Saturday, March 22, 2008
अज़दक, ईराक और अमरीका
@mishrashiv I'm reading: अज़दक, ईराक और अमरीकाTweet this (ट्वीट करें)!
जैसा मेरा सोचना है; और उस सोचने का ३६ का आंकड़ा है अज़दक के साथ; मुझे ईराक से रत्ती भर भी सहनुभूति नहीं। तेल के पैसे पर इतराता देश तबाह हुआ। एक तानाशाह को पोषित करता, अपने ही देश की माइनॉरिटी को रौंदता, जब रौंदा गया तो मुझे कोई अफसोस नहीं हुआ। उस देश में जज्बा होगा तो खड़ा होगा जापान की तरह। नहीं तो टिलटिलायेगा।
वह तो यह हुआ कि बैठे ठाले अज़दक जी का ईराक पर बुद्धिवादी पॉडकास्ट सुन लिया। कण्टेण्ट से पूरी तरह असहमति है। पर जिस प्रकार से अज़दक जी ने प्रस्तुत किया है, उस विधा से मन मयूर हो गया है।
अब हम ठहरे रेल के गाड़ीवान। उसकी बुद्धि भी गाड़ियों और वैगनों का जोड़-घटाना समझती है। मेरी नौकरी के लिये तो गुणा और भाग करना आने की भी जरूरत नहीं। लिहाजा इस तरह श्रव्य रचना करना अपने बस का नहीं है। अपन तो बस यही कह सकते हैं कि पॉडकास्ट सुनना अच्छा लगा। पर उससे विचार का परिवर्तन नहीं हुआ।
अमेरिका को लतियायें - मेरी बला से। वह तो इत्ता दूर है कि वहां तक लात पंहुचती ही नहीं। आपका बैलेन्स जरूर बिगड़ सकता है। ईराक को खपच्ची लगा कर खड़ा करें - करते रहें। असल में खड़ा तो तब होगा जब पैरों में ताकत आयेगी। बाकी जित्ता मर्जी सेण्टीमेण्टलियाते रहें युद्ध के बाद के पांच साल ले कर!
खैर, मेरे लिखने का ध्येय मात्र इतना है कि जवानी के दिनों से अज़दक की रचनाधर्मिता के फैन थे। यह पोस्ट पढ़-सुन कर वह फैनियत कण्टीन्यू कर रही है।
और यह ज्वॉइण्ट ब्लॉग पर इसलिये पोस्ट कर रहा हूं कि बुद्धिवादी गोल के लोग अगर फनफनायें तो झेलने का काम पण्डित शिवकुमार मिश्र करें।
ज्ञान दत्त पाण्डेय की पोस्ट।
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अजदक जी की ये पोस्ट हम देख नहीं सके थे. आपने बताया तो पता चला. अपनी प्रतिक्रिया तो वहीं भेज दी है. आपका धन्यवाद ध्यानाकर्षण के लिए. हमारी सहमति आपसे है.
ReplyDeleteहोली मुबारक हो आपको...
ReplyDeleteआपको होली बहुत-बहुत मुबारक कहने आये हैं जी. :)
ReplyDeleteअजदक, ईराक और अमेरिका में 'क' कामन है इसीलिये एक और 'क' जरूरी है( तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा होता है न!) सो कहते हैं -होली मुबारक!
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