शाम का समय. रतीराम जी की चाय-पान दुकान. पंद्रह मिनटी बरसात ख़त्म हुए आधा घंटा बीत चुके हैं. हवा भी मूड बनाकर बही जा रही है. मूडी हवा के साथ जैसे ही उधर से चाय की महक चली, उससे मिलने के लिए इधर से किमाम की महक लपकी. पता नहीं दोनों कौन से पॉइंट पर मिलीं? यह भी पता नहीं कि मिलने के बाद दोनों ने कौन से दुःख-सुख की बात की? चाय से भरे मिट्टी के मुँहलगे कुल्हड़ भी आस-पास के वातावरण को मिट्टी की खुशबू सप्लाई किये जा रहे हैं. कुछ बिजी और ईजी लोग़ हैं. थोड़े हलकान और ढेर परेशान लोग़ भी.
एक बेंच पर बैठे दो लोग़ पूडल नामक शब्द की व्याख्या कर रहे थे. निंदक जी किसी के साथ अंडरअचीवर नामक शब्द डिस्कश कर रहे हैं. कमलेश 'बैरागी' जी मुझे देखते ही अपना हाथ पाकिट की तरफ ले गए. शायद जेब में पड़े पन्ने पर टीपी नई कविता निकाल रहे थे लेकिन मैं रतीराम जी की तरफ बढ़ा तो उन्होंने ने भी अपना हाथ जेब से खींच लिया. मैंने नमस्ते किया तो दाहिना हाथ उठकर उन्होंने आशीर्वाद टाइप कुछ दिया.
इधर जैसे ही जगत बोस रतीराम जी की दुकान से चले रतीराम जी के होठों पर बुदबुदाहट उभर आई. मैं पास ही खड़ा था तो सुनाई भी दी. रतिराम जी की बुदबुदाहट से जो शब्द फूटा वह था; बकलोल. मुझे हँसी आ गई. मैंने पूछा; "क्या हो गया?"
वे बोले; "अरे पूछिए मत. कुछ लोग़ का पान हमको ही बड़ी मंहगा पड़ता है."
मैंने कहा; "क्या हुआ क्या? क्या दो बार सोपारी मांग लिए क्या जगत दा?"
रतीराम जी पान को कत्था समर्पित करते हुए बोले; "अब का कहें आपसे? केहू-केहू को बुझाता ही नहीं कि कहाँ चुप होना है. ई बस ओही प्रानी हैं."
मैंने कहा; "वैसे हुआ क्या?"
वे बोले; "अब आप से का कहें? जब आये तो हम इनका बेटा का तारीफ कर दिए. बस ओही भूल हो गया हमसे. हम तारीफ का किये, ई शुरू हो गए. पूरा इतिहास बांच दिए हियें. पहिला कच्छा में केतना नंबर मिला था. दूसरा में केतना मिला. कौन-कौन मास्टर कब-क़ब का बोला लड़िका के बारे में. आ शुरू हुए तो शेस होने का नाम ही नहीं. हम कहते हैं की ससुर एगो बात शुरू हुआ त कहीं ख़तम भी होना चाहिए की नहीं? बाकी इनको कहाँ खियाल है ई सब चीज का? आ पूरा आधा घंटा चाट के गए हैं."
मैंने कहा; "होता है ऐसा. लोग़ बेटे से प्यार करते हैं तो उसकी प्रशंसा सुनने पर उपलब्धि गिना ही सकते हैं."
रतीराम जी ने हमको ऐसे देखा जैसे मन ही मन कह रहे हों; आप कौन से कोई जगत बोस से कम हैं? फिर आगे बोले; "देखिये, ई खाली बेटा का उपलब्ध गिनाने का बात नहीं है. ई असल में उस बात से खुद को जोड़ने का बात है जहाँ आदमी का तारीफ़ हो. आ ई केवल जगत बाबू का समस्सा है? सबका एही प्राब्लम है. ऊ आपके हलकान भाई कम हैं का?"
मैंने कहा; "क्या बात कर रहे हैं? हलकान भाई भी आये थे क्या इधर?"
वे बोले; "आये थे? पिछला तीन दिन से सबेरे एहिये अड्डा लगा रहे हैं निंदकवा के साथ. आ काल शाम को निंदकवे बोला हमको, त पता चला. हलकान बाबू पंद्रह दिन से अउरी बात को लेकर दुखी हैं."
मैंने कहा; "उनको किस बात का दुःख है? आजकल ब्लॉग पोस्ट पर कमेन्ट कम मिल रहे हैं क्या?"
रतीराम जी मुस्कुराए. फिर बोले; "हा हा..ऊनको आ कमेन्ट का कमी? उसका कमी त उनको कभियो नहीं होगा. देखे नहीं अभी पिछला कहानी जंगल का रात पर पैसठ कमेन्ट मिला? बाकी उनका प्राब्लम दूसरा है."
