बैठकबाज लोग हैं भारतीय और पाकिस्तानी सरकार में. वो भी आज से नहीं, न जाने कब से. आदि काल से भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिव, विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री, वगैरह-वगैरह की बैठक होती ही रही है. कभी मिश्र में तो कभी यूनान में. कभी अमेरिका में तो कभी तेहरान में. चार महीने बिना बैठक के बीते नहीं कि विदेश मंत्री टाइप लोग अकुताने लगते हैं. अकुता कर बोर हो जाते हैं तो बैठक कर लेते हैं.
कभी-कभी भारत छईला जाता है. कहता है; "आतंकवाद पर रोक नहीं लगी तो हम बैठक नहीं करेंगे."
जवाब में पकिस्तान कहता है; "बात-चीत होती रहनी चाहिए. बिना बात-चीत के न तो हमारी राजनीति चलेगी और न ही आपकी. हमने आपसे बातचीत नहीं कि तो अमेरिका से हमें डॉलर मिलना बंद हो जाएगा."
भारत कहता है; "अच्छा, ऐसी बात है? तो फिर आओ, बैठक कर लेते हैं. आखिर हमारी वजह से तुम्हारे पेट पर लात क्यों पड़े? वैसे भी हम किसी पाप में भागीदार नहीं बनना चाहते. "
भारत बातचीत के लिए तैयार तो हो जाता है. तैयार तो हो जाता है लेकिन सरकारी लोग तक कहते रहते हैं कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाई नहीं करेगा, तब तक किसी बैठक का कोई मतलब नहीं है. अब सरकारी लोग कहेंगे तो ठीक ही कहेंगे.
भारत की इस बात पर विद्वान टाइप लोग हंसते हैं. मीडिया के महारथी पैनल डिस्कशन में घोषणा कर देते हैं कि बैठक तो होगी लेकिन कुछ परिणाम नहीं निकलेगा.
अब बताइए, जब कुछ परिणाम नहीं ही निकलना है तो फिर बैठकी क्यों? कुछ-कुछ ब्लॉग जगत में चलने वाली बहस टाइप बात है न. बहस शुरू होती है. तर्क दिए जाते हैं. कुतर्क लिए जाते हैं. परिणाम कुछ नहीं निकलता.
आज सोच रहा था कि जब पहले से मालूम है कि बिना परिणाम वाली बातचीत ही होनी है तो फिर दो घंटे कैसे काटते होंगे ये विदेश मंत्री लोग? कौन सी बातें होगी जो दोनों को बैठकी के लिए मोटिवेट करती होंगी? क्या-क्या बात करते होंगे ये लोग?
शायद कुछ ऐसे;
कृष्णा साहब: नमस्कार कुरैशी साहब. कैसे हैं?
कुरेशी: अस्सलाम वालेंकुम.. हा हा.. बढ़िया. आप कैसे हैं?
कृष्णा साहब: मैं भी बढ़िया हूँ. वैसे कल शाम से गले में कुछ खराश है.
कुरैशी साहब: मौसम चेंज हो रहा है न. ये मौसम की वजह से है. तीन-चार दिन पहले तक...
कृष्णा साहब: हाँ, ये मौसम चेंज की वजह से ही है. एक बार तो सोचा कि बैठक में न आऊँ. फिर सोचा..
कुरैशी साहब: हा हा...देखिये सारी दुनियाँ को पता था कि हम मिलने वाले हैं. ऐसे में आप न आते तो...
कृष्णा साहब: आता कैसे नहीं? प्रधानमंत्री ने कहा...
कुरैशी साहब: गजब करते हैं आपके प्रधानमंत्री भी. शर्म-अल-शेख में बोले कि बातचीत करेंगे. आपके देश जाकर मुकर गए. एक बार के लिए तो हमारे वजीर-ए-आजम घबरा गए. फिर मैंने समझाया कि हिन्दुस्तान में किसी स्टेट में इलेक्शन होने वाले होंगे इसलिए वहां के वजीर-ए-आजम ने....
