न्यूयार्क से प्रकाशित होनेवाली टाइम पत्रिका ने हमारे प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर करार दे दिया. वैसे अगर शायरों और गीतकारों की मानें तो करार देना कोई बुरी बात नहीं. याद कीजिये पुरानी फिल्मों में जब नायिका तमाम बहाने बनाकर नायक से मिलने आती थी और उसे लता मंगेशकर जी की आवाज़ में बताती कि; "मैं तुमसे मिलने आई मंदिर जाने के बहाने.." तो नायक के दिल को करार मिल जाता था और वह भी फट से रफ़ी साहब या किशोर कुमार जी की आवाज़ में नायिका को बता देता था कि; "तुम मुझसे जो मिलने आई सनम, मेरे दिल को करार आया..."
लगता है विषयांतर हो गया. पोस्ट २०१० के ब्लॉगर की यही त्रासदी है. वह कहीं से भी चलता है, बालीवुड पहुँच जाता है. ठीक वैसे ही जैसे पुरानी फिल्मों में कोई भी भारत के किसी भी कोने से भागता तो मुंबई जाने वाली गाड़ी में ही बैठता था और अगले शॉट में वह वीटी स्टेशन से बाहर निकलते हुए बरामद होता था.
आप इसे बालीवुडिश हैंग-ओवर कह सकते हैं.
खैर, मैं बता रहा था कि टाइम पत्रिका ने हमारे प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर करार दे दिया. लेकिन यह वाला करार शायद वह वाले करार जितना मज़ेदार नहीं था. लिहाजा इसपर तमाम लोग़ बेक़रार हो गए. टीवी न्यूज चैनल समेट पूरे भारतवर्ष को बहस का एक नया मुद्दा मिला. कुछ विद्वानों ने याद दिलाया कि हम अभी भी विदेशी मानसिकता के शिकार हैं और जब कोई विदेशी कुछ कहता है तभी उसे सच मानते हैं. इन विद्वानों ने यह भी बताया कि; "टाइम पत्रिका ने तो प्रधानमंत्री को आज अंडर-अचीवर बताया है, हम तो उन्हें पहले ही अंडर-अचीवर करार दे चुके हैं."
काफी टीवी पैनल डिस्कशन हो चुके हैं. कुछ पाइप-लाइन में भी होंगे. तमाम विद्वान इस मुद्दे पर टीवी स्टूडियो में बोलने के लिए नई टाई खरीद रहे होंगे. कुछ अपनी विट को धो-मांज रहे होंगे. तैयारी जोरों पर होगी. सरकार के कुछ योद्धा यह भी देख रहे होंगे कि टाइम पत्रिका का भारत में क्या-क्या है और उसे कौन-कौन से डिपार्टमेंट से नोटिस भेजी जा सकती है? कुछ अति उत्साही योद्धा यह भी सोच सोच सकते हैं - क्या पत्रिका का पिछले ५-६ साल का इनकमटैक्स असेसमेंट री-ओपन किया जा सकता है? मनीष तिवारी जी जैसे प्रवक्ता सरकार और प्रधानमंत्री के बचाव के लिए पुरानी टाइम पत्रिका की कॉपी खोज रहे होंगे जिसमें पत्रिका ने अटल बिहारी बाजपेयी या अडवाणी की बुराई की होगी.