इतना कहकर वे निंदक जी को आवाज़ लगाते हुए चिल्लाए; "ऐ निंदक..निंदक."
उनकी आवाज़ शायद निंदक जी को सुनाई नहीं दी या उन्होंने जानबूझकर रिसपोंड नहीं किया. उन्होंने एक बार फिर से आवाज़ लगाई; "ऐ निंदक जी..अरे तनी हेइजे सुनिए भाई."
उधर निंदक जी अपने डिस्कशन में मशगूल. रतीराम जी बोले; "आ ई निंदकवा को देखिये. ई हफ्ता भर से किसी न किसी के साथ में अंडरअचीभर वाला बात का चर्चा किये जा रहा है. मनमोहन सिंह के ओतना धक्का नहीं लगा होगा जेतना इसको लगा है. उप्पर से कहता है कि कौनो इश्पंसर मिल जाता त टाइम पत्रिका के खिलाफ प्रदर्शन कर देता."
इतना कहकर उन्होंने फिर आवाज़ लगाई; " हे निंदक...अरे सुनो भाई. कभी हमरो सुनो तनी.
अब की बार निंदक जी ने उनकी सुन ली. उठकर आये. रतीराम जी से बोले; "काहे ला एतना परशान कर रहे हैं? चेन से बतियाने भी नहीं देते हैं."
रतीराम जी बोले; "का उखाड़ ले रहे हो बतिया के? हफ्ता भर से ओही एगो मुद्दा लेकर सबसे बतियाये जा रहे हो. आ बतियाने का एतना ही है त काहे नहीं धर लेते कौनौ न्यूज चैनल. हम तो कहेंगे कि ऊ अरनब्वा का चैनल पर चल जाओ.बाकी उहाँ, अंग्रेजी में बौकना पड़ेगा सब." इतना कहकर रतीराम ने मुस्कुराते हुए आँख दबा दी.
रतीराम जी की बात को समझते हुए निंदक जी बोले; "माटी से जुड़े मनई हैं महराज. आ ई जनम में तो अंग्रेजी भाषा नहिये बोलेंगे. बाकी अगला जनम का बाद में देखा जाएगा. आ बकैती छोड़िये औ ई बताइए कि बोलाए काहे हमको?"
रतीराम जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा; "हम कहाँ बोलाए? बोलाए हैं आपके बड़के फैन मिसिर बाबा. इनको जरा बताइए कि हलकान भई को कौन बात का दुःख है? ऊ जो कल आप बताये रहे न हमके."
निंदक जी मेरी तरफ देखते हुए रतीराम जी से बोले; "आप भी कौनो बात पचा भी नहीं सकते हैं. मिश्रा जी के भी बता दिए?"
उनकी बात सुनकर रतीराम जी बोले; "अरे त मिसिर बाबा के त ही बताये हैं. कौन सा आपका बताया रहस्स बराक ओबामा के बता आये?"
निंदक जी को लगा कि अब वे बात को टाल नहीं सकते. लिहाजा बोले; "अरे अब क्या कहें मिश्रा जी आपसे? आपके हलकान भाई को इस बात का दुःख है कि पंद्रह दिन से कोई उनका तारीफ़ नहीं किया है."
मैंने कहा; "हलकान भाई को तो तारीफ मिलती ही रहती है. फेसबुक से लेकर ब्लॉग तक हर पोस्ट में इतना कमेन्ट मिलता है."
निंदक जी बोले; "अरे ऊ त भर्चुअल वल्ड का तारीफ है महराज. हम रीयल वल्ड वाला तारीफ़ का बात कर रहे हैं."
मैंने कहा; "रीयल वर्ल्ड में भी तारीफ मिलती ही रहती है उनको."
वे बोले; "एही त प्रॉब्लम है...चलिए अब आपके सामने भेद खोल ही देते हैं. त सुनिए. हलकान भई का माडस अप्रेंडी और तरह का है. ऊ किसी न किसी ब्लॉगर से हर दो तीन दिन पर कहते रहते हैं कि ऊ ब्लॉगर बहुत अच्छा लिखता है. आ ऐसा इस लिए कहते हैं ताकि ऊ पलट कर कह दे कि आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. बाकी हुआ क्या कि जब से सावन शुरू हुआ है तब से कोई ब्लॉगर इनको मिला ही नहीं जिससे यह कह सके. कारण ये है कि कोई न कोई ब्लॉगर हमेशा भोलेबाबा को जल चढाने जा रहा है. ऊपर से दू दिन पहले झा जी फ़ोन पर मिले तो ई कह दिए कि आप बहुत अच्छा लिखते हैं मगर झमेला ये हुआ कि झा जी उधर से नहीं कहे कि आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. बस तभी से हलकान भाई दुखी हैं."
मैंने कहा; "अरे तो हमको फ़ोन कर लेते. हम तो उनको वैसे ही बताते रहते हैं कि वे बहुत अच्छा लिखते हैं."
