शायद किन्ही गहन आध्यात्मिक क्षणों में उन्होंने अपने गुरु से पूछा होगा; "गुरुदेव, पेट्रोकेमिकल और कपड़ा बेंचकर बहुत पैसा कमाया परन्तु चित्त को शांति नहीं मिलती. कोई उपाय सुझाएँ कि चित्त को शांति मिले. अगर ऐसा नहीं हुआ तो मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न होगी. हिन्दू धर्म में कहा गया है कि..."
गुरुदेव ने उनकी बात काटते हुए तुरंत बताया होगा; "यजमान, चित्त को शांति मिले, इसके लिए आप क्रिकेट टीम क्यों नहीं खरीद लेते?"
अपनी बात को सही साबित करने के लिए गुरुदेव ने यहाँ तक कह दिया होगा कि; " हे यजमान, स्वयं वासुदेव श्रीकृष्ण ने क्रिकेट की महिमा का बखान करते हुए गीता में कहा है कि 'हे पार्थ, कलियुग में मोक्षप्राप्ति का एक ही मार्ग होगा और वह होगा किसी न किसी रूप में क्रिकेट नामक खेल से जुड़ना. कलियुग में जो भी इस खेल से जुड़ जाएगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी. जो भी नहीं जुड़ सकेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति तो दूर मोक्ष मार्ग पर जाकर मिलने वाली कच्ची पगडंडी के दर्शन भी नहीं होंगे."
उन्होंने क्रिकेट टीम खरीद ली. अब मैच के दौरान सूट-बूट से निकलकर टी-शर्ट और जींस में समाये हुए अपनी टीम की सफलता पर ताली बजाते हैं. हवा में पंच मारते हैं. अपने खरीदे गए गए खिलाड़ी द्वारा छक्का जड़ देने पर नाच-नाच कर तालियाँ बजाते हैं. शायद इन्ही क्षणों में मोक्ष के कीटाणु उनके शरीर से टकराते होंगे और उन्हें असीम आनंद देते होंगे. वे स्टेडियम में हजारों लोगों के सामने हेहर बने कूद रहे हैं. ऐसे लोगों के सामने जिन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि हमेशा सूट-बूट में घुसा यह आदमी इस तरह से नाचेगा और करोड़ों लोग देख रहे होंगे.
लेकिन कहते हैं न कि मोक्ष की लालसा जो न कराये.
ये हाल केवल उनका नहीं है. ये तो ठहरे पेट्रोकेमिकल और कपड़ा बेचने वाले. सीमेंट और लोहा बेचने वाले और हवाई-जहाज उड़ाने वाले और शराब बेचने वाले का गुरु भी मोक्ष प्राप्ति का साधन क्रिकेट को ही बताता होगा. इस मामले में सारे गुरु एक जैसे होते होंगे वो चाहे अध्यात्मिक गुरु हों या मैनेजमेंट गुरु. कुछ बेंचकर, चाहे पैसा कमाया हो या पैसा गंवाया हो, मोक्ष प्राप्ति का साधन एक ही है, क्रिकेट.
जो पहले नहीं जुड़ सके और मोक्ष के मार्ग पर दो साल से पिछड़ गए वे अब जुड़ रहे हैं. पहुँच गए किसी गुरु के पास. बोले; "गुरुदेव, जिस जनता से हमारी कंपनी ने पैसा डिपोजिट लिया था वो बहुत तंग कर रही है. कहती है पैसा वापस दो. अब कहाँ से दें पैसा? वो तो खा चुके हैं. तिकड़म कर सरकार से किसी तरह तीन साल का समय लिया है लेकिन उसमें से दो साल ख़तम. मालूम है जनता का पैसा वापस नहीं कर पायेंगे. अगले साल फिर झमेला शुरू होगा. क्या करें गुरुदेव? चित्त शांत नहीं रहता. आप कोई मार्ग सुझाएँ. अब आपका ही 'सहारा' है."
गुरुदेव ने कहा होगा; "मात्र एक ही मार्ग है वत्स. क्रिकेट. चित्त शांत करने के लिए क्रिकेट टीम खरीद लो. मोक्ष प्राप्ति का यही साधन है."
वे पहुँच गए और सत्रह सौ करोड़ रुपया देकर क्रिकेट टीम खरीद ली. गरीब जनता का डिपोजिट वापस करने के लिए पैसे नहीं हैं लेकिन क्रिकेट टीम खरीद ली और मोक्ष का रास्ता साफ़ कर लिया.
हर मर्ज की दवा क्रिकेट है. न जाने किसको-किसको बचाता रहता है. जैसे सत्तर के दशक में डॉक्टर साहब लोग हर मर्ज़ का इलाज पेनिसिलिन से करते थे वैसे ही आज के जमाने में हर चीज का इलाज क्रिकेट से किया जा रहा है.
मंत्री जी के भी गुरु होंगे. उन्होंने भी बताया होगा कि; "वत्स मंत्री हो, टीम तो खरीद नहीं सकते. क्यों न किसी टीम के मेंटर बन जाओ. मंत्री और मेंटर में बड़ा जबरदस्त ताल-मेल है. मुझे तो लगता है कि मेंटर शब्द मंत्री शब्द से ही निकला होगा."
मंत्री जी बन गए मेंटर. बनने से पहले तमाम अध्ययन किया. एक्सल शीट्स को रातभर जागकर वैसे ही रट्टा मारा जैसे आठवीं का विद्यार्थी ज्यामिति का प्रमेय याद करता है; "त्रिभुज क ख ग में कोण क ख ग.....त्रिभुज क ख ग में कोण क ख ग.."
बाद में पता चला कि मोक्ष मार्ग पर बाधा आ गई. गाड़ी आगे नहीं जा पा रही थी और वे आगे बढ़ने पर अड़े हुए थे. ऐसे में एक्सीडेंट हो गया. अब अस्पताल में हैं और घाव सहला रहे हैं.
सरकार के मर्जों की दवा भी क्रिकेट है. सरकार के भी कोई गुरु होंगे. सरकार एक दिन उनके पास पहुँच गए होंगे; "अब क्या किया जाय गुरुदेव? महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश करने का समय आ रहा है. अपने और पराये सभी नाराज हैं. फिनांस बिल पास करवाना है. संसद में मंहगाई पर बहस और वाक्आउट होने का चांस है. पिछले आठ महीने से कहते आ रहे हैं कि मंहगाई कम होगी, दस दिन बाद कम हो जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. बहुत झमेला है. क्या किया जाय?"
गुरुदेव ने कहा होगा; "वत्स क्रिकेट किस दिन काम आएगा?"
सरकार जी बोले होंगे; "क्या बात कर रहे हैं गुरुदेव? अब सरकार क्रिकेट टीम खरीदेगी ?"
गुरुदेव ने कहा होगा; "टीम खरीदने के लिए कौन कह रहा है वत्स? क्रिकेट से जुड़ना है. जो काम आपको २००८ में करना चाहिए था वह अब कर डालिए. सी बी आई, इनकम टैक्स, रा, इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट...ये सब किस दिन काम आयेंगे? इन्हें क्रिकेट से जोड़िये और चैन की नींद सोइए. चाहे तो ऍफ़ बी आई, सी आई ए वगैरह को भी उधार ले लीजिये और ललित मोदी को दलित मोदी बना दीजिये. इन्वेस्टिगेशन में नेताओं के खिलाफ सुबूत इकठ्ठा कीजिये और समय-समय पर उनके हाथ मरोड़ते रहिये."
अब सरकार अपने मोक्ष का रास्ता साफ़ करने में लगी हुई है.
पूरे देश को क्रिकेट चला रहा है या पूरा देश क्रिकेट को चला रहा है, समझ में नहीं आ रहा. एक कमीशन बैठाया जा सकता है.
जय क्रिकेट.
Friday, April 23, 2010
मोक्ष वाया क्रिकेट
@mishrashiv I'm reading: मोक्ष वाया क्रिकेटTweet this (ट्वीट करें)!
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तिरकिट धा, किरकिट को धा धा,
ReplyDeleteकिरकिट शरणं गच्छामि
जय क्रिकेट.....
ReplyDeleteसेमी फायनल जितने के बाद हरभजन सिंह ने नीता अम्बानी को गोद में उठा लिया था.. शायद दोनों को ही मोख्स प्राप्ति का आनंद प्राप्त हुआ हो.. आफ्टर आल दोनों ही किसी ना किसी रूप में क्रिकेट से जुड़े थे.. वैसे हमारे यहाँ एक रतिराम जी करके कोई है वो भी मोक्ष प्राप्ति के लिए आई पी एल का टिकट ले आये.. और शिल्पा शेट्टी के दीदार के चक्कर में ठुकाई करवाके आ गए अपनी.. वरना मोक्ष प्राप्ति को होते..
ReplyDeleteऔर ये है वो लिंक जहा भज्जी मिसेज अम्बानी को उठाये हुए है..
