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Friday, January 21, 2011

मंदी के मारे उर्वशी और पुरुरवा


@mishrashiv I'm reading: मंदी के मारे उर्वशी और पुरुरवाTweet this (ट्वीट करें)!

कुछ तुकबंदी फिर से इकठ्ठा हो सकती है. फिर ट्राई किया तो तुकबंदी इकठ्ठा हो गई. आप झेलिये.

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रात का समय. आकाश मार्ग से जाती हुई मेनका, रम्भा, सहजन्या और चित्रलेखा पृथ्वी को देखकर आश्चर्यचकित हैं. उन्हें आश्चर्य इस बात का है कि मुंबई के साथ-साथ और भी शहरों के शापिंग माल सूने पड़े हैं. मल्टीप्लेक्स में कोई रौनक नहीं है. दिल्ली में कई निवास पर कोई हो-हल्ला नहीं सुनाई दे रहा. लेट-नाईट पार्टियों का नाम-ओ-निशान नहीं है.

पिछले कई सालों से शापिंग माल और मल्टीप्लेक्स की रौनक देखने की आदी ये अप्सराएं हलकान च परेशान हो रही हैं.

सहजन्या

लोप हुआ है जाल रश्मि का, है अँधेरा छाया
रौनक सारी कहाँ खो गई, नहीं समझ में आया
शापिंग माल में लाईट-वाईट नहीं दीखती न्यारी
कार पार्किंग दिक्खे सूनी, सोती दुनिया सारी

तुझे पता है रम्भे, क्या इसका हो सकता कारण?

रम्भा

कैसा प्रश्न किया सहजन्ये, कैसे करूं निवारण?

हो सकता है इसका उत्तर दे उर्वशी बेचारी
पर अब महाराज पुरु की भी दिक्खे नहीं सवारी

सहजन्या

अरे सवारी कैसे दिक्खे, महाराज सोते हैं
मैंने सुना है, वे भी अब तो दिवस-रात्रि रोते हैं
पृथ्वी पर मंदी छाई है, ठप है अर्थ-व्यवस्था
नहीं पता था, हो जायेगी ऐसी विकट अवस्था

मेनका

अर्थ-व्यवस्था की मंदी तो, दुनियाँ ले डूबेगी

सहजन्या

अगर हुआ ऐसा तो फिर उर्वशी बहुत ऊबेगी

महाराज पुरु की चिंताएं उसे ज्ञात हो शायद
दिन उसके दूभर हो जाएँ स्याह रात हो शायद
मर्त्यलोक की सुन्दरता पर मिटी उर्वशी प्यारी
किसे पता था होगी दुनियाँ इस मंदी की मारी?

पता नहीं किस हालत में उर्वशी वहां पर होगी

मेनका

सच कहती है सहजन्ये वो जाने कहाँ पर होगी

सहजन्या

वह तो होगी वहीँ, जहाँ पर महाराज होते हैं
दिन में विचरण करते हैं, और रात्रि पहर सोते हैं
पिछली बार गए थे दोनों, गिरि गंधमादन पर
हो सकता है अब जाएँ वे, किसी धर्म-साधन पर
लेकिन उनका आना-जाना, अब दुर्लभ हो शायद
मंदी के कारण न उनको, अर्थ सुलभ हो शायद

चित्रलेखा

अरी कहाँ तू भी सहजन्ये मंदी-मंदी गाती
महाराज को कैसी मंदी, दुनियाँ उनसे पाती

मेनका

पाने की बातें करके, ये अच्छी याद दिलाई
सखी उर्वशी को क्या मिलता, उत्सुकता जग आई
तुझे याद हो शायद, उसका कल ही जन्मदिवस है

सहजन्या

महाराज क्या देंगे उसको, मंदी भरी उमस है.

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महाराज पुरुरवा के साथ उर्वशी उद्यान में विचरण कर रही है. कल उसका जन्मदिवस है. महाराज चिंतित हैं. उसे इस बार क्या उपहार दें? पिछले बार इक्यावन तोले का नौलखा हार दिया था. पाश्चात्य देशों से मंगाया गया बढ़िया परफ्यूम और चेन्नई से मंगाई गई नेल्ली चेट्टी की साडियां दी थी.

लेकिन इस बार छाई मंदी की वजह से प्रजा से भी धन वगैरह की प्राप्ति नहीं हुई है. खजाने में केवल एक सप्ताह के आयात के लिए ही फॉरेन एक्सचेंज बचा है. ऐसे में इम्पोर्टेड चीजें मंगाकर उपहार स्वरुप उर्वशी को देना संभव नहीं है. महाराज सोच रहे हैं कि उर्वशी कुछ मांग न बैठे. इसलिए वे आज के लिए उर्वशी से विदा होना चाहते हैं.....

पुरुरवा

चिर-कृतज्ञ हूँ, साथ तुम्हारा मन को करता विह्वल
जब से हम-तुम मिले, लगे ये धरा हो गई उज्जवल
मन के हर कोने में, बस तुम ही तुम हो हे नारी
लेकिन हमको करनी है, अब चलने की तैयारी

उर्वशी

चलने की तैयारी! लेकिन क्योंकर कर ऐसी बातें?
चाहें क्या अब महाराज, हो छोटी ही मुलाकातें?
शायद हो स्मरण कि मेरा जन्मदिवस है आया
एक वर्ष के बाद हमारे लिए, ख़ुशी है लाया
पिछले बरस मिला था मुझको हार नौलखा,साड़ी
मैं तो चाहूँ मिले इस बरस, बी एम डब्ल्यू गाड़ी


पुरुरवा

गाड़ी दूं उपहार में कैसे, मंदी बड़ी है छाई
ज्ञात तुम्हें हो अर्थ-व्यवस्था, है सकते में आई
खाली हुआ खजाना मेरा, समय कठिन है भारी
अब तो हमको करनी है, बस चलने की तैयारी

उर्वशी

फिर-फिर से क्यों बातें करते हमें छोड़ जाने की?
जाना ही था कहाँ ज़रुरत थी वापस आने की?
या फिर देख डिमांड गिफ्ट का छूटे तुम्हें पसीना
समझो नहीं मामूली नारी, मैं हूँ एक नगीना

समझो भाग्यवान तुम खुद को, मिली उर्वशी तुमको

पुरुरवा

नाहक ही तुम रूठ रही हो, थोड़ा समझो मुझको

पैसे की है कमी और अब लिमिट कार्ड का कम है
धैर्यवती हो सुनो अगर, तो बात में मेरी दम है
मुद्रा की कीमत भी कम है, ऊपर से यह मंदी
क्रेडिट क्रंच साथ ले आई, पैसे की यह तंगी

उर्वशी

ओके, समझी बात तुम्हारी, मैं भी अब चलती हूँ
वापस जाकर देवलोक में, सखियों से मिलती हूँ
जब तक मर्त्यलोक में मंदी, यहाँ नहीं आऊँगी
देवलोक में रहकर, सारी सुविधा मैं पाऊँगी
थोड़ा धीरज रखो, शायद अर्थ-व्यवस्था सुधरे
हो सुधार गर मर्त्यलोक में, और अवस्था सुधरे
अगर तुम्हें ये लगे, कि सारी सुविधा मैं पाऊँगी
एक मेल कर देना मुझको, वापस आ जाऊंगी


इतना कहकर उर्वशी आकाश में उड़ गई. पुरुरवा केवल उसे देखते रहे.

अब पृथ्वी पर अर्थ-व्यवस्था में सुधार की राह देख रहे हैं. कोई कह रहा था कि अर्थ-व्यवस्था जल्द ही सुधरने वाली है


यह पोस्ट साल २००९ के मई महीने में पब्लिश की थी. आज फिर से इसलिए पब्लिश कर रहा हूँ ताकि यह मेरी अगली पोस्ट का कर्टेन-रेजर साबित हो:-)

9 comments:

  1. shivji paschami desho ke perfume to mujhe bhi bahut pasand hai.Ab swarg ki apsara aur mujh main zyada fark nahin reh gaya

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  2. पिछले वर्ष पढ़ी थी, आनन्द आया था। अगले धमाके के इन्तज़ार में।

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  3. ` रौनक देखने की आदी ये अप्सराएं हलकान च परेशान हो रही हैं.

    tतो फिर हलकान मियां क्या कर रहे थे?? उन्हें इंटरटेन ही कर लेते :)

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  4. उतना ही आनंद आया पढ़कर जितना पिछली बार आया था..,.

    वैसे स्थिति बदली कहाँ है आज भी...आमजन तो पिछले वर्ष से भी बुरी अवस्था में है...

    अगले पोस्ट की प्रतीक्षा है...

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  5. hira agar tutu-phuti bhi ho to hira hi rahta hai.......................

    mandi ke chot se ye bhi nahi ubre..

    pranam.

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  6. ट्रेलर मे तुक बन्दी क्या बनाई है लाजवाब। बधाई। अगली पोस्ट मे देखते हैं क्या निवारण होता है।

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  7. रम्भा, उर्वशी, सहजन्या और मेनका - इन बेचारियों का दुख देखकर हम अपना दुख भूल गये हैं।(इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी - आपकी पोस्ट पढ़ने से पहले ये गाना सुन रहा था) :))
    अगले धमाके का इंतज़ार कर रहे हैं जी।

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  8. अर्थ व्यवस्था न सुधरनी थी न सुधरी...सन २०१२, जिसमें पृथ्वी के विनाश की भविष्य वाणी की गयी थी, भी पास आता नज़र आया,पुरु को लगा की अगर ये ही हाल रहा तो उसे अपनी देह बिना उर्वशी से मिले ही त्यागनी पड़ जायेगी...चिंता की चिता प्रज्जल्वित हो उठी...पुरु जलने लगा...तभी उसे दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ उसने उर्वशी को मेल लिखा...

    प्रिये तुम कितनी हो नादान
    मेरी बातों पर देती ध्यान
    तो तुमको हो जाता संज्ञान

    मंदी या तंगी से तो ये पुरु हुआ न दुखी कभी
    छोडो सब नाराजी तुम बस दौड़ी आओ अभी अभी

    जनम दिवस के आने से मैं दुखी हो गया
    जीवन का इक वर्ष जो तेरा ख़तम हो गया

    दुःख में गाड़ी साड़ी तुझको कैसे दूं मैं मुझे बता
    दूरी कम करदे तू पगली देख न मुझको और सता

    मेल पढ़ कर उर्वशी कैसे रुक सकती थी ??? दौड़ी चली आई और फिर वो दोनों जनम जन्मान्तर तक हंसी ख़ुशी से रहते रहे...उर्वशी को दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया इसलिए उसके बाद उर्वशी ने कभी अपना जनम दिवस नहीं मनाया...

    नीरज

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय