगूठा जाने वाला है - हमारा तो हाथ कटे की नौबत है [- सलाम करने लायक भी न छोडेंगे क्या ?] - छौ मिर्च का छौंक और शिव रात्रि की शुभकामनाओं सहित [ :-)] - मनीष
ReplyDeleteमनीष भाई,
ReplyDeleteअंगूठा की बात जाने दीजिये. कटना रहेगा तो कट जायेगा. मेरा हाथ अभी तक सलामत है. लिहाजा आपको हमेशा सलाम करता हूँ. केवल छौ मिर्च का क्यों? हफ्ते में साथ दिन होते हैं भइया....एक बढाईये न......:-)
आपको भी शिवरात्रि ही हार्दिक शुभकामनायें...
बधाई इसे शतकीय पोस्ट की! गद्य लिखते रहें। नाम लोग अपने आप देंगे।
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