बहुत दिनों बाद कल रतिराम जी की दूकान पर जाना हुआ. बहुत दिनों बाद इसलिए क्योंकि करीब ढाई साल हो गए, हमने पान खाना छोड़ दिया है. जाने का प्रयोजन यह कि पान के शौक़ीन हमारे मित्र तारकेश्वर मिसिर 'ढेर' दिन बाद मिले. पता नहीं कब और क्यों शुरू हुआ लेकिन पिछले करीब पंद्रह सालों से तारकेश्वर हमें और हम उन्हें बाबा कहकर संबोधित करते रहे हैं. खैर, बाबा से मेल-मिलाप हुआ. दोनों ने मिलकर देश की हालत पर चिंता व्यक्त की. कई दिनों से हम अकेले ही चिंता व्यक्त कर रहे थे. तारकेश्वर मिले तो मन में आया कि ढेर दिन बाद मिले हैं आज तो देश की हालत और खराब होते ज़माने पर चिंता व्यक्त करके मज़ा ही आ जाएगा. दोस्तों के साथ मिलकर चिंता व्यक्त करने का मज़ा और ही है. और फिर अभी तो छब्बीस जनवरी का मौसम चल रहा है. अब देश के बारे में चिंता व्यक्त नहीं करेंगे तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा.
एक बार चिंता व्यक्त कर देते हैं तो करीब दस दिन तक लगता है कि देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभती जा रही है.
खैर, बात शुरू हुई; "क्या लगता है? यूपी में क्या होगा?" और ख़त्म हुई इस बात पर कि; "बताइए ई लोग़ हरी कुंज़रू को जयपुर फेस्टिवल से जाने के लिए बोल दिया?" और ये कि; "आमिर खान टीवी पर बताते नहीं थकते कि अतिथि देवो भव"
चिंता वगैरह व्यक्त करके बोर हो लिए तो तारकेश्वर बोले; "अच्छा बाबा, रतिराम जी का हाल कैसा है?"
मैंने कहा; "ठीक ही होंगे. बहुत दिन से उनके दूकान पर नहीं गए. जायें भी कैसे, अब तो पान खाना ही छोड़ दिए."
तारकेश्वर बोले; "चलिए आज हुयें चलते हैं. हुयें चाय-पान हो जाएगा और रतिराम से मुलकात भी हो जाएगा."
दोनों गए. देखा रतिराम जी हमेशा की तरह व्यस्त थे. देखकर बोले; "अरे, आज सूरज पच्छु से कैसे उग गया? दुन्नो मिसिर महराज एक्के साथ? का हाल है?"
मैंने कहा; "ऐसा मत कहिये. आपके दूकान पर इतना दिन बाद नहीं आये कि सूरज का उदाहरण दें. क्या हाल है? एतना कपड़ा काहे लादे हैं?"
वे बोले; "कहिये मत. आ ई कलकत्ता का मौसम भी आपके सेंसेक्स के माफिक हो गया है. पिछला पचीस दिन में चार पर गर्मी आयी और चार बार जाड़ा. आ कभी-कभी त ऊ हाल हो जाता है. ऊ का कहते हैं आपलोग?"
मैंने कहा; "क्या कहते हैं हमलोग?"
वे बोले; "अरे ओही भाई जो आपलोगों का बिजनेस में है न. अरे ओही पर तो सारा दिन जगत बोस ज्ञान देते हैं."
मैंने कहा; "जगत बोस, माने वो टीवी पर जो आते हैं? वो स्टॉक अनालिस्ट?"
रतिराम राम जी सिर खुजलाते हुए याद करने की कोशिश करते हुए बोले; "अरे भाई ओही जो ऊ टीविया पर बताता है. आ केतना बार त एहीं पान खाते-खाते बोला है. हाँ, ऊ कहता है न इंट्रा-डे फ्लक्चुएशन. माने एक दिन में बाज़ार बहुत भोलेटाइल रहता है त उप्पर-नीचे करता है न, ओइसे ही ई मौसम भी हो गया है."
मैंने कहा; "हाँ, सही कहा आपने. बिलकुल वोलेटाइल मौसम हो गया है. अच्छा चाय पिलाइए."
उन्होंने चाय दूकान पर बैठे 'कारीगर' से दो चाय बनाने के लिए कहा.
मैंने कहा; "और बताइए, धंधा कैसा चल रहा है?"
वे बोले; "आ हमें कौन सा अपना पान अमेरिका एस्पोर्ट करना है? हमरा ग्राहक सब त एही है. ओइसे भी देश का कंडीशन जेतना भोलेटाइल रहेगा हमरा धंधा ओतना बढ़ेगा. जानते ही हैं बिना चाय-पान का न त कौनो डिस्कशन ठीक से होता है आ न ही कौनो चिंता पूरा तरह से व्यक्त हो पाता है."
मैंने बात आगे बढ़ाते हुए पूछा; "और आपका बेटा कैसा है?"
मेरा सवाल सुनकर लगा जैसे उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा. बोले; "जाने दीजिये. उसका बारे में नहीं पूछिए ओही अच्छा है."
मैंने कहा; "क्या हुआ? कुछ गड़बड़ कर दिया क्या?"
वे बोले; "गड़बड़? आ छोटा-मोटा गड़बड़? आप त जानते ही हैं कि पढ़ाई-लिखाई का बारह त पहिले ही बजा ही हुआ था. हम सोचे कि पढ़ेगा-लिखेगा नहीं त घर का बिजनेस में लग जाएगा लेकिन उसका बास्ते भी तैयार नहीं है."
मैंने कहा; "लेकिन वो तो दसवीं में तो पढ़ ही रहा है."
वे बोले; "अब मत बोलावाइये. पढ़ त का रहा है हमरा कलेजा पर मूंग दल रहा है."
मैंने कहा; "बताइए भी तो क्या हुआ?"
वे बोले; "ई मलंचा सनीमा के पास में में ऊ ए गो डांस इस्कूल खुला था न."
मैने कहा; "अच्छा, वो गणेश आचार्य का. वो मुंबई वाले?"
वे बोले; "अरे हा, ओही. छौड़ा दू साल उहाँ डांस सीखा. तीन-चार बार ट्राई किया रियल्टी शो में. कहीं नहीं हुआ. अब उसका उप्पर ऊ का कहते हैं रोडी बनने का भूत सवार हुआ है. अब लोफरवा सब के साथ मोटरसाइकिल दौडाने का प्रेक्टिस करता है. कहता है रोडी बनेगा. केतना समझाये कि बारह क्लास तक भी पढ़ लेगा त बिहारे में नीतीश बाबू का नया वाला जो प्लान है उसमें टीचरे बन जाएगा बाकी सुने तब न. आ कहता है कि बाबू, एक बार सलिक्शन हो गया त सीधा करोड़ों में खेलूंगा. अब इसको कौन समझाये कि ससुर तुम्हरे जईसा लाखों ट्राई मार रहा होगा. केतना रोडी बनेगा उसमें से? "
मैंने कहा; "एक ही दिन में सब नाम कमा लेना चाहता है जवान लोग़."
मेरी बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा दिए. बोले; "आ देखिये ई जो इंस्टेंट फेम का चक्कर है ऊ खाली जवान सब के माथा में नहीं घुसा है. का जवान, का लड़िका और का बूढ़ा, सब का हाल एक्के है. रश्दी जी को ही ले लीजिये. मनई जयपुर आया नहीं बाकी इंस्टेंट फेम कईसे मिला, देखिये? जो ससुर नाम भी नहीं सुना था ऊ भी पेपर में उनका जीवनी बांच रहा है."
मैंने कहा; "हाँ, सही कह रहे हैं.
वे बोले; "अब आप ही बताइए कि प्रचार का अईसा सुबिधा कहाँ मिलेगा? जौन लेखक का किताब सब भूल गए थे, ओही लेखक का न सिर्फ ओही किताब लेकिन बाकी सब किताब का भी बिक्री बढ़ गया होगा. आ आज का पेपर में निकला है कि पिछला पाँच दिन से इन्टरनेट पर अभी खाली रश्दी ही छाये हुए हैं. पूरा दुनियाँ ओनही के बारे में बात कर रहा है. बाकी उसका भी गलती नहीं है. जब उसको फिरी में एतना प्रचार मिल रहा है त उ भी थोड़ा कुछ इधर-उधर बोल के मामला आगे बढ़ा दे रहा है."
मैंने कहा; "ऐसा ही तो हो रहा है."
मेरी बात सुनकर बोले; "बाकी एक बात बताइए. ई अईसा फेस्टिबल सब भी हमको त पता ही नहीं चलता कि काहे होता है? हम ई बात इसलिए कह रहे हैं कि बड़ी पोलिटिक्स होता है इसमें. देखे हैं न कलकत्ता बुक फेयर. हम त सालों से दूकान लगा रहे हैं. केतना बार देखे हैं कि आयोजक लोग़ सब बड़ी बदमाशी करता है. आ आपको ए गो सच्चा घटना बताते हैं. कविता पाठ होने वाला था. एक आयोजक आया और एक्के साथ आठ पान ले गया. आ बिसबास नहीं कीजियेगा कि ओही सब कबी लोगों को खिला दिया पनवा सब, जिसका कबिता नहीं सुनना चाहता था लोग़. आ उहाँ थूकने का जगह नहीं. कबी सब का मुँह बंद. ऊ लोग़ कबिता ही नहीं सुना पाया. अईसा पोलिटिक्स भी देखे हैं हम."
मैंने कहा; "देखिये पोलिटिक्स तो हर जगह होती है."
वे बोले; "ऊ तो मानते हैं बाकी साहित्य वाला सब का पोलिटिक्स बड़ा अजूबा होता है. एक से एक सीन दिखाई देता है. हम त अनुभव किये हैं. केतना बार देखे हैं कि कोई लेखक अपना ही उपन्यास का दू पेज पढ़ के बईठ गया आ पता नहीं कहाँ खो गया. देख के लगता है जईसे अपना ही किताब पढ़ के शाक लग गया है औ एही सोच के चिंता कर रहा है कि ई का लिख दिए हम. केतना को त देखकर लगता है जईसे ई नहीं आया होता त फेस्टीबले नहीं होता. कोई-कोई त कागज़ पर सवाल लिख के लाता है. ई अलग बात है कि उसका नंबर भी नहीं आता है कि लेखकवा से सवाल पूछ सके."
मैंने कहा; "भीड़ भी तो बहुत रहती है."
वे बोले; "बस एक्के बात समझ में नहीं आता. ई एतना भीड़ होता है अईसा जगह बाकी साहित्त कोई पढ़ता नहीं है. केतना पब्लिक सब त एही बास्ते जाता है कि उसका चेहरा टीवी में दिखाई देगा. आ ई जयपुर फेस्टीबल को ही ले लीजिये. केतना त दिल्ली से गया है खाली इस बास्ते कि उहाँ जाएगा त फेसबुक पर फोटो छाप सकेगा. इस्टेटस लिख सकेगा."
मैंने कहा; "सब के केस में ऐसा नहीं है. ज्यादातर साहित्य प्रेमी ही जाते हैं."
वे बोले; "आ आप ई कह रहे हैं? आप? का आप नहीं जानते कि का सही है? अरे केतना सब को खाली देखा है कि मिनट-मिनट पर गुलज़ार साहेब का फोटो सटाए जा रहा है फेसबुक पर ताकि उसको सब साहित्त प्रेमी समझें."
मैंने कहा; "आप को कैसे पता? क्या आप भी फेसबुक पर हैं?"
वे बोले; "काहे, हमको फेसबुक पर जाने का मनाही है का? हम त बहुत दिन से फेसबुक पर हैं. आ हमको मालूम है आप भी वहाँ हैं. केतना बार आपका इस्टेटस में चिरकुट शेर सब पढ़े हैं हम. ओही सब घटिया शेर जो आप टांकते हैं वहाँ. हम सब पढ़े हैं."
मैंने कहा; "तो आप फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे काहे नहीं?"
वे बोले; "हम आपको इमबरास नहीं करना चाहते थे. हम सोचे कि हम आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देंगे त आप शरमा जायेंगे. ई सोच के कि आपका चिरकुट स्टेटस सब हम भी पढ़ते हैं."
मैंने कहा;"नहीं ऐसी बात नहीं है. शरमाना ही होता तो लगाते क्यों?"
वे बोले; "बस एही इस्पिरिट रहना चाहिए. ई न रहेगा त इस्टेटस नहीं डाल सकेंगे. चलिए हम भेज देंगे फ्रेंड रिक्वेस्ट. बाकी हमरा ए गो पेज है, रतीराम का पान के नाम से. उसको जरा लाइक कर दीजियेगा."
मैंने कहा; "आज ही कर देंगे. और आप फ्रेंड रिक्वेस्ट फेजिये. हम जल्दी से अपना फ्रेंड लिस्ट बढ़ाना चाहते हैं."
हम और तारकेश्वर चाय-पान करके चले आये. साथ में रतिराम जी का लिखा एक लेख ले आये हैं. जल्द ही ब्लॉग पर छापेंगे.
Monday, January 23, 2012
"रतीराम का पान" ज़रा लाइक कर दीजियेगा.
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Gaw mei hii jake paan khate thee,Ab Ratiramji ke Darshan to karne hii padenge....Paan bhi Khayenge aur Chai to 2 piyenge... :)
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखे हो मिश्राजी..
ReplyDeleteजी देश की चिंता करने से पहले पान खाना जरूरी है..... तभी देश-समाज-चिंतन सही होता है.
ReplyDeleteरतीरामजी ने ज्ञान चक्षु खोल दिया है, कहाँ है ई लाइक बटन..
ReplyDeleteजयपुर सम्मेलन की अच्छी खबर ली है आपने। लेकिन रतिराम जैसों से बचकर रहिएगा, सारी पोल खोल देते हैं।
ReplyDeleteयहां जा कर रतिराम के पान को लाइक करें!
ReplyDelete:-)
हम लोग और कुछ करें न करें चिंता जरूर करते रहते हैं, चिंता, निंदा, संयम ये हमारे हथियार हैं. सब समस्याओं का निदान इससे हैं.
ReplyDelete" जो ससुर नाम भी नहीं सुना था ऊ भी पेपर में उनका जीवनी बांच रहा है."
ReplyDeleteवाह भैया रतिराम, आप का सामान्य से लेकर असामान्य सारा " ज्ञान " अदबुध है भाई काहे नहीं एक ठो पान फेस्टिवल का आयोजन कर डालते
हम लोग भी इसी बहाने आप के पान का आनंद ले लेते | ललोना को रोड़ी बनाने का प्रयास करने दीजिये ..वैसे आप मन करेंगे तो भी करेगा ही ..
आप से मिलने की जिज्ञासा बढ गयी हैं : प्रणाम
ई साला पनबाडी भी शेर खां निकला :)
ReplyDeleteजय हो रतिराम जी की...
ReplyDeleteजिया हो रतिराम भैया...एकदम शाष्टांग दंडवत..
एक एक शबद अनमोल बांचे हैं महराज....
एकदम हिया गदगदा गया...
मारक पोस्ट...किस किस वाक्य को उधृत करूँ...??? भारी कनफूजन है...
लाइक कर दिया भाई जी :-)
ReplyDeleteहा हा. बहुत सही. कवि लोग को पान खिला देने वाला आईडिया मस्त है. मौसम का फ़ल्चुएसन भी.
ReplyDeleteहा हा ... शरमाना ही होता तो लगाते क्यों? :ड
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत बढिया। शुभकामनायें।
ReplyDeleteपान खाते नहीं हैं, मगर पान की दुकान पर चली चर्चा जो कहीं से कहीं मोड़ लेती हुई चली है. लगता है पान न खा कर जिंदगी ही बरबाद कर ली. काश हम भी पान चबाते और रतिरामजी की दुकान पर चर्चाते...
ReplyDeleteरतिरामजी तो वल्ड फैमस है. अच्छा है इनका अपना ब्लॉग नहीं... वरना धुरंधर तो धूल चाटते...
पान खाए तो हमें भी बहुत दिन भये बाबा, आवें का किसी रोज? रतिरामजी कम से कम पूछ कर ही तो चूना लगाते होंगे न|
ReplyDeleteहलकान भाई, रतिराम और अभिषेक ओझा के बैरी कूल और राजेस जी वर्चुअल दुनिया के कालजयी चरित्र सरीखे हैं|
शोले वाली और ये वाली पोस्ट पढ़कर मजा आ गया बाबा:)
khaayee ke paan...
ReplyDeleteलाइक कर दिये हैं जईसा आप बोले हैं!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भैया आदेश अनुसार कमेंट भी कर रहे है।
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