ReplyDelete"हजारों लोगों के सामने हेहर बने कूद रहे हैं..." यह "हेहर" निश्चित रूप से "अजगर" का दूसरा रूप होगा… जो सब निगलता चला जाता है…।
ReplyDeleteधन्य हो गुरुदेव… आप सिर्फ़ धोते नहीं हैं, बल्कि पूरी तरह निचोड़ भी देते हैं…
@ कुश - धन्यवाद लिंकार्थ। ऐसे और भी लिंक हैं क्या?! :)
ReplyDeleteबहुत सही.....
ReplyDeleteएक पुरानी कहावत का क्रिकेट के संदर्भ में संशोधन पेश है-
क्रिकेट यानी अमीर की जोरू, मोदी की भाभी...
अति आनन्द दायक..... आ हा
ReplyDeleteआत्मा मोक्ष के आस पास मण्डराती सी लगी...
आइपीएल में सभी चोर चोर मौसेरे भाई थे. कहते है लोगों को भाईचारा पसन्द नहीं आता तो नजर लगा दी. अब चोर चोर सौतेले दुश्मन हो गए है. एक दुसरे के नंगेपन को खोल रहे है. ऐसे में किसकी आबरू बचेगी?
सीख: नंगा होने से बचना है तो वत्स पराए पाप ढाँप कर रखो. वो तुम्हारे रखेगा. जय आपीएल तमाशा.
वाह, क्या छक्का जड़ा है, गेंद तो स्टेडियम से बहार. वैसे गुरुदेव ने तो पिच पर आये बिना और बेट को हाथ में लिए बिना ही, बल्ले बल्ले करने वालो की, ऐसी तैसी कर दी. बहुत खूब
ReplyDeleteआई पी एल बोले तो इन्डियन पालिटिशियन लीग.. कुछ पार्लियामेन्टेरियन लीग भी बोलने लगे हैं.....
ReplyDeleteThat ws just so awesome! Hope something gruesome happens to IPL and ppl are saved this huge wastage of time !
ReplyDeleteआप तो स्व्यं ही शिव हैं, क्या कहूं?!
ReplyDeleteफिर भी ....
जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल क्रिकेट दूर कर सकता है।
देखिये तो कितनों को मोक्ष मिल चुका है और कितनों की तैयारी है । गुरू जी ने संभवतः सच ही बोला ।
ReplyDeletethis is just too good.
ReplyDeleteFANTASTIC!
जैविक, दैहिक, भौतिक सभी प्रकार के ताप हरने वाली रामबाण औषध है क्रिकेट।
ReplyDeleteआई पी एल देखिये और दिखाईये, भारत की सांपों और जादूगरों वाले देश की छवि धूमिल हो जायेगी।
इंडिया शाईनिंग, भारत उदय।
गज़ब लिखा है दादा, ऐसे थोड़े ही हम आपको...........।
सदैव आभारी
संजय
"हजारों लोगों के सामने हेहर बने कूद रहे हैं..." हेहर-थेथर जो ना बना दे मोक्ष का मोह :)
ReplyDeleteये ज्यामिति के प्रमेय रटने वालों से तो मिल चूका हूँ ऐसा रटे कि ५० साल बाद भी आँख मूंद के प्रूव कर दें... त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग दो समकोण होता है ! एकदम कंठस्थ.
क्रिकेट की महिमा अपरंपार है।जभी तो हमारे राज्य के पहले मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष बने थे और अब शराब ठेकेदार इसके अध्यक्ष हैं।मरे जा रहे उसपर कब्ज़ा करने के लिये,कोर्ट-कचहरी भी शुरू है,वो भी तब जब इसे मान्यता नही मिली है।शिव भैया मज़ा आ गया,मोक्ष की ओर जाने वाले हाईवे से जुडती छोटी-मोटी पगडंडी देखता हूं मैं भी कोई?
ReplyDeleteUr best blog till date!! waise isme पेट्रोकेमिकल और कपड़ा bechne wale hain kaun, Ness Wadia aur Mukesh Ambani hain kya? ur best line in the blog was "हे यजमान, स्वयं वासुदेव श्रीकृष्ण ने क्रिकेट की महिमा का बखान करते हुए गीता में कहा है कि 'हे पार्थ, कलियुग में मोक्षप्राप्ति का एक ही मार्ग होगा और वह होगा किसी न किसी रूप में क्रिकेट नामक खेल से जुड़ना.
ReplyDeleteक्या धोया है भाई....वाह !!!
ReplyDeleteचौका छक्का सत्ता अठ्ठा के नीचे तो कोई लाइन ही नहीं...वाह वाह सब्बास ...
जय क्रिकेट! जय मिसिरजी!!
