उसने कभी राजा के ऊपर एहसान कर दिया होगा. ये राजे-महाराजे होते ही ऐसे हैं कि उनके ऊपर लोग खेल-खेल में भी एहसान कर डालते हैं. हमारा इतिहास राजाओं की बेचारगी के किस्सों से पटा पड़ा है. औरों की जाने दीजिये, सूर्यवंशी दशरथ जी भी कभी इतनी बेचारगी के दौर से गुजरे कि कैकेयी जी जैसों के एहसान तले दबे. नतीजा हम सभी जानते हैं. मजे की बात ये कि कभी-कभी ये राजा जी लोग कैश वगैरह पेमेंट करके मामला वहीँ पर, माने ऑन द स्पाट नहीं सल्टाते थे. बेचारे कैरीड-अवे होकर वादा कर डालते थे; "हम तुम्हें एक वचन देते हैं. अभी तो अपनी तिजोरी में रख लो. जब इच्छा हो, भंजा लेना."
दशरथ जी से प्रभावित इस राजा ने भी इस आदमी को वचन की हुंडी थमा दिया था. एक दिन इस आदमी ने अपनी तिजोरी में रखे राजा के वचन को निकाला. उसे धोया-पोंछा और उसे लेकर राजा जी के पास पहुँचा. बोला; "वो आपने मुझे जो वचन दिया था, आज मैं उसे इन-कैश करवाने आया हूँ."
राजा जी के पास कोई चारा नहीं था. एक बार तो उन्होंने सोचा कि वचन की इस हुंडी को एक कटु-वचन कहकर बाऊंस करवा दें. लेकिन इस बात की चिंता थी कि अगर ऐसा हुआ तो ये आदमी उन्हें बदनाम कर सकता था. हल्ला मच देता कि राजा जी के वचन की हुंडी तो बाऊंस हो गयी. एक प्रेस कांफ्रेंस ही तो करना था. राजा की इज्जत धूल में मिल जाती. टीवी न्यूज चैनल वाले चटखारे लेकर राजा की ऐसी-तैसी करने में देर नहीं लगाते.
इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर राजा जी बोले; "अच्छा मांगो. क्या चाहिए तुम्हें?"
वो बोला; "मैं कुछ दिनों के लिए राजा बनना चाहता हूँ. देखना चाहता हूँ कि राजा बनकर कैसा लगता है? राजा लोग कैसे-कैसे मजे लेते हैं?"
राजा जी बोले; "ठीक है. तुम बन जाओ राजा."
यह कहते हुए राजा जी ने पूरा इंतजाम करके उसे सिंहासन पर बैठा दिया. सिंहासन मिलते ही उसने कंधे पर लटक रही अपनी झोली को महामंत्री के हवाले कर दिया. महामंत्री को हिदायत दी कि उसकी झोली को बहुत संभालकर रखा जाय. आख़िर अब वो एक राजा की झोली थी. बड़ी कीमती.
सिंहासन पर पसरते ही इसने मज़ा लूटना शुरू कर दिया. दरबारियों को बुलावा भेजा. जब सारे दरबारी हाज़िर हुए तो उसने आदेश दिया; "सबके लिए सोने की कटोरी में हलवा पेश किया जाय."
हंसी-मज़ाक करते सबने हलवा खाया. दरबारियों को भी खूब मज़ा मिल रहा था. राजा और उसके दरबारियों की शाम हलवामयी होने लगी.
सुबह-शाम हलवे में डूबा ये राजा मस्त था. एक दिन मंत्री ने आकर कहा; "महाराज, पड़ोस के राजा ने हमारे राज्य पर चढ़ाई कर दी है."
राजाओं को भी कोई काम-धंधा तो था नहीं. शिकार करने से बोर हुए तो पड़ोस के राज्य पर चढ़ाई कर दो.
मंत्री की बात सुनकर राजा बोला; "चढ़ाई कर दी? अच्छा कोई बात नहीं. दरबारियों को बुलाओ."
सारे दरबारी आ पहुंचे. सबके आने के बाद राजा ने फ़िर वही फरमाइस की; "सबके लिए हलवा ले आओ."
प्रेम से हलवा भक्षण किया गया. हलवा खाकर सारे दरबारी खुश. दरबार खारिज.
दूसरे दिन मंत्री फिर दौड़ते हुए आया. बोला; "महाराज पड़ोस के राज्य का राजा तो हमारे नगर में प्रवेश कर चुका है."
राजा ने कहा; "अच्छा! हमारे नगर में प्रवेश कर चुका है? कोई बात नहीं. दरबारियों को बुलाओ."
फिर दरबारियों को बुलाया. फिर वही हलवे की फरमाइस. फिर वही हलवा भक्षण कार्यक्रम और फिर से दरबार खारिज. ऐसे ही एक दिन और बीता.
तीसरे दिन मंत्री फिर दौड़ता हुआ आया. बोला; "महाराज, पड़ोस का राजा तो आपके महल में प्रवेश कर चुका है."
मंत्री की बात सुनकर उसने बिना किसी चिंता के कहा; "महल में प्रवेश कर चुका है? अच्छा, एक काम करो. मेरी झोली ले आओ. वही झोली जो मैंने तुम्हें रखने के लिए दी थी."
झोली को हाज़िर किया गया. उसने अपनी झोली कंधे पर टांगी और वहां से चलने लगा. मंत्री ने कहा; "महाराज कहाँ जा रहे हैं? इस समय सिंहासन छोड़कर जाना उचित नहीं. "
वो बोला; "भइया, मैं तो हलवा खाने आया था. मैंने पेट भरकर अपनी साध पूरी कर ली. अब तुम जानो और तुम्हारे राजा. मैं तो चला."
ये कहते हुए वो आदमी निकल लिया.
इस हलवा-प्रेमी राजा का 'लेटेस्ट एडिशन' इस समय.....
Friday, August 6, 2010
हलवा-प्रेमी राजा
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:( :)
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है टिप्पणी करना. व्यंग्य भी किया तो दुखती रग पर हाथ रख कर. न हँसते बनता है न रोते.
भइया, मैं तो हलवा खाने आया था. मैंने पेट भरकर अपनी साध पूरी कर ली. अब तुम जानो और तुम्हारे राजा. मैं तो चला.
ReplyDeleteइसलिए तो योग्यता के अनुरूप कुर्सी मिलती है .. आज के मंत्रीगण भी तो हलवा खाने में व्यस्त हैं .. आगे जो होगा जनता भुगतेगी !!
""" आज के मंत्रीगण भी तो हलवा खाने में व्यस्त हैं आगे जो होगा जनता भुगतेगी """
ReplyDeleteबहुत ही सटीक व्यंग्य अभिव्यक्ति...आभार
हमें तो जी कोई जुगाड़ बिठाकर दरबारी ही बनना है। मरना तो है ही, हलवा तो खाकर मरें कम से कम।
ReplyDeleteशिव भैया, गंभीर विषय पर ऐसा चाशनी में लपेटकर लिखते हो आप कि हम बुरा मान ही जाते हैं बस।
हा हा हा।
सिर्फ राजा ही नहीं मंत्री भी अपने अपने चमचों को हलवा खिला रहे हैं। और मंत्री के चमचे भी अपने चमचों को रेवड़ियाँ खिला रहे हैं ।
ReplyDeleteऔर जनता मे से भी कुछ लोग हलवा खाने मे व्यस्त हैं ।
"भइया, मैं तो हलवा खाने आया था. मैंने पेट भरकर अपनी साध पूरी कर ली. अब तुम जानो और तुम्हारे राजा. मैं तो चला."
ReplyDeleteये कहते हुए वो आदमी निकल लिया.
hahaa हा हां ! क्या बात है !
समय हो तो अवश्य पढ़ें और अपने विचार रखें:
मदरसा, आरक्षण और आधुनिक शिक्षा
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_05.html
हलवे का पूरा पाक नुस्खा समझाईये -यहाँ पाक से पाकिस्तान का मतलब न निकालें
ReplyDeleteआपको हम खुले आम परसाई जी कह रहे है.. और सिर्फ कह ही नहीं रहे है.. मान भी रहे है
ReplyDeleteआपका आज का लेख हमें परसाई जी की याद दिला रहा है... यह अपने आप में बहुत बड़ा सम्मान है.. कृपया ग्रहण करे.. और जिन्हें नहीं मिला वे इसके बारे में पोस्ट लिखने के लिए स्वतंत्र है आखिर अंगूर तो खट्टे ही है..
सदा के लिए प्रासंगिक रहेगी यह कहानी...क्योंकि कि कहानी नहीं भारतीय राजनीति का सत्य है,जो था है और रहेगा...
ReplyDeleteकहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना...लुकिंग लन्दन टाकिंग टोक्यो...सांप भी मर गया लाठी भी नहीं टूटी...जोर का झटका झटका धीरे से लगा...आदि आदि मुहावरे याद आ रहे हैं इस पोस्ट को पढ़ कर...
ReplyDeleteनीरज
इस व्यंग्य के ज़रिए आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है।
ReplyDeleteयहाँ हलवा खाना वर्जित है. राजरोग लग गया है.
ReplyDeleteएक अरसा हुआ बाऊ जी हलवा खाए!
ReplyDeleteआपने शाम हल्वामायी कर दी!
स्वाद आया! बहुत स्वाद आया!
सादर,
आशीष
सभी लोग तो हलवा ही खा रहे हैं।
ReplyDeleteyahi karan hai ki jaha kahi bhi mere aaspaas samkaleen vyangkaro ki baat hoti hai, mai aapka naam jarur aur jarur leta hu.......
ReplyDeletePasand aaya aapka halwa premi raja. Aise hi to bhare pade hain. halwa khao desh jay.......me.
ReplyDeleteये तो वही धांसू गद्दी वाला हलुआ प्रेमी है न ? मस्त राजा है भाई. एक और टर्म डीजर्भ करता है ई तो.
ReplyDelete..इस हलवा-प्रेमी राजा का 'लेटेस्ट एडिशन' इस समय..
ReplyDelete..इस एक पंक्ति ने मामूली सी दिख रही कहानी को झन्नाटे दार व्यंग्य में बदल दिया. व्यंग्य भी ऐसा जो सदियों तक जीवित रहे. ऐसा व्यंग्य बहुत कम पढ़ने को मिलता है जिसकी उम्र लम्बी होती है.
..शानदार लेखन के लिए ढेरों बधाई.
कुश बाबू की ही तरह माबदौलत आप को 'परसाई सम्मान' से नवाजते हैं। एक ही नाम के दो ठो सम्मान कहाँ रखेंगे?
ReplyDelete:)
पढ़ते हुए अंत तक आते आते
..इस हलवा-प्रेमी राजा का 'लेटेस्ट एडिशन' इस समय..
अद्भुत। और क्या कहूँ?
हलवा-प्रेमी राजा का 'लेटेस्ट एडिशन' इस समय..
ReplyDeleteहलवा ही खा रहा है भई. कृपया अन्य अर्थ न निकाले...यूगे यूगे हलवा भक्षामी टाइप...जब तक हलवा रहेगा, राजा का जलवा रहेगा. जय हो....
ये शायद "यूपी-ऊपी" की ओर के कोई क्षेत्रीय राजा है :)
ReplyDeleteराजा का ससुर नपोर था ही, ई ससुर दरबारियो की भी खबर लेनी चाहिये आपको.. वैसे ई दरबारी कब बदले है...जो कुछ बंटा है, कमबख्तों ने हलुवे जैसे ही खाया है.. आज भी..
ReplyDeleteइस हलवा.प्रेमी राजा का ‘लेटेस्ट एडिशन’ इस समय......
ReplyDeleteयहां तो पूरा का पूरा वंश ही हलवा खारहा है देश आजाद होने के बाद से । सुपर प्रधानमंत्री से लेकर अदना सा चपरासी तक ।
हम भी पेट भर कर हंसे हैं । गजब का लपेटा आपने ।
भाई कुश से सहमत… परसाई जी का भूत आपके सिर पर सदा सवार रहे… यह कामना :)
ReplyDeleteहमरे राजाओ को यह हुंडी किसने दी है ?
ReplyDeleteमिश्रा जी यह पढ़कर आज का दिन तो सार्थक हो गया , सुंदर खालिस व्यंग्य!
ReplyDeleteSuper Sarcasm.... Absolutely fit on current indian government...! Hats Off...
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