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Friday, January 7, 2011

दुर्योधन की डायरी - पेज २८८९


@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज २८८९Tweet this (ट्वीट करें)!

मंहगाई को लेकर बड़ी हडकंप मची है. सब हलकान हो रहे हैं. टीवी न्यूज चैनल पर पैनल डिस्कशन करके मंहगाई को रोकने की कोशिश की जा रही है लेकिन मंहगाई है कि रूकती नहीं. ठीक वैसे ही जैसे दिल है कि मानता नहीं. कुछ लोगों ने तो मंहगाई से बोर होकर कहना शुरू कर दिया है कि इससे अच्छा तो अंग्रेजों का राज था. जमाखोरी तो नहीं होती. वैसे मेरा कहना है कि क्या ऐसा पहली बार हुआ है कि मंहगाई बढ़ गई है? ऐसा तो हर युग में होता आया है. विश्वास नहीं होता तो द्वापर युग में लिखी युवराज दुर्योधन की डायरी पढ़िए. मेरी बात आपको सच लगेगी:-)

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दुर्योधन की डायरी - पेज २८८९

कल शाम को पार्टी में पता चला कि मंहगाई बढ़ गई है. कई बार लगता है जैसे अगर पार्टी का आयोजन न हो तो पता ही न चले कि दुनियाँ में क्या हो रहा है? कौन घट रहा है? कौन बढ़ रहा है? कौन अटका पड़ा है? किसको कौन सा पुरस्कार मिलने वाला है? किसके खिलाफ मीडिया के हाथ सबूत आ गए हैं? ये सारी बातें पार्टी में ही तो पता चलती हैं. लेकिन मंहगाई की बात और वह भी पार्टी में?

मंहगाई बढ़ने का ब्रेकिंग न्यूज अगर पार्टी में सुनने को मिले तो अजीब हालत हो जाती है. कल भी वही हुआ. बीयर का स्वाद जो ख़राब हुआ तो फिर ठीक होने में बड़ा समय लगा. ऐसा ख़राब हुआ कि कबाब से भी नहीं सुधरा. हुआ ये कि पार्टी में खाना बनाने के लिए जिस कैटरर को बुलाया गया था उसने पार्टीबाज मेहमानों के खाने का दाम प्रति प्लेट बढ़ा दिया. अब बढ़ा दिया तो बढ़ा दिया. हमें क्या फरक पड़ता है? हमें कौन सा बैंक से लोन लेकर पार्टी करनी है? लेकिन दु:शासन ने नादानी कर दी. उसने कैटरर से झगड़ा कर लिया. अड़ गया कि जिस रेट में ठेका दिया था उससे एक पैसा ज्यादा नहीं मिलेगा. वैसे कैटरर की भी क्या गलती है? बेचारा मंहगाई की मार कितनी सहेगा?

खैर, मैंने दु:शासन को समझाया. तब जाकर मामला शांत हुआ. उसे अलग तरीके से समझाना पडा. अब है तो नादान ही. एक बार भी उसने नहीं सोचा कि अगर ये बात बाहर चली गई कि हम राजघराने के लोग भी मंहगाई से पीड़ित हैं तो लोग़ क्या कहेंगे? न्यूज चैनल वाले सुबह-शाम ब्रेकिंग न्यूज चलाएंगे और राजमहल से वक्तव्य मांगेंगे.

मामाश्री से मंहगाई का कारण पूछा तो पता चला कि स्वर्णमुद्रा की कीमत कम हो गई है. लेकिन यहाँ थोड़ा कन्फ्यूजन है. जहाँ एक तरफ़ तो स्वर्ण की कीमतें बढ़ गई हैं वहीं दूसरी तरफ़ मुद्रा की कीमत घट गई है. मामला कुछ समझ में नहीं आ रहा. वैसे मेरी समझ में क्या आएगा जब अर्थशास्त्रियों की समझ से बाहर है. इतनी-इतनी तनख्वाह मिलती है इन अर्थशास्त्रियों को लेकिन ये अपना काम ठीक से नहीं कर सकते. ये अर्थव्यवस्था के बारे में जो भी बोलते हैं, उसका उलटा होता है. इससे अच्छा होता कि मौसम वैज्ञानिकों के हाथ में ही अर्थव्यवस्था दे दी जाती. मौसम विज्ञानी भी मौसम के बारे में जो कुछ भी बोलते हैं, वो भी कभी नहीं होता. सोचता हूँ कुछ दिनों के लिए अर्थशास्त्रियों को मौसम विभाग में और मौसम वैज्ञानिकों को अर्थ विभाग में शिफ्ट कर दूँ. आख़िर बात तो एक ही है. अगले साल विदुर चचा से कहकर ऐसा ही करवा दूँगा.

