फिर से वही बातें. फिर से वही नीतिवचन. जिसे देखो एक ही बात की रट लगाए हैं कि पांडवों को उनका राज-पाट वापस मिलना चाहिए. मैं पूछता हूँ कौन सा राज-पाट? जो उनका कभी था ही नहीं? जिसकी थोड़ी-बहुत भी औकात है वह भी दिन में चार बार नीतिवचन ठेल देता है. एक ही बात समझाये जा रहा है कि हम हस्तिनापुर का राज-पाट पांडवों को सौंप दें. मैं पूछता हूँ क्या पिताश्री ने यह राज-पाठ उनको वापस सौंपने के लिए स्वीकार किया था? राज-पाट न हुआ पड़ोसी का गहना हो गया जिसे किसी उत्सव से वापस आने के बाद शरीर से उतारें और उसे सौंप दें.
एक पितामह हैं. पहले मन ही मन चाहते थे कि पांडवों को उनका राज-पाट वापस मिल जाए लेकिन अब तो चचा विदुर से बात-बात में बोल भी देते हैं. साथ ही एक प्रश्न जोड़ देते हैं - तुम कहो विदुर कि नीति क्या कहती है? मुझे क्या पता नहीं है कि वे ऐसा क्यों करते हैं? मुझे सब पता है. मैं बच्चा थोड़े न हूँ. मैं पूछता हूँ क्यों दूँ वापस? कभी-कभी तो यह लगता है कि पितामह से निपटने के लिए मामाश्री का सुझाव ही ठीक था. मुझे याद है कि एक दिन मीटिंग में मामाश्री ने कहा था कि जब यह लगे कि पितामह राज-पाट वापस देने के लिए बहुत ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे हैं तब उन्हें बदनाम कर दिया जाय. मीडिया में यह खबर फैला दी जाय कि काशीनरेश की पुत्रियों को इन्होने जो वर्षों पहले किडनैप किया था, उसके लिए आजकल ये हर महीने पश्चाताप सप्ताह मनाते हैं. मामाश्री का कहना था कि एक बार अगर यह बात फैला दी गई तो फिर लोग़ इनके पश्चाताप की बात नहीं करेंगे बल्कि यह सवाल उठाने लगेंगे कि काशीनरेश की पुत्रियों को किडनैप करके अपने भाई के साथ ज़बरदस्ती उनका विवाह कर देना नीतिगत सही कर्म था या नहीं? ऐसा होने से हर चाय-पान की दूकानों पर रोज पितामह की बेईज्ज़ती ख़राब होगी.
वैसे कहने को तो खुद मैंने पिताश्री से कितनी बार कहा कि जब भी ये पांडव राज-पाट वापस देने की बात शुरू करें, हमें काकाश्री पांडु के ऊपर ऋषी किन्दम की हत्या का आरोप लगाकर उनकी ईमेज का सत्यानाश कर देना चाहिए. एक बार काकाश्री के ऊपर आरोप लगने शुरू हुए और प्रजा में कन्फ्यूजन बना तो फिर उनके पुत्रों के विरुद्ध भी कुछ न कुछ प्लांट कर ही देंगे. और फिर नहीं भी कर सके तो लोग़ तो प्रश्न पूछेंगे ही कि जिस राजा के माथे पर एक ऋषि की हत्या का कलंक है उसके पुत्रों को राज करने का अधिकार है या नहीं? इतिहास बताता है कि प्रजा के लोगों को प्रश्न पूछने में बड़ा मज़ा आता है. वैसे भी जब एक धोबी ने श्रीराम से प्रश्न पूछ लिए तो पांडव किस खेत के बैंगन हैं? और अगर यह बात प्रजा के लोग़ नहीं भी पूछ सके तो फिर अपने विद्वान किस दिन काम आयेंगे? उनसे कॉलम लिखवा कर पांडवों की इज्ज़त के परखच्चे उड़वा दूंगा.
इतना बढ़िया सुझाव था लेकिन पिताश्री माने तब तो? मेरी बात को कान ही नहीं देते. कहने लगे कि चचा विदुर से विचार करके बतायेंगे. अरे चचा विदुर कभी हमारे पक्ष में कुछ कहते हैं जो इस बात पर हमारा पक्ष लेंगे?
मैं कहता हूँ क्या बुराई है ऐसा करने में? पिताश्री कहने लगे कि किसी मृत व्यक्ति के लिए मरणोपरांत इस तरह की बात करना राजनीति के नियमों के विरुद्ध है. राजनीति के नियम, माय फुट. मैंने तो यहाँ तक कहा कि ठीक है अगर वे नहीं चाहते कि मरणोपरांत उनके भाई की बेईज्ज़ती इस बात से हो कि उन्होंने ऋषि किन्दम की हत्या की थी, तो इसी बात को फैला देते हैं कि काकाश्री ने आखेट के दौरान गौ-हत्या कर दी थी. इस बात का आरोप लगाकर भी तो उनकी बदनामी करवाई जा सकती है. जितने गवाहों की ज़रुरत होगी मैं ले आऊंगा. लेकिन उन्होंने मेरी इस बात पर को भी नहीं सुना. मेरी बात मान ली गई होती तो आज पितामह और चचा विदुर किस मुँह से पांडवों को राज-पाठ वापस सौंप देने की बात करते?
कैसे बताऊँ कि इनलोगों को राज-पाट सौंप देने की बात पर मेरी छाती पर सांप डोल जाते हैं. कैसे भूल जाऊं कि इस भीम ने मुझे और मेरे भाइयों को कितना सताया है. आजतक याद है कि एकबार मैं और दुशासन पेड़ पर कैरी तोड़ने चढ़े थे तो इसी भीम ने लात मारकर पेड़ हिला दिया था और हम दोनों भाई पके हुए आम की तरह गिर गए थे. कैसे भूल जाऊं कि यही भीम मेरे भाइयों को केश से पकड़कर उनका माथा आपस में भिड़ा देता था. ऐसा लुच्चा भीम था और ये लोग़ उसे ही राज-पाट सौंपना चाहते हैं? ये गुरु द्रोण, वैसे तो सामने कुछ नहीं कहते लेकिन मैंने सुना है कि वे भी चाहते हैं पांडवों को उनका तथाकथित अधिकार मिलना चाहिए. मैंने तो मामाश्री से साफ़-साफ़ कह दिया है कि जिस दिन ये बोले उस दिन पूरा हस्तिनापुर देखेगा कि मैं क्या करता हूँ? पूरी मीडिया में इनका पुराना केस खुलवा दूंगा कि कैसे इन्होने एकलव्य से उसका अंगूठा कटवा लिया था. मानवाधिकार वालों को इनके पीछे ऐसा लगाऊंगा कि इन्हें मुँह छिपाने के लिए जंगल कम पड़ जायेंगे.
एक बात समझ में नहीं आती. मेरे, कर्ण, दुशासन और मामाश्री के रहते पिताश्री सलाह भी लेते हैं तो हमेशा ही एक मामूली राजनीतिज्ञ कणिक से. कल शाम को पिताश्री ने बुलाया था वो भी ढाई घंटा लेक्चर दे गया. मैं पूछता हूँ कि इस मामले में जो काम हमारी धूर्त-मण्डली कर पाएगी क्या कणिक कर पायेगा? आज शाम को मीटिंग में मामाश्री ने सुझाव दिया है कि अब समय आ गया है कि हर पांडव के नाम से दस-पाँच लफड़े मीडिया में फैला दिए जायें.
मामाश्री ने तमाम बातों की लिस्ट बना ली है. सबसे पहले भीम की ऐसी-तैसी करनी है. अब समय आ गया है कि भीम और हिडिम्बा की मैरेज को एक बड़ा इश्यू बनाया जाय. प्रजा को यह बताया जाय कि भीम ने एक राक्षसी के साथ कैसे विवाह किया? इस विवाह के बाद क्या पांडवों को अधिकार है कि वे राज-पाट वापस मिलने की बात करें? साथ ही भीम और हिडिम्बा के विवाह के लिए युधिष्ठिर को दोषी करार दे दिया जाय. विद्वानों और बुद्धिजीवियों को कहकर इस बात पर जोर डलवाता हूँ कि वे लिखें कि एक आर्य ने राक्षसी के साथ विवाह किया तो इसमें युधिष्ठिर का भी हाथ है. भीम तो हिडिम्बा को मारने जा रहा था लेकिन युधिष्ठिर ने उसे समझा-बूझा कर भीम को विवश किया कि वह हिडिम्बा से विवाह कर ले. यह प्रश्न उठाया जाय कि अगर बड़ा भाई अपने छोटे भाई को रोकने की बजाय एक राक्षसी के साथ विवाह करने के लिए उकसाता है तो फिर ऐसा व्यक्ति क्या राज-पाठ ग्रहण करने लायक है? जो व्यक्ति अपने भाई को गलत रास्ते पर जाने के लिए उकसा सकता है, क्या गारंटी है कि वह राज-पाट ठीक तरह से चलाएगा? क्या गारंटी है कि वह हस्तिनापुर को किसी के हाथों बेंच नहीं देगा?
फिलहाल तो पांडवों के चरित्र-हनन की शुरुआत यहाँ से शुरू करते हैं. आगे बाकी पांडवों के विरुद्ध कुछ न कुछ निकालते रहेंगे. कल मामाश्री ने कुछ समाचार पत्रों के संपादकों की मीटिंग बुलाई है ताकि इस पर काम शुरू किया जा सके.
Wednesday, January 4, 2012
दुर्योधन की डायरी - पेज १४८९
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज १४८९Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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युवराज तो अचानक बढे ग्यानी हो गए! हो भी कैसे ना, जब बात उनके अपने राज-पाठ की हो.
ReplyDeleteकूटनीति में तो इनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता. अब सिर्फ भगवान् कृष्ण ही पांडवों का बेडा पार कर सकते हैं.
वे यह पोस्ट जल्दी पढ़ें इसी इच्छा के साथ, धन्यवाद!
यह डायरी पढ़ने के बाद पता चलता है कि दुर्योधन जी कितने ज्ञानी थे। राजनीति के कितने बड़े जानकार थे। उनका तो पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये।
ReplyDeleteके बात है... गुरू मन गए राजकुमार को... कित्ती अक्कल...
ReplyDeleteइसके सामने तो आज की बमचक कुछ नहीं है।
ReplyDeleteमुझे तो आज की बमचक के सामने युवराज कम लग रहे हैं :P डायरी में लिख कर रख गये. इम्प्लीमेंट तो अभी हो रहा है :)
ReplyDeleteये पेज तो आज के किसी बंदे का है...
ReplyDelete"अब समय आ गया है कि हर पांडव के नाम से दस-पाँच लफड़े मीडिया में फैला दिए जायें." हा युवराज , फैलाव जरूरी है .. :)
ReplyDeleteराजकुमार में तो इतनी अक्ल नहीं है, जरुर मामाश्री ही सलाह दे रहे होंगे।
ReplyDeleteफिलहाल तो पांडवों के चरित्र-हनन की शुरुआत यहाँ से शुरू करते हैं.........
ReplyDeletebehad sasti aur marak kootniti......
pranam.
राजनीति का काला चेहरा उघार कर धर दिया....
ReplyDeleteसार्थक व्यंग्य...
बहुत ही सटीक और प्रभावशाली...