राठौर साहब की बेल अप्लिकेशन रिजेक्ट हो गई. क्या कहा आपने? अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल करने के लिए मेरे ब्लॉग के सामने धरना दे देंगे? अच्छा चलिए सुधार कर लेता हूँ. कल राठौर साहब की जमानत की अर्जी नामंज़ूर हो गई. अब ठीक है? थैंक यू. ठीक है, ठीक है बाबा..अरे वही, धन्यवाद.
चलिए आगे की बात करता हूँ. हाँ तो मैं कह रहा था कि राठौर साहब की जमानत अर्जी खारिज हो गई. कभी-कभी खारिज भी हो जाती है. जब देश की अदालतों में कुछ बड़े लोगों की जमानत की अर्जी खारिज होती है तो उसे न्याय व्यवस्था में क्रांति कहते हैं. ऐसी घटनाओं की वजह से जनता का विश्वास न्याय व्यवस्था में पुनः स्थापित हो जाता है और वह दाल-रोटी खाओ अदालत के गुन गाओ नामक गाना गुनगुनाने लगते हैं.
वैसे मेरा मानना है कि ऐसे बड़े लोगों की जमानत की अर्जी खारिज करना एक तरह से स्ट्रेटेजिक जुडिशियरी मैनेजमेंट का नमूना है और जुडिशियरी की इमेज बिल्डिंग एक्सरसाइज का हिस्सा है. एक और मजे की बात. जब इस तरह के फैसले आते हैं और अपराधी के वकील से सवाल किया जाता है तो उसका उत्तर होता है; "मैंने अभी तक फैसला पूरी तरह से पढ़ा नहीं है. बिना पढ़े कमेन्ट करना संभव नहीं है."
दूसरी तरफ अपराधी कहता है ; "मुझे देश की न्याय-व्यवस्था में पूरा विश्वास है"; इतना कहकर वह कैमरे के सामने मुस्कुरा देता है. उसकी बेशर्मी देखकर कैमरा खुद शरमा लेता है. अपने देश की न्याय-व्यवस्था पर सबसे ज्यादा विश्वास अपराधियों को ही है.
खैर, राठौर जी की अर्जी के रिजेक्ट होने की बात चल रही थी. अब राठौर जी क्या करेंगे? किसी और अदालत में जायेंगे? वहां जायेंगे तो क्या होगा? मैं सोच रहा था तो मुझे लगा कि अगर सिंगल जज बेंच ने उनकी अर्जी नामंज़ूर कर दी है तो उन्हें किसी बड़ी बेंच के सामने अपनी अर्जी ठेल देनी चाहिए. फिर ख़याल आया कि हमारी अदालतें मुकदमों से लबालब भरी पड़ी हैं. मतलब मुकदमों की बाढ़ का पानी हमेशा खतरे के निशान से ऊपर बहता रहता है. ऐसे में तुरत-फुरत में बड़ी बेंच तो क्या मचिया भी नहीं मिलेगी जिसके सामने वे अपनी जमानत की अर्जी रख सकें.
तो फिर क्या हो सकता है?
मैं इस पर सोच ही रहा था कि मुझे देश की नई संस्कृति की पैदाइश रियलटी शो के जजों की याद आई. मुझे लगा कि क्यों न राठौर साहब जमानत की अपनी अर्जी इन रियलटी शो के जजों की अदालत में ठेल दें. भाई बुराई क्या है? ये भी तो जज ही हैं. वो जज नहीं तो ये जज. रियल्टी शो में जज लोग जिस तरह से कंटेस्टेंट को आंकते हैं, उस तरह से तो अदालतों के जज भी नहीं आंक सकेंगे.
पिछले तीन-चार साल में जिस तरह से फिल्म इंडस्ट्री के तमाम चिरकुट जजबाजी में उतरे हैं अगर उस रफ़्तार से न्याय प्रणाली में जजों की नियुक्ति होती तो तमाम मुक़दमे निबट गए होते. मेरा मतलब है जिस तरह से प्लान बनाकर फिल्म और टेलीविजन वाले चल रहे हैं उससे लग रहा है जैसे वे साल २०१५ तक इस देश में आठ करोड़ सिंगर और नौ करोड़ डांसर्स पैदा करके मानेंगे. लगता है जैसे यह प्लान कलाम साहब के ट्वेंटी-ट्वेंटी अजेंडा का एक हिस्सा है.
लेकिन अगर ऐसा हो गया, मेरा मतलब अगर राठौर साहब ने अपना बेल अप्लिकेशन इन जजों की कोर्ट में दाखिल किया तो कैसा सीन होगा? शायद कुछ ऐसा;
देश में फैले राठौर साहब के तमाम फैन्स, जो उन्हें अपना हीरो मानते हैं, उनलोगों ने राठौर साहब से सामूहिक आह्वान करते हुए लिखा; "आप हमारे आयडल हैं. हमने तमाम ट्रिक्स ऑफ़ द ट्रेड आपसे ही सीखें हैं. चूंकि आप हमारे आयडल हैं इसलिए हम चाहते हैं कि आप अपना केस इंडियन आयडल के जज अनु मलिक की अदालत में पेश करें. हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि वे आपकी जमानत की अर्जी मंज़ूर कर लेंगे."
यह सामूहिक आह्वान पढ़कर राठौर साहब भाव विह्वल हो गए. जिस तरह से नेता अपने चमचों के आह्वान और नारे सुनकर खुश होता है उसी तरह से राठौर साहब खुश हो गए. अपने फैन्स को मान देते हुए उन्होंने अपनी अर्जी अनु मलिक की अदालत में पेश कर दी. अर्जी देखते हुए अनु मलिक बोले; "मुझे अकेले जज-गीरी करने की आदत नहीं है. मैं जबतक अपने अगल-बगल बैठे जजों से डिफर न हो लूँ, मेरा खाना नहीं पचता. दूसरी बात यह भी है कि अगर और जज न रहेंगे तो मैं अपने बनाए गाने सुनाकर किसे बोर करूंगा? मैं चाहूँगा कि कम से कम दो और जजों की नियुक्ति हो."
बहुत छान-बीन करके दो और जज खड़ाकर के तीन जजों की एक बेंच तैयार कर दी गई. इस बेंच में अनु मलिक के अलावा सरोज खान और हिमेश रेशम्मैया को रखा गया. जब बेंच तैयार हो गई तो वह उसने बताया कि उन्हें सिंगल कंटेस्टेंट कोर्ट की आदत नहीं है इसलिए वे चाहेंगे कि राठौर के साथ कम से कम चार और कंटेस्टेंट आयें जिन्हें जमानत की या उसी तरह के किसी चीज की ज़रुरत है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर बेंच कोर्ट में नहीं बैठेगी.
उनकी इस डिमांड पर राठौर साहब ने और लोगों की खोज शुरू की. ज्यादा खोज-बीन की ज़रुरत नहीं पड़ी. उन्हें दिल्ली में ही सज्जन कुमार मिल गए. सज्जन कुमार के ऊपर उनकी सज्जनता की वजह से तमाम धाराएं बह रही हैं. आये दिन उनके ऊपर वारंट इश्यू होता रहता है. राठौर साहब ने जब सज्जन कुमार को बताया कि अनु मलिक की अध्यक्षता वाली बेंच उनके लिए कुछ कर सकती है तो वे तुरंत तैयार हो गए. सज्जन कुमार के अलावा छत्रधर महतो, विकास यादव और अब्दुल करीम तेलगी भी अपना मुकदमा इस तीन जजों की बेंच के सामने रखने पर राजी हो गए.
वह दिन आया जब सुनवाई होनी थी. तीनो जज एक-एक करके अदालत में आये. अदालत तो क्या थी, किसी रियलटी शो का मंच था. मंच पर एनाउंसर था. पंद्रह सौ रूपये वाले बिग-बाजारीय सूट में घुसा हुआ. हाथ में माइक. अचानक उसने दहाड़ना शुरू किया; "जिस दिन का इंतज़ार था, आज वह दिन आ गया. जी हाँ दोस्तों आज तीन जजों की इस अदालत में पाँच महान लोगों के मामलों की सुनवाई होगी. चलिए सबसे पहले स्वागत करते हैं अपने पहले जज का हू इज नन अदर देन द
डैशिंग एंड लैशिंग अनु मलिक. लेडिज एंड जेंटिलमैन, गिव अ बिग राऊंड ऑफ़ अप्लाज तो अनु मलिक."
अनु मलिक स्टेज पर अवतरित हुए. बैकग्राऊंड म्यूजिक के साथ उनका गाना बज रहा था, 'ऐसा पहली बार हुआ है सतरा-अठरा सालों में..' अपने गाने के सामने वे बड़े गर्व के साथ खड़े हो गए. मुख पर कुछ इस तरह की संतुष्टि जैसे मन ही मन कह रहे हों; "पंचम दा, ऐसा गाना बनाकर दिखाओ तो जानें. अरे हम असली म्यूजिक बनाते हैं असली...." अचानक उन्होंने गाना शुरू कर दिया; "ऊंची है बिल्डिंग, लिफ्ट तेरी बंद है.."
एंकर ने कहा; "अनु जी, आपको मुक़दमे की सुनवाई करनी है. म्यूजिक कांटेस्ट जज नहीं करना है."
उसकी बात सुनकर अनु मलिक बोले; "बॉस, अनु मलिक इज अ सेल्फ मेड मैं. मजाक नहीं है. टैलेंट है तो दिखाएँगे नहीं?"
एंकर की समझ में नहीं आया कि वह क्या बोले. अभी उसने कोई जवाब सोचने का काम शुरू ही किया था कि अचानक बैकग्राऊंड से म्यूजिक शुरू हो गया. साथ में गाने का झरना फूट पड़ा; "एक दो तीन, चार पाँच छ सात आठ नौ..."
एंट्री हुई सरोज खान की. सौ-सौ के करीब पंद्रह नोटों से लैस सरोज खान न्यू सलवार-सूट में ठुंसी हुई स्टेज पर आई. 'एक दो तीन चार पांच छ सात आठ नौ...' गाने पर सरोज खान ने चार-पांच एनर्जेटिक ठुमके लगाए. देखकर लगा जैसे फिल्म प्रोड्यूसर्स को कन्विंस करना चाहती हों कि 'मैं अभी भी डांस डायरेक्शन कर सकती हूँ.'
दर्शकों ने अभी इन दो जजों की करतूत झेलना शुरू ही किया था कि अचानक स्टेज पर एक धड़ाका हुआ और कोई बड़े जोर से चिल्लाया; 'जय माता दी'.
..........जारी रहेगा.
Tuesday, June 8, 2010
बेल अप्लिकेशन
@mishrashiv I'm reading: बेल अप्लिकेशनTweet this (ट्वीट करें)!
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न्याय-व्यवस्था,
मीडिया,
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धरना.. धरना....
ReplyDeleteशुरू करते ही खत्म कर दिया....
आप एकता कपूर वाली स्टाइल अपना लिए... नया मोड देकर बोला नेक्स्ट एपोसोड...
देखिये आगे क्या होता है... "क्या राठोड को जमानत मिलेगी?"
हमारे देश में कुछ भी हो सकता है .. बहुत बढिया लिखा आपने .. अगली कडी का इंतजार है !!
ReplyDeleteमुकदमा अभी जारी है इस लिए बोल कर न्यायव्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, जरा जरा सी बात पर माननीय का अनादर हो जाता है.
ReplyDelete"देश की न्याय-व्यवस्था पर सबसे ज्यादा विश्वास अपराधियों को ही है"
विश्वास अनुभव आधारीत है, अतः सत्य है :) कुछ नहीं बिगड़ने वाला.
यह तो चिरन्तन प्रक्रिया है...
ReplyDeleteन्याय पालिका में पूर्ण विष्वास होना ही चाहिये....
अब किसी न किसी को तो है ही...
अगले ऐपिसोड से पहले थोड़े से विज्ञापन हो जाते तो :)
न्याय प्रक्रिया में जनता की आस्था बनी रहे, उसके लिये यह भी आवश्यक है ।
ReplyDeleteला..आ... आ... आ... आ... आ... आ... जवाब...........
ReplyDeleteसुपर्ब !!!
प्लीज अगली कडकडाती कड़ी कल ही डालो....बिलकुल भी इन्तजार न करवाना,नहीं तो हम भी इसी तरह के किसी बेंच में मुकदमा ठोंक देंगे......
आप हिंदी की जगह उर्दू शब्दों का प्रयोग कर रहे है.. ऐसे में हम हिंदी को कैसे आगे ले जायेंगे.. ? रुकिए मैं अभी अपनी टीम बुलाकर लाता हूँ..
ReplyDelete"जिस तरह से प्लान बनाकर फिल्म और टेलीविजन वाले चल रहे हैं उससे लग रहा है जैसे वे साल २०१५ तक इस देश में आठ करोड़ सिंगर और नौ करोड़ डांसर्स पैदा करके मानेंगे"
ReplyDeleteइसका मतलब ये हुआ कि बहुत जल्द इस देश की पहचान बदलने वाली है. नचैईयों, भाँड,मरासियों का देश :)
हाँ जी कुश भाई, हम बुलावे पर आ गए है. बोलो किधर नारेबाजी करनी है? काँच-वाँच तोड़ने के अलग से लंगेगें...
ReplyDeleteबेल खरीदने को भी आवेदन करना पड़ता है/नाचना-गाना पड़ता है? तब तो बेल का शर्बत और मंहगा हो गया होगा! :-(
ReplyDeleteआजकल टी.वी पर चल रहे एपिसोड के ख़तम होने पर अगले एपिसोड की झलकियाँ दिखाने का रिवाज़ है आपने इस रिवाज़ का पालन नहीं किया...अब बिना अगले एपिसोड की झलकियाँ दिखाए उत्सुकता कैसे बनी रहेगी...आप यहाँ मात खा गए...टी.वी आप ध्यान से नहीं देखते वर्ना ऐसी भीषण गलती नहीं करते...खैर अगली कड़ी में इस बात का ध्यान रखे...कुछ पिछली एपिसोड के दृश्यों से शुरुआत करें और अगले एपिसोड की झलकियाँ पेश करें फिर देखें आपका ये कार्यक्रम किस बुलंदी पर पहुँचता है...
ReplyDeleteनीरज
अभी वाले एपिसोड में कमेन्ट करने लायक कुछ है ही नहीं क्यूँ के अभी आप सिर्फ भूमिका ही बांध रहे हैं...कमेन्ट करेंगे जब कुछ कहानी बननी शुरू हो जाएगी...
खूबसूरत रचना। साधु्वाद
ReplyDeleteमज़ाक़-मज़ाक़ में बहुत सीरियस बात चल रही है, अगली कड़ी की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteहम भी उर्दू हिन्दी घोंट दिए हैं इस कमेंट में।
अरे! अंग्रेज़ी भी चली आई।
क्या कहा आपने? अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल करने के लिए मेरे ब्लॉग के सामने धरना दे देंगे? अच्छा चलिए सुधार कर लेता हूँ।
हास-परिहास में बहुत गंभीर समस्या पर विचार-विमर्श हो रहा है।
मुझे लगता है अब वकालत पढ़ने वाले सीधे ही स्टूडियो के आगे चक्कर लगाते मिलेंगे....सर....अनी भेकेंसी....प्लीज सर :)
ReplyDeleteबहुत मस्त लिखा है....एकदम रापचीक।
"धरना" से डर रहे हैं? हमें तो फ़िक्र है कहीं हिंदी महाप्रेमी "धर" ना दें.
ReplyDeleteअनु जी और हिमेश जी के साथ सुविधा ये रहेगी कि बतौर सजा वे मुजरिमों को अपने दस-बारह गीत सुनने को बाध्य कर सकते हैं. न्याय प्रक्रिया में तेजी आएगी.
यह लेख पढ़कर लगा कि न्याय व्यवस्था बनाये रखने में अपराधियों की कित्ती बड़ी भूमिका है। जय हो!
ReplyDeleteकितनी किश्तों को प्रसारित करने की स्वीकृति प्रदान हुई है? मुझे तो नहीं लगता कि यह मुकदमा दस-बीस किश्तों में पूर्ण होगा। तब जमानत मंजूर होगी तब तक शायद सजा भी पूरी हो जाए। अगली कडी का इंतजार बेसब्री से रहेगा।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट ...मुजरिमों, अदालतों और तथाकथित रिअलिटी शोस पर करार तमाचा ....बधाई
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