मंहगाई बढ़ने के कारणों के बारे में जितने मुँह उतनी बात. खैर, कल अर्थशास्त्रियों की बैठक है. देखता हूँ क्या होता है.


दुर्योधन की डायरी - पेज २८९०

अभी-अभी अर्थशास्त्रियों की बैठक से आया हूँ. मंहगाई की समस्या तो वाकई बहुत बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है. लेकिन इससे भी बड़ी समस्या है अर्थशास्त्रियों को समझना. जितने अर्थशास्त्री आए थे सब मंहगाई का अलग-अलग कारण बता रहे थे. कुछ कह रहे थे कि ब्याज दरों के कम होने से ऐसा हो रहा है क्योंकि प्रजा के हाथ में बहुत ज्यादा पैसा आ गया है और वे मनमाने ढंग से चीजों के दाम दे रहे हैं. कुछ का कहना है कि ये समस्या केवल हस्तिनापुर की समस्या नहीं है. पड़ोसी राज्यों में भी ये समस्या है. कुछ कह रहे थे कि पड़ोसी राज्यों में तो क्या सारे ब्रह्माण्ड में यही समस्या है.

मेरी समझ में यह नहीं आता कि प्रजा के हाथ में ज्यादा पैसा आ गया है से क्या मतलब? क्या प्रजा बैंक से लोन लेकर सब्जी, चावल, दाल वगैरह खरीद रही है?

मीटिंग में एक अर्थशास्त्री जो कभी-कभी गुप्तचर भी बन जाता है, तो यहाँ तक कह रहा था कि केशव ने भी आजकल दूध का सेवन बंद कर दिया है क्योंकि दूध बहुत मंहगा हो गया है. कुछ का कहना था कि भगवान शिव ने भी आजकल फल खाना कम कर दिया है. पहले जब भगवान् शिव को चीजें मंहगी लगती थीं तो वे बीजिंग से सस्ती चीजें इंपोर्ट कर लेते थे लेकिन अब वहां भी चीजें सस्ती नहीं रही. लिहाजा भगवान शिव ने भी आजकल बीजिंग से चीजें मंगानी बंद कर दी हैं.

मीटिंग तो क्या थी, सारे अर्थशास्त्री हंसने का उपक्रम कर रहे थे और बढ़िया खुशबू वाली दार्जीलिंग चाय का मज़ा ले रहे थे.

एक अर्थशास्त्री, जिसका चश्मा बहुत मोटे ग्लास का था, और जिसे देखने से लग रहा था कि उसने काफ़ी अध्ययन किया है, उसने बताया कि समस्या और कहीं है. चूंकि उसकी बातें ज्यादा नहीं सुनी जाती इसलिए उसकी बात पर किसी ने कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया. लेकिन मुझे लगा कि शायद इसके पास कोई ठोस कारण है, सो मैंने उससे पूछ लिया कि असली समस्या क्या है?

उसने बताया कि खाने के समान सही समय पर सही जगह नहीं पहुँच रहे हैं. सड़कों की हालत ठीक नहीं है. जो ट्रक खाने का समान लेकर अपने गंतव्य स्थल पर दो दिन में पहुंचता था उसी ट्रक को अब चार दिन लग रहे हैं. उसका कहना था कि बुनियादी सेवाओं को सुधारने के लिए राजमहल ने कुछ नहीं किया. पथ परिवहन मंत्री ने वादे तो बहुत बड़े-बड़े किये थे लेकिन काम के नाम पर कुछ नहीं किया.

कुछ अर्थशास्त्रियों का अनुमान था कि अनाज और खाने के सामानों की भारी मात्रा में जमाखोरी हुई है. अब जमाखोरों के ख़िलाफ़ कार्यवाई भी तो नहीं कर सकते. मेरे ही कहने पर दु:शासन और जयद्रथ ने इन जमाखोर व्यापारियों से काफी मात्रा में पैसा वसूल कर रखा है. अब ऐसे में जमाखोर व्यापारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाई करना तो ठीक नहीं होगा. उधर मंहगाई की मार से परेशान जनता रो रही है.

वैसे हमें मालूम है कि कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जनता को दिखाना तो पड़ेगा ही कि हम मंहगाई रोकने के लिए सबकुछ कर रहे हैं.

इसलिए मैंने तीन कदम उठाने का फैसला किया है.पहला, व्याज दरों में बढोतरी कर दी जायेगी. दूसरा प्रजा को सस्ते अनाज उपलब्ध कराने के तरीकों की खोज के बारे में सुझाव देने के लिए एक कमिटी का गठन किया जायेगा. तीसरा; कुछ जमाखोर व्यापारियों पर छापे की नौटंकी खेलनी पड़ेगी. छापे मारने का काम सबसे अंत में होगा. और तब तक नहीं होगा, जब तक इन व्यापारियों के पास ख़बर नहीं पहुँच जाती कि उनके गोदामों पर छापा पड़ने वाला है.