ऐसे में यह जानने के लिए कि और तमाम विद्वानों का इस मुद्दे पर क्या मत है, चंदू चौरसिया ने दिल्ली और कई शहरों में जाकर लोगों की राय इकठ्ठा की. पेश है उनमें से कुछ वक्तव्य;
लालू प्रसाद जी; "इसमें का राय जानना चाहता है तुम? ...आ सुनो पहिले.. बीच में मत बोलो. आ ई जो प्रधानमंत्री को ई लोग़ बताया है...का बताया है? अंडर? का? टेकर? अंडरटेकर?..अंडरअचीभर? अच्छा...अरे वोही अंडरअचीभर. देखो ई कुछ खराब नहीं है. एकदम्मे कुछ नहीं अचीभ करने से बढ़िया है अंडरअचीभ करना. आ देखो सरकार चलाने का मतलब ई नहीं होता कि कुछ अचीभ करना ही है. देखो प्रधानमंत्री हैं बिदबान... बूझो की डिग्री है उनके पास, उनका ईज़त पूरा दुनियाँ में है...सो जब जो चाहेंगे ऊ अचीभ कर लेंगे..जल्दी कौन बात का है? ... आ सबसे बड़ा बात है कि सेकुलर हैं..प्रधानमंत्री जे हैं से सेकुलर आदमी हैं. आ देश को सेकुलर आदमी का ज़रुरत पहिले है अचीभर का बाद में. सेकुलर लोग़ सत्ता में नहीं रहेगा तो फ्रिकाप्रस्त लोग़ राज करने लगेगा... आ फिर सोनिया जी भी हैं साथ में... जो चीज परधानमंत्री नहीं अचीभ कर पाए ऊ सोनिया जी अचीभ कर लेंगी... बैलेंस हो जाएगा न. केतना टाइम लगता है कुछ अचीभ करने में? आ हामी को देखो, रेलमंत्री थे तब केतना कुछ अचीभ कर लिए थे.. त हमारा कहना एही है ई पत्रिका फत्रिका का कहता है उसपर मत जाओ...ई सब सच नहीं बोलता...देखो न, हम रेलमंत्री होकर एतना कुछ अचीभ किये, हमरा लिए त नहीं लिखा कि हम ओभर-अचीभर हैं. ज़रूरी बात है कि सेकुलर हाथ में देश का बागडोर है."
मनीष तिवारी; "मेरा यह कहना है कि विदेशी पत्रिकाओं की बात को हमें तभी सच मानना चाहिए जब वे हमारी सरकार की प्रशंसा करें. हमारा यह मानना है कि जब ये पत्रिकाएँ आलोचना करती हैं तब ये झूठ बोल रही होती हैं. यह हमारी पार्टी का ऑफीशियल स्टैंड है जिसे भारत के हर नागरिक का समर्थन है. हमारी पार्टी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी जी के नेतृत्व में सरकार ने बहुत कुछ अचीव किया है जिसे टाइम पत्रिका ने तवज्जो ही नहीं दी. उन्ही के नेतृत्व में ही मनरेगा जैसा प्लान चलाकर सरकार ने कितना अचीव किया है सबके सामने है. एक प्लान चलाकर हमने देश को गड्ढों से भर दिया, वह तो टाइम को दिखाई नहीं देता. और फिर अंडर-अचीवर की बात पर मैं टाइम के एडिटर से पूछता हूँ कि रिचर्ड बाबुराव स्टेंजेल, तुम्हें क्या हक है कि तुम दूसरों को अंडर-अचीवर कहो? तुम खुद सर से पाँव तक अंडर-अचीवमेंट में डूबे हुए हो. मैं केवल इतना जानना चाहता हूँ कि भारत जैसे बड़े देश में टाइम की कितनी कॉपी बेंचते हो तुम? टाइम को कितने भारतीय जानते हैं? ऐसे में अंडर-अचीवर कौन हुआ, तुम कि डॉक्टर मनमोहन सिंह?...क्या कहा? एडिटर के नाम में बाबुराव नहीं है? अच्छा मैं गूगल करके पता करता हूँ कि एडिटर के फादर का क्या नाम है?"
प्रधानमंत्री; "मैं ग़ालिब को कोट करना चाहूँगा और टाइम मैगेजीन से यही कहूँगा कि; माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हैं हम, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतज़ार तो देख."
अन्ना जी; "देखो लोकशाही है..लोकशाही में कोई किसी को कुछ भी कह सकता है. पंथ-प्रधान को भी कुछ भी कह सकता है. आज अगर सरकार जनलोकपाल बिल पारित कर देती तो जनलोकपाल इस मामले की जांच कर के बता सकता था कि पंथ-प्रधान अंडर-अचीवर है या नहीं? और एक बार ये बात गलत साबित हो जाती तो फिर हम टाइम पत्रिका की आफिस के सामने अनशन कर देते. पत्रिका से पूछते कि उसने हमारे पंथ-प्रधान को ऐसा कैसे कहा?"
