बड़ा हंगामा मचा हुआ है. रोज टीवी चैनल पर कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बारे में नए-नए खुलासे हो रहे हैं. कहीं स्टेडियम की छत टूट जा रही है तो कहीं स्टेडियम में बाथरूम नहीं है. कहीं टायलेट पेपर ४००० रूपये प्रति रोल के हिसाब से खरीदा गया है तो कहीं ट्रेडमिल का किराया ९ लाख रूपये है. कहीं कुर्सी का किराया ८००० रूपये है तो कहीं थाली का किराया साढ़े तीन हज़ार. भ्रष्टाचार का मुद्दा अलग और समय पर तैयारी न हो पाने की आशंका का मुद्दा अलग. सब अपनी-अपनी औकात के हिसाब से आरोप लगा रहे हैं. लोग अपनी-अपनी औकात के हिसाब से उसी आरोप का खंडन कर डाल रहे हैं.
अब मुझे समझ में नहीं आता कि इतनी हाय-तौबा क्यों? क्या यह आज से हो रहा है? युवराज दुर्योधन की डायरी के पेज ९०३ के हवाले से मैंने बताया था कि भारतीय ओलिम्पिक संघ के अध्यक्ष्य पद पर हमारे कलमाडी साहब का अप्वाइंटमेंट युवराज के पिताश्री यानि महाराज धृतराष्ट्र ने किया था. कलमाडी साहब द्वापर युग में भी अपने कारनामे दिखा चुके हैं. उन्होंने तब जो संस्कृति शुरू की थी वह आज तक चल रही है. उस संस्कृति की रक्षा के लिए वे जी-जान लगा देते हैं.
कलियुग में हम उनके कारनामों से रु-बरू तो होते ही रहते हैं आज मैं आपको बताता हूँ कि इन्होने द्वापर युग में क्या-क्या गुल खिलाये थे. क्या कहा आपने? आपको यकीन नहीं हो रहा है? मुझे मालूम था कि मेरी बात का यकीन नहीं होगा आपको. इसीलिए मैं दुर्योधन की डायरी का पेज ११८८ टाइप करके पब्लिश कर रहा हूँ. आपको ब्लॉगर पर विश्वास नहीं हो कोई बात नहीं लेकिन युवराज पर तो विश्वास करेंगे न? करेंगे क्यों नहीं? युवराज के ऊपर पूरा देश विश्वास करने के लिए तैयार है:-)
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वही चिक-चिक, वही आरोप-प्रत्यारोप. वही भ्रष्टाचार के खुलासे. पता नहीं वह दिन कब आएगा जब राज-काज बिना भ्रष्टाचार के आरोपों के चलेगा? मैं कहता हूँ भ्रष्टाचार करो लेकिन ऐसा करो कि कोई आरोप न लगा पाए. ज़रुरत हो तो दो-चार विद्यालय खोलवा दूँ. यह शिक्षा देने के लिए कि भ्रष्टाचार करके उसकी चर्चा कैसे रोकी जाय?
अब क्या कहूँ इस कलमाडी को? पिताश्री और मामाश्री ने इसे कुल तेरह एक्टेंशन दिए परन्तु यह आजतक कोई काम ठीक से नहीं कर सका. गुरु द्रोण, चचा विदुर और पितामह तो इसे फिर से भारतीय ओलिम्पिक संघ का अध्यक्ष बनाने के खिलाफ थे ही, अब तो अश्वथामा तक इसके खिलाफ हो गया है. और हो भी क्यों न? बेचारा सात वर्षों से तीरंदाजी संघ का अध्यक्ष है. अब इतने समय तक एक खेल संघ के अध्यक्ष होने के नाते उसका भी तो कुछ हक़ बनता है. उसे भी तो मौका मिलना चाहिए था ओलिम्पिक संघ की अध्यक्षता का.
मामाश्री कुछ समझते ही नहीं और न ही पिताश्री. माडर्न पोलिटिकल बिहैवियर की समझ कब आएगी इन्हें?