देखते हैं, मंहगाई रोकने के हमारे 'प्रयासों' का क्या होता है?

14 comments:

  1. होगा क्या? आपके प्रयास असफल हुए हैं आजतक? ;)

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  2. "वैसे हमें मालूम है कि कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जनता को दिखाना तो पड़ेगा ही कि हम मंहगाई रोकने के लिए सबकुछ कर रहे हैं. "
    यह स्टेटमेंट मामा शकुनी की ही लगती है, वैसे
    मामा शकुनी इन अर्थशास्त्रियो के बैठक में नदारद क्यों ? लगता है दुर्योधन को कुछ ज्ञान बाट रहे है !

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  3. बस महंगाई रुकी ही रुकी समझो तो...बड़े लोगों के छोटे प्रयास भी छोटे नहीं रह जाते,दूरगामी प्रभाव छोड़ने वाले होते हैं..

    क्या भिंगो कर मारा है...लेकिन मोटी चमड़ी तक यह पहुंचे तब न...

    सार्थक व्यंग्य...

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  4. सबकी समस्या बढ़ रही है। अब कोई क्या करे बैठक करने के सिवाय।

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  5. राजकुमार के ज्योतिषी से सलाह की है, उन्हे 'नरेगा जाप' जारी रखने का कहा गया है....

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  6. अपके प्रयास कामयाब नही होंगे तो क्या सोनिया के होंगे? अन्दर खाते तो आप ही कर्ता धर्ता हैं मनमोहन सोनिया तो केवल आपके इशारे पर चल रहे हैं। मान गये आपकी स्कीम को बधाई। छापे मारते समय खबरची पहले भेज दीजियेगा बस। शुभकामनायें । आपकी जय हो।

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  7. ` मंहगाई है कि रूकती नहीं'
    अगली फसल तक इन्तेज़ार करें- यही हमारे मंत्री जी सलाह है... अब महाभारत का ज़माना गया, भारत का युग है :)

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  8. वाह! वाह! जनता को राजनर्तकी के नृत्य के मुफ्त पास देते दुर्योधन तो मंहगाई पर से ध्यान बंटता। या फिर हिन्दुकुश पर म्लेच्छ अधिपत्य की आशंका की अफवाह कारगर रहती! :)

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  9. ये अर्थशास्त्री तब भी ऐसे ही थे? सही में कुछ नहीं बदला. मौसम विभाग से अदला बदली का आईडिया एकदम कमाल का है !

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  10. “मैंने तीन कदम उठाने का फैसला किया है.पहला, व्याज दरों में बढोतरी कर दी जायेगी.”

    जब आदेश निर्गत किये जा रहे थे तो टंकक की गलती से ‘ब्याज दरों’ के स्थान पर ‘प्याज दरों’ टाइप हो गया। अब भुगतिए।

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  11. मुझे ऐसा क्यों प्रतीत हो रहा है कि यह ब्लॉग पोस्ट मुझ पर लिओखा गया है?

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  12. दुर्योधन भाई साहब की डायरी पढने से एक बात तो साफ़ हो गयी के द्वापर और कल युग में कोई विशेष अंतर नहीं आया है...जो तब होता था वो ही अब हो रहा है...उस काल इस काल में जो चीजें कामन हैं वो हैं:-
    महंगाई , बेईमान केटरर, बैंक लोन की समस्या, न्यूज चेनल्स की दादा गिरी, ब्रेकिंग न्यूज का फंडा, बीजिंग से इम्पोर्ट और दार्जिलिंग चाय.
    अगर ये डायरी न होती तो हम द्वापर को अबतक कलयुग से श्रेष्ठ काल समझने की भूल करते रहते. दुर्योधन भाई साहब की डायरी ने हमारे ज्ञान चक्षु खोल दिए हैं.
    नीरज

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  13. 'duryodhan ki diary ke panne' bahot hi interesting concept hai aur content usse bhi zyada interesting hai.
    isme chhupe sach ko samajhna hamare liye zaruri hai, par zyada log shayad isse nahi samjhenge aur samajh bhi gaye to nahi manenge.
    sirf isiliye kyuki isse unhe lagta hai unhe farak nahi padta.
    aapki book aane par sabse pehle apni mummy ko gift karungi.
    hindi lekhak aur lekhiki ki publicity me apni taraf se poora sahyog denge!

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय