पूरी दुनियाँ में शायद ही कोई देश हो, जहाँ घटनाक्रम उतनी तेजी से बदलते हों, जितनी तेजी से पकिस्तान में बदलते हैं. मजे की बात यह है कि ऐसा सालों से होता आया है. अखबारों में लेख लिखे जाते हैं, टीवी पर पैनल डिस्कशन आयोजित होते हैं. एक्सपर्ट और ज्ञानी टाइप लोग तमाम तरह की थ्योरी सामने रखते हैं. उसपर अपना ज्ञान बघारते हैं. किताबें लिखी जाती हैं. शोध किये जाते हैं.
लेकिन मुझे लगता है कि इतना सीरियस होने की ज़रुरत नहीं है. पकिस्तान में सालों जो कुछ भी होता आ रहा है, उसके लिए केवल और केवल बोरियत जिम्मेदार है. वहां के हुक्मरान से लेकर वहां की जनता तक बोरियत की मारी है.
अब देखिये न, पाकिस्तान में जिस तरह के हुक्मरान हैं, वैसे सारी दुनियाँ में और कहीं नहीं है. वैसे तो पूरी दुनियाँ में पकिस्तान जैसा 'मुलुक' ही नहीं है लेकिन वहां के हुक्मरान अनोखे हैं.
इन हुक्मरानों की बात ही निराली है. बोरियत से सबसे ज्यादा यही भाई लोग पीड़ित हैं. जनरल लोग शासन करते-करते बोर हो लेते हैं तो जनता के ऊपर जम्हूरियत का बोझ पटक देते हैं. जनता बेचारी बोझ ढोते-ढोते बोर हो जाती है तो चिल्लाने लगती है; "इससे अच्छा तो जनाब जनरल साहब का ही राज था."
इतना सुना नहीं कि जनरल साहब, जो शासन से बाहर रहते-रहते बोर हो चुके होते हैं, खिल जाते हैं. तुंरत लाग-लश्कर लेकर चढाई कर देते हैं; "ओय हटा ओय. अपना बोरिया-बिस्तर लेकर निकल ले. पूरे मुल्क में तेरी वजह से ही करप्शन फ़ैल गया है. वैसे भी ढाई साल राज कर लिया तू. ढाई साल बहुत होते हैं. चल निकल ले."
चल निकल ले से जनरल साहब का मतलब होता है कि; "मुल्क छोड़ दे."
जम्हूरियत के कर्णधार बेचारे मुल्क छोड़ देते हैं. और क्या करेंगे? दूसरे किसी मुल्क में रहते हुए स्वास्थ्य बनाने में लग जाते हैं. जिनके बाल-वाल नहीं हैं वे बाल उगा लेते हैं. साथ ही माहौल बनने का इंतजार करते हैं. विदेश में सेमिनार अटेंड करने लगते हैं.
दस-पांच सेमिनार अटेंड करके ही 'वेटरन' हो जाते हैं. दो-चार और अटेंड करते हैं तो बोर हो जाते हैं. बोरियत एक बार सेट-इन कर जाती हैं तो बताने लगते हैं कि; "पूरे मुल्क की हालत खराब कर दी इस जनरल ने. अब तो रुपया-पैसा भी ख़तम कर दिया. हे पश्चिम के खाए-पीये मुल्क वालों हमें कुछ पैसा वगैरह मुहैया करवाओ तो हम जम्हूरियत ले आयें."
पश्चिम के खाए-पीये मुल्क वाले पैसा वगैरह का इंतजाम करते हैं. डील करवाते हैं ताकि जम्हूरियत वापस आये. एक बार फिर जम्हूरियत वापस आती है तो बीच में ही कोई साइनबोर्ड लगा जाता है कि; "जनरल सर्विसेस टू बी रिज्यूम्ड सून."
जनरल सर्विसेज और जम्हूरियत सर्विसेज का ये रोलिंग प्लान चलता रहता है. चल रहा है. अनवरत चलता रहेगा. पाकिस्तान वाले बोर होकर शासक चेंज करते रहते हैं लेकिन पश्चिम के देशों द्बारा पैसे-वैसे देने में बोरियत आड़े नहीं आती.
पश्चिम वाले बड़े बे-बोर लोग होते हैं.
लेकिन एक बात है. शासन किसी का भी हो, पूरे देश का बोरियत वाला चरित्र एक जैसा ही रहता है. जनरल साहब भी बताते हैं कि उनके मुल्क में आतंकवाद नहीं है और जम्हूरियत के कर्णधार भी यही बताते हैं. यह बताते-बताते बोर हो जाते हैं तो कहना शुरू करते हैं कि; "हम आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाई कर रहे हैं."
दोनों पग-पग पर बोर होते रहते हैं.
अब देखिये न. मुंबई हमले के बाद पहले तो बोले; "जहाँ तक अजमल कसाब का ताल्लक है, हमने इंक्वाईरी करवाई तो पता चला कि कसाब नाम का कोई है ही नहीं."
एक महीना यही बात कहते-कहते बोर हो गए तो बोले कि; "कसाब हमारे मुल्क का ही है."
पहले कहते रह गए कि; " जहाँ तक मंबई हमले का ताल्लक है तो हम कहना चाहेंगे कि इस हमले की साजिश पकिस्तान में नहीं हुई."
करीब दो महीना यह कहते-कहते बोर हो लिए तो बोल उठे कि; "हमले की साजिश के एक पार्ट को पकिस्तान में ही अंजाम दिया गया."
अरे बोरियत की हद है. इतना भी क्या बोर होना कि एक ही बात पर तीन महीने भी नहीं टिक पाते?
अब कल की ही बात ले लीजिये. पता चला कि मुंबई में जो आतंकवादी आये थे, उनलोगों ने पाकिस्तान के किसी कर्नल सदातुल्ला जी से फ़ोन पर बात की थी.
अब इस बात पर पकिस्तान के शासक कह रहे हैं कि; "जी, जहाँ तक कर्नल सदातुल्ला का ताल्लक है, तो हमारी आर्मी में ढेर सारे कर्नल सदातुल्ला हैं. आप किस सदातुल्ला की बात कर रहे हैं."
इनलोगों के कहने का मतलब शायद यह है कि "जी हमारी आर्मी सदातुल्लाओं से भरी पड़ी है. किस-किस को खोजेंगे?"
अपनी इस बात पर शायद एक महीना टिके रहे. बोर हो जायेंगे तो बोलेंगे; "हिन्दुस्तान ने जिस सदातुल्ला की बात की है, हमने तो जी उन्हें खोज निकाला है और उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया है. सदातुल्ला के बारे में हमने हिन्दुस्तान से दस सवाल किये हैं. अगर उसका जवाब मिल जाता है तो हम आगे की कार्यवाई करेंगे."
वैसे ये बोर होना केवल शासकों की ही बात नहीं है. यह पकिस्तान का राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है. क्रिकेट को ही ले लीजिये. मियाँदाद साहब क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के किसी पद पर एक महीना से ज्यादा रहते हैं तो बोर हो जाते हैं और बत्तीसवें दिन इस्तीफा थमा देते हैं. किसी को कप्तान बनाकर क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड छ महीने में ही बोर हो जाता है और दूसरा कप्तान खोजने लगता है. विदेशी कोच लाये जाते हैं. एक साल रहे नहीं कि खिलाड़ी से लेकर कबाड़ी तक उससे बोर होने लगते हैं. फिर क्या? फिर किसी देसी कोच को लाया जाता है.
यहाँ तक कि आतंकवादी भी बोर होते रहते हैं. अभी जनवरी में ही तालिबान वाले पकिस्तान सेना के साथ मिलकर भारत के खिलाफ जंग करने वाले थे. इनलोगों ने कई दिनों तक इस बात की घोषणा की. सेना-आतंकवादी भाई-भाई टाइप लग रहा था. जनवरी ख़तम होते-होते बोर हो गए और फरवरी में पकिस्तान सेना के खिलाफ ही लड़ने लगे.
बोरियत आतंकवादियों से भी क्या-क्या करवाती है. कुर्बान जाऊं ऐसी बोरियत पर.
कोई एक महीना में बोर होता है तो किसी को बोर होने में दो महीने लगते हैं. लेकिन देश के राष्ट्रपति जरदारी साहब की बोरियत बहुत ऊंचे दर्जे की है. वे एक-दो मिनट में ही बोर हो लेते हैं. देखा नहीं कैसे सराह पालिन से हाथ मिलाते-मिलाते एक मिनट में ही बोर हो लिए तो गले मिलने के लिए तैयार हो गए थे.
अच्छा, बोरियत एक और बात में दिखाई देती है.यही अकेला 'मुलुक' है जहाँ कभी प्रधानमंत्री सेंटर ऑफ़ पॉवर होता है तो कभी राष्ट्रपति. राष्ट्रपति पावरफुल होते-होते बोर हो लेते हैं तो अपनी सारी पॉवर प्रधानमंत्री को दे देते हैं. प्रधानमंत्री पावरफुल होते-होते बोर हो लेते हैं तो सारी पावर राष्ट्रपति को ट्रांसफर कर देते हैं. नवाज शरीफ के समय प्रधानमंत्री पावरफुल थे तो आज राष्ट्रपति.
इनकी बोरियत के किस्सों का यह हाल है कि इनके बारे में लिखते-लिखते हम बोर हो गए. इसलिए अब इन्हें छोड़कर भारत के नेताओं के बारे में कुछ लिखेंगे.
आखिर बोरियत जो न कराये.
Friday, February 27, 2009
बोरियत की गिरफ्त में पाकिस्तान
@mishrashiv I'm reading: बोरियत की गिरफ्त में पाकिस्तानTweet this (ट्वीट करें)!
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इस पोस्ट ने तो सारी बोरियत ही दूर भगा दी... वैसे लगता है इनलोगों के कहने का यही मतलब कि जी हमारी आर्मी सदातुल्लाओं से भरी पड़ी है. किस-किस को खोजेंगे?
ReplyDeleteवाह जनाब पाकिस्तान को कहां जाकर पकड़ा है। वैसे मन लगाने के लिए बोरियत भी बुरी नहीं है।
ReplyDeleteham bhi bore ho gaye hain ji.. aakhir neta log itti bar bole ki hind-pak bhai-bhai, to kuchh asar parna chahiye na..
ReplyDeleteaaj mauka mila to phone karke aapko bhi bore karenge.. nahi to kal ka din pakka raha.. :)
खुदा खैर करे जल्दी आपकी बोरियत दूर हो.
ReplyDeleteभाई बढ़िया तरीक़ा है यह तो बोर होने का. काश! हमारे देश के नेता लोग भी ऐसे ही बोर हो लिया करते. देखिए न, पिछले कई सालों से हम देखते रहे हैं, हम देख रहे हैं और हम देखते रहेंगे, पर करेंगे कुछ नहीं. क्यों? क्योंकि हम कोई बोर लोग थोड़े ही हैं.
ReplyDeleteअरे,पावरफुल और दिमाग वाले लोग ऐसे ही बोर हुआ करते हैं.सब हमारे देश के नेताओं की तरह थोड़े न होते हैं,कि वर्षों पीढियों तक एक ही तरीका अपनाकर और काम करके भी बोर न हों.
ReplyDeleteसटीक आकलन है तुम्हारा... शाबाश.
अभी इतने भी बोर नहीं हुए है...आगे ज्यादा बोर होंगे. हर दिन बयान बदलेंगे. नेता बदलेंगे. आज राजनेता कहेंगे हम ही नेता है, पैसा दो बात करो. कल सेना कहेगी अब हम नेता हैं आज हमें पैसा दो - बात करो. तीसरे दिन तालिबान कहेंगे अब हमारा राज है पैस दो बात वात छोड़ो... :)
ReplyDeleteकैसा बोर पड़ोसी है!
वाकई बोर मुल्क है।
ReplyDeleteदेखो जी जिस मुलुक में परमानेंट इंटर टेन मेंट करने वाले नेताओं की कमी होती है न जी उस देश ने तो बोर होना हुआ जी...अब वहां लालू जैसा कोई नहीं...अमर सिंग जैसा कोई नहीं...अडवाणी जैसा कोई नहीं...ना ही मनमोहन जैसा कोई है...अगर वहां इन जैसा एक भी होता तो जी छोटा सा मुलुक है इंटर टेन होता रहता...अब बिचारे क्या करें...जो भी तरीका उनको ठीक लगता है उसी से इंटर टेन होते रहते हैं जी...आप को जी दूसरों के इंटर टेन मेंट के तरीके से बोरियत क्यूँ होती है जी?
ReplyDeleteनीरज
:) बड़िया कटाक्ष्॥मजा आ गया
ReplyDeleteभगवान का शुक्र इन बोर लोगो को पहले ही भीख दे कर अलग कर दिया, लेकिन इन का भीख का कटॊरा कभी भी नही भरा, दुनिया दान दे दे कर थक गई, बोर हो गई, लेकिन इन बेशर्मो को शर्म नही आई, उस कटोरे को भी शायद शर्म आ गई हो गी... आप का लेख पढ कर सारी बोरियत दुर हो गई.
ReplyDeleteधन्यवाद
फुरसतिया की पोस्ट बोरियत जो न कराये की याद दिला गई आपकी यह पोस्ट !
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने . मेहनत करते रहिए !
असल में जब पश्चिम के देश अपने देश से बोर हो जाते है तो शतरंज की गोटि की तरह पाकिस्तान को तो कभी फलिस्तीन को तो कभी ईराक को इस्तमाल करते है और अपनी बोरियत दूर करते है। इस खेल को देख कर गुटनिरपेक्ष देश जो अपने आप को नान-अलाइंड कहते है, वे इस शतरंज में कभी प्यादा, कभी घोडा,ऊंट, हाथी बनते है और किसाबंदी करके विदेशी राजा को बचाते हैं।
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