कल ज्ञान भैया से बात हो रही थी। परेशान थे। दफ्तर से घर लौटे ही थे कि पता चला 'आंदोलनकारियों' ने रेलवे स्टेशन फूंक दिया। वो भी आरक्षण पाने के लिए। जीं हाँ। हमारे देश में आरक्षण पाने के लिए मार-पीट करने और आगजनी करने को आंदोलन कहा जाता है। आरक्षण की भूखी जनता का पिछले कई दिनों से दर्शन हो रहा है। हाथ में तलवार और लाठी से लैस जनता। नारे लगाती जनता। आरक्षण पाने के लिए इतनी मेहनत करती जनता पहले शायद ही दिखाई दी हो। रास्ते बंद हैं। गाडियां बंद हैं। लोग बस अड्डों और रेलवे स्टेशन पर कई दिनों से अटके पडे हैं। किसी बेवकूफ नेता के आरक्षण के वादे को हमारी जनता अपराध करके मनवाना चाहती है।
आरक्षण के वादे मनवाना क्या इतना महत्वपूर्ण काम है? आरक्षण भी नौकरी पाने के लिए। कौन सी नौकरी भैया? जब नेता ने वादा किया था, तो जनता को पूछना चाहिए था, कि भैया आरक्षण मिलने के बाद नौकरी भी मिलेगी कि नहीं। लेकिन जनता केवल नेता जी का वादा सुनकर मस्त हो जाती है। उसे ये पूछने कि सुध नहीं रहती कि हे नेता जी आप अपना वादा पूरा कर पायेंगे कि नहीं? नेताओं ने भी जनता कि नब्ज़ को कई सालों से टटोल कर देख ली है। उसे मालूम है कि वादा कर देना ही काफी है। वादे जनता के लिए अफीम का काम करते हैं।
लेकिन क्या इन 'आंदोलनकारियों' का कर्तव्य नहीं है कि खुद से सवाल करें। उनके इस आंदोलन की वजह से उस नेता को कितना नुकसान हो रहा है, जिसने वादा किया था। मैंने एक टीवी चैनल पर देखा। खुद को सामजिक विज्ञान का विशेषज्ञ समझने वाले न्यूज़ रीडर ने सरकार को बहुत धिक्कारा। उसे इस बात से शिक़ायत थी कि कोई नेता इन 'आंदोलनकारियों' के आंसू पोछने नहीं गया। कैसे आंसू? अपराध करने के बाद आप क्या चाहते हैं? कोई आकर आपसे बात करे! अगर बात ही करनी थी तो फिर ये गुंडागर्दी किस लिए। जो टीवी चैनल ऐसे अपराधियों को आंदोलनकारी बताता हो, उसके बारे में क्या कहेंगे।
अजीब स्थिति है। नेताओं के किये गए वादों का मजाक आम जनता से लेकर विशेषज्ञ तक, सभी उड़ाते हैं। फिर आरक्षण देने का वादा इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया कि उसे मनवाने के लिए जनता अपराध करने पर उतारू हो गई है। अब तो इस घटना को एक नया रुप मिल गया है। अब ये तथाकथित आंदोलन दो जातियों में संघर्ष का रुप ले चुका है। विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों को अब तो ऐसी आपराधिक घटनाओं को आंदोलन का नाम देना बंद करना चाहिए। एक अर्जी टीवी न्यूज वालों के लिए भी। कृपया ऐसे लोगों को उतना ही महत्व दें जितना वो पचा सकें। जहाँ-तहां कैमरा लेकर पहुंचेगे तो फिर ये 'आंदोलनकारी' एक कि जगह दो लाठी लेकर निकलेंगे। आख़िर इनका ध्येय केवल ज्यादा से ज्यादा कवरेज़ पाना है।
Saturday, June 2, 2007
आरक्षण गाथा
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इतना तो लगता है कि नेता लोग इस आंदोलनकारी अपराध के बाद जबान खोलने में कुछ लगाम देंगे. आरक्षण की रेवड़ी बांटने के लिये होड़ नहीं लगायेंगे.
ReplyDeleteजैसे कि कांगेस ने अधिकारिक तौर पर गूजर या मीणा के पक्सः में चोंच नही खोली है.
ये तो ट्रायल जाब है साहब पहले पंजाब मे किया था अब राजेस्थान मे चल रहा है कि कोई सरकार किसी प्रदेश मे अपनी पार्टी की सरकार न होने की सुरत मे किस किस तरह से आंदोलन के नाम पर बलवा,दंगे करवा सकती है ये अलग बात है अब कमान हाथ से निकल गी है भिंडरावाले की तरह
ReplyDeleteइस तरह से इनको आरक्षण तो कतई नही मिलने वाला, अलबत्ता जाति संघर्ष मे खून खराबा जरुर होगा। लेकिन भाई, ये बताया जाए, कि आम आदमी ने इनका क्या बिगाड़ा है। अभी थोड़े ही दिनो में दिल्ली,हरियाणा,राजस्थान और अन्य प्रभावित प्रदेशों मे जरुरी चीजों की किल्लत होगी, तब स्थिति और विकराल हो जाएगी। लोकतन्त्र का मतलब यह नही होता कि लाठी लेकर सड़क पर आ जाए। सरकारी गाड़ियां फूंककर और रेल पटरिया उखाड़कर ये लोग किसी का भी भला नही कर रहे। जाने कब समझेंगे ये नासमझ।
ReplyDeleteसरकार को इनसे सख्ती से निबटना चाहिए। जिन बसों, ट्रेनो को ये जला रहे है, ये सारा साजो सामान अन्य भारतीयों के द्वारा दिए गए टैक्स से ही खरीदा जाता है।