कृष्णा साहब: हाँ, हैं न इलेक्शन. महाराष्ट्र में हैं. इम्पार्टेंट स्टेट हैं न. ऐसे में...
कुरैशी साहब: वही तो. मैंने तो हमारे वजीर-ए-आजम को समझाया कि हिन्दुस्तान के प्राइम मिनिस्टर ने ऐसा इसलिए कहा कि किसी स्टेट में इलेक्शन होने वाले होंगे....... वैसे एक बात बताइए. आपलोग इतना इलेक्शन क्यों करवाते हैं?
कृष्णा साहब: हा..हा...इलेक्शन न हो तो जम्हूरियत कहाँ मिलेगी जनाब?
कुरैशी साहब: सही कहते हैं. लेकिन आपके इतने इलेक्शन से हमारी तो खाट खड़ी हो जाती है न. आप इलेक्शन के चक्कर में हमारे मुल्क से बातचीत बंद कर देते हैं. उधर अमेरिका वाले डॉलर रोक देते हैं.....ऊपर से इलेक्शन के मौसम में आपके अनालिस्ट लोग यह कहना नहीं भूलते कि हिन्दुस्तान दुनियाँ का सबसे बड़ा डेमोक्रेटिक मुल्क है....
कृष्णा साहब: वो तो है ही...
कुरैशी साहब: हाँ. वो तो है. लेकिन उनके ऐसा कहने से हमें शर्म-अल-शेख..सॉरी सॉरी शर्म आने लगती है न. वैसे एक बात की दाद दूंगा.
कृष्णा साहब: कौन सी बात?
कुरैशी साहब: यही कि सरकार चलाने में आपलोगों का मुकाबला नहीं.....चाय में कितनी शक्कर लेंगे?
कृष्णा साहब: एक चम्मच.
कुरैशी साहब: हा हा...एक चम्मच? बस? आपके पहले वाले विदेश मंत्री मुख़र्जी साहब भी एक चम्मच लेते थे. आप भी एक चम्मच?
कृष्णा साहब: मुख़र्जी साहब तो पहले से ही एकॉनोमी चाय पीते हैं. माने एक चम्मच शक्कर पहले से ही लेते हैं. हम तो दो से एक पर हाल ही में आये हैं.
कुरैशी साहब: हा हा...वो आस्टेरिटी प्रोग्राम के तहत?
कृष्णा साहब: हाँ. अब तो हालत यह है कि...
कुरैशी साहब: हाँ. मैंने टीवी पर देखा था. आपके जूनियर ने ट्विट्टर पर कुछ लिख दिया थे. कुछ केतली के बारे में. और कुछ काऊ के बारे में.
कृष्णा साहब: केतली नहीं केटल क्लास के बारे में.
कुरैशी साहब: हाँ..हाँ..याद आया. वैसे आपका भी ट्विट्टर अकाउंट है क्या?
कृष्णा साहब: क्या बात करते हैं आप भी? हमारे जूनियर का ट्विट्टर अकाउंट रहेगा तो मेरा भी ट्विट्टर कैसे रहेगा? प्रोटोकाल कुछ होता है कि नहीं?
कुरैशी साहब: ठीक कह रहे हैं. प्रोटोकाल के हिसाब से उनका ट्विट्टर है तो आपका तो ब्लॉग होना चाहिए.
कृष्णा साहब: हा हा..सही है. ब्लॉग रहने से मनोरंजन का साधन बढ़िया रहता है. वैसे आप मनोरंजन के लिए क्या करते हैं?
कुरैशी साहब: मैं फिल्में देखता हूँ. हाल ही में दिल बोले हड़ीपा देखी...आपने देखी ये मूवी?
कृष्णा साहब: नहीं देखी. मैंने क्विक गन मुरुगन देखी. वैसे एक बात बताइए. दिल बोले हडीपा तो अभी रिलीज़ नहीं हुई. फिर आपने कैसे देख ली?
कुरैशी साहब: हा हा..हमें रिलीज़ होने का इंतज़ार क्यों करना साहब? हम तो दुबई से डीवीडी मंगा लेते हैं. आपकी हिंदी फिल्में दुबई में डीवीडी पर पहले रिलीज़ होती हैं और आपके सिनेमा हाल में बाद में.