पाँच वर्ष पहले कलमाडी की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने हस्तिनापुर में राज्य-कुल खेल करवाने का ठेका लिया था. अब जाकर पता चल रहा है कि उसने राज्य-कुल खेलों को हस्तिनापुर लाने के लिए काशी, कैकेय, मगध और मत्स्य राज्यों के प्रतिनिधियों को घूस में स्वर्ण मुद्राएं बाटीं. मुझे याद है, जब चार वर्ष पहले दुशासन ने इससे खर्च का हिसाब माँगा तो इसने उल्टा-पुल्टा खर्च बताया था. ये तो अगर गुडगाँव टाइम्स के स्पेशल करेस्पांडेंट की स्टोरी न आती तो इसके बारे में भी पता नहीं चलता. ऊपर से इतना इन-एफिसियेंट है कि कुछ कर भी नहीं सका. मैं कहता हूँ किसी अखबार वाले के हाथ अगर कोई खबर लग ही गई तो खिला-पिला कर उसे सेट कर लेना चाहिए. पता नहीं कब सीखेगा ये? अगर ये ऐसा ही रहा तो अगले वर्ष अश्वथामा को ओलिम्पिक संघ का अध्यक्ष बनाना पड़ेगा.
और फिर खेल ले आये तो समय पर तैयारी तो करनी चाहिए थी. मुझे क्या मालूम नहीं है कि उल्टा-पुल्टा खर्च दिखाता है? मुझे सब पता है. मैं कहता हूँ भ्रष्टाचार करो, पैसा मारो, सब कुछ करो लेकिन समय पर तैयारी तो करो. केवल भ्रष्टाचार के आरोप हो तो राजमहल झेल भी ले लेकिन निकम्मेपन के आरोप को कैसे संभालें? पिछले एक वर्ष से हर महीने वादा करता आ रहा है कि अगले महीने तक तैयारी पूरी हो जायेगी अब केवल पंद्रह दिन रह गए हैं तो पता चल रहा है कि स्टेडियम नहीं बने. प्रतियोगियों के रहने की व्यवस्था नहीं हुई है. कहीं स्टेडियम बने भी हैं तो आधे-अधूरे.
रोज इसकी बर्खास्तगी की मांग उठती है. कभी जनता के प्रतिनिधियों से तो कभी अखबारों के संपादकों से. अब तो मुझे ये बड़ा बेचारा लगने लगा है. फंस गया है. वैसे भी ठीक है कि अखबार वाले और हस्तिनापुर वासी कलमाडी के पीछे पड़े हैं. इनलोगों की निगाह कलमाडी से हटकर और लोगों के ऊपर नहीं जाए, वही राजमहल और हमारे लिए ठीक है. आखिर जनता को क्या पता कि असली भ्रष्टाचार किसने किया है? सबसे ज्यादा पैसा किसने कमाया? एक-दो पत्रकार जनता का ध्यान कलमाडी के ऊपर से हटाने के लिए काम कर रहे थे. वो तो मैंने उन्हें साध लिया नहीं तो झमेला हो जाता.
दुशासन और जयद्रथ को क्या पता कि उनके चलते मुझे कितनी असुविधा होती है. ये तो अपना दुष्कर्म करके निकल जाते है बीयर पीने. असली झमेला तो मुझे ठीक करना पड़ता है न.पत्रकारों से लेकर बाकी लोगों को तो मुझे साधना पड़ता है. दुशासन को ही ले लो. जिस दूकान पर पान खाता है और जिसको इसने भरत श्री पुरस्कार दिलवा दिया था उसी पनवाड़ी को इसने राज्य-कुल खेलों में आनेवालों प्रतियोगियों के लिए भोजन सप्लाई करने का ठेका दिलवा दिया. मैं कहता हूँ सब ठीक है. आखिर कौन नहीं अपने चमचों के लिए कुछ करता है, लेकिन इस तरह से? एक खिलाड़ी के एक दिन के भोजन का खर्च आठ हज़ार स्वर्ण मुद्राएं? एक पान का खर्च एक हज़ार इक्यावन स्वर्ण मुद्राएं? ऐसा कहीं कोई करता है क्या? अरे खिलाड़ी सामान्य भोजन करेंगे या सोना खायेंगे? ये पनवाड़ी पान में बाकी के मसालों के साथ संजीवनी बूटी डालेगा क्या?