निंदक जी बोले; "अब ई तो नहीं पता कि आपको काहे नहीं फ़ोन किये. बाकी इसीलिए दुखी हैं ऊ."
तबतक रतीराम जी बोले; "देखिये तारीफ सुनना सभी चाहता है लोग़, बाकी ज़बरजस्ती नहीं न कर सकता है. ऊ दत्तो दा भी ओइसे ही हैं. एक दिन मार्निंग वाक में अपना कुत्ता लेकर आये. कुत्ता त का पूरा शेर टाइप लगता है ऊ. आ उसी समय एगो औरी हैं मुखर्जी बाबू, ऊ भी अपना कुत्ता लेकर आ गए. दत्तो बाबू ने मुख़र्जी बाबू का कुत्ता का खूब सराहना किया बाकी मुख़र्जी बाबू ने उनका कुत्ता का तारीफ नहीं किया तो दत्तो बाबू भी नाराज़ हो गए. त कहने का मतलब ई कि पब्लिक सब नाराज़ होकर आजकाल तारीफ लेना चाहता है."
रतीराम जी की बात ख़तम होती उससे पहले ही निंदक जी बोल उठे; "आ खाली दत्तो बाबू ही काहे? भूल गए कविराज का काण्ड?"
रतीराम जी बोले; "भूलेंगे कईसे? उनका त हमेशा से एही हाल है. ऊ आपके फ़ुरसतिया जी की सूक्ति है न कि "कबी का तारीफ कर दो त ऊ फट से दीन हीन हो जाता है", ऊ सूक्ति पूरा फिट बैठता है उनपर. पहिले तो हर नया कविता सुनायेंगे औउर कोई तारीफ नहीं किया त उसका साथ दू दिन बात नहीं करेंगे. बाकी जो तारीफ कर दिया त फट से उसका सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो जायेंगे, ई कहते हुए कि बास आपका कृपा है. देख के लगता है कि जईसे सामने वाला ही इनको कागज़-कालम खरीद के दिया है आ नहीं तो ई कविता नहीं लिख पाते."
निंदक जी बोले; "हा हा हा..सही कह रहे हैं. ऊनका हाल देखकर उस समय एही लगता है."
रतीराम जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा; "अब ऊ जमाना नहीं रहा कि शम्मी कपूर जैसा हीरो भी शरमीला जी को सुन्दर बताने का बास्ते तारीफ ख़ुदा का करें जो उनको बनाया था.हम कहते हैं तारीफ त अईसे भी होता है बाकी सामने वाला माने तब."
तब तक मेरा पान बन गया था. रतीराम जी हमको देते हुए बोले; "आ लीजिये खाइए. ई तो हरि अनंत हरि कथा अनंता टाइप बात है. पूरा शास्त्र ही लिखा जा सकता है. बस वेद व्यास जईसा कोई चाहिए."
Monday, July 23, 2012
तारीफ़ करूं क्या उसकी....
@mishrashiv I'm reading: तारीफ़ करूं क्या उसकी....Tweet this (ट्वीट करें)!
Labels:
निंदक जी,
ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही',
रतिराम जी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अब देखिए हम तारीफ़ त कर नहीं पाएंगे, बाकिर रही बात रतीराम जी के, त ऊ त महाने हैं और महाने रहेंगे. बाक़ी हमरे समझ में एक ई नईं आया कि डूडल के का हुआ?
ReplyDeleteजय हो, पहले ध्यान लगा कर रतिराम जी की दुकान पर चुप्पे से खड़े हुए
ReplyDeleteऔर फिर पूरा मजा लिए वार्तालाप का ..कुछ लाइने बरबस ही होटों पर
मुस्कान बिखेर जाती हैं मसलन " आ शुरू हुए तो शेस होने का नाम ही नहीं. "
"माटी से जुड़े मनई हैं महराज. आ ई जनम में तो अंग्रेजी भाषा नहिये बोलेंगे. "
...हर एक चरित्र में अपना कुछ न कुछ अंश दिख जाता हैं ...बहुत बढ़िया
आनंद आ गया ..पुरे सप्ताह की खुराक मिल गयी : प्रणाम
"मनमोहन सिंह के ओतना धक्का नहीं लगा होगा जेतना इसको लगा है." बिल्कुले सही कहे रतिरामजी ...और ये भी कहते "अर्नब बाबु , तुम क्या जानो 'अंडरअचीभर' का दुःख | :)
ReplyDeleteगजब है.. "केहू-केहू को बुझाता ही नहीं कि कहाँ चुप होना है" हम भी ऐसा प्रानी सब से मिलते रहते हैं :)
ReplyDeleteरतिराम जी की पीड़ा को शब्द दिये आपने। आप धन्य हैं।
ReplyDeleteतारीफ करूं क्या आपकी....
ReplyDelete............
International Bloggers Conference!
मजेदार वार्तालाप...
ReplyDeleteरतिराम जी बड़े दिलचस्प जीव मालूम होते हैं.. :)