ReplyDeleteसमसामयिक विषयों और राजनीति पर आपकी नजर और उस पर व्यंग्य लिखने की सहज क्षमता अद्भुत है। मजा आ गया।
जय क्रिकेट! जय मिसिरजी!!
आप देखें ही होंगे हमें किरकिट खेलते खोपोली में...आप क्या समझे हम स्वास्थ्य बनाने के लिए ये सब बल्ला गेंद का खेल खेल रहे हैं...इस उम्र में ये खेल हम क्या स्वास्थ्य के खेलेंगे? आप उस समय गलत समझे थे लेकिन अब सही समझे हैं हमें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ था सपने में ...जिसमें देवदूत (बाबाओं या गुरुओं के चक्कर में हम नहीं पड़ते)ने हाथ में बल्ला दे कर कहा हे तात अब तुम्हारे गो लोक वासी होने के दिन नजदीक आ रहे हैं...तुमने जीवन में कोई पूजा पाठ नहीं किया...कोई व्रत नहीं रखा...किसी मंदिर मस्जिद नहीं गए...किसी को गुरु धारण नहीं किया...किसी धार्मिक पुस्तक को नहीं पढ़ा...तो तुम्हें मोक्ष कैसे मिलेगा? ??? कैसे मिलेगा हे देव डी. ??हमने घबराते हुए पूछा (देव डी. याने देव दूत) कैसे मिलेगा? बोलो ना देव डी???....देव डी. ने हलक को स्वर्ग में बहने वाली सुरा से तर किया और बोले तात तुम किरकिट खेलो... और वो गायब हो गए...
ReplyDeleteतब से हम निरंतर किरकिट खेल रहे हैं...अब हमें आपके लेख से ज्ञात हुआ की हमारा सपना किसी सरकारी सूचना की तरह लीक हो गया और बाबाओं गुरुओं ने उसे खरीद उसका इस्तेमाल अपने मोटे ताज़े क्लाइंट्स पर किया है...याने जो देव डी. ने सिर्फ हमें कहा था वो अब ध्रुव सत्य की तरह जग ज़ाहिर हो गया है...
(बंधू दो दिन से सोच रहे थे क्या कमेन्ट करें? अब आप हमारे ऊपर दिए कमेन्ट को अनर्गल प्रलाप समझ कर गोली मारें लेकिन एक बात नोट करें के आपने ये पोस्ट लिखी बहुत धाँसू है...हमारी बधाई स्वीकार करें)
मान गए मुगले आज़म.
नीरज
:) अति सुन्दर.. आईपीएल इस कलयुग मे उस कुबेर के भान्ति है जिनके पास कभी खजाना हुआ करता था.. आजकल उनका भी प्रोक्सी इनवेस्टमेन्ट है किसी टीम मे :P
ReplyDeleteहम भी मैच देखने गये थे.. टिकट का फ़ोटो यहा लगाये है.. सब लोग नतमस्तक होकर मोक्ष की प्रार्थना करे.. और हा कतार मे आये.. :)
शिव कुमार मिश्र एवं ज्ञान दत्त पाण्डेय का मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. आप दोनो महापुरुष इसी प्रकार ब्लॉग लिखते रहिए बस यही विन्नति है हमारी..
ReplyDeleteतथास्तु !
ReplyDeleteकुछ तो बनावटी गुरुओं ने मोक्ष और धर्म जैसे
ReplyDeleteशब्दों को अत्यन्त नीचे पहुँचा दिया कुछ
आप जैसे लोगों की कृपा से इन महान शब्दों का
बन्टाधार (हुआ या होगा नहीं) करने का विचार
रखते है इसीलिये लेख अच्छा होते हुये भी धुंआ
छोङ रहा है
@ राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद. आपकी टिप्पणी बहुत मज़ेदार है. लेख के 'धुआं छोड़ने' की बात आज पहली बार पढ़ी.इतनी रोचक टिप्पणी कोई बड़ा पंडित ही कर सकता है.
ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहे. विद्वानों की बहुत ज़रुरत है. न सिर्फ इस दुनियाँ को बल्कि ब्लॉगजगत को भी. मुझे पूरा विश्वास है कि जबतक आप जैसे प्योर विद्वान हैं, इन शब्दों का बंटाधार मुझ जैसा ब्लॉगर नहीं कर सकता.
पूरे देश को क्रिकेट चला रहा है या पूरा देश क्रिकेट को चला रहा है, समझ में नहीं आ रहा. एक कमीशन बैठाया जा सकता है. । मोक्ष प्राप्ति का ऐसै अनोखा मार्घ बताने वाले शिवजी को प्रणाम ।
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