कृष्णा साहब: क्या बात कर रहे हैं? ये तो ठीक नहीं है.....लेकिन हमें तो मनोरंजन के लिए ब्लॉग पर ज्यादा भरोसा है. वैसे भी आजकल चीनी लोगों ने परेशान कर दिया है. ऐसे में ब्लॉग रहेगा तो एक स्ट्रेस बस्टर जैसा कुछ होने का एहसास रहेगा.
कुरैशी साहब: नहीं साहब, ये आप ठीक कह रहे हैं. आप ब्लॉग बना ही लीजिये.
कृष्णा साहब: हाँ...लेकिन मैंने सोचा है कि मैं हिंदी ब्लॉग बनाऊंगा.
कुरैशी साहब: क्यों? आप इंग्लिश में लिखिए.
कृष्णा साहब: असल में जब से ये फाइव स्टार के प्रेसिडेनशियल स्वीट वाला मामला उछला है तब से मैं ईमेज बनाने की कोशिश कर रहा हूँ. इसीलिए हिंदी सीख रहा हूँ. मैं हिंदी ब्लॉग बनाऊंगा. हिंदी में ब्लॉग रहेगा तो ज़मीन से जुड़ा दिखाई दूंगा.
कुरैशी साहब: आपके विचार सही हैं. असली राजनीति तो यही है साहब.
तब तक कृष्णा साहब का फ़ोन बज उठेगा. फ़ोन पर बात करके वे चिंतित दिखाई देंगे.
कुरैशी साहब: क्या हुआ जनाब? कुछ चिंतित दिखाई दे रहे हैं. कोई खास बात?
कृष्णा साहब: नहीं खास बात तो नहीं है. वो इंडिया से फ़ोन था. सेक्रेटरी बता रहा था कि हिंदी ब्लॉग के एग्रीगेटर अब ब्लॉगर भाइयों से फीस लें, इस बात का सुझाव दिया जा रहा है. कुछ लोगों का सुझाव है कि ब्लॉगवाणी ब्लॉगर लोगों से बारह सौ रुपया साल का फीस ले ले.
कुरैशी साहब: अरे तो जनाब बारस सौ रुपया साल कौन सा ज्यादा है?
कृष्णा साहब: जनाब आपको हमारी हिंदी न्यूज़ चैनलों की जानकारी नहीं है. उन्हें पता चल गया कि मैं बारह सौ रुपया साल फीस देकर ब्लागिंग कर रहा हूँ तो वे शोर मचा देंगे कि सरकार के आस्टेरिटी प्रोग्राम की दुर्गति हो रही है.
कुरैशी साहब: कोई बात नहीं. कह दीजियेगा कि फीस आप अपने पाकेट से दे रहे हैं. जैसे होटल का बिल...
कृष्णा साहब: वो तो है लेकिन फिर भी लोग शक की निगाह से देखेंगे. आपको नहीं पता है कि....
कुरैशी साहब: ऐसा भी क्या है साहब? अच्छा मीटिंग से निकलेंगे तो पत्रकार लोगों को क्या कहना है?
कृष्णा साहब: क्या कहेंगे? कह दीजियेगा कि बातचीत सफल रही. हम और बातचीत करेंगे.
कुरैशी साहब: यह भी कह दूँ कि हम बैक चैनल डिप्लोमेसी से बातचीत जारी....
कृष्णा साहब: क्या बैक चैनल?...आपने अपने मुल्क में केवल एक भारतीय चैनल दिखाने के लिए अलाऊ किया है. ऐसे में......
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और दो घंटे की बातचीत पूरी हो जायेगी.
Thursday, October 1, 2009
दो घंटे तो यूं गुजर जायेंगे....
@mishrashiv I'm reading: दो घंटे तो यूं गुजर जायेंगे....Tweet this (ट्वीट करें)!
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अतिसुन्दर !