किसी कांट्रेक्ट से प्रोफिट मार्जिन की कोई लिमिट होती है कि नहीं?
जो नर्तकी अपने नृत्य से दुशासन का मनोरंजन करती है उसी को उसने राज्य-कुल खेलों के उद्घाटन समारोह में नृत्य के लिए बीस करोड़ स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए हामी भर दी है. मैं पूछता हूँ यह ठीक है क्या? अगर किसी अखबार वाले को यह बात पता चल गई तो क्या होगा? मुझे उसको खिला-पिला कर चुप करना पड़ेगा. दुशासन और जयद्रथ का यह हाल है और उधर विकर्ण इन सब से आगे निकल गया है. खेलों के उपकरण वगैरह की खरीद का ठेका अपने मित्र मंडली को दे दिया है. कल कलमाडी खुद बता रहा था कि विकर्ण के ही कहने पर उसके मित्र ने प्रति धनुष आठ हज़ार स्वर्ण मुद्राएं चार्ज किया है. एक बाण की कीमत सोलह सौ स्वर्ण मुद्राएं हैं. एक लोहार जिसका पूरे वर्ष का टर्नओवर मुश्किल से तीन हज़ार स्वर्ण मुद्राएं हैं उसी को इनलोगों ने केवल भाला और तलवार की सप्लाई के लिए तीन करोड़ का ठेका दे दिया है.
चचा विदुर शिकायत कर रहे थे कि विकर्ण ने बैठने के लिए कुर्सी का ठेका एक ट्रेडर को इसलिए दिया है कि उसकी पुत्री के साथ उसका चक्कर चल रहा है. क्या कर रहे हैं ये लोग? मेरे भाई और जमाई की बात तो जाने दो, मेरी बहन भी कुछ कम नहीं है. अपनी सहेलियों को और उनके रिश्तेदारों को खुद उसने करीब आठ सौ करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का कांट्रेक्ट दिया है. मैंने पूछ लिया तो बोली कि मुझे चिंता करने की ज़रुरत नहीं है, चालीस परसेंट तो वापस आ ही जाएगा.
एक बात माननी पड़ेगी. दुशाला भी अब राजमहल के लगभग सारे हथकंडे सीख चुकी है. मैं तो उसकी इफिसिएंसी देखकर बहुत खुश हूँ. कम से कम दुशासन और जयद्रथ से एफिसियेंट है जो खेल की तैयारियों का खुद जायजा लेने की एक्टिंग करती रहती है. पत्रकारों के साथ घूमती है और कुछ नहीं तो कम से उन्हें हर दूसरे दिन वादा तो कर डालती है कि बस अब तैयारी हो ही जायेगी. ये दुशासन और जयद्रथ तो केवल बीयर-पान करने, नृत्य देखने और पान खाने में अपना समय गुजारते हैं.
जो कुछ भी हो, अब कलमाडी को हटाने का दबाव बढ़ता जा रहा है. कल मामाश्री से कहा तो बोले कि; "तुम चिंता बहुत करते हो भांजे. सबकुछ मैनेज हो जाएगा. कलमाडी भी रहेगा और खेल भी होंगे."
आज मुझे समझ में आया कि उन्होंने कल क्यों कहा ऐसा? आज सुबह आये तो मदिरा पान करते हुए बोले; "चिंता की बात नहीं है प्रिय भांजे दुर्योधन. आज ही एक प्रेस कांफेरेंस कर डालो और हस्तिनापुर वासियों को बता दो कि राजमहल जल्द ही पितामह की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यों वाली जाँच समिति अप्वाइंट करेगा जिसमें कृपाचार्य और गुरु द्रोण भी होंगे."