हिंदी रक्षक प्रोफ़ेसर मनराज किशोर; "पहले तो मुझे इस बात का जवाब चाहिए कि टाइम नामक पत्रिका का कोई हिंदी संस्करण भी है क्या? अगर नहीं है तो क्या अधिकार है इस पत्रिका को उस देश के प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर बताये जिसमें अस्सी करोड़ से ज्यादा लोग़ हिंदी बोलते हैं? क्या टाइम के सम्पादक यह बता सकते हैं कि अंडर-अचीवर शब्द के लिए हिंदी का कौन सा शब्द है? क्या उन्हें पता है? अगर नहीं तो उन्हें यह अधिकार नहीं है कि वे ऐसा कहें. जो पत्रिका का हिंदी संस्करण तक नहीं निकलता उस पत्रिका ने क्या कहा यह बात हमारे लिए जरा भी महत्वपूर्ण नहीं है."
दिग्विजय सिंह जी; "अभी मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा. फिलहाल मैं यह पता करने की कोशिश कर रहा हूँ कि टाइम मैगेजीन और आर एस एस के बीच क्या सम्बन्ध हैं? कल मुझे अजीज बरनी ने बताया है कि प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर बताने में आर एस एस का हाथ है. एकबार मैं यह कन्फर्म कर लूँ फिर मैंने प्रेस कान्फरेन्स करके बताऊंगा कि असल मामला क्या है?"
अरनब गोस्वामी; "वेट फॉर अ डे ऐज आई ऍम ट्राइंग तो गेट लीजा कर्टिस अलांग विद कुमार केतकर, विनोद शर्मा, लॉर्ड मेघनाद देसाई एंड सुहेल सेट ऑन न्यूज-आवर. ओनली दे विल बी एबुल टू टेल हाउ करेक्ट इज टाइम्स असेसमेंट ऑफ आर प्राइममिनिस्टर. आई अस्योर यू एंड आल आर व्यूवर्स दैट आई विल पुट सम डायरेक्ट एंड टफ क्वेश्चंस टू दिस वेरी एमिनेंट पैनल."
येदुरप्पा जी; "आई डिक्लाइन टू कमेन्ट ऐज माई एस्ट्रोलॉजर हैज एडवाइज्ड मी टू नॉट स्पीक ऑन द इश्यू टिल ट्वेल्व थर्टी पीएम ऑफ फोरटेंथ जुलाई."
प्रनब मुख़र्जी जी; "ओलदो, आई हैभ स्टाप कोमेंटिंग ऑन पोलिटिकल मैटार्स बाट सीन्स इयु आर सेयिंग दैट ईट इज ए मैटोर रिलेटेड टू ओभरआल आचीभमेंट ईंक्लुडिंग इकोनोमी, आल आई हैभ टू से ईज, इभेन ऐन अचीभमेंट आफ एट पारसेंट आफ दा टोटल मैटोर ईज नाट बैड. सो, उइ शूड नाट फारगेट दैट दीस सो कोल्ड अंडरअचीभमेंट ईज ओल्सो ड्यू टू दा फैल्योर आफ दा यूरोपीयन इकोनोमी ओल्सो."
श्री कपिल सिबल; "ये तो देखिये इस पर एक बैलेंस व्यू लेने की ज़रुरत है. एक सरकार का लीडर क्या अचीव करता है उसको उसके बाकी मंत्रियों के अचीवमेंट के साथ देखना होगा. अगर आप यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी अंडरअचीवर हैं तो वहीँ पर मेरे जैसे मंत्री भी हैं जो ओवर-अचीवर हैं. ऐसे में टाइम मैगेजीन को यह भी देखने की ज़रुरत है कि कुल मिलाकर मामला बैलेंस हो जाता है. और फिर टाइम के इस कमेन्ट को सीरियसली लेने की ज़रुरत नहीं है. जब हमारे पास अचीवमेंट और ओवर-अचीवमेंट हैं, तो फिर हम अंडर-अचीवमेंट की बात क्यों करें? वैसे भी टाइम के इस असेसमेंट का इम्पैक्ट इलेक्शंस में जीरो रहने वाला है और जिस बात का इम्पैक्ट इलेक्शन में जीरो है उसको सीरियसली वैसे भी नहीं लेना चाहिए."
श्री चन्दन सिंह हाटी, मैनेजर हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान; "क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से परेशान रहते हैं? क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से दुखी रहते हैं? क्या आप ओवर-अचीव करते हैं और फिर भी लोग़ आपको अंडर-अचीवर कहते हैं? क्या इसकी वजह से आपका दिन का चैन और रात की नींद गायब हो जाती है? तो फिर खुश हो जाइए क्योंकि हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान पहली बार लेकर आया है ओवर-अचीवर यन्त्र. जी हाँ, यह ओवर-अचीवर यन्त्र वैदिक मन्त्रों के जाप और उनकी शक्ति से परिपूर्ण है. आपको ओवर-अचीवर कहलाने के लिए अब मेहनत करने की जरूरत नहीं है. आपको बस यह यन्त्र हमारे द्वारा बताये गए विधि के अनुसार अपने कार्यालय में पूजा के बाद लगा लेना है. फिर देखिएगा कि दुनियाँ कैसे आपको न सिर्फ ओवर-अचीवर मानने लगेगी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाएँ आपकी तस्वीर कवर-पेज पर छापकर नीचे बड़े-बड़े अक्षरों में लिखकर आपको ओवर-अचीवर बतायेंगी. जी हाँ, भारतवर्ष में पहली बार....."
अभी तो इतने ही महान लोगों के वक्तव्य से काम चलिए. पब्लिक डिमांड पर और लोगों के वकतव्य छाप दिए जायेंगे:-)
Wednesday, July 11, 2012
अंडर-अचीवर प्रधानमंत्री और ओवर-अचीवर यन्त्र.
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चंदू जी बड़े पत्रकार हैं। सही ही लिये होंगे इंटरव्यू! लेकिन लगता है अन्नाजी का इंटरव्यू उन्होंने पूरा नहीं छापा। अन्ना जी दो बात जरूर बोले होंगे:
ReplyDelete१. दिल दिया है तो जान भी देंगे ऐ वतन तेरे लिये।
२.इंक्लाब जिंदाबाद। भारत माता की जय।
एक और किसी का बयान था नाम नहीं याद आ रहा है किसका था- ई मैगजीन वाले सब बुड़बक हैं।
बाकी रिपोर्टिंग ठीक है।
महत्त्व अचीवमेंट का है. अंडर या अपर तो गौण है.
ReplyDeleteवाह! आनंद आ गया | सेकुलर बहुत जरुरी हैं ...अचिभर का क्या काम हैं सेकुलर दाल रोटी खा के जीवन निर्वाह हो जायेगा | वैसे अंडर-अचीवर का निकटतम हिंदी शब्द मिल जाता तो आनंद दुगुना होता जैसा की आप ने एलान किया था ....उत्सुकता बनी हुई हैं ... मुआयम जी को भी शामिल होना चाहिए | स्ट्रेस रिलीवर पोस्ट .. यु ही लिखते रहिये ..जय हो |
ReplyDeleteपूरी रिपोर्ट पढ़े बिना हम कोई निर्णय नहीं देंगे।
ReplyDeleteवाह, क्या लिखते है आप !
ReplyDeleteआपने पोस्ट लिखी ,हमने पढी , हमें पसंद आई , हमने उसे सहेज़ कर कुछ और मित्र पाठकों के लिए बुलेटिन के एक पन्ने पर पिरो दिया । आप भी आइए और मिलिए कुछ और पोस्टों से , इस टिप्पणी को क्लिक करके आप वहां पहुंच सकते हैं
ReplyDeleteलालू और हाटीजी तो गजब ढा दिए हैं एकदम !
ReplyDeleteमुआयम जी नहीं बोले कुछ? अभी तो बहुत लोग बचे रह गए. फिर से भेजिए चंदू को. :)
रिचर्ड बाबुराव स्टेंजेल तो याद रहेगा. ये भी सही है कि टाइम को कितने लोग जानते हैं. जानते होते तो टाइम्स ऑफ इंडिया कि कॉपी थोड़े न जलाते. वैसे भी एक टाईम पत्रिका के कीमत में पांच किलो टाइम्स ऑफ इंडिया आ जायेगा.
ReplyDeleteबहुत आनन्द आ गया। एक से बढ़कर एक बाइट है। वैसे लालू जी की बाइट का तो कहना ही क्या? बस देश सेकुलर ताकतों के हाथ में रहना चाहिए।
ReplyDeleteश्री चन्दन सिंह हाटी, मैनेजर हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान
ReplyDeleteचन्दन सिंह जी ने "मन मोह" लिया...