ReplyDeleteबड़ी उम्दा बातचीत कर डाली। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है यह बात तो अब कन्फ़र्म ही हो गयी। ब्लागवाणी वाली बात तो आपस की थी ये वहां करके कहीं निजता का उल्लंघन तो नहीं कर दिया आपने।
ReplyDeleteदो घंटे तो दो मिन्ट में गुजर गये
ReplyDeleteसच्च्ची!!!
बैठक पे बैठक जारी रहेगी. ये तो दीखता है.
ReplyDeleteपर आपने ब्लोगिंग को ख्वामखाह ही लपेट लिया.
हिन्दुस्तान में कलम कहीं भी चल सकता है. कल्पना रोचक लगी.
जबरी डेमोक्रेशी है भारत की. अन्दर की बातें बाहर आ जाती है.
ReplyDeleteमरे भी भारत और बातचीत न करने के आरोप भी सहे भारत और दबाव में फिर से निरर्थक बातचीत करे भारत. क्या बकवास चल रही है?
दिल का दर्द बेबसी में व्यंग्य बन कर निकलता है.
लो बताओ, आपने स्टिंग ओपरेशन कर डाला बैठक का.. फिर लोगो के पेट में बल पड़ जायेंगे
ReplyDeleteसाझा ब्लॉग पर मेरी पसंद ( जो साइड में रखा है ) का क्या अर्थ हुआ ?
ReplyDeleteस्पष्ट किया जाय कि यह दोनों साझीदारों में से किसकी पसंद है ?
आपके पास बैठक की टेप कहाँ से आ गयी....कुरैशी जी को जाकर बताते हैं अभी!
ReplyDeleteइसे कहते हैं सार्थक सफल लोकतंत्रीय बात चीत....
ReplyDeleteकूट नीतिक बात चीत का सीधा प्रसारण (शाब्दिक)पढाने हेतु बहुत बहुत आभार लीजिये...
zabardast vyang !!
ReplyDeleteबातचीत चलती रहे
ReplyDeleteमोमबत्ती जलती रहे
टीए डीए मिलती रहे:)
अरे आप तो बारह सॊ वाली बात भी बता आये, अगर मेडम नारज हो गई तो? :)
ReplyDeleteलेकिन बाकी बात चीत तो बहुत अच्छी लगी, लगी इस लिये कि हमे चुगली हमेशा अच्छी ही लगती है
धन्यवाद, मिलते है अगली बेठक मै फ़िर से
तंदूरी पराँठें और बिरयानी के बारे में बातें अगली बार होंगी ।
ReplyDeleteइस पोस्ट पर एक बार और खुल कर हंसाने का मौका मिला.
ReplyDeleteआजकल ऐसे-ऐसे झुनझुने आ गए हैं बाजार में जिनसे ब्लॉग पढ़ लेता हूँ. पर वहां से टिपियाना थोडा मेहनत का काम लगता है, अभी लकम नहीं हो पाया है उसका :)
बहुत बढ़िया. मज़ा आ गया. वैसे अपनी (जीमेल) चैट सफल रही. हम औइर चैट करेंगे. करते रहेंगे.
ReplyDeleteकितनी अच्छी बातचीत हहुई...दो घंटे की पोस्ट दो मिनट में निपट गई. :)
ReplyDeleteकहते हैं जहाँ ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि...लेकिन जहाँ ना पहुंचे कवि वहां पहुंचे ब्लोगर...हालाँकि तुक नहीं जुडी लेकिन सच्ची बात तुक की मोहताज़ नहीं होती...देखिये न एक ब्लोगर कितनी महत्वपूर्ण बात की खबर तक पहुँच गया...जे हो...
ReplyDeleteनीरज
brilliantly written!!! its high time now that u should consider writings for tv shows,i told u before as well.
ReplyDeleteऔर बातचीत आगे भी जारी रहेगी । बात होती रहनी चाहिये । इसमें दोनों का फायदा है पाकिस्तान को डॉलर का और भारत को अपनी इमेज का ।
ReplyDeletekamaal likha hai.batcheet to noti rehni chahiye.sahi vyakhya ki hai
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