आगे बोले; "प्रेस कांफेरेंस करने से पहले दस-बीस पत्रकारों की एक प्राइवेट मीटिंग बुलाओ और उन्हें कुछ ईनाम वगैरह देकर यह बात फैला दो कि पितामह और कृपाचार्य जैसे ईमानदार लोग जांच करेंगे तो सबकुछ निकल कर बाहर आएगा ही आएगा."
खैर, कल सुबह ही पत्रकारों की एक प्राइवेट मीटिंग बुलाता हूँ. और शाम को प्रेस कांफेरेंस करता हूँ. मामाश्री आजतक तो फेल नहीं हुए तो इस बार भी फेल नहीं होंगे. मुझे पूरा विश्वास है कि जांच समिति और हर स्तर पर की जानेवाली बेशर्मी हमें इस मुश्किल से भी निकाल देगी.
Saturday, August 14, 2010
दुर्योधन की डायरी - पेज ११८८
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज ११८८Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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ओह तो ये बात है.. चाचा कलमाड़ी नहीं होते तो भारतीय संस्कृति डूब ही जाती.. भारत की संस्कृति की लाज बचाने वाले पर इतने इल्जाम??
ReplyDeleteहद है हस्तिनापुर की मिडिया की..
घोर कलियुग. अब तो जीने को जी नहीं चाहता.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामना.
Great post , I always knew that only thing which has changed overt the years is currency.
ReplyDeleteसारा देश साध कर रखा है अब तक। इस बार की न सही पर अगले बार के लिये तो यह तैयारी समय से हो जायेगी।
ReplyDeleteकाम की बात:
ReplyDeleteयह सिद्ध हुआ कि कलमाडी कौरव थे। हैं/रहेंगे के बारे में या तो कोई पत्रकार बता सकता है - या फेकू एस्ट्रॉलॉजर - या स्वयं मोहन!
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteजय हिन्द!
chunki mai patrakaar hun isliye is post ka ek shabd bhi maine nahi padhaa
ReplyDelete;) galti se aa gaya tha idhar....
अभी तक सीख नहीं पाए ये लोग बताइए तो... तरीके से करते. ये डायरी भी तो आपके हाथ लग गयी. उनके हाथ लगी होती तो कुछ सीखते भी. कलमाडी को तो बहुते अनुभव है वो भी चूक गया ! ये आ कैसे गयी खबर.
ReplyDeleteवाणी गीत has left a new comment on your post "दुर्योधन की डायरी - पेज १४०८":
ReplyDeleteआज ही पढ़ा भारत पुरस्कार के बारे में भी ...
गज़ब डायरी है ....पोल खोलू ...!
आज स्पष्ट हो गया...किसी और प्रमाण की जरूरत ही नहीं है...आप पूछेंगे क्या? क्या स्पष्ट हो गया?... हमारा जवाब होगा , महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार का कारण...आप कहेंगे इसमें आज स्पष्ट होने जैसी क्या बात है ये तो तभी स्पष्ट हो गया था जब कृष्ण ने सारथि की पोस्ट संभाली थी...पांडवों की युद्ध क्षमता के समक्ष कौरव कैसे टिकते...हम कहेंगे आप नादान हो...आप कहेंगे कैसे...हम कहेंगे वो ऐसे के आप को एक छोटी सी बात भी अब तक पता नहीं चली...आप पूछेंगे कौनसी...हम कहेंगे ये ही दुर्योधन की डायरी लिखने वाली...आप कुछ नहीं कहेंगे सिर्फ हैरानी से हमारा मुंह ताकेंगे...तब हम मुस्कुराते हुए कहेंगे हैरान मत होईये...जिस सेना का राजा याने कौरवों का राजा दुर्योधन बजाये युद्ध में गदा, भाला, तलवार, तीर कमान उठाने के फालतू की डायरी लिखने में व्यस्त हो उसकी सेना ने तो हारना ही हुआ...अगर दुर्योधन डायरी लिखने के बजाये युद्ध में लड़ता तो पांडव शायद हिमालय में गलने मरने ना जाते...महाभारत की कथा का रूप कुछ और ही होता...गीता शायद अर्थ हीन हो जाती...ये कृष्ण का कमाल था जिसने युद्ध से ठीक पहले कहीं से दुर्योधन को पारकर पेन और एक नयी डायरी भेंट करते हुए कहा के क्या पता तुम रहो न रहो, तुम्हारे सगे सम्बन्धी रहें न रहें कमसे कम आने वाली नस्लों के लिए उनका गुणगान तो लिखते जाओ...लो ये पारकर पेन और लिखो इस डायरी में लेकिन इसे खो मत देना...दुर्योधन जिसने कभी पढाई नहीं की लिखाई नहीं की पारकर पेन चलाने के झांसे में आ कर डायरी लिखता चला गया और उसके सैनिक मरते चले गए...आखिर वो भी डायरी लिखता ही मारा भी गया...डायरी उसकी मृत्यु के बाद कहाँ गयी किसी को पता नहीं चला...एक डायरी लिखते प्राणी को मारने का अफ़सोस पांडवों को इतना हुआ के वो सपरिवार हिमालय में मरने चल दिए...
ReplyDeleteडायरी इतने वर्षों बाद आपके हाथ लगी और तब कहीं जा कर कौरवों की हार के इस रहस्य से पर्दा उठा...११८८ पन्ने और अभी ना जाने कितने और होंगे...बाप रे...
नीरज
आप बहुत नाईंसाफ़ी कर रहे हैं, ’अतिथि देवो भवो’ का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति का मान रखने के लिये ही तो इतने खटकर्म कर रहे हैं ये लोग। ये महंगे टिश्यू पेपर रोल वगैरह न उपलब्ध करवाये गये तो देश की कितनी हंसी होगी? खिलाडि़यों के खान पान वाले मद में बड़ी रकम भी देश की इज्जत बचाने के लिये ही रखी गई है, नहें तो ये और इन जैसे तो बेचारे बहुत सादे लोग हैं,बीस-तीस रुपये की थाली से पेट भरने वाले। न यकीन हो तो संसद की कैंटीन की रेट लिस्ट किसी सोर्स के माध्यम से मालूम करवाईये, आपके तो हलकान भाई जैसे बहुत कांटैक्ट्स हैं।
ReplyDeleteआईये हम सब प्रार्थना करें कि कलमाड़ी जी दोषमुक्त सिद्ध हों, और देश ओलम्पिक की मेजबानी भी इनके कुशल नेतृत्व में करने का गौरव प्राप्त कर सके।
महाभारत की तर्ज पर कहा जा सकता है -जो हुआ वह सब इन डायरियों में है और जो इन डायरियों में नहीं है वह हुआ ही नहीं।
ReplyDeleteखेल में खेल न हो तो फिर खेल कैसा ??????
ReplyDeleteएकदम सही हिसाब किया है...वाह !!!
“तुम चिंता बहुत करते हो भांजेण् सबकुछ मैनेज हो जाएगाण् कलमाडी भी रहेगा और खेल भी होंगेण्”
ReplyDeleteपता नहीं कौन सी सेंटिंग की मामा शकुनी ने कि कलमाड़ी का कल आज तक नहीं आया । लगता है सन 3010 में भी ये महराज ही ओलंपिंक संघ के अध्यक्ष बने रहेंगे ।
DADA KYA KYA SOCH LETE HAIN.....
ReplyDeleteGAZAB KI KALPNASHILTA......
YE DAIRY BHI NA BANDH KE RAKH DETI HAI.....
AB 'MAMASHREE' KA JUGAR KYA HAI YE DEKHNA DILCHASP HOGA.
POST KE LIYE ABHAR
PRANAM SWIKAR HO.
रापचिक और ढिंचक... वाह।
ReplyDeletehe Raam...ghor